इसमें धुम्रपान और शराब का सेवन है। लेखक इसे प्रोत्साहित नहीं करता।
साथ ही, इसमें हिंसा, खून-खराबा और कुछ जबरन संबंध भी शामिल हैं। पाठकगण कृपया विवेक से पढ़ें।
अपराध स्वीकार है- नर्स दिशा
राहुल, कान्हा को, अपने जिगर के टुकड़े को देखने और चुप कराने के लिए वृषाली को खून से लथपथ छोड़कर भागा।
राहुल बहुत देर तक उसे चुप कराने की कोशिश कर रहा था पर उसकी नन्हीं आवाज़ रो-रोकर रूखी होती जा रही थी।
कुछ और देर रुकने के बाद वृषाली ने अपनी आँखें खोलीं और धीरे से उठकर बैठ गयी।
वह पत्ते की तरह काँप रही थी।
लेकिन उसकी करुण क्रंदन की आवाज़ें सुनकर उसने साहस जुटाया और दवा के डिब्बे की ओर झुकी। उसने अपने खून वाली हाथ बिस्तर की चादरों से पोंछे और खुद को शांत करने के लिए नारंगी रंग की गोली ले ली।
थोड़ी देर बाद उसने बाहर झाँका, वह एक ओर तो क्रोधित था, वहीं दूसरी ओर बच्चे को शांत भी कर रहा था। उसने उसे घर में नजरबंद कर दिया। उसका फोन उससे छीन लिया गया। बच्चा अब भी उसी दर्द में रो रहा था, उसकी आवाज़ फट रही थी।
राहुल ने सब कुछ करने कि कोशिश की, उसे खाना खिलाने कि कोशिश की, उसे लोरी सुनाने कि कोशिश की, मधुर संगीत सुनाने कि कोशिश की, सब कुछ विफल रहा।
उस समय वह खून से सने कपड़ों में ही बाहर निकली। वे उसे देखकर चौंक गए।
उसके हाथ में एक मुलायम बड़ा तौलिया था। उसने कान्हा को तौलिये में लपेटा और अपनी काँपती हुई आवाज़ में उसका नाम पुकारा, "कान्हा?",
उसने तुरन्त रोना बँद कर दिया और अपनी आँसुओं से भरी आँखों से ऊपर देखा। उसने अपने स्थिर हाथों से उसके आँसू पोंछे।
उसने कुछ नहीं किया, बस उसकी पसंदीदा शिव स्तुति गाई, आशुतोष शशांक शंकर चंद्र मौली चिदंबरा। वह तुरंत शांत हो गया और अपने होठों को ज़ोर से चाटने लगा।
"दूध, दिशा।", उसने शांति से पूछा जैसे दिशा ने उसे पहले नींद की गोलियाँ नहीं दी थीं और ना ही उन आदमियों को उसके पास भेजा था।
राहुल इतना स्तब्ध था कि कुछ बोल नहीं सका। उसने उसे दूध दिया। उसने धीरे से तापमान जाँचा और एक बड़ी मुस्कान के साथ उसे थोड़ा-थोड़ा करके दूध पिलाया। डकार लेने के बाद वह गहरी नींद में सो गया।
"अच्छा बच्चा, सुंदर बच्चा, नटखट बच्चा। अपने डैडी को ऐसे परेशान नहीं करते।", उसने उसे दुलार से पुचकारा और राहुल के हाथों में थमा दिया।
राहुल को घर में कुछ भी सुरक्षित नहीं लगा, सिवाय उसके होम ऑफिस के, जो बँद था और शिकारियों से अछूता था। उसने कान्हा को बड़े से सोफे पर सुला दिया जिसके किनारों पर तकिए लगे हुए थे। वह दो मिनट में बाहर आ गया। उसने वृषाली को नर्स दिशा को गंदगी साफ करने में मदद करते हुए देख उलझन में पड़ गया। नर्स भी राहुल की तरह ही उलझन में थी। आखिर वह इतनी सामान्य कैसे हो सकती थी या उसकी मानसिक स्थिरता पागलपन या भूलने की बीमारी में तो परिर्वतित तो नहीं हो गयी?
