That Last LetterA Complete Story of an Incomplete Love in Hindi Short Stories by Pankaj Sharma books and stories PDF | वो आख़िरी ख़त: एक अधूरी मोहब्बत की मुकम्मल कहानी

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वो आख़िरी ख़त: एक अधूरी मोहब्बत की मुकम्मल कहानी

दिल्ली की हल्की ठंडी शामें यूं तो हर किसी को भीतर तक भिगो देती हैं, मगर उस दिन कुछ और ही बात थी। नवंबर का महीना अपनी विदाई की आहटें लिए खड़ा था। बादल उमड़े हुए थे, मानों किसी अनकही कहानी को बयान करने के लिए बेचैन हों, और हल्की बारिश की बूँदें शहर की धूल को धो रहीं थीं, पत्तों और सड़कों को एक भीनी सी खुशबू से तर कर रही थीं। शाम के लगभग छह बजे थे, और कनॉट प्लेस के शोरगुल से थोड़ी दूरी पर स्थित, एक पुराने लेकिन सुकून भरे कैफ़े की खिड़की के पास बैठा आरव, अपनी पसंदीदा किताब, गैब्रियल गार्सिया मार्केज़ की कालजयी कृति "लव इन द टाइम ऑफ कोलरा" में डूबा था।
आरव—एक इक्कीस वर्षीय युवक, अंतर्मुखी स्वभाव का, शांत और कुछ हद तक दुनिया से कटा हुआ। किताबें उसका पहला और गहरा इश्क़ थीं, और अकेलापन उसका सबसे भरोसेमंद साथी। वह अपने कॉलेज के आख़िरी साल में था, भविष्य की अनिश्चितताओं और ज़िंदगी के अनगिनत सवालों के भंवर में उलझा हुआ। उसकी दुनिया किताबों के पन्नों और अपनी कल्पनाओं की शांत गलियों तक ही सीमित थी।
तभी, अचानक दरवाज़ा खुला, और एक तेज़ झोंके के साथ काव्या अंदर दाखिल हुई। बारिश की बूँदें उसके चेहरे और बालों से टपक रही थीं, उसका पतला कॉटन का स्कार्फ भीगा हुआ था, और वह ठंड से थोड़ा कांप रही थी। फिर भी, उसके चेहरे पर एक अप्रत्याशित मुस्कान तैर रही थी, जैसे किसी शरारत के बाद पकड़े जाने पर बच्चे के चेहरे पर होती है। उसकी आँखों में अजीब सी गहराई थी, एक ऐसा अथाह सागर जिसमें कोई अजनबी दर्द छुपा हुआ था, जो किसी अनुभवी नाविक को भी डरा सकता था। काव्या की नज़र, कमरे में घूमती हुई, जैसे ही आरव पर पड़ी, वह कुछ पल के लिए ठहर गई। उन भूरी आँखों में एक क्षणिक चमक आई, मानो किसी अनजान राह पर कोई परिचित निशान दिख गया हो।
आरव ने उसकी हालत देखी और बिना किसी हिचकिचाहट के, बिना एक शब्द कहे, अपनी हल्की नीली रंग की डेनिम जैकेट उतारकर उसकी तरफ बढ़ा दी। काव्या ने पहले उसकी आँखों में देखा, फिर जैकेट पर, और एक हल्की सी, कृतज्ञता भरी मुस्कान उसके होंठों पर खिल गई। वह मुस्कुराहट आरव के भीतर कहीं गहरे उतर गई, जैसे किसी वीरान ज़मीन पर पहली बारिश की बूँदें पड़ें। और बस, यही थी उनकी कहानी की पहली अनकही, अनजानी लाइन। उस दिन, उस कैफ़े में, बारिश की धीमी आवाज़ और कॉफ़ी की महक के बीच, दो अनजान आत्माएँ एक अटूट बंधन में बंध गईं, एक ऐसी कहानी की शुरुआत हुई जो शायद कभी पूरी नहीं होनी थी, मगर हमेशा याद रहने वाली थी।
