Tere ishq mi ho jau fana - 34 in Hindi Love Stories by Sunita books and stories PDF | तेरे इश्क में हो जाऊं फना - 34

The Author
Featured Books
Categories
Share

तेरे इश्क में हो जाऊं फना - 34

क्या यह उसका अतीत था, जिसे उसने भुला दिया था? या फिर कोई अनदेखा सच, जो अब धीरे-धीरे सामने आ रहा था?

तभी दरवाजे पर दस्तक हुई।

अकिता ने झटके से सिर उठाया। उसकी सांसें अब भी उथल-पुथल में थीं।

"कौन... कौन है?" उसने धीमी आवाज़ में पूछा।

दरवाजा हल्के से खुला, और एक नर्स अंदर आई। "आप ठीक हैं, मिस अकिता?"

अकिता ने कुछ पल उसे देखा, फिर धीरे से सिर हिलाया। "हाँ, बस... एक सपना था।"

नर्स ने उसे थोड़ा पानी दिया और कहा, "आप बहुत परेशान लग रही हैं। अगर कोई परेशानी हो, तो डॉक्टर को बुला दूँ?"

अकिता ने गहरी सांस ली और गिलास पकड़ लिया। पानी के घूंट के साथ उसने खुद को थोड़ा शांत करने की कोशिश की।

"नहीं, मैं ठीक हूँ," उसने कहा, लेकिन खुद भी जानती थी कि वो ठीक नहीं थी।

नर्स सिर हिलाकर बाहर चली गई। लेकिन अकिता अब भी बेचैन थी।

उसने अपने सिरहाने रखा मोबाइल उठाया और स्क्रीन को देखा।

कोई अनजान नंबर उसकी कॉल लिस्ट में था।

उसकी उंगलियाँ ठिठक गईं।

"क्या... क्या ये वही है?"

उसके अंदर एक अजीब-सी घबराहट दौड़ गई। क्या इस नंबर का कोई ताल्लुक उसके सपने से था? या फिर यह महज़ एक संयोग था?

उसने धीरे से नंबर पर उंगली रखी और कॉल बैक करने का विचार करने लगी। लेकिन तभी...

फोन की स्क्रीन फिर से चमकी।

वही नंबर।

एक बार फिर कॉल आ रही थी।

अकिता के दिल की धड़कन बढ़ गई।

क्या वो इसे रिसीव करे?

या फिर इससे दूर ही रहे?

उसने कांपते हाथों से कॉल रिसीव करने के लिए स्क्रीन की ओर हाथ बढ़ाया...

अंकिता ने जैसे ही कॉल अटेंड की, दूसरी तरफ से किसी आदमी की आवाज सुनाई दी—

"हैलो..."

वह आवाज सुनते ही अंकिता का दिल जोर से धड़क उठा। घबराहट उसके चेहरे पर साफ झलकने लगी। अनजान डर ने उसे जकड़ लिया। उसकी उंगलियां कांप उठीं, और घबराहट में उसने फोन ज़मीन पर दे मारा।

अचानक, उसके चारों ओर सब कुछ धुंधला सा लगने लगा। उसकी सांसें तेज हो गईं, और उसके भीतर अजीब सी घुटन महसूस होने लगी। वह हड़बड़ाकर चिल्लाने लगी।

"नहीं... नहीं...!"

उसकी चीखों की गूंज पूरे अस्पताल में फैल गई। शोर सुनते ही नर्सें और डॉक्टर दौड़कर उसके कमरे में आ गए। सब उसे संभालने की कोशिश करने लगे, लेकिन अंकिता किसी के काबू में नहीं आ रही थी।

अचानक, उसकी आँखों के सामने वही सपना जीवंत हो उठा—

एक लड़का, लड़की का हाथ छोड़कर जा रहा था। लड़की रो रही थी, लेकिन लड़का मुड़कर भी नहीं देख रहा था। वही दर्द, वही बेबसी, वही डर... सब कुछ फिर से हकीकत सा महसूस होने लगा।

"रुक जाओ, इमरान...!"

अंकिता सुबकते हुए चीखी और नर्सों की पकड़ से खुद को छुड़ाकर बाहर की ओर भागी। कोरिडोर में उसके कदम लड़खड़ाने लगे, मगर उसने रुकने का नाम नहीं लिया।

पीछे से डॉक्टर और नर्सें उसे रोकने के लिए भागे, लेकिन तभी...

