पर्यावरण ऐसा विषय जिसका संबंध प्रकृति प्राणी प्राण परमेश्वर से है!
प्रकृति के प्रमुख दो तत्वों में प्रकृति प्राणी है और प्रकृति प्राणी में जो चैतन्य सत्ता है वहीं परमेश्वर का सत्यार्थ है!
स्पष्ट है कि प्रकृति प्राणी इनकी चैतन्य सत्ता परमेश्वर के मध्य सामंजस्य होना ही इनके कल्याण उद्भव उत्कर्ष एवं उत्थान उद्धार के लिए जिम्मेदार है!
ज़ब प्रकृति प्राणी कि चैतन्य सत्ता परमेश्वर सत्यार्थ अपने निहित स्वार्थ भोग विलास कि संस्कृति का भरण पोषण करने लगता है तब वह परमेश्वर सत्यार्थ न रहकर
परमार्थ के सांयमित संतुलित सिद्धांत को त्याग देता है और निर्लज्ज निरंकुश हो दानवीय हो जाता है यही सत्य है वर्तमान पर्यावरण प्रदूषण का जिसके
कारण निम्म है --
1- पृथ्वी कि निश्चित क्षमता से कही अधिक उस पर बोझ अर्थात
संसाधन एवं मांग के मध्य बड़ा अंतर है जिसका कारण बढ़ती जन संख्या है जिसका प्रभाव उपलब्ध जल क्षमता पर सीधा पड़ता दिख रहा है जल कि मांग से बहुत कम जल उपलब्धता है!
2- बढ़ती जनसंख्या कि आवश्यकता के अनुसार आवासो का निर्माण जिसके कारण उपलब्ध पृथ्वी पर वन जो जीव+वन=जीवन का सत्यार्थ है
कट कर नई बस्तीयां बस रही है
जिसके कारण वन क्षेत्र समाप्त
हो रहे है जिसके निम्न प्रभाव
परिलक्षित हो रहे है!
(क)-
हरित वन क्षेत्रो के कि कमी होती जा रही है जिसके कारण
प्रकृति मौसम ऋतुओ का चाल चरित्र बदल रहा है वर्षा कम हो रही है जल श्रोतो कि कमी होती जा रही है!
(ख)-
कम हो रहे वन क्षेत्रो के कारण वन प्राणि जो प्रकृति प्राणी के लिए अनिवार्यता है जिनके रहने से प्रकृति स्वस्थ्य एवं स्वच्छ रहती है जो प्रकृति के उपमार्जक प्राणी होते है समाप्त हो रहे है जैसे गिद्ध,गौरैया, तोता, शेर, चिता, भालू, बाघ,चिता आदि अनेक ऐसे प्रकृति पर्यावरण पोषक प्राणी है या तो विलुप्त हो चुके है या विलुप्त होने वाले है
यहां तक बंदरो के रहने के लिए भी वन उपलब्ध नहीं है जिसके कारण गली मोहल्ले रेलवे प्लेट फॉर्म पर उधम मचाते मनुष्य को उनकी गलती का एहसास कराते रहते है!!
( ग) -
बढ़ती जनसंख्या के भरण पोषण के लिए अन्न फल आदि कि आवश्यकता पृथ्वी कि क्षमता से अधिक है जिसके कारण फर्टीलईज़र रसायनो का बेहिसाब प्रयोग धरती माँ कि कोख को तो दूषित कर ही रहा है प्राणियों के जीवन में धीरे धीरे विष घोल रहा है जिसके कारण नई नई बीमारियों न जकड़ना शुरु कर दिया है!
(घ )-
अंधाधुंध विकास अद्योगिकरण एक दूसरे से आगे निकलने कि होड़ के घातक प्रतियोगिता एवं प्रतिस्पर्धा के युग में मानव समाज जिसकी सर्वाधिक जिम्मेदारी पर्यावरण के संरक्षण कि है दिशा दृष्टि हीन होकर आने वाली अपनी ही पीढ़ियों के प्रति संवेदन हीन हो चुके है जिसके कारण वर्तमान में
(च) -
सिमित संसाधनों एवं बढ़ती मांगो के बीच का अंतर इतना विकट होता जा रहा है कि मनुष्य प्राकृतिक संसाधनों के आभाव के कारण कृत्रिम स्वंय उत्पाद का प्रयोग करता जा रहा है जो उसके लिए ही बड़ी समस्या बनती जा रही है पालीथीन इसका ज्वलंत उदाहरण है जो वर्तमान में पर्यावरण प्रदूषण में मुख्य भूमिकाओ का निर्वहन कर रहा है!
(छः) -
प्राणी सदैव यह अपनी सुख सुविधा के लिए प्रयत्नशील रहता है जिसके लिए अंवेषण अनुसन्धान करता रहता है और अपनी सुख सुविधा को प्राप्त कर भोगता है लेकिन संतुलित होकर नहीं असंतुलित एवं अव्यवहारिक होकर जिसका परिणाम यह होता है कि पर्यावरण दूषित हो रहा है!