शुरुआत छोटी थी, एक अनजाने कैफ़े में हुई एक छोटी सी मुलाकात का नतीजा, मगर असर गहरा था, जैसे शांत पानी में फेंका गया एक छोटा सा पत्थर भी गहरी लहरें पैदा कर देता है। कुछ ही दिनों में दोनों फिर मिलने लगे। वह कैफ़े उनकी मुलाकातों का अड्डा बन गया। पहले किताबों पर हल्की-फुल्की बहसें होतीं, आरव अपनी पसंदीदा क्लासिक्स के बारे में बताता, तो काव्या उसे आधुनिक लेखकों की दुनिया से परिचित कराती। फिर उन मुलाकातों ने कॉफ़ी की चुस्कियों और शहर के शांत पार्कों में लंबी बातों का रूप ले लिया। कभी वे लोधी गार्डन के खंडहरों के बीच घूमते, अतीत की कहानियों को महसूस करते, तो कभी इंडिया गेट के लॉन पर बैठकर तारों भरी रात में भविष्य के सपने बुनते।
उनकी बातें कभी गंभीर होतीं, ज़िंदगी और मौत के फलसफों पर उलझी हुई, तो कभी बिल्कुल बेपरवाह, किसी राह चलते कुत्ते या आसमान में उड़ते पतंग पर अचानक शुरू हो जातीं। और फिर आती थीं वो खामोशियाँ, जो शब्दों से कहीं ज़्यादा गहरी और अर्थपूर्ण होती थीं। उन खामोशियों में वे एक-दूसरे की आत्माओं को पढ़ते थे, बिना कुछ कहे सब कुछ समझ जाते थे।
काव्या की हँसी में कुछ ऐसा था जो आरव को अंदर तक खींचता था, जैसे किसी अनजान धुन की मीठी आवाज़। वह बेफिक्री से हँसती, मानो दुनिया की सारी परेशानियाँ उसकी हँसी के सामने बौनी पड़ जाती हों। मगर उस हर हँसी के पीछे एक धुंधला सा डर भी छुपा था, एक परछाई जो कभी-कभी उसकी आँखों में झलक जाती थी। आरव उस डर को महसूस करता था, पर उसे समझ नहीं पाता था।
एक शाम इंडिया गेट के पास, हरी घास पर बैठे हुए, जब हल्की हवा उनके बालों से खेल रही थी और दूर कहीं फेरीवालों की आवाज़ें मंद पड़ रही थीं, काव्या ने अचानक, अपनी ही बातों में खोई हुई सी आवाज़ में कहा था:
"आरव, मैं बहुत टूटी हुई हूँ। तुम मुझसे प्यार मत करना।"
आरव ने उसकी आँखों में झाँकते हुए कहा था, उसकी आवाज़ में गहरी sincerity थी:
"तुम टूटी नहीं हो काव्या, तुम अधूरी हो... और मैं तुम्हारी अधूरी कहानी को पूरा करना चाहता हूँ।"
उस दिन पहली बार काव्या की आँखें नम हुई थीं। वह आरव की आँखों में देखती रही, जैसे किसी गहरे रहस्य को समझने की कोशिश कर रही हो। उस पल, उनके बीच एक ऐसा बंधन बन गया था जिसे शब्दों में बयां करना मुश्किल था, एक ऐसा वादा जो शायद दोनों को ही नहीं पता था कि कितना गहरा और कितना दर्दनाक होने वाला है।
काव्या का एक अजीब सा रूटीन था, एक अनिश्चितता का साया हमेशा उसके साथ रहता था। वो कभी बहुत हँसती, खुलकर, बेपरवाह सी, जैसे दुनिया की सारी खुशियाँ उसी की झोली में हों, तो कभी अचानक एकदम ख़ामोश हो जाती, अपनी ही दुनिया में खोई हुई। उसकी आँखें दूर कहीं ताकती रहतीं, मानो किसी अनसुलझे सवाल का जवाब ढूंढ रही हों।
कभी-कभी वो रातों को अचानक कॉल कर कहती, उसकी आवाज़ में एक अजीब सी उदासी घुली होती,
"आरव, अगर मैं अचानक चली जाऊँ, तो क्या करोगे?"
आरव हँसता और उसे दिलासा देता, उसकी बातों को मज़ाक में उड़ाता,
"पागल हो? कहां जाओगी? तुम मेरी हो। तुम जाओगी तो मैं तुम्हारे पीछे आ जाऊँगा।"
