Manzile - 30 in Hindi Motivational Stories by Neeraj Sharma books and stories PDF | मंजिले - भाग 30

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मंजिले - भाग 30

मंजिले ------ मर्मिक कहानियो की पोथी है जो जज्बाती और भावक थी। इंसान सोचने पर मजबूर हो जाता है कभी कभी..... "ये " इस कहानी का शीर्षक है। ये ऐसा होता, ये ऐसा न भी होता।

हमारे देश का विकास" ये" पर ही रुका हुआ है!!

पूछो कैसे इनका ये ही कभी लम्बे भाषण से हटा ही नहीं.... जानते हो तरवेणी संगम मे भी ये ने खास भूमिका निभायी। ये ऐसा न भी होता, ये हो गया। हम देशवासी बेहद दुखी है, ये न होती, ऐसी भखदड़ तो सब गरीब बच जाते।

ऐसा ही अहमदाबाद मे हुआ कितने ही यात्री मर गए। यहां जाहज गिरा वो भी हॉस्पिटल पे। छत पे गिरा। सरकार बोली अगर ऐसा ये न होता, एक इंजन साथ देता तो घटना न घटती।

चालक दल भी मारा गया, साथ मे मासूम लोग, पर एक बच गया।

पत्रकारो ने पूछा, " ये बच गया, शुक्र है। " उसने हाल बयान किया, ये कैसे बचा? ?" जिनको राखे साईया, मार न सके कोई।"

दुखदायी हालत मे सब लोग, डॉ फेमली सारी मारी गयी।

मंत्री जी भी मारे गए। हलात उन सब के देखने योगये थे।

कया हो गया !

मकसद सब का यही होता है, "आपनी मंजिल पर पहुंच जाना, बच्चो के बीच। "

हौसला टूट जाता है, 'ये' इंसान को कही का नहीं छोड़ती।

सरकार ने राहत शिबर लगा दिए। कितनी प्रॉब्लम ख़डी हो गयी अचानक।

'ये 'काश ऐसा कुछ भी नहीं हुआ होता। सब आपने घरो मे होते बच्चों संग। डॉ युवक खाना खा चुके होते, हर के खाब होते है... पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ....

गरीब आदमी घर मे कमाने वाला भी वही होता है, ये वो उस हादसे मे जख्मी न हुआ होता, कोई मरा न होता... ये कभी किसी पर अपीती न आयी होती। ये कोई घटना घटत न होई होती। सच मे कोई ज़ख्म से सेहकता नहीं, रोता न, कुरलाता न। कोई शायद कभी अनाथ न बनता। ये जीवन की नजदीकी को भी कभी कभी कितना दूर कर देती है। ये एक वो लडू है जो सोचा जा सकता है, खाया नहीं जा सकता... कारण रिटेक नहीं है जिंदगी मे दुबारा से। फ़िल्म की कहानी नहीं है। इसे रिटेक कर दुबारा से शुरू किया जा सके। 

ये सरकार कभी ऐसा वक़्त न देखती।, जी घर का जी ही होता है, आर्थिक मदद उसकी जगह कभी नहीं ले सकती। एक सोच इंसान की, ये अगर न होता, सब बच जाते। अहमदाबाद की वो मनहूस घड़ी, जो हो गया, कयो हुआ, किस लिए हुआ, ये न होता तो ----- ये हादसा कभी कोई भी भूल नहीं सकेगा , पता कितना नुकसान उठाना पड़ा... टूटे हुए दिल, टूटे ही रह गए। बिखरना लिखा था, पर ये ना लिखा होता.... बाग मे हर फूल खिला ही रहता। कितना दुःख महसूस करना पड़ा,जीवन चलने का नाम है ------ "ये " जीवन की जड़ है, बूटा कभी भी इस का मुरझाता नहीं। ये के बिना हम सब अधूरे है, उदाहरण प्रसूत करती है ---"ये "

ये एक किये हुए काम का पश्चाताप है, हौसला नहीं है, वो तो तुम कर चुके... पर ये सिखा देती है... ये --------"

(चलदा )--------------- नीरज शर्मा।