Golden journey with a stranger.... in Hindi Short Stories by Piyush Goel books and stories PDF | अजनबी के साथ सुनहरा सफर….

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अजनबी के साथ सुनहरा सफर….

मैं एक कंपनी में कार्यरत था, जो मेरे घर से सिर्फ १० किलोमीटर दूर थी. बारिश और बिजली अपना रंग दिखा रही थी,११ बज चुके थे, कंपनी की लाइट बहुत देर से नहीं थी,सब काम ठप्प.सभी लोग परेशान, मैंने मेंटिनेंस अभियंता को फ़ोन किया, फ़ोन पर उधर से बड़ा ही असंतुष्ट जवाब था, तुम्हें अपनी लगी हैं, फाल्ट का पता ही नहीं चल रहा हैं. मैं बोला, मैं आते ही सही कर दूँगा, मेंटिनेंस अभियंता बोला हा हा सही कर देगा, हम से तो हो नहीं रहा हैं और तू सही कर देगा तू स्टोर का आदमी कैसे सही कर देगा.मैंने अपना छाता उठाया और पहुंच गया वहाँ पर जहाँ पर समस्या थी, सभी सीनियर्स वही खड़े था, मेंटेनेंस अभियंता भी वही खड़े थे, मैं उनके पास जाकर बोला हटो यार , अचानक पास लगे एक बटन पर हाथ लग गया और बिजली आ गई.मैं मेंटिनेंस अभियंता से बोला अपनी गाड़ी की चाबी दो यार,चाबी देते हुए बोला मेरा क्या होगा आ जाओ मैं आपका इंतज़ार कर रहा हूँ १२ बजे थे, आपको घर छोड़ता हुआ चला जाऊँगा.ग़ज़ब की बात देखिए मेरे को गाड़ी चलानी नहीं आती,उनको घर छोड़ कर मैं एक्सप्रेसवे पर चल दिया, बारिश और बिजली पूरे जोरो पर थी, गाड़ी १०० किमी/घंटा की चाल से चल रही थी.रास्ते में एक व्यक्ति ने हाथ दिया, मैंने गाड़ी रोक दी,गेहुयें सफारी सूट में , हाथ में एक सुंदर सा सूटकेस,सुंदर सा चश्मा,हैंडसम बंदा मेरी गाड़ी में बैठ चुका था, पता नहीं ना जानते हुए भी मैंने गाड़ी रोक दी.जैसे ही बंदा गाड़ी में बैठता हैं मेरा नाम लेकर बोलता हैं कैसे हो और इतनी रात को कहाँ जा रहे हो.मैं बोला घर जा रहा हूँ,घर तो तुम्हारा इधर नहीं हैं रास्ता भी लंबा हैं.मैं मन ही मन सोचने लगा ये क्या हो रहा हैं, गाड़ी मुझे चलानी नहीं आती,कंपनी में स्विच को हाथ लगाया और बिजली आ गई ( मैं रहा स्टोर का आदमी),गाड़ी की चाबी भी मिल गई,और इसको मेरा नाम कैसे पता हैं, ना मैं पहले कभी मिला और ना ही मैं जानता, कुछ तो गड़बड़ हैं.मेरा नाम लेकर वो अजनबी मेरे से बोला घबराने की कोई बात नहीं, मुझे पता हैं तुम मन ही मन क्या सोच रहा हैं.और हाँ देख अभी तेरे को एक गाड़ी खड़ी मिलेगी, तेरे से पहले मैंने इसको हाथ दिया था इसने रोका नहीं, वही हुआ आगे गाड़ी खड़ी थी.मैं उस अनजान व्यक्ति से बोला इतनी रात में ये लोग परेशान हैं इनकी मदद करनी चाहिए, अनजान व्यक्ति मेरे से बोला तेरी यही तो बात मुझे अच्छी लगती हैं, चल अगर तू कहता हैं तो तू गाड़ी पीछे ले मैं और वो अजनबी गाड़ी से उतर कर ख़राब गाड़ी के पास पहुँच कर अजनबी व्यक्ति ख़राब गाड़ी वालों से बोला, भैया मैंने आपको हाथ दिया था और आपने गाड़ी नहीं रोकी थी.