वह उसकी बातों को अनसुना कर देता था, यह सोचकर कि शायद वह किसी बुरे सपने से उठी होगी या किसी अनजानी चिंता से घिरी होगी। उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि एक दिन काव्या सच में चली जाएगी, उसे हमेशा के लिए छोड़कर। उसकी वो रात की बातें अब उसके कानों में एक डरावनी गूंज की तरह सुनाई देती थीं।
एक सुबह आरव हमेशा की तरह उस पुराने कैफ़े पहुँचा। उसने अपनी पसंदीदा खिड़की वाली सीट पर बैठकर काव्या का इंतज़ार किया। उसकी कॉफ़ी ठंडी हो गई, पर काव्या नहीं आई। उसने सोचा शायद उसे देर हो गई होगी या कोई ज़रूरी काम आ गया होगा।
फिर शाम हुई—वह फिर कैफ़े गया, उस उम्मीद में कि शायद शाम को मुलाक़ात हो जाए। मगर वह शाम भी खाली गुज़र गई, काव्या नहीं आई।
उसने काव्या को फोन किया—फोन स्विच ऑफ था। बार-बार ट्राय करने पर भी वही रिकॉर्डेड आवाज़ सुनाई देती रही। उसकी बेचैनी बढ़ने लगी।
अगले दिन वह उसके घर गया—दरवाज़े पर ताला लटका हुआ था। घर बिल्कुल शांत और खाली लग रहा था, जैसे बरसों से कोई वहाँ न रहता हो।
उसने पड़ोसियों से पूछा। एक बूढ़ी औरत ने उदासी से कहा, “वो लड़की? हाँ, वो तो दो दिन पहले ही चली गई। सामान वामान बांधकर कहीं जा रही थी। पता नहीं कहाँ।”
आरव के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। काव्या उसे बिना बताए, बिना कुछ कहे कैसे जा सकती थी? यह नामुमकिन था।
उसने पागल होकर उसे ढूँढना शुरू कर दिया। अस्पताल, दोस्तों, सोशल मीडिया—हर जगह उसने उसकी तस्वीर लगाई, लोगों से पूछा। उसके कॉलेज के दोस्तों से बात की, पर किसी को भी उसके बारे में कोई खबर नहीं थी। हफ्ते बीते, फिर महीने गुज़र गए, लेकिन काव्या का कोई सुराग नहीं मिला।
उसकी ज़िंदगी ठहर गई थी। रंग फीके पड़ गए थे, खुशियाँ गुम हो गई थीं। हर पल उसे काव्या की याद आती थी, उसकी हँसी गूंजती थी, उसकी आँखें उसकी तरफ देखती महसूस होती थीं। वह उस अधूरी कहानी के पन्नों को बार-बार पलटता, उन लम्हों को याद करता जो अब सिर्फ़ उसकी यादों का हिस्सा बनकर रह गए थे।
एक साल बाद, जनवरी की सर्द सुबह। दिल्ली की धुंधली सुबह में, जब सूरज की किरणें मुश्किल से धरती तक पहुँच पा रही थीं, पोस्टमैन ने आरव के हाथ में एक पुराना, कुछ धुंधला सा लिफाफा थमाया। उस पर काव्या की खूबसूरत, थोड़ी टेढ़ी-मेढ़ी हैंडराइटिंग थी। आरव का दिल ज़ोर से धड़कने लगा। अनिश्चितता और एक अजीब सी उम्मीद ने उसे घेर लिया।
उसने कांपते हाथों से लिफाफा खोला। अंदर एक मुड़ा हुआ, थोड़ा पीला पड़ चुका कागज़ का टुकड़ा था। उस पर काव्या के शब्द लिखे थे:
"प्रिय आरव,
मुझे माफ़ करना कि मैं बिना बताए चली गई। मुझे पता है, मैंने तुम्हें बहुत दर्द दिया है।
जब तुम ये पढ़ रहे होगे, मैं शायद इस दुनिया में नहीं होंगी।
मैं बहुत समय से कैंसर से लड़ रही थी। शुरू में उम्मीद थी, डॉक्टरों ने कहा था कि इलाज से सब ठीक हो जाएगा। मगर फिर, कुछ महीनों पहले, डॉक्टर्स ने आख़िरी जवाब दे दिया—"ज़्यादा दिन नहीं हैं।"