प्रदुषण --
यदि पर्यावरण प्रदूषण के कारक कारण के विषय में कहा जाए तो पृथ्वी का कण कण दूषित प्रदूषित है जिनके कुछ प्रमुख कारणों निम्न है --
वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, मानव मिलावट प्रदूषण, आहार प्रदूषण, आदि इत्यादि
वायु प्रदूषण
प्रदूषण प्रदूषण प्रदूषण यत्र तत्र सर्वत्र प्रदूषण जिसके लिए मात्र मानव ही है जिम्मेदार जिसने अपने कर्तव्य दायित्व बोध का निर्वहन नहीं किया या ही कर रहा है और जल +वन=जीवन अर्थात जल जीवन वन जीवन ही प्रकृति प्राणी परमेश्वर ब्रह्माण्ड के सिद्धांत कि तिलाजलि देता जा रहा है एवं गोस्वामी तुलसी दास जी के पंच महाभूत सिद्धांत कि तिलाजलि दे चुका है --
(छिति जल पावक गगन शमीरा
पंच तत्व यह अधम शरीरा)
गोस्वामी जी के पंच तत्व का ही विधिवत विश्लेषण है महान वैज्ञानिक मेडलीफ कि आवर्त सारणी जिसमे एक सौ बीस तत्व है!
विज्ञान एवं वैज्ञानिको ने तो प्रकृति प्राणी परमेश्वर के सिद्धांत का आदर किया एवं आदर करते हुए उसके अंतर्मन रहास्यो को प्रकृति प्राणी परमेश्वर के लिए ही जाना समझा एवं जानने समझने कि निरंतर कोशिश कर रहे है किन्तु प्राणियों में सर्व श्रेष्ट मनुष्य जिसके पास सोचने समझने खोजने क्षमता निहित है ने अपने निहित स्वार्थ में अपने ही अंवेषणो का इतना दोहन किया कि दुरूपयोग कि सीमा से बहुत आगे निकल चुका है जो उसके एवं उसकी पीढ़ी के लिए ही घातक होता जा रहा है!
पर्यावरण को स्वच्छ रखने के लिए बहुत सुझाव कार्य अवश्य किये जा रहे है जैसे --
1-
प्लास्टिक प्रयोग कम करना!
2-
परम्परागत ऊर्जा श्रोतो पर निर्भरता कम करना और वैकल्पिक ऊर्जा का अधिकतम उपयोग!
3-
धुएँ एवं वायु प्रदूषण के नियंत्रण के लिए इलेक्ट्रिकल वेकिल कार दो पहिया को प्रोत्साहित करना!
4-
जैविक एवं प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देना!
5-
भोजन में मोटे अनाजो मिलेट का प्रयोग करना!
6- बृक्षरोपण अभियान!
7-जल संरक्षण के उपाय!
आदि आदि!
जितने प्रयास पर्यावरण को स्वच्छ रखने के लिए किए जा रहे है उससे कई गुने अधिक गति से पर्यावरण बढ़ रहा है जिसका नित्य निरंतर बढ़ता आबादी का बोझ तो नये नए प्रदूषण!
सांस्कृतिक प्रदूषण इसका विल्कुल नया संस्करण है सनातन पर्व श्रद्धा भाव एवं ईश्वरीय विश्वास पर आधारित है जिनका विकृति होता स्वरूप भी पर्यावरण का कारण है जैसे दीपावली में आतिश बाजी एवं विवाहोत्सव में होने वाली अतिश बाजी प्रदूषण के नव संस्करण है
दूसरा प्रमुख कारण भ्र्ष्टाचार है जिसके कारण पर्यावरण कि स्वच्छता के लिए जो भी किया जाता है वह कागजी अधिक वास्तविक लगभग शून्य होता है
प्रत्येक वर्ष भारत कि राज्य सरकारे घोषित कर पचास करोड़ बृक्षरोपण कराती है वास्तविकता पांच बृक्ष नहीं दीखते यदि कि गयी घोषणाए सही धरातल पर होती तो पर्यावरण कि समस्या ही नहीं होती!
बहुत स्पष्ट है विल्कुल स्पष्ट है पर्यावरण को ना तो कोई सरकार स्वच्छ कर सकने में सक्षम है ना ही योजना पर्यावरण को स्वच्छ रखने के लिए प्रकृति प्राणी परमेश्वर जल जीवन वन जीवन के सत्यार्थ को सम्पूर्ण वैश्विक मानव समाज विशेषकर भारतीय समाज को अपने एवं अपनी भवी पीढ़ी राष्ट्र के विषय में गंभीरता से सोच समझकर प्रत्येक भारतीय को पर्यावरण स्वच्छता के लिए लगना होगा!!
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश!!