वह धीरे-धीरे और कोमलता से उसके पास गया।
"क्या तुम सचमुच ठीक महसूस कर रही हो?", उसने सहजता से उससे पूछा,
"नहीं, मैं निराश और आत्महत्या करने का विचार कर रही हूँ।", उसने मुस्कुराते हुए कहा,
राहुल जम गया, नर्स भी सफाई करते-करते जम गई। कपड़ा उसके हाथ से फिसल गया। वह बुरी तरह काँप रही थी, उसके शर्म से लाल चेहरे पर आँसू बह रहे थे। वह तुरंत वृषाली के सामने घुटनों के बल बैठ गई और रोने लगी तथा दया की भीख माँगने लगी।
उसने बस इतना कहा, "माफ करने वाली मै कौन होती हूँ। तुम भी हमारी तरह हो। डरी हुई, बेसहारा और नियंत्रित।", फिर वह अपनी वही मुस्कान के साथ राहुल को देख, "अगर उसने समीर की बात मान ली होती तो मैं समीर बिजलानी के सोने के कमरे वाली कालकोठरी में होती जो उसने मेरे लिए तैयार की थी या सजा के तौर पर इस खूबसूरत नर्स को उस नरक में भेज दिया जाता। यही कारण है कि मैं आपको उससे सवाल करने से रोक रही थी, क्योंकि हम दोनों एक ही नाव में सवार हैं। मैं ही कारण हूँ, वह नहीं।", नर्स ने सिर हिलाकर सहमति जताई।
राहुल इतना स्तब्ध था कि बोल नहीं पाया। वह यह सच्चाई लंबे समय से जानता था कि अभिजात्य समाज कैसे काम करता है, लेकिन अपने सामने दो प्रैक्टिकल देखकर वह अवाक रह गया। उन दोनों का भाग्य एक जैसा था, बस उनकी ज़रूरतें अलग-अलग थीं और वे अलग-अलग वर्ग के थे। समीर को वृषाली की ज़रूरत थी इसलिए वह पैसे को नियंत्रित करने वाली कक्षा में तथाकथित सेवा करेगी। नर्स, समीर के लिए एक और खिलौना थी इसलिए उसे नियंत्रित लोगों द्वारा उसे नियंत्रित किया जाएगा।
मौन के बीच वृषाली ने पूछा, "कितने लोग?",
उसने रोते हुए कहा, "दो बहनें और एक भाई, बड़ी बहन को बचाने के लिए भाई की मृत्यु पहले ही हो गई।",
"कैसे?", राहुल ने पूछा,
उसकी आँखें बेबसी चीख रही थीं, "वह मरी नहीं मारी गई थी क्योंकि वह राज रेड्डी को नहीं मार सकी थी और उसने उसे मार डाला और उसे बचाने के चक्कर में राहुल,"
राहुल और वृषाली ने एक दूसरे को फिर उसे हैरानी से देखा,
"मेरा भाई राहुल, राहुल देसाई। जिसकी बोटी-बोटी कर मेरे सामने कुत्तों को खिला दिया गया था।",
"क्या?!!", दोंनो ने एक लय में हैरानी से चीखा,
"हाँ।", उसने शांति से कहा और फिर उसने सच कबूल कर लिया, "मेरा काम तुम्हें लतखोर बनाना है और इसके बिना तुम पूरी तरह बेकार बनाना और फिर...", उसने सिर झुकाकर कहा, "मुझे कारण नहीं पता लेकिन वह तुम्हें थोड़ा-थोड़ा करके बर्बाद करने पर आमादा है... एक बात मैं तब जान पाई जब मेरी छोटी बहन को मेरे सामने कैद कर रहा था कि उसे तुमसे एक बच्चा चाहिए और वह भी किसी मजबूत व्यक्ति से, पता नहीं किस नज़रिए से लेकिन उसे तुम्हारा बच्चा चाहिए जिसे तुमने जन्मा हो।",
"इसीलिए तुम मुझे मारने के लिए जहर लेकर आई हो ताकि तुम समीर से बदला ले सको?", वृषाली ने पूछा,
उसने स्वीकार किया, "हाँ। मेरी आखिरी बची परिवार, मेरी छोटी बहन तुम्हारे कारण नरक में जी रही है!", उसने रोना शुरू कर दिया, "वह सिर्फ एक बच्ची है। मुझे पता है कि उसने जो किया वह एक अपराध है, लेकिन उसे पुरुषों के उस नरक में तड़पता देखकर मैं नफ़रत करने से खुद को नहीं रोक सकती! तुम पर गुस्सा आता है कि तुम क्यों नहीं मरी, फिर खुद पर गुस्सा आता है कि मैं ऐसा सोच कैसे सकती हूँ!
पर वो मेरी आखरी अपनी बची हुई है। माँ चल बसी, बाप ने हमे चंद रुपये के लिए बेच दिया, इससे पहले कि बहुत देर हो जाए मुझे उसे बचाना होगा!", वो वृषाली और राहुल के पैरों पर गिर कर अपनी बहन की भीख माँग रही थी।
उसे ऐसा बिलखते देख वृषाली से रहा ना गया। उसने उसे कसकर गले लगा लिया, उसके हाथ दबाव से काँप रहे थे जो वह उसके हाथों पर दे रही थी। वह अपने कपड़ों में खून से भीगी हुई अन्दर गयी। उसने दो किताबें उठाईं, जो उसे मोनिका से मिली थीं।
"मुझे बस इसे जलाने दो।", उसने उन किताबों को लिया और सूखे सिंक पर उन पर इत्र डाला। फिर उसने दराज से माचिस निकाली, माचिस की तीली निकाली और उसकी लौ उस किताब पर फेंक दी। उसने देखा कि आग की लपटें किताबों को खा गईं और राख छोड़ गईं। कमरा धुएं और आग के रंग से भर गया था, दिशा और राहुल उसकी हरकतें देखकर डर गए और भ्रमित हो गए।
फिर उसने नल खोला और राख को बहा दिया।
वह ऐसे भाव से मुड़ी जैसे उसने अपनी किस्मत को स्वीकार कर लिया हो, "तुम्हारे बॉस की अगली योजना क्या है? मैं तैयार हूँ।", उसने उससे कहा।