प्रिया का रिश्ता
डोगरा हाउस आज सचमुच किसी राजमहल जैसा सजा था। हर कोने से फूलों की सोंधी खुशबू आ रही थी। नौकर-चाकर इधर-उधर दौड़ रहे थे, और कुमुद — घर की मालकिन — हर चीज़ पर अपनी तीखी निगाह रखे हुए थी। हल्की पीली साड़ी में, गहनों की न्यूनतम परत में भी वह किसी सेठानी से कम नहीं लग रही थी।
तभी एप्रन पहने एक आदमी पीछे से आया — प्लेट में पकोड़े थे। उसने हँसते हुए एक पकोड़ा कुमुद के मुँह में डाल दिया।
“भाग्यवान! ज़रा चखो तो — ठीक बने हैं न?”
कुमुद ने गुस्से से उसकी ओर देखा — और धीमे-धीमे पकोड़ा चबाते हुए आँखें घुमा दीं।
"आपको शर्म नहीं आती? सबके सामने ये सब करते हुए!"
"अरे! तुमने ही तो कहा था — चखकर बताओ, तभी और बनाऊँगा!"
कुमुद ने हँसते हुए सिर हिलाया, “आपका कुछ नहीं हो सकता। अच्छा जल्दी तैयार हो जाइए... वो लोग आते ही होंगे।”
आज उनकी बेटी प्रिया को देखने लड़के वाले आ रहे थे। कुमुद की आँखों में एक माँ की चमक थी। वैभव — उसका पति — भी मुस्कुरा रहा था, पर अंदर ही अंदर वह बेचैन था।
"उन्हें सब पता है न... प्रिया के बारे में?"
कुमुद ने उसकी आँखों में देखा और बस चुपचाप सिर हिला दिया।
फोन की घंटी बजी —
"अरे! वो लोग 25 मिनट में आ रहे हैं!"
कुमुद पूरे घर को अंतिम बार एक नज़र देखती है, फिर मंदिर में जाकर हाथ जोड़ लेती है।
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दरवाज़े की घंटी बजी।
"मैं खोलता हूँ," वैभव ने नौकर को रोका और खुद आगे बढ़ा।
सिंघानिया परिवार दरवाज़े पर था — शहर का प्रतिष्ठित नाम।
डिंपल सिंघानिया मुस्कुराकर बोलीं, “आपका घर तो बहुत ही सुन्दर है, नज़र ही नहीं हट रही।”
कुमुद ने विनम्रता से धन्यवाद कहा।
गिरीश — लड़का — बहुत ही सुलझा हुआ और सौम्य लग रहा था। वैभव ने पूछा, “बेटा, कुछ अपने बारे में बताओ।”
"मैं ‘सिंघानिया रियल एस्टेट’ में मार्केटिंग मैनेजर हूँ। अभी सीख रहा हूँ। बाद में कंपनी जो डिसाइड करेगी, वही करूँगा।"
कुमुद और वैभव के मन में संतोष की लहर दौड़ गई। डिंपल बोलीं, “अब वधू से भी मिलवा दीजिए।”
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कुछ ही देर में, घूँघट में ढकी प्रिया नीचे आई। पर जैसे ही वह चली — सब चौंक गए। वह लंगड़ा रही थी।
मोहित सिंघानिया, लड़के के पिता, बोल पड़े —
"पैर में चोट है क्या?"
कुमुद ने शांत स्वर में जवाब दिया —
"नहीं, हमारी बेटी ऐसे ही चलती है। बचपन से।"
माहौल में जैसे सन्नाटा पसर गया।
मोहित ग़ुस्से में बोले —
“आपको क्या लगता है, हम आपकी हैसियत देखकर रिश्ता तय करेंगे? हमारी आँखों पर पट्टी नहीं बंधी।”
उन्होंने तुरंत उठकर जाने का इशारा कर दिया।
डिंपल ने जाते-जाते कहा —
“अगर पहले ही बता देते तो...”
प्रिया ने टोक दिया —
“तो क्या, आप रिश्ता कबूल कर लेतीं?”
डिंपल कुछ नहीं बोलीं।
गिरीश ने जाते-जाते एक बार मुड़कर प्रिया को देखा — उसकी आँखों में आँसू थे। माँ कुमुद बिखर चुकी थी। वैभव बस एक कोने में चुप बैठा था।
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कमरे के अंदर, कुमुद का दर्द सिसकियों में बदल चुका था।
“सब जानकर भी... कोई साथ नहीं देता...”
प्रिया उसका हाथ थामे बैठी थी — समझ नहीं पा रही थी कि अपनी माँ को कैसे सांत्वना दे।
सजावट अब भी थी — लेकिन वो रौनक कहीं खो गई थी।
खुशियों का जो सपना उस सुबह बुना गया था, वह शाम तक आँखों के सामने चूर हो चुका था।
"जब सच्चाई को घूँघट में छिपाया जाता है, तो रिश्ते नहीं, अफसोस मिलते हैं..."
"क्या एक लड़की की चाल उसकी ज़िंदगी की दिशा तय करेगी?