अंकिता की आँखों के आगे अंधेरा छा गया।

उसके पैर डगमगाए, और वह धड़ाम से ज़मीन पर गिर पड़ी।

पूरा कोरिडोर उसकी बेहोशी में डूबी हुई देह के इर्द-गिर्द सन्नाटे में घिर गया।

अतीत के साए

अंकिता की बेहोश पड़ी देह को देखते ही नर्सों और डॉक्टरों में खलबली मच गई। एक नर्स ने तुरंत डॉक्टर को आवाज़ दी, "डॉक्टर, जल्दी आइए! पेशेंट बेहोश हो गई हैं!"

डॉक्टर भागते हुए आए और उसका मुआयना करने लगे। "इसे तुरंत ICU में ले जाना होगा!"

तुरंत स्ट्रेचर मंगाया गया और अंकिता को ICU में शिफ्ट कर दिया गया। अस्पताल के कोरिडोर में हलचल मच गई थी। लेकिन इन सबके बीच अंकिता एक दूसरी दुनिया में थी—अपने अतीत की उस दुनिया में, जिसे वह चाहकर भी भुला नहीं पाई थी।

अतीत के पन्ने

गहरी बेहोशी में डूबी अंकिता के दिमाग में वो पुरानी यादें फिर से ज़िंदा होने लगीं। एक पुरानी गली, पीली रोशनी में नहाई हुई। सड़क के किनारे एक पुराना चाय का ठेला, जहाँ वह और इमरान घंटों बैठकर बातें किया करते थे।

"अंकिता, तुमने कभी सोचा है, हम दोनों का भविष्य कैसा होगा?" इमरान ने हँसते हुए पूछा था।

"मुझे बस इतना पता है कि तुम रहोगे तो सब कुछ ठीक रहेगा," अंकिता ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया था।

लेकिन समय के पन्ने ऐसे पलटते हैं कि एक लम्हा भी हमेशा के लिए बदल जाता है।

वर्तमान में वापसी

अचानक, ICU के मॉनिटर पर बीप-बीप की आवाज़ तेज़ हो गई। डॉक्टर चिंतित हो गए।

"इनकी पल्स तेज़ हो रही है," एक नर्स बोली।

डॉक्टर ने उसकी नब्ज़ चेक की। "होश में आने वाली है!"

अगले ही पल, अंकिता की आँखें धीरे-धीरे खुलने लगीं। उसकी साँसें तेज़ थीं, माथे पर पसीना झलक रहा था। उसने आँखें खोलते ही इधर-उधर देखा, जैसे किसी को ढूँढ रही हो।

कालेज लाइब्रेरी, 

कॉलेज लाइब्रेरी में हल्की रोशनी फैली थी, किताबों की अलमारियाँ शांत गवाह बनी खड़ी थीं। समीरा एक कोने में खड़ी होकर किताब के पन्नों में खोई हुई थी। उसकी आँखें ध्यान से शब्दों को पढ़ रही थीं, और जब भी कोई दिलचस्प लाइन मिलती, उसके होंठ हल्के से मुस्कुरा उठते।

हल्की हवा चल रही थी, जिससे उसके रेशमी बाल उड़कर उसके चेहरे पर आ रहे थे। बार-बार वह अपनी नाजुक उंगलियों से बालों को हटाने की कोशिश करती, लेकिन वे फिर से उसकी आँखों के आगे झूल जाते। उसके मासूम चेहरे पर थोड़ी सी झुंझलाहट और फिर एक प्यारी-सी मुस्कान खेल जाती।

किताब पढ़ते-पढ़ते उसकी भौंहें कभी हल्की-सी सिकुड़ जातीं, कभी उसकी आँखों में चमक आ जाती, और कभी वह होंठ दबाकर मुस्कराने लगती। ऐसा लगता था जैसे शब्दों से एक मीठी बातचीत चल रही हो। उसकी भोली-सी अभिव्यक्तियाँ उसे और भी खूबसूरत बना रही थीं—एक ऐसी मासूमियत, जो देखते ही मन मोह ले।

तभी उसने किताब का अगला पन्ना पलटा। उसकी उंगलियों की हल्की-सी थरथराहट और आँखों में उत्सुकता इस बात की गवाही दे रही थी कि वह कहानी में पूरी तरह डूबी हुई थी। हवाओं ने फिर से शरारत की, और वह एक बार फिर अपने चेहरे से बाल हटाने लगी, एक प्यारा-सा पाउट बनाते हुए। वह उस पल में इतनी खूबसूरत और मासूम लग रही थी कि अगर कोई देखता, तो बस देखता ही रह जाता।