" कहते हैं सपना तो सपना ही होता है प्रभु! उसकी उम्र नहीं होती, और जो सपना एक उम्र तक अपने साथ रहे वो सपना नहीं फिर लक्ष्य बन जाता है।
आज मैं भी अपने एक बचपन के सपने को पुरा करने की राह पर कदम बढ़ाने जा रही भगवान, आप मेरा साथ देना... "
अपने घर के छोटे से मंदिर में खड़ी विद्या देवी हाथ जोड़े भगवान से प्रार्थना कर रही थी। यु तो वो हर रोज उनकी पुजा करती है पर आज का दिन विद्या देवी के लिए कुछ विशेष है। आज उन्हें जिन्दगी ने अपने सपनों को जीने का दुसरा मौका दिया है।
" दादी! दादी... चले हम देर हो जाएंगे, फिर टिंचर आपके साथ मुझे भी क्लास में खड़ा कर देंगी। "
13 साल की शानाया अपने कमरे से स्कूल के लिए तैयार हो अपनी पुजा कर रही दादी के पास आकर उनका दुपट्टा खिंचती हुई बोली, विद्या जी जल्दी से भगवान के सामने आपने हाथ सर से लगती हुए बोली
" अरे नहीं.. नहीं.. मैं तो तैयार ही हूं ये तेरे पापा कब से बाथरूम में घुसा है उसे बुला... " विद्या जी अपनी सफेद सलवार सूट पर पहने अपने गहरे हरे रंग के दुपट्टे को ठीक करती हुई बोली, इतने में सामने किचन की तरफ से उनकी बहू और सनाया की मां हाथों में दो टिफिन लेकर आती हुई बोली
" अरे मां वो तैयार ही है आप दोनों ये रखो और टाइम पर खाना खा लेना, "
विद्या जी अपनी बहू को देख थोड़ी भावुक सी हो गई और उनका हाथ पकड़ बोली
" तुझे बहू कहने का दिल नहीं करता है। क्योंकि अब तुम मेरी बेटी से ज्यादा मां बन गई है। तभी तो अपनी सांस को भी स्कूल का टिफिन बनाकर दे रही... "
सनाया मुंह दबाकर हंस पड़ी, जिसे एक नज़र देख विद्या जी के सामने खड़ी विभा बोली
" मां आप ने भी तो मुझे टिफिन बना बना कर दिया है जब मैं ऑफिस जाता करती थी। तो अब बारी मेरी है। आप बस आपने उस अधूरे सपने को पुरा करो जो बचपन के अभावों ने, लोगों की छोटी सोच ने आपसे छिन लिया हम आपके साथ है।"
" हां मां विभा बिल्कुल सही कहे रही, अच्छा अब चलो वरना आप दोनों को देर हो गई। तो दो दो बच्चे के हिस्से की डांट मैं नहीं खाने वाला टिचर से... " अपने कमरे से निकलते हुए विद्या जी का बेटा अशोक ये बोलते हुए कार की चाबी लेने लगा। उनकी बात पर सब मुस्कुराने दिए।
अशोक, विद्या जी और सनाया को स्कूल छोड़ देता है। गेट पर खड़ी सनाया जी बहुत धीमे कदमों से आगे बढ़ रही थी। उनके मन में बड़ी घबराहट सी थी कहा वो 58 की उम्र पार करने वाली बुढ़िया और कहा ये छोटे-छोटे बच्चे जाने सब क्या सोचेंगे। क्या कहेंगे।
" दादी आप को डर लग रहा है ना? " सनाया आपनी दादी की उड़ी हवाइयों वाली शक्ल देख बोली, विद्या जी उसे मासूमियत से देखने लगी।
" हां, सना देख ना बेटा सब छोटे बच्चे हैं और मैं कहां बुढ़िया। कहीं मैंने दुबारा पढ़ने का सोचकर गलती तो नहीं कर दी। "
" ओहो दादी लाओ अपना हाथ दो... ( सनाया झट से उनका हाथ पकड़ लेती है) आप जैसे मुझे पहली बार स्कूल लेकर आई थी और फिर पुरा दिन मेरा हाथ पकड़ मेरे साथ बैठी थी। वैसे ही मैं भी आज आपके साथ बैठुगी फिर आपको डर नहीं लगेगा। "
सनाया की मासुमियत में कहीं इतनी बड़ी बात विद्या जी की आंखें डबडबा दी। वो हैरानी से बोली
" तुझे.. तुझे ये सब किसने कहा तुझसे तो याद भी ना होगा। "
" मम्मी पापा ने बताया... कि आप बोहोत दिनों तक मेरे साथ स्कूल में बैठती थी जब मैं छोटी थी। ताकि मुझे डर ना लगे तो बस आज मैं भी आपके साथ बैठुगी। "