ये तो इसकी मेहरबानी हैं जो इसने मेरे से बोला इसलिए हम आ गए आप लोगो के पास, चलो आप लोग गाड़ी में बेठों और गाड़ी स्टार्ट करो गाड़ी स्टार्ट हो गई.वो लोग चले गए,बातें करते चले जा रहे थे और मेरी दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी,कौन अजनबी हैं मेरा नाम भी जानता हैं और मुझे इसके बारे में कुछ भी नहीं पता, कुछ आगे चले ही थे, मेरे से वो अजनबी बोला गाड़ी मोदी नगर रोकना यहाँ पर एक होटल हैं खाना खायेंगे,रोक यही होटल हैं, अंदर पहुँचे पहले से ही दोनों का खाना लगा था, खाना खाया पैसे भी उसने ही दिए, अपनी समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था देख अब हम मसूरी जा रहे हैं, रास्ते में खतौली में इस नाम का व्यक्ति पेट्रोल पम्प के पास खड़ा होगा वही पर तेल भरवाना है सब कुछ वैसे ही हो रहा था जैसा वो अजनबी बोल रहा था और हाँ उस व्यक्ति के घर भी जाना हैं उसकी पत्नी नहीं हैं बेटा उसकी सुनता नहीं हैं, व्यक्ति बहुत अच्छा हैं उसकी परेशानी सही करके आगे चलेंगे घर पर मिल कर आगे चल दिए आगे जैसे ही चले वो अजनबी मेरे से बोलता हैं तेरी बहन के यहाँ नहीं रुकेंगे मुझे पता हैं तेरी बहन मुजफ्फरनगर में रहती हैं इतनी रात को उन लोगो को परेशान नहीं करेंगे.उस अजनबी ने गाड़ी मेरे से लेकर बोला देख १ बजे तक मसूरी पहुँच जायेंगे.अब मेरे से बिल्कुल भी नहीं रहा जा रहा था, मैं गुस्से में बोला १२ बजे तो वहाँ से चला था और तुम बोल रहे हो १ बजे वहाँ पहुँच जायेंगे, अजनबी मेरे से बोला देख भाई ज़्यादा टकर मकर मत कर जो मैं कर रहा हूँ सही कर रहा हूँ मैं तेरा शत्रु नहीं हूँ तेरा शुभचिंतक हूँ तेरे को कुछ नहीं होने दूँगा मैं तेरे साथ हूँ.फिर उसने रुड़की से हरिद्वार के बीच में अपनी कहानी बताई.तू पूछना चाहता था तो तू सुन १९ अगस्त २०१५ को ५ बजे करीब पूना में तूने अपने बेटे को छोड़ा था, तू और तेरा भाई जिस होटल में रुके थे उस होटल जा रहे थे,तुमे अपने बेटे की बात अपनी पत्नी यानी उसकी माँ से कराई थी, तुमने फ़ोन अपने बेटा को दे दिया था और तेरी आँखों में आसूँ थे, वहाँ पर एक पेड़ था पेड़ में एक आला था उसमें साईं बाबा की एक छोटी सी मूर्ति थी, वही पर एक ४-५ फुट की दीवार थी मैं उसी दीवार पर बैठा था और मैं ये सब देख रहा था, तूने मुझे और मैंने तुम सबको देखा था, मेरी भी आँखों में आँसू थे, मैं वो ही हूँ, और मैं उस समय तम्बाकू अपने हाथों से मीड रहा था, जैसे ही मैंने खाया और खाते ही मैं उस दीवार से पीछे की और गिर गया उसके बाद मुझे नहीं पता क्या हुआ.और आज १९ अगस्त २०२३ हैं अब हम मसूरी में हैं.मुझे घर छोड़ते हुए बोला गाड़ी मैं ले जा रहा हूँ और अपने दोस्त से बोल गाड़ी उसके घर के नीचे खड़ी हैं और चाबी गाड़ी के बोनट पर….जाते जाते मेरे कान मैं बोल गया, चिंता मत करियों जब बुलायेगा तब आ जाऊँगा और सब बढ़िया ही होगा.और हाँ सब बुरे नहीं अच्छे भी होते हैं.