### **मेरी जान**शाम के 6 बजे थे। दिल्ली की गलियों में ठंडी हवा चल रही थी, और सूरज ढलने की तैयारी में था। रोहन अपनी काली SUV को तेज़ी से पार्किंग में लगाकर घर की ओर भागा। उसके चेहरे पर एक अजीब सी बेचैनी थी। आज उसने ऑफिस में बॉस से डांट खाई थी, और मन में बस एक ही ख्याल था—अंजलि, उसकी प्यारी पत्नी, उसकी "मेरी जान"। वो जानता था कि अंजलि की एक मुस्कान और उसकी प्यार भरी डांट ही उसे सारी टेंशन से आज़ाद कर सकती थी।रोहन और अंजलि की शादी को 5 साल हो चुके थे। दोनों की लव मैरिज थी, और इन 5 सालों में दोनों ने एक-दूसरे को अच्छे से समझ लिया था। लेकिन एक चीज़ जो कभी नहीं बदली, वो थी उनकी नोंक-झोंक। अंजलि थोड़ी ज़िद्दी थी, और रोहन को उसकी ज़िद तोड़ने में मज़ा आता था। अंजलि हमेशा कहती, "रोहन, तू मेरा कुछ बिगाड़ नहीं सकता, मैं तेरी बॉस हूँ!" और रोहन हँसते हुए जवाब देता, "हाँ मेरी जान, तू बॉस है, लेकिन मैं तेरा बॉस हूँ!"रोहन ने जैसे ही घर का दरवाज़ा खोला, अंजलि की आवाज़ गूँजी, "अरे, इतनी देर कैसे हो गई? मैं कब से इंतज़ार कर रही हूँ! आज मम्मी-पापा आने वाले हैं, और तूने अभी तक कुछ तैयार नहीं किया?" अंजलि ने अपनी कमर पर हाथ रखे हुए, गुस्से में रोहन को देखा। उसकी बड़ी-बड़ी आँखें गुस्से से चमक रही थीं, लेकिन रोहन को उसका ये गुस्सा हमेशा प्यारा लगता था।"अरे मेरी जान, गुस्सा मत कर! ऑफिस में थोड़ा लेट हो गया। चल, मैं अभी सब संभाल लेता हूँ।" रोहन ने अपनी टाई ढीली करते हुए कहा और अंजलि के पास जाकर उसे गले लगाने की कोशिश की। लेकिन अंजलि ने उसे धक्का दे दिया। "गले लगाने से काम नहीं चलेगा, मिस्टर रोहन शर्मा! पहले जाओ, मार्केट से समान लाओ। मम्मी को पनीर टिक्का पसंद है, और पापा को चिकन बिरयानी। जल्दी जाओ!" अंजलि ने ऑर्डर दिया, और रोहन हँसते हुए बोला, "जो हुकुम मेरी जान!"रोहन मार्केट गया, और रास्ते में सोचने लगा कि अंजलि कितनी बदल गई है। शादी से पहले वो कितनी शांत और प्यारी थी, और अब? अब तो वो घर की शेरनी बन गई थी। लेकिन रोहन को ये शेरनी बहुत प्यारी थी। उसने जल्दी से सारी चीज़ें खरीदीं और घर लौट आया। घर पहुँचते ही अंजलि ने उसे फिर डांटना शुरू कर दिया, "अरे, ये पनीर ताज़ा नहीं लग रहा! और ये चिकन तो बिल्कुल ठंडा हो गया है! तू कुछ ढंग से काम नहीं कर सकता, रोहन?"रोहन ने हँसते हुए कहा, "अरे मेरी जान, तू तो बस बहाना ढूँढती है मुझे डांटने का। चल, अब मैं किचन में हेल्प करता हूँ।" अंजलि ने आँखें तरेरीं, लेकिन फिर हल्के से मुस्कुरा दी। दोनों ने मिलकर किचन में खाना बनाना शुरू किया। अंजलि पनीर टिक्का तैयार कर रही थी, और रोहन चिकन बिरयानी के लिए मसाले भून रहा था। बीच-बीच में रोहन अंजलि को छेड़ने लगता। "अरे, तू तो बहुत अच्छा खाना बनाती है, लेकिन मुझसे अच्छा तो कोई नहीं बनाता!" अंजलि ने जवाब दिया, "हाँ-हाँ, तेरा खाना खाकर तो लोग हॉस्पिटल पहुँच जाएँ!"खाना बनाते-बनाते दोनों की नोंक-झोंक हँसी-मज़ाक में बदल गई। रोहन ने अंजलि के गाल पर हल्का सा मसाला लगा दिया, और अंजलि ने बदले में रोहन की नाक पर हल्दी पोत दी। दोनों हँसते-हँसते एक-दूसरे को देखने लगे, और उस पल में सारी टेंशन, सारा गुस्सा कहीं गायब हो गया। रोहन ने अंजलि का हाथ पकड़ा और कहा, "सच में, मेरी जान, तू मेरे लिए बहुत खास है।"