त्राटक के सम्बंध में यहाँ सूत्रकार कहते हैं कि बग़ैर पलक झपकाए किसी लघु लक्ष्य पर टकटकी लगाकर देखते रहना त्राटक है। इसके अभ्यास से शाम्भवी मुद्रा की सिद्धि होती है। नेत्र-विकार का क्षय होकर दिव्य दृष्टि प्राप्त होती है।
त्राटक क्रिया को भले ही हठ योग का एक अंग माना गया हो परंतु त्राटक करने वाले कुछ साधक हठयोग के बारे में नहीं जानते किंतु फिर भी इसका अभ्यास कर जीवन को आनंदमय बनाते हैं। सचमुच में त्राटक क्रिया का अपना अलग ही महत्त्व है। त्राटक को दूसरे शब्दों में सम्मोहन (हिप्नोटिज्म) भी कहते हैं। प्रतिदिन अभ्यास करने वाले साधक की आँखों में आकर्षण न हो, ऐसा हो नहीं सकता। सच बात तो यह भी है कि त्राटक को अब प्रदर्शन की वस्तु बना लिया गया है। जहाँ-तहाँ इसके सेमिनार आयोजित होते हैं और सिर्फ़ त्राटक को लक्ष्य बनाकर वक्ता एक घंटे का भाषण देकर चले जाते हैं। उनकी पूरी प्रयोगात्मक पद्धति न तो वे बता पाते हैं और न ही आम व्यक्ति ठीक से समझ पाता है।
त्राटक से सिर्फ़ आँखों में ही आकर्षण नहीं बढ़ता बल्कि इतना ज़्यादा आत्मबल आ जाता है कि हम दूसरे के मन की बात को भी समझ लेते हैं। इस प्रयोग से ध्यान का मार्ग प्रशस्त होता है और आध्यात्मिक ऊर्जा भी प्राप्त होती है। जीवन को सुंदर बनाना हो तो त्राटक का अभ्यास क्रमानुसार, विधिपूर्वक व धैर्य के साथ सीखें। त्राटक के अभ्यास द्वारा आप सामने वाले व्यक्ति को सम्मोहित तो कर ही सकते हैं तथा बड़ी से बड़ी सभा को भी आप अपनी ओर आकर्षित कर सकते हैं।
त्राटक करने वाले साधक की आँखें सुंदर, बड़ी, आकर्षित करने वाली, मनमोहक, तेजोमय व अद्भुत बन जाती हैं। आज इसके कुछ उदाहरण हमारे सामने हैं जैसे स्वामी विवेकानंद, स्वामी विशुद्धानंद परमहंस (ज्ञानगंज, हिमालय), रजनीश (ओशो) आदि ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैं, जो अपनी आकर्षण शक्ति का उपयोग करके लोगों को अपना बना लेते थे। स्वयं लेखक सूर्यत्राटकी हैं। त्राटक का उद्देश्य आँखें बड़ी करना नहीं होना चाहिए। कुछ प्राप्ति की भावना भी होनी चाहिए। आप त्राटक की सहायता से दुश्मन को भी दोस्त बना सकते हैं। हिंसक पशु को भी वश में कर सकते हैं।
त्राटक की कई विधियाँ प्रचलित हैं। हम यहाँ मुख्य विधियों का ही वर्णन करेंगे ताकि साधकगण लाभान्वित हो सकें।
विधि :
आप एक ऐसे स्थान का चयन कीजिए जो साफ़, सुंदर व शांतिमय हो तथा वातावरण भी अच्छा हो। वहाँ जब तक आप अभ्यास करें तब तक किसी प्रकार का विघ्न न हो पाए।
