जूनागढ़ के जंगलों के पास बसा एक छोटा सा गांव था — