कहानी का शीर्षक: "पुराने बक्से की यादें"
गर्मियों की छुट्टियों में आरव अपने दादी-दादा के गांव आया था। शहर की तेज़ रफ्तार ज़िंदगी से दूर, गांव की मिट्टी में कुछ खास अपनापन था जो उसे हमेशा खींच लाता था। इस बार दादी ने उससे कहा, “बेटा, ज़रा ऊपर वाले कमरे की सफाई कर दे, सालों से किसी ने वहां झांका भी नहीं।”
आरव उत्साहित होकर उस पुराने कमरे में पहुंचा। लकड़ी की अलमारी, धूल भरे परदे, और कोनों में जाले लगे हुए थे। एक कोने में एक बड़ा, पुराना लकड़ी का बक्सा रखा था। बक्सा कुछ भारी था लेकिन आरव ने उसे खींचकर खिड़की के पास ले आया और धूल झाड़ने लगा। बक्से के ऊपर उसका नाम खुदा हुआ था — 'आरव'। वह हैरान रह गया।
उसने जैसे ही बक्सा खोला, एक पुरानी डायरी, कुछ कागजों के टुकड़े, पुरानी चिट्ठियां और एक फोटोग्राफ निकली। फोटो में एक जवान लड़का और लड़की थे, मुस्कुराते हुए। लड़की ने सफेद साड़ी पहन रखी थी और लड़का फौजी वर्दी में था। फोटो के पीछे लिखा था — “वादा रहा, लौटकर आऊंगा। तुम्हारा, अर्जुन।”
आरव ने डायरी खोलकर पढ़ना शुरू किया।
"3 मई 1965 — आज अर्जुन की चिट्ठी आई। वह सीमा पर तैनात है। लेकिन उसकी बातें अब भी वैसी ही हैं — सादगी से भरी, उम्मीदों से लबरेज़। वह कहता है, मैं लौटकर आउंगा... लेकिन हर बार जब उसका खत पढ़ती हूं, मेरा दिल डूब जाता है।"
आरव समझ गया कि ये उसकी दादी की डायरी थी। उसने धीरे-धीरे सारे पन्ने पलटे। हर पन्ना अर्जुन की चिट्ठियों और उसकी दादी की भावनाओं से भरा हुआ था। अर्जुन शायद उसके दादाजी नहीं थे। यह बात उसे चौंका गई।
एक पन्ने पर लिखा था:
"15 अगस्त 1966 — आज खबर आई कि अर्जुन अब कभी वापस नहीं आएगा। उसका बलिदान देश के लिए था। लेकिन मेरे लिए वह एक अधूरा ख्वाब बन गया। मैंने शादी की, एक नया जीवन शुरू किया। लेकिन दिल के किसी कोने में अर्जुन हमेशा रहेगा। ये बक्सा, उसकी यादों की अमानत है। इसे आरव को देना चाहती हूं, शायद वह समझ सकेगा कि प्यार क्या होता है — सच्चा, निस्वार्थ और बलिदानी।"
आरव की आंखें नम हो गईं। उसे समझ आया कि दादी का प्यार सिर्फ उसके दादाजी तक सीमित नहीं था। उनका दिल कभी किसी और के लिए भी धड़का था, और वह प्रेम भले ही अधूरा रह गया, लेकिन उसकी गहराई शब्दों से परे थी।
नीचे की ओर एक छोटा सा लिफाफा रखा था — "मेरे आरव के लिए"।
आरव ने उसे खोला, उसमें लिखा था:
“बेटा, अगर तू ये पढ़ रहा है, तो समझ कि तू बड़ा हो गया है, और अब कुछ सच्चाइयों को जानने लायक भी। ये बक्सा मेरा अतीत है, मेरा पहला प्यार। अर्जुन कभी तेरा दादाजी नहीं बना, लेकिन वो मेरे जीवन का हिस्सा था, जिसे मैं कभी भुला नहीं सकी। प्यार करना सीख, लेकिन उसमें सच्चाई और सम्मान होना चाहिए। ये बक्सा अब तेरा है — संभाल कर रखना, और कभी किसी को अधूरा मत छोड़ना।”
आरव ने बक्सा फिर से बंद किया। वह अब एक अलग भावनात्मक यात्रा पर था। गांव की वो गर्मी अब उसे चुभ नहीं रही थी। वह समझ चुका था कि पुराने बक्से सिर्फ धूल नहीं रखते, वे दिल के सबसे अनमोल पन्ने भी संजोए रखते हैं।
समाप्त।