श्री गुरु नानक देव जी का जन्म कार्तिक पूर्णिमा विक्रमी समवत् 1526के अनुसार 20
अक्तूबर 1469ईस्वी तलवंडी राई भोइ जिला शेखापूर पाकिस्तान में हुआ उस भाग्यशाली नगर तलवंडी का नाम तदुपरांत श्री गुरु नानक देव जी के नाम पर ननकाना साहिब पड़ गया है।श्री गुरु नानक देव जी के पिता का नाम महिता कल्याण दास था।
पंरतु क्षेत्र में वह महिता कालू के नाम से प्रसिद्ध थे उनकी माता जी का नाम तृप्ता देवी था और उनकी बहन नानकी गुरु नानक देव जी से पांच साल बड़ी थी।
हमारे देश में श्री गुरु नानक देव जी के जन्म पर खुशियां मनाई और जब दाई ने महिता कालू को को बताया कि घर एक प्रभावशाली एवं अद्भुत बालक पैदा हुआ है तो महिता कालू जी बहुत प्रसन्न हुए। दाइ ने उन्हें बताया कि बालक जन्म के समय कमरे में एक अद्भुत प्रकाश हुआ और कुछ खुशी से भरी विसमादमती आवाजें बालक का स्वागत करती सुनी गई है।महिता कालू जी ने बाल श्री गुरु नानक देव जी की जन्म पत्री तैयार करने के लिए ज्योतिष पंडित हरदयाल को अपने पास बुलाया। जब उस पंडित जी ने श्री गुरु नानक देव जी के दर्शन किए तो उसने अद्भुत प्रकार का सुख एवं सुकुन का अनुभव किया।वे पंडित जी काफी देर तक बालक दिव्य ज्योति को देख कर बोले महिता कालू जी आप बहुत भाग्यशाली हैं जिसके घर में परमात्मा रूप पुत्र पैदा हुआ है। यह पातशाहों का पातशाह होगा और कुल दुनिया में इसका ही राज होगा सब धर्मों वाले इसके सच्चे पातशाह होगा और सब धर्मों वाले इसके सच्चे धर्म को मानेगे। यह बड़े बड़े डाकू एवं अत्याचारियों का दिल जीत लेगा और और पुरी दुनिया को सच्चे मार्ग पर लगाएगा।
और यह एक नया और न्यारा धर्म चलाएगा यो
युगों-युगों तक अटल रहेगा।
श्री गुरु नानक देव जी बचपन से ही एक अनोखे बालक थे।
उनकी खेले एवं खिलोने भी सामान्य बच्चों से अलग थे।
वह अपनी छोटी उम्र में ही पारमार्थ की बातें करने लगे थे। जो जो व्यक्ति परमात्मा बारे, मानव जीवन के बारे अथवा मानव जन्म मृत्यु के बारे में करता वह बहुत अच्छा लगता श्री गुरु नानक देव जी को साधू संत और महात्मा इत्यादि भी उन्हें बहुत प्रिय लगते । ऐसे लोगों की सेवा करना वह बहुत उत्तम समझते और उनकी भोजन पानी से सेवा भी करते।
जब श्री गुरु नानक देव जी छः वर्ष के हुए तो महिता कालू जी ने उन्हें गांव के पाधे गोपल दास के पास पढ़ने के लिए भेज दिया।
पंडित गोपाल दास पंजाबी, हिंदी एवं संस्कृत के विद्वान थे।
श्री गुरु नानक देव जी बडे चाव से एवं खुशी से पढते थे।
और कुछ ही समय में ही उन्होंने ने सब कुछ सीख लिया जो कि पाधे पंडित गोपाल दास जी को आता था।
पंडित जी अपने शिष्य की योग्यता देखकर बहुत हैरान थे।
वे कहते मै तो विश्वास नही कथ कर सकता की इतनी छोटी उम्र में बालक इतना होशियार और लियाकत वाला भी हो सकता है।
जो कुछ भी मै इसे सिखाता हूं यह सबकुछ तुरंत सीख लेता है जैसे कि ये पहले ही से ही सबकुछ जानता हो मै काफी समय से बच्चों को पढ़ा रहा हूं लेकिन ऐसा शिष्य तो मुझे कभी नहीं मिला
एक दिन पाधे ने देखा कि श्री गुरु नानक देव जी अपनी पट्टी लिख रहे थे।
जब काफी देर तक वह पाधे के पास नही आये तो पाना स्वयं उठकर उनके पास गये और पट्टी
दिखने के लिए कहा