त्राटक करने की वस्तु से लगभग 4 फीट दूर सुखासन में बैठिए। सबसे पहले मोमबत्ती जलाइए और इसको उचित दूरी पर रखिए (मोमबत्ती एवं आँखें समकक्ष होना चाहिए) यदि कमरे में हवा का आवागमन अधिक होगा तो मोमबत्ती की लौ हिलेगी जिससे आँखों में विकार हो सकता है। इसलिए बेहतर होगा कि उसके तीन तरफ़ काँच या प्लास्टिक का आवरण लगा दें और सामने से खुला रखें। अब प्रसन्नचित्त होकर मोमबत्ती की ऊपरी लौ को बग़ैर पलक झपकाए देखें। शुरू-शुरू में आँखों में जलन मचेगी अतः धैर्य पूर्वक अभ्यास करें। यथाशक्ति निर्विकार व निर्निमेष होकर देखने का प्रयास करें। एकदम से काफ़ी देर तक न देखते रहें अन्यथा दूसरे दिन अभ्यास में कठिनाई महसूस होगी। लगभग 5 से 6 महीने के अभ्यास से सफलता मिलने लगती है। मोमबत्ती की जगह दीपक या अगरबत्ती से अभ्यास कर सकते हैं परंतु अंधेरे कमरे में करें।
बिना आकुलता के जब तक देख सकते हैं देखने का प्रयास करें। तदोपरांत आँखें बंद कर उसी लौ को देखने का प्रयास करें। वह लौ आपको कुछ देर तक आँख बंद करने पर भी दिखेगी। यह आपका अंतःत्राटक कहलाएगा एवं एकाग्रता और दृष्टि दोनों स्थिर हो जाएँगी।
त्राटक करने की और भी कई विधियाँ प्रचलित हैं जैसे बिंदु, चक्र, सूर्य, चंद्र, तारे, दर्पण, नासिका का अग्र भाग, अपने इष्टदेव की प्रतिमा, चमकता हुआ बिंदु आदि। आजकल बना बनाया त्राटक चार्ट मिल जाता इससे भी आप अभ्यास कर सकते हैं। प्रणव मंत्र ॐ पर भी कुछ साधक त्राटक करते हैं।
विशेष : इस अभ्यास को तनावरहित होकर करें। प्रसन्नता रखें। यथासंभव ब्रह्मचर्य और शाकाहारिता का ध्यान रखें। अर्थात् जो साधक काम-विकार की तरफ़ ध्यान नहीं देता और शुद्ध शाकाहारी भोजन करता है उस साधक के अंदर विलक्षण शक्ति का प्रादुर्भाव होता है। वह धीरे-धीरे भूत तथा भविष्य को भी जानने में समर्थ हो जाता है। उसके अंदर कई शक्तियाँ आ जाती हैं। वह जीवन के सर्वोच्च शिखर पर पहुँच जाता है।
नोट : आँखों में जलन महसूस होने पर उन्हें मलें (रगड़ें) नहीं। उन पर ठंडे पानी के छीटें डालें या गुलाब जल का प्रयोग करें। जिनकी आँखें कमज़ोर हों वे त्राटक का अभ्यास विवेकपूर्वक करें।
यह साधना उतनी सरल नहीं है जितनी कि दिखाई देती है। इसके लिए धैर्य, आत्मविश्वास और पूर्ण विवेक की आवश्यकता होती है। आंतरिक त्राटक के लिए आँखें बंद कर भ्रूमध्य में देखने का प्रयास करें।
लाभ :
• दिव्य दृष्टि प्राप्त होती है
• सामान्य नेत्र-विकार समाप्त होते हैं।
• जीवन की कई महत्त्वाकाँक्षाएँ पूरी होती हैं।
• आध्यात्मिक और सांसारिक दोनों प्रकार के सुख मिलते हैं।
• शारीरिक और मानसिक लाभ मिलते हैं।
• प्रसिद्धि प्राप्त होती है
• कुण्डलिनी जागरण के लिए यह एक सशक्त माध्यम है। • बल, ओज और तेज की वृद्धि होती है।
• एकाग्रता शक्ति का विकास होता है। स्मरण शक्ति बढ़ती है। आध्यात्मिक शक्ति का विकास होकर इहलोक और परलोक दोनों सुधरते हैं।