मैं चाहती थी कि ज़िंदगी के जो थोड़े पल बचे हैं, वो किसी ऐसे के साथ बिताऊं, जो मुझे जिए बिना भी जीना सिखा दे। और वो इंसान तुम थे, आरव। तुम्हारे साथ बिताए वो चंद महीने मेरी ज़िंदगी के सबसे खूबसूरत पल थे।
तुम्हारे साथ बिताया हर एक दिन, हर एक मुलाक़ात, हर एक हँसी मुझे ज़िंदा महसूस कराती थी, जैसे मैंने बरसों से खुलकर साँस नहीं ली थी। तुमने मुझे वो खुशी दी जो मैंने कभी सपने में भी नहीं सोची थी।
लेकिन मुझे डर था, बहुत डर था कि अगर तुम मेरे साथ जुड़े रहोगे, तो तुम्हारा दिल भी मेरी तरह टूट जाएगा। मैं तुम्हें उस दर्द से नहीं गुज़ारना चाहती थी, आरव। तुम बहुत अच्छे हो, तुम इससे बेहतर ज़िंदगी डिजर्व करते हो।
इसलिए मैंने वो रास्ता चुना जो मेरे लिए सबसे मुश्किल था—तुमसे दूर जाने का। यह मेरे लिए आसान नहीं था, तुम्हें छोड़कर जाना मेरी ज़िंदगी का सबसे मुश्किल फैसला था, पर मुझे लगा कि यही तुम्हारे लिए सही है।
आरव, तुमने मुझे एहसास दिलाया कि मैं टूटी नहीं हूँ, बस अधूरी हूँ। और ये अधूरापन ही तो सबसे खूबसूरत होता है, क्योंकि तभी किसी और के आने की गुंजाइश होती है, जो उस खालीपन को प्यार से भर दे।
मेरी आख़िरी ख्वाहिश है कि तुम खुश रहो। अपनी ज़िंदगी जियो, अपने सपनों को पूरा करो। किसी और से प्यार करो, जो तुम्हें वो सब दे सके जो मैं तुम्हें नहीं दे पाई। मुझे याद मत करना, आरव। और कभी पीछे मुड़कर मत देखना। आगे बढ़ना ही ज़िंदगी है।
तुमसे मोहब्बत मेरी सबसे खूबसूरत भूल थी। भूल इसलिए क्योंकि यह जानलेवा थी, पर खूबसूरत इसलिए क्योंकि इसने मुझे जीना सिखा दिया।
तुम्हारी काव्या"
उस ख़त को पढ़कर आरव की साँसें रुक गईं। उसके हाथ सुन्न हो गए। आँखों के सामने सब कुछ धुंधला हो गया। ज़मीन जैसे उसके पैरों के नीचे से खिसक गई। वह कुर्सी पर बेजान होकर बैठ गया, ख़त उसके हाथों से छूटकर नीचे गिर पड़ा। वो ज़िंदा था, उसकी साँसें चल रही थीं, मगर उसके अंदर का सब कुछ मर चुका था। उसकी दुनिया, जो कभी काव्या की हँसी और बातों से गुलज़ार थी, अब हमेशा के लिए खामोश हो गई थी।
उसने काव्या की आखिरी ख्वाहिश का मान रखा—वो कभी उसके बारे में किसी से बात नहीं करता, कभी उसकी यादों को कुरेदने की कोशिश नहीं करता, कभी उसकी कोई तस्वीर नहीं देखता। उसने अपनी यादों के एक कोने में काव्या को हमेशा के लिए सुरक्षित कर दिया था। मगर हर साल, 14 फरवरी को, वैलेंटाइन डे के दिन, वह उसी कैफ़े के उसी कोने में बैठता है, जहाँ उन्होंने पहली बार एक-दूसरे को देखा था।
उसके सामने हमेशा एक खाली कुर्सी होती है।
कभी-कभी वेटर, जो अब उसे पहचानने लगा था, पूछता,
"सर, कोई और आने वाला है?"
वो एक हल्की सी, उदास मुस्कान के साथ कहता,
"हाँ... वो अभी आती होगी।"
वह उस खाली कुर्सी पर काव्या की मौजूदगी महसूस करता था, उसकी हँसी सुनता था, उसकी आँखों की गहराई में खो जाता था। वह जानता था काव्या कभी नहीं आएगी, पर वह उस वादे को निभाता था जो उसने अनजाने में उससे कर लिया था—उसकी अधूरी कहानी को याद रखने का।