सनाया और विद्या जी क्लास में गए। कुछ टिचर और सभी स्टुडेंट्स के साथ आए कुछ के मां बाप भी प्राथना के स्थल पर खड़े थे। इतने में स्कूल की प्रिंसिपल ने विद्या जी को उपर बुलाकर सब से उनका परिचय कराया, जब उन्होंने बताया विद्या जी फिर से अपनी अधुरी पढ़ाई शुरू कर रही है। खुद को शिक्षित करने का दुसरा मौका दे रही है। लगभग सभी हैरान थे।
कुछ लोगों ने भुनभुनाते हुए आपस में कहा
" अरे ये अब पढ़कर क्या करेगी। इनकी उम्र पढ़ने की नही पुजा पाठ करने की है अपने पोते पोतियों की उम्र के बच्चों के साथ पढ़ेगी जाने बच्चों पर क्या असर पड़ेगा। "
विद्या जी की कानों में सब कुछ हल्की भुनभुनाहट और बातें जा रही थी। मन इससे बेचैन हो रहा था। फिर अचानक ही प्रिंसिपल साहिबा ने उन्हें अपने आपके बारे में कुछ कहने के लिए उपर बुलाया।
विद्या जी बढ़ी डरी सी थी। वो क्या कहे सबसे उन्हें तो इंग्लिश भी नहीं आती और ये सब लोग उन्हें ऐसे घुर रहे थे जैसे वो कोई अजुबा हो... विद्या जी मायूस सी थी तभी उनकी पोती ने उनका हाथ पकड़ा और उन्हें उपर ले आई ।
" दादी वहीं बोलो ना जो आपने हमें बोला था। "
सनाया ने बड़े मासुमियत से कहा, विद्या जी हल्के से मुस्कुरा दी और एक बार अपने गोपाल जी को याद कर सबको प्रणाम किया और धीरे से बोली
" मैं... मैं नहीं जानती मैं इस उम्र में पढ़कर क्या करूंगी। पर मेरा ना बचपन से एक सपना था। मैं खुब पढ़ाई करके कोई बड़ी अफसर बन जाऊं। जैसे फिल्मों में होती है ना हां.. वैसे ही, पर... पर... हमारी किस्मत में शायद ये ना लिखा था। के ये विद्या को विद्या मिले... मां बाप ने छोटी उम्र में शादी करा दी, काहे की उन्हें अपने बेटे को पढ़ाना था। और फिर शादी के बाद जल्दी-जल्दी दो बच्चे हो गए। तो घर गृहस्थी में सारा सपना पोटली में बांध रख दिया सन्दुक में,
पर शायद हमारे गोपाल जी ना चाहते थे। कि ये विद्या अनपढ़ मरे, सो देखो आज हम यहां आप सब के सामने ये इस्पेसल ड्रेस में खड़े हैं। "
विद्या जी ने अपने सलवार सूट पर हाथ फेरते और चुन्नी ठीक करते हुए कहा, जिसपर सब मुस्कुरा दिए। विद्या जी, पहले अपनी पोती, फिर प्रिंसिपल साहब की तरफ देख भावुकता से बोली
" हमको कहा यकीन था हम इस उम्र में भी अपने आपकों दुसरा मौका देगे पढ़ने का और हमारा बचपन का सपना पुरा होगा। पर हमारे सपने को दुसरा मौका सिर्फ हमारे बेटे, बहु और हमारी ये प्यारी सी पोती और इस स्कूल की प्रिंसिपल साहिबा की वजह से हुआ है। हम आप सबको धन्यवाद कहते हैं और गोपाल जी को भी... "
विद्या जी की बातें सुन सभी टिचर और जो पेरेंट्स थे वो सब मुस्कुरा दिए, और सब भावुक से थे।
" सिर्फ धन्यवाद से काम नहीं चलेगा विद्या जी! आपको हर साल क्लास में अवल आना पढ़ेगा, वहीं आपका उन सभी लोगों के लिए धन्यवाद होगा। जिन्होंने आपको ये दुसरा मौका दिया है। " प्रिंसिपल साहिबा ने बहोत प्यार से कहा, तो विद्या जी हाथ जोड़कर हां में सर हिला देती है।
तभी जोर जोर से तालियां बजने लगी। जिसकी आवाज पर सब पिछे देखने लगे। विद्या जी ने जब दूर सामने की तरफ देखा तो उनकी आंखें भर आईं। दूर खड़े उनके बेटे, बहू जोर जोर से उनके स्टिच पर ताली बजा रहे थे। जिन्हें देख सनाया भी ताली बनाने लगी। और देखते ही देखते वहां तालियों की गड़गड़ाहट होने लगी। विद्या जी ये सब देखा तो उनकी आंखें भर आईं।
आज से विद्या जी ने खुद को पढ़ाई और स्कूल की तरफ कदम बढ़ाकर, आपने बचपन के उस अधुरे सपने को पुरा करने के लिए एक मौका दिया है।
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