इसमें धुम्रपान और शराब का सेवन है। लेखक इसे प्रोत्साहित नहीं करता।
साथ ही, इसमें हिंसा, खून-खराबा और कुछ जबरन संबंध भी शामिल हैं। पाठकगण कृपया विवेक से पढ़ें।
वृषाली के कहने पर राहुल ने नर्स से उसका सामान दरवाज़े पर ही रखने और उसे नहाकर उसके दिए गए वस्त्रों को पहनने को कहा या सीधे वापस लौट जाए जहाँ से वो आई थी। बहुत सोचने के बाद उसने अपना सामान अनिच्छा से नीचे रखा और स्नान करने चली गयी।
उसके जाते ही वृषाली कमरे से बाहर सफेद दस्ताने पहने हुए आई, "इसे अंदर ले चलो।", उसने कहा।
"तुम मुझे अंदर करवा दोगी।", उसने शिकायत कर सामान उठाया,
"अभी नहीं। आगे और बहुत किस्से होने वाले है।", कह वो उसके पीछे चल दी।
वह दूध तैयार कर रहा था, जबकि वह बच्चे पर नज़र रख रही थी और नर्स द्वारा लाई गई चीजों की जाँच कर रही थी।
उसमे दवाइयाँ थीं, कुछ कपड़े थे... उसने नीचे खोज की। गहरे अंत में उसे एक छोटी थैली मिली। जब उसने उसे छुआ तो वह भारी था और धातु जैसी आवाजें निकाल रहा था।
उसने उसे सावधानी से खोला। उसमें स्क्रूड्राइवर, नट बोल्ट, नारंगी और हरे रंग के कुछ रंगीन पाउडर थे, फिर उसकी नज़र नीले रंग वाली एक छोटी काँच की बोतल पर पड़ी। उसका रंग मंत्रमुग्ध कर देने वाला था। यह स्पष्ट प्लास्टिक और टेप से ढका हुआ था। उस समय राहुल अंदर आया। वह स्तब्ध रह गया। वह यह देखकर सदमे में जम गया कि उसने क्या पकड़ा हुआ था। उसकी पितृ प्रवृत्ति जागृत हुई और वह बोतल की ओर झपटा। उसने मोटे तोलिये से उस शीशी को वृषाली के साथ से छीना।
"बेवकूफ हो क्या?!", उसने गुस्से में बुदबुदाया,
"क्या हो गया?", उसने हैरान होकर पूछा,
"ये...", वो रुक गया। वो किसी सोच में खो गया।
"क्या?!", उसने ज़ोर देकर कहा,
"ये, ये ज़हर है।", उसे फुसफुसाकर बोला,
"ओह! तो?", उसका आभिभाव थोड़ा अजीब था,
उसने उसे बेवकूफ बोलने वाली नज़रो से देखा।
उसने ज़हर लेकर, "क्या!? समीर ने भिजवाया है तो फूल अमृत तो होंगे नहीं, ज़हर ही होगा ना!", उसने कहा,
"कांट आर्ग्यू वित देडट। बट ये ज़हर ढक्कन खुलते ही हवा में फैल जाती है अंदर बिना सबूत छोड़े मार देती है।", उसकी हाथ दूध की बोतल पर गयी।
उसे देख वो चिल्लाई, "हाथ!",
वो रुक गया।
"हाथ धोकर आओ। बच्चे को मारना है क्या?", उसने सामान को वापस बैग में रखते हुए कहा। ज़हर भी बैग में गया।
वो सिर झुकाकर हाथ धोने गया।
उसके वापस आने के बाद वो हाथ धोने जाने लगी।
राहुल ने उसे रुकाकर पूछा, "तुम अकेले कर पाओगी?",
उसने दर्द भरी मुस्कान भरी और निकल गयी।
नर्स भी बाहर नहाकर उनके दिए गए वस्त्र पहनकर निकली। उसने इधर-उधर देखा। वृषाली को अकेले तकलीफ में हाथ धोते हुए उसके पास गयी।
"ठंडे पानी का नहीं गर्म पानी उपयोग ना करों। गर्म पानी का नल खोलो।", उसकी आवाज़ में यहाँ उसकी स्थिति के बारे में थोड़ी अनिश्चितता थी,
"आह! मैं भूल गई। मेरी गलती।", वह दर्द से मुस्कुराई,
"क्या तुमने अपनी दवाइयाँ लीं? और तुम थकी हुई क्यों दिख रही हो? और ये काले घेरे... क्या तुम ठीक महसूस कर रही हो?", उसने उससे चिंतित होकर पूछा,
"हाँ, कल रात मुझे नींद नहीं आई।", उसने कहा,
"क्यों?",
वह कड़वी हँसी हँसते हुए बोली, "किसी ने कल रात बिजलानी निवास पर मुझे ज़हर देने कि कोशिश की। मेरी सुरक्षा के लिए राहुल मुझे अपने साथ ले गया।",
"और सर?", उसने पूछा,
"हा, हा! वो बस मान गए। भले एक अनाथ पर कौन अपनी संपत्ति लुटा दे। और वो भी मुझ जैसी। आपको यहाँ भेज दिया वो ही बहुत बड़ा उपकार है।",
वो थोड़ा अंशात होकर बोली, "ऐसा नहीं है! मुझे एक पारिवारिक मामला निपटाना था। मुझे बहुत खेद है!",
"मैं आपको दोष नहीं दे रही हूँ। मैं बस थक गई हूँ। मैं बस....", बोलते समय उसकी आँखें अपना ध्यान खो रही थीं।
"मीरा, तुम्हें बैठना होगा।", वह उसे गिरने से बचाने के लिए तेज़ी से दौड़ी, "मिस्टर कपाड़िया रसोई में, मदद, अभी।", वह पूरी ताकत से चिल्लाई।
राहुल अपने कमरे से बाहर निकला और उसे उठाकर बच्चे के बगल में अपने बिस्तर पर लिटा दिया। नर्स ने उसका ऑक्सीजन स्तर, रक्तचाप और दिल की धड़कने सबकी जाँच की। दस मिनट के बाद वह शांत हुई। बच्चा उसके ऊपर लुढ़क गया और धीरे से 'ओ-ओ, मम-मम, मम्म' अपनी नन्ही आवाज़ से गाकर थपथपा रहा था। जैसे कह रहा हो कि 'सब ठीक हो जाएगा'। उसकी यह मासूम भरी अंदाज देख सबका दिल खुशी से झूम गया और वृषाली को दिल में कुछ गुदगुदी सी महसूस हुई।
बच्चा अपने नन्हे होंठ से हल्के रोनी आवाज़ निकाल उसके गाल काट रहा था।
उसके मुँह से अपने-आप निकला, "मम्मा ठीक है।",
बच्चा खुशी से खिलखिलाया और उससे लिपट गया। जैसे वो सब समझ रहा था।
उस वक्त उसके अंदर कुछ बदल गया।
उसने बड़े ध्यान से उस नन्ही जान पर अपना हाथ फेरा, उसकी आँखे इतने समय बाद ख़ुशी से भर गयी।
"क्या हुआ मीरा?", नर्स ने उसे अचानक रोने हुए देखकर पूछा,
"कुछ नहीं। बस खुशी के आँसू है।", कह वो उठने की कोशिश कर रही थी,
राहुल ने उसकी मदद की।
नर्स ने हैरानी से पूछा, "आपका बेटा?",
बच्चे को गले लगाकर खुशी से कहा, "हाँ। ईश्वर ने मुझे जीने की दिशा दी है।",
राहुल बगल में थोड़ा असहज होकर खड़ा था।
"तो इस नन्हे फरिश्ते का नाम क्या है?", नर्स ने मुस्कुराकर पूछा,
वृषाली और राहुल, दोंनो ने एक दूसरे को देखा। फिर हँसकर कहा, "हमने अभी तय नहीं किया।",
दोंनो को एक साथ बोलता देख वो पीछे हट गयी और बात बदलते हुए पूछा, "सर, मीरा की दवाईयाँ कहाँ है?",
राहुल ने उसे दिखाया।
आगे सब सामान्य चल रहा था।
दोंनो ने उसे 'कान्हा' नाम दिया।
उसका असल नाम कार्तिक कपाड़िया था जिसे उसने प्यार से चुना था पर गुप्त रखा। वृषाली उसे अक्सर कान्हा के जन्म प्रमाण पत्र को ननिहारते हुए देखती थी। उसे ऐसा देख उसकी आँखे दोषी भाव से भर जाती थी। राहुल अस्थायी रूप से अपने घर का ऑफिस से काम कर रहा था। कभी-कभी वृषाली उसकी मदद करती थी।
वह अपने बेटे को एक पल के लिए भी छोड़ नहीं पाता था। वह अपने बेटे से संबंधित हर प्राथमिक कार्य अपने हाथों में लेना चाहता था, लेकिन कोई शक ना खड़ा करने के लिए उसे पीछे हटना पड़ता था। ऐसा देख वृषाली उसे हर एक पल में सम्मिलित करती जिससे राहुल की उपस्थिति प्रश्नजनक ना लगे।