वक़्त बीतता गया। ज़िंदगी अपनी रफ़्तार से चलती रही। आरव ने अपनी कॉलेज की पढ़ाई पूरी की और एक लेखक बन गया। उसने अपनी भावनाओं को शब्दों में पिरोना शुरू कर दिया था, और उसकी लेखनी में एक अजीब सा दर्द और गहराई थी जो लोगों के दिलों को छू जाती थी।
उसकी पहली किताब का नाम था—"वो आख़िरी ख़त"। उस किताब में एक भी काल्पनिक पात्र नहीं था। सबकुछ असली था—दिल्ली की वो सर्द शामें, वो पुराना कैफ़े, काव्या की वो पहली मुस्कान, उनकी बेपरवाह सी मोहब्बत, और फिर वो खामोशी भरी जुदाई। सबकुछ असली था—काव्या भी, उसका प्यार भी, उसकी जुदाई भी।
लोग उस किताब को पढ़कर रोते थे, उस अधूरी मोहब्बत की कहानी उन्हें भीतर तक झकझोर देती थी। मगर कोई नहीं जानता था कि यह कहानी किसी की हकीकत है, किसी के टूटे हुए दिल का दर्द है जो शब्दों में उतर आया है। आरव ने अपनी पहचान कभी उजागर नहीं की, वह गुमनाम रहकर अपनी काव्या की कहानी दुनिया तक पहुँचाता रहा।
सालों बाद, जब आरव की आँखें कमज़ोर हो गई थीं और उसके काले बालों में सफ़ेदी उतर आई थी, वह अब भी हर रविवार को उस कैफ़े में आता था। वही पुरानी किताब, मार्केज़ की "लव इन द टाइम ऑफ कोलरा", जिसकी जिल्द अब फट चुकी थी, वही खिड़की वाली सीट, वही इंतज़ार।
वह जानता था काव्या कभी नहीं आएगी। समय ने उसके ज़ख्मों को भर दिया था, पर उस खालीपन को नहीं भर पाया था जो काव्या के जाने से उसकी ज़िंदगी में आ गया था। उसने कभी किसी और से प्यार करने की कोशिश नहीं की। काव्या उसकी ज़िंदगी में पहली और आखिरी मोहब्बत बनकर रह गई थी।
पर शायद सच्चा प्यार कभी नहीं मरता। वो बस अपना रूप बदल लेता है। वो किसी पुरानी याद में, किसी पसंदीदा गाने की धुन में, किसी अनकही बात में जिंदा रहता है। वो उस खाली कुर्सी में महसूस होता है, उस ख़त के हर एक शब्द में धड़कता है।
और यही सवाल छोड़ जाता है:
"क्या सच्चा प्यार भुलाया जा सकता है? या वो हमेशा किसी को अधूरा छोड़ जाता है, एक ऐसी कमी बनकर जो ज़िंदगी भर महसूस होती रहती है?"
आरव उस सवाल का जवाब बरसों से ढूंढ रहा था, और शायद उसे कभी नहीं मिलेगा। वह हर रविवार को उस कैफ़े में जाता रहेगा, उस अधूरी मोहब्बत की याद में, उस आखिरी खत के इंतज़ार में जो कभी नहीं आएगा, पर जिसकी गूंज उसकी रूह में हमेशा बनी रहेगी।

तेरी यादों की खुशबू अब भी है हवाओं में,
तेरी मुस्कान बसी है मेरी दुआओं में।

तू गई तो सही, मगर गई नहीं,
हर धड़कन में आज भी कहीं है तू यहीं।

वो ख़त जो तूने आँसुओं से लिखा था,
हर अल्फ़ाज़ में एक दर्द छिपा था।

मैं जी रहा हूँ तुझसे किया वादा निभाने,
पर हर लम्हा बीतता है तुझे फिर से पाने।

"वो आख़िरी ख़त"
एक अधूरी मोहब्बत की मुकम्मल दास्तान...

जिसने जुदाई में भी वफ़ा को ज़िंदा रखा...

— समाप्त —

...पर इश्क़ कभी ख़त्म नहीं होता...