अंजलि ने रोहन को प्यार से देखा और बोली, "तू भी मेरे लिए बहुत खास है, रोहन। लेकिन ये मीठी-मीठी बातें बाद में करना, पहले खाना तैयार कर!" दोनों फिर से हँसने लगे। कुछ देर बाद अंजलि के मम्मी-पापा आ गए। अंजलि की मम्मी, शीला जी, ने आते ही रोहन को गले लगाया और बोलीं, "कैसा है मेरा दामाद? हमेशा की तरह काम में डूबा रहता है ना?" रोहन ने हँसते हुए कहा, "जी मम्मी, लेकिन आपकी बेटी मुझे चैन से काम करने कहाँ देती है!"अंजलि के पापा, रमेश जी, ने हँसते हुए कहा, "अरे, ये तो पति-पत्नी का प्यार है। हम भी तो ऐसे ही लड़ते-झगड़ते थे, लेकिन प्यार कभी कम नहीं हुआ।" रात का खाना बहुत मज़ेदार रहा। सभी ने पनीर टिक्का और बिरयानी की तारीफ की। अंजलि ने गर्व से कहा, "ये सब मैंने बनाया है!" रोहन ने हँसते हुए कहा, "हाँ, मैंने तो बस मसाले जलाए थे!" सभी हँसने लगे।खाना खाने के बाद अंजलि की मम्मी ने कहा, "रोहन, अंजलि को थोड़ा बाहर घुमाने ले जाया करो। हमेशा घर में ही रहती है, बेचारी बोर हो जाती होगी।" रोहन ने अंजलि की ओर देखा और कहा, "जी मम्मी, अब से हर वीकेंड हम कहीं ना कहीं जाएँगे। वादा है।" अंजलि ने मुस्कुराते हुए रोहन का हाथ थाम लिया।रात को जब अंजलि के मम्मी-पापा सो गए, रोहन और अंजलि अपने कमरे में बैठे। अंजलि ने रोहन के कंधे पर सिर रखा और कहा, "आज तूने बहुत अच्छा खाना बनाया, रोहन। थैंक्यू।" रोहन ने हँसते हुए कहा, "अरे मेरी जान, तूने तो सारी तारीफ खुद ले ली थी! लेकिन चल, कोई बात नहीं। तू खुश है, बस यही काफी है।"अंजलि ने रोहन को गले लगाया और बोली, "रोहन, तू मेरे लिए बहुत कुछ करता है। कभी-कभी मैं गुस्सा हो जाती हूँ, लेकिन सच में, तू मेरी जान है।" रोहन ने अंजलि के माथे पर एक प्यार भरा चुम्बन दिया और कहा, "और तू मेरी जान है, अंजलि। हमेशा।"उस रात दोनों ने एक-दूसरे के साथ ढेर सारी बातें कीं। अपने पुराने दिनों को याद किया, अपनी शादी के पहले दिन को याद किया, और उन तमाम पलों को याद किया जो उन्होंने साथ बिताए थे। रोहन ने अंजलि से वादा किया कि वो हमेशा उसका ख्याल रखेगा, और अंजलि ने वादा किया कि वो हमेशा रोहन की सबसे अच्छी दोस्त बनी रहेगी।अगले दिन सुबह, रोहन और अंजलि ने मिलकर मम्मी-पापा के लिए नाश्ता तैयार किया। मम्मी-पापा ने खुश होकर दोनों को आशीर्वाद दिया और कहा, "हमेशा ऐसे ही हँसते-खिलखिलाते रहो। तुम दोनों एक-दूसरे के लिए बने हो।" मम्मी-पापा के जाने के बाद रोहन और अंजलि ने फैसला किया कि वो आज पूरा दिन साथ बिताएँगे।दोनों इंडिया गेट गए, वहाँ आइसक्रीम खाई, गोलगप्पे खाए, और ढेर सारी सेल्फी लीं। अंजलि ने हँसते हुए कहा, "रोहन, तू कितना बेवकूफ है! ये सेल्फी तो बिल्कुल टेढ़ी हो गई!" रोहन ने जवाब दिया, "अरे मेरी जान, टेढ़ी सेल्फी से क्या फर्क पड़ता है? तू तो मेरे साथ है, बस यही काफी है।"शाम को दोनों लोधी गार्डन में टहलने गए। वहाँ बैठकर अंजलि ने रोहन से कहा, "रोहन, तुझे पता है, मैंने कभी नहीं सोचा था कि शादी के बाद ज़िंदगी इतनी खूबसूरत हो सकती है। तूने मेरी हर ख्वाहिश पूरी की।" रोहन ने अंजलि का हाथ थामते हुए कहा, "और तूने मेरी ज़िंदगी को पूरा किया, मेरी जान।"उस दिन के बाद रोहन और अंजलि की ज़िंदगी में और भी प्यार भर गया। उनकी नोंक-झोंक तो चलती रही, लेकिन हर झगड़े के बाद उनका प्यार और गहरा हो जाता था। दोनों ने एक-दूसरे को हमेशा "मेरी जान" कहकर बुलाया, और ये शब्द उनके रिश्ते की सबसे खूबसूरत पहचान बन गया।---