कहानी का शीर्षक: "एक गुलाब की वापसी"लेखक: कवि विजय शर्मा एरीप्रमाणपत्र: यह मेरी मौलिक एवं स्वरचित कहानी है।पता: गली कुटिया वाली, वार्ड नं. 3, अजनाला, अमृतसर (पंजाब)भूमिका: यह कहानी है एक सुंदर पर घमंडी लड़की और एक सीधे-सादे लड़के मनोज की, जिसकी सच्ची मोहब्बत को वक़्त ने मोड़ तो दिए, पर उसकी नीयत को नहीं बदला।कॉलेज का माहौल खिला-खिला था। हर तरफ़ प्रेम का रंग चढ़ा हुआ था। वैलेंटाइन डे करीब था और मनोज की धड़कनें कुछ ज़्यादा ही तेज़ हो गई थीं।मनोज एक साधारण परिवार से था। न कोई बड़ा मोबाइल, न महंगे कपड़े। पर उसका दिल साफ़ था, भावनाएं सच्ची थीं।और वह लड़की? नाम था रिया मल्होत्रा। कॉलेज की सबसे सुंदर, अमीर और स्टाइलिश लड़की। उसके दोस्त सिर्फ़ अमीर लड़के थे – महंगी गाड़ियाँ, महंगे गिफ्ट्स और महंगे शब्द।मनोज हर दिन क्लास में पीछे बैठ कर रिया को देखा करता। वह जानता था कि वह उसका मुकाबला नहीं कर सकता, लेकिन दिल को कैसे समझाए?मनोज (अपने दोस्त अर्जुन से): "भाई, दिल कह रहा है इस वैलेंटाइन डे उसे एक गुलाब दे दूँ। जो होगा देखा जाएगा।"अर्जुन: "पागल है क्या! वो तुझे नहीं देखती, तेरे जैसे कितनों को घास नहीं डालती। कहीं बेइज़्ज़ती हो गई तो?"मनोज: "सच्चा प्यार इज़्ज़त नहीं देखता, हिम्मत करता है।"14 फरवरी – वैलेंटाइन डे मनोज ने छोटे से फूलवाले से एक लाल गुलाब खरीदा। सीने में धड़कनें तेज़, हाथ में कांपता गुलाब लेकर वह कैंटीन के बाहर रिया का इंतज़ार करने लगा।रिया अपने अमीर दोस्तों के साथ हँसते हुए आई। मनोज आगे बढ़ा।मनोज (धीरे से): "रिया, मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ। ये गुलाब तुम्हारे लिए है... मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ।"रिया की हँसी अचानक रुक गई। उसके चेहरे पर गुस्सा छा गया।रिया (तिरस्कार से): "तू...? तेरी औकात क्या है मेरे सामने गुलाब लाने की? तुझे आईना नहीं दिखता?"और तभी... सबके सामने उसने मनोज को ज़ोरदार थप्पड़ मारा।रिया: "Next time नज़र भी मत आना!"चारों तरफ़ हँसी, तानों और शर्मिंदगी की गूंज थी। मनोज की आँखों में आंसू आ गए। बिना कुछ बोले वह वहां से चला गया।कुछ हफ्तों बाद... मनोज ने कॉलेज छोड़ दिया। वह अपने नानी के गाँव चला गया। वहीं रहकर UPSCकी तैयारी करने लगा। उसने अपने आप को पूरी तरह से पढ़ाई में डुबो दिया। दर्द को उसने अपनी ताकत बना लिया।
**दो साल बाद...**
एक सुबह, रिया के पिता का फोन बजा। वे एक बड़े अफसर से मिलने जा रहे थे।
पिता (उत्साहित): "रिया, जल्दी तैयार हो जा। नए जिला मजिस्ट्रेट से मिलने जाना है। वे तुम्हारे ही कॉलेज के निकले हैं!"
रिया (उत्सुकता से): "कौन हैं वो?"
पिता: "नाम है मनोज कुमार। बहुत होनहार अफसर है।"
रिया का दिल धक् से रुक गया। **वही मनोज?** जिसे उसने थप्पड़ मारा था? उसके हाथ-पैर काँपने लगे।
**कलेक्टर कार्यालय में...**
मनोज अपनी चमचमाती वर्दी में बैठा था। आत्मविश्वास से भरा हुआ। जब रिया और उसके पिता अंदर आए, तो उसकी नज़र रिया पर पड़ी। पर उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था।
रिया के पिता (झुककर): "सर, हम आपके स्वागत में एक छोटी सी पार्टी..."
मनोज (शांत स्वर में): "धन्यवाद, पर मेरा शेड्यूल बहुत टाइट है।"
रिया ने साहस जुटाया और आगे बढ़ी।
रिया (काँपती आवाज़ में): "मनोज... मैं... मुझे माफ़ कर दो। मैंने उस दिन..."
मनोज (मुस्कुराते हुए): "रिया, ज़िंदगी ने तुम्हें माफ़ कर दिया है। मैंने तो बहुत पहले ही सब भुला दिया।"
और फिर उसने अपने टेबल से एक लाल गुलाब उठाया। वही लाल गुलाब, जैसा उसने दो साल पहले दिया था।
मनोज: "ये लो। इस बार इसे ठुकराना मत।"
रिया की आँखों में आँसू आ गए। उसने गुलाब ले लिया और धीरे से कहा, "धन्यवाद... सर।"
मनोज (मुस्कुराते हुए): "कोई सर नहीं... बस तुम्हारा मनोज।"
**कहानी का अंत:**
समय बदलता है, इंसान बदलता है, पर सच्चा प्यार कभी नहीं बदलता। मनोज ने अपने धैर्य और मेहनत से साबित कर दिया कि इंसान की कीमत उसके कपड़ों या बैंक बैलेंस से नहीं, बल्कि उसके इरादों से होती है। और रिया ने सीखा कि घमंड कभी भी प्यार से जीत नहीं सकता।
**~ कवि विजय शर्मा 'एरी'**
*गली कुटिया वाली, वार्ड नं. 3, अजनाला, अमृतसर (पंजाब)*