नर्स बच्चे की देखभाल में उसकी मदद करती थी जैसे उसे नहलाना, हर रोज़ उसकी मालिश करना, उसे खुद बैठने में मदद करना।
रात में वह उसकी मदद करने के लिए आगे आती पर राहुल उसे आराम करने को कहता। वह ज़ोर देकर कहती कि वह थकी नहीं थी, लेकिन वह अपनी बात पर अड़ा रहा।
कभी-कभी वे उसे समीर को अपडेट देते हुए देखते, जब उसे लगता था कि सभी सो रहे थे। वह चुपके से उनकी फोटो खींचती ताकि किसी को पता ना चले। वे भी मूर्ख बनते थे। राहुल कभी-कभी उसे घर में बेवक्त, बेवजह, मनाही वाले जगह में घूमते हुए पकड़ लेता था।
वह बेतुके रचनात्मक बहाने बनाती थी, जैसे 'वह खो गई थी।', यह कोई मतलब नहीं रखता था क्योंकि यह अपार्टमेंट विशेष रूप से इसलिए खरीदा गया था क्योंकि यह एक मंजिला अपार्टमेंट था जिसमें तीन ही कमरे थे दो कमरे और एक स्टडी रूम-कम-ऑफिस, बीच में हॉल और खुली रसोई थी। कभी-कभी वह दावा करती थी कि यह अनिद्रा थी।
इस तरह दो सप्ताह बीत गए। राहुल छोटी-छोटी बैठकों के लिए बाहर जाने लगा। फिर वो छोटी बैठक, देर रात्रि में बदल गयी। जबकि वृषाली अकेले ही कान्हा की देखभाल करने लगी।
एक दिन अचानक इंटरनेल ऑडिट के कारण देर रात तक ऑफिस में रुकना पड़ा।
उसने मौके का फ़ायदा उठा वृषाली को नींद की गोलियाँ दोगुनी दे दी। अनजान वृषाली वह दवाईयाँ खाकर बेहोश होने लगी।
रात के दो बज रहे थे, राहुल को कुछ ठीक नहीं लग रहा था। उसने वृषाली को कॉल करने की सोची पर उसका दिल और दिमाग उसे बार-बार चीख-चीखकर कह रहा था कि वो घर जाए।
उसने अपना सारे काम अपने भरोसेमंद आदमी पर छोड़ा और सीधे घर भागा।
जब वो आया वह हमेशा की रह अंदर नहीं गया। वह अपना फोन निकाला और लाइव सी.सी.टी.वी. फुटेज देखने लगा। जो उसने देखा, उसे देख उसकी रीड की हड्डी तक सब सिहर गया। घर के अंदर दो आदमी नर्स के साथ पूरे घर की तलाशी कर रही थे। उसके हाथ में कान्हा रो रहा था और वो लोग उससे धमकी भरे अंदाज़ से बात कर रहे थे। वो कान्हा को अपने सीने से चिपकाए रखी थी।
राहुल ने चाबी दरवाज़ा खोलने के लिए अंदर डाल ही दी कि उसने वृषाली पर एक नज़र डालने के बारे में सोचा। इसके बाद जो कुछ उसने पाया उससे वह और भी अधिक आश्चर्यचकित हो गया। उसने इस बात की परवाह नहीं की कि वह कितनी आवाजें निकाल रहा था, उसने झटके से दरवाज़ा खोला और अंदर घुस आया। इससे पहले कि वे कुछ प्रतिक्रिया कर पाते, उसने दोनों गुंडों को नीचे गिरा दिया। उसने नर्स को कहीं सुरक्षित स्थान पर छिपने का आदेश दिया। फिर उसने डर के मारे मास्टर बेडरूम का दरवाज़ा लात मारकर तोड़ दिया और अपनी बंदूक लेकर तेज़ी से अंदर घुस गया। उसने अपनी बंदूक उसके चारों ओर इकट्ठे हुए तीन लोगों की ओर तान दी, वह संभवतः बेहोश थी।
क आदमी वृषाली के शरीर पर भद्दी टिप्पणी करते हुए पूरे कमरे की तलाशी ले रहा था तो दूसरा और तीसरा, बेहोश वृषाली की ठीक बगल बैठे उसकी बातों का मज़ा लेते उसके बाल और होंठ गंदी भावना से छू रहे थे।
उनके हाथ, उसके कमर और स्तन तक जा ही रहे थे कि राहुल ने उन पर अपनी बंदूक दाग दी और दो राउंड उन दोंनो के हाथों पर चला दी और तीसरे को हाथ ऊपर कर नीचे बैठने को कहा। पूरा कमरा उनकी चीख और बहते खून से भर गया था। वृषाली पर भी खून के भारी छीटे पड़े थे।
राहुल ने तीनों को दरवाज़े से दूर घुटनो के बल बैठाकर उनसे उनकी सारी की सारी हथियार खाली करवा दी। सबको बंदूक की नोंक पर रख वो वृषाली उर्फ मीरा को देखने गया।
उसके पूरे शरीर पर खून के छींटे थे।
उसने उसके चेहरे पर से खून अपने सख्त हाथ से पोंछना चाहा पर वो फैल गया। फैली खून से एक बूँद धारा की तरह आँख से क्षैतिज उसके सिर तक बह रही थी।
राहुल ने अपनी मुठ्ठी भर कर उन तीनों की तरफ घूमकर, "सीधे बोलो तुम्हें यहाँ किसने भेजा?!",
किसीने कुछ नहीं कहा।
"किसने भेजा तुम्हें यहाँ?!", राहुल ने चिल्लाकर पूछा,
तीनों डरे पर किसीने कुछ बोलने की हिम्मत नहीं दिखाई।
गर्म सिर राहुल ने अपनी बंदूक तीनों में से एक आदमी के मुँह में ठूसकर धमकाया, "आखिरी मौका! नाम या जान? चुनाव तुम्हारा!",
जिस आदमी के हाथ में गोली नहीं लगी थी उसने अपने साथियों को तड़पता देख वो रोते हुए आत्मसमर्पण कर दिया। उसने जो कहा उसे सुन राहुल का सार भन्ना गया, "हम नहीं जानते! हम नहीं जानते! हमें बस एक निजी नंबर से निर्देश मिल रहा है।",
"कैसे निर्देश?!",
"हम गरीब लोग हैं साहेब जो सड़कों पर दो रोटी ढूँढने की कोशिश कर रहे हैं।",
"कैसे निर्देश?", राहुल ने दाँत पीसकर पूछा,
वो रो रहा था।
"बताओ!", राहुल ने ट्रिगर उसके कनपट्टी पर रख दी।
वह डरकर, "वा-, वो... हमे आपके घर रेकी करने और उसके बाद इनको बच्चे समेत एक गोदाम में अगले निर्देश आने तक रखने को कहा।",
"रखने को कहा कि बत्तमीज़ी करने को कहा!", उसके जूते से उस आदमी के हाथ को कुचल रहा था।
"आह! आ, सिर्फ, सिर्फ रखने को! सिर्फ रखने को!", उसने करहाते हुए कहा,
राहुल ने उसके पैर को और ज़ोर से कुचलकर, "तो एक बेहोश, अबला स्त्री पर अपनी गंदी हाथ डालकर क्या साध रहे थे?!",
"क्षमा।",
"माफी।",
"आगे से ये गलती नहीं होगी।"
वे उससे दया की भीख माँग रहे थे। उनकी हालत भी ठीक नहीं लग रही थी। उसने उनके फोन माँगे। उसकी आवाज़ सुनकर वे हड़बड़ा गए और उन्होंने उसे अपना एकमात्र फोन सौंप दिया जो उनके पास था। जैसे ही राहुल की उंगलियां फोन पर पड़ीं, एक गोली खिड़की को भेदती हुई फोन में जा लगी। इसे टुकड़ों में तोड़ दिया गया, फिर तीन राउंड फायर किए गए और घुसपैठिए को मौके पर ही मार गिराया गया। उनके मस्तिष्क और हृदय को निशाना बनाया गया था। राहुल ने बाहर देखा, वहाँ कोई नहीं था। उसने आह भरी।
उसने अपनी खून से सनी शर्ट और कोट उतारकर उसकी स्थिति देखी।
वह उसे बेहोश दिखी तो वह नहाने अंदर गया और उसके आदमी पीछे सारी लाशों को ठिकाने लगाकर सब साफ कर बाहर गए। उनके जाने के बाद राहुल बाहर आया और सीधा कान्हा के पास गया। उसका रो-रोकर बुरा हाल था। वो ना तो खा रहा था, ना ही सो रहा था, वो बस रोए जा रहा था।
अंदर वृषाली खून के धब्बों के साथ उठी।