Tere ishq mi ho jau fana - 31 in Hindi Love Stories by Sunita books and stories PDF | तेरे इश्क में हो जाऊं फना - 31

The Author
Featured Books
Categories
Share

तेरे इश्क में हो जाऊं फना - 31

 अंकिता की आंखों में हल्का-सा पानी आ गया। उन्होंने सिर हिलाने की कोशिश की, लेकिन शब्द उनके गले में अटक से गए।

पास खड़े अजय और राधा भी यह सब देख रहे थे। अजय ने समीरा के कंधे पर हाथ रखा और धीरे से कहा, "शायद डॉक्टर से पूछना चाहिए कि इनकी हालत में कुछ सुधार क्यों नहीं हो रहा?"

समीरा ने सिर हिलाया और नर्स की ओर देखा, जो बेड के पास खड़ी थी। "नर्स, क्या बुआ की हालत में कोई सुधार हुआ है?"

नर्स ने हल्के स्वर में जवाब दिया, "डॉक्टर कह रहे हैं कि इन्हें ठीक होने में थोड़ा समय लगेगा। अभी मानसिक रूप से बहुत कमजोर हैं, लेकिन यह अच्छी बात है कि इन्होंने आपको पहचाना। यह रिकवरी का एक अच्छा संकेत हो सकता है।"

समीरा ने एक गहरी सांस ली और बुआ के पास बैठ गई। उसने धीरे-धीरे उनके सिर पर हाथ फेरा। "बुआ, मैं आपके साथ हूं। आप जल्द ठीक हो जाएंगी, ठीक है?"

अंकिता की आंखों से दो बूंद आंसू टपक पड़े। समीरा को यह देखकर और भी दुख हुआ। उसने अपने आंसू छिपाने की कोशिश की, लेकिन उसके भीतर की तकलीफ अब उसके चेहरे पर साफ झलक रही थी।

राधा ने समीरा के पास बैठते हुए कहा, "तू परेशान मत हो, समीरा। तेरा प्यार और देखभाल ही बुआ को जल्दी ठीक करेगी। बस हिम्मत रख।"

अजय ने भी सहमति में सिर हिलाया, "और हम डॉक्टर से भी बात करेंगे कि और क्या किया जा सकता है।"

समीरा ने अपनी बुआ का हाथ थामे रखा और ठान लिया कि वह हर दिन यहां आएगी, उनके साथ समय बिताएगी, ताकि वे अकेला महसूस न करें।

अस्पताल का माहौल उदासी से भरा हुआ था, लेकिन इस छोटी-सी उम्मीद की किरण ने समीरा के दिल में थोड़ी राहत दी। वह जानती थी कि सफर लंबा है, लेकिन वह अपनी बुआ को इस हालत से बाहर निकालने के लिए हर संभव कोशिश करेगी।

अंकिता की कहानी: एक मासूम दिल की पीड़ा

समीरा अपने पिताजी को देख रही थी। वे थके हुए और टूटे हुए लग रहे थे। खाने की थाली उनके सामने रखी थी, लेकिन उन्होंने एक कौर भी नहीं खाया था। उनकी आँखों में चिंता की गहरी लकीरें थीं, और उनका मन अशांत था। समीरा ने धीरे से उनका हाथ पकड़ा और प्यार से कहा, "डैड, खाना खा लीजिए।"

लेकिन पिताजी ने कोई जवाब नहीं दिया। उनकी आँखें कहीं और देख रही थीं, कहीं दूर अतीत में। उस अतीत में जहाँ उनकी बहन अंकिता थी—मासूम, नादान, और दुनिया की बुरी सच्चाइयों से अनजान।

एक मासूम दिल की गलती

अंकिता हमेशा से सबका भला चाहने वाली लड़की थी। बचपन से ही वह निस्वार्थ थी। किसी के लिए कुछ करना, दूसरों की मदद करना उसकी फितरत थी। लेकिन शायद उसकी यही भलाई उसकी सबसे बड़ी कमजोरी बन गई।

सब कुछ तब बदला जब उसकी जिंदगी में एक नया इंसान आया। एक ऐसा इंसान, जिससे उसने बेइंतहा प्यार किया। उसने सोचा था कि यह प्यार उसे खुशियाँ देगा, लेकिन किसे पता था कि यही प्यार उसकी सबसे बड़ी गलती बन जाएगा।

उसने एक गलत इंसान से प्यार कर लिया।

शुरुआत में सबकुछ अच्छा लग रहा था। वह खुश थी, उसे लग रहा था कि वह अपनी ज़िंदगी का सबसे सही फैसला ले रही है। लेकिन धीरे-धीरे सच्चाई उसके सामने आने लगी। वह आदमी वैसा नहीं था, जैसा वह दिखता था। 

अंकिता ने अपनी पूरी कोशिश की, लेकिन जब प्यार अंधा हो जाता है, तो सच देखने की क्षमता खत्म हो जाती है। वह उस आदमी को सही समझती रही, जबकि वह उसे धीरे-धीरे अंदर से तोड़ रहा था।

टूटता परिवार, बढ़ती चिंता

समीरा और उसके पिताजी के बीच रिश्ते हमेशा मजबूत थे। लेकिन जब अंकिता की यह हालत हुई, तो उनके घर का माहौल भी बदल गया। पिताजी  चिंता में डूबे थे। उनकी आँखों में एक ही सवाल था—"कहाँ गलती हो गई?"

उन्होंने अंकिता को हमेशा अच्छे संस्कार दिए थे। उन्होंने उसे अच्छे और बुरे की पहचान सिखाई थी। फिर भी वह इतनी बड़ी गलती कैसे कर बैठी?

 समीरा के पिताजी के लिए यह सब सहन करना मुश्किल था। वह एक भाइ थे, और उनकी बहन तकलीफ में थी। वे दिन-रात यही सोचते रहते कि काश वे समय पर कुछ कर पाते।

समीरा की चिंता और हिम्मत

समीरा ने अपनी बुआ को हमेशा खुश देखा था। लेकिन अब वह नहीं थी। वह एक दर्द से गुजर रही थी, और उसके कारण पिताजी भी तकलीफ में थे।

उसने ठान लिया कि अब वह अपने परिवार को इस दर्द से बाहर निकालेगी।

"डैड, हमें मजबूत बनना होगा। बुआ को हमारी ज़रूरत है," समीरा ने धीरे से कहा।

पिताजी ने उसकी तरफ देखा। उनकी आँखों में दर्द था, लेकिन कहीं न कहीं, उम्मीद की एक किरण भी।

"लेकिन मैं कैसे देख सकता हूँ उसे इस हालत में?" उन्होंने टूटे हुए शब्दों में कहा।

"हम उसे सहारा देंगे। उसे बताएंगे कि यह दुनिया यहीं खत्म नहीं होती। हर गलती का सुधार संभव है।"

पिताजी ने एक गहरी सांस ली। वे जानते थे कि समीरा सही कह रही थी।

कभी-कभी, जीवन में हम गलत फैसले लेते हैं। कभी प्यार हमें अंधा कर देता है, और हम यह समझ नहीं पाते कि कौन सही है और कौन गलत। लेकिन सबसे जरूरी बात यह होती है कि हम अपनी गलतियों से सीखें, और आगे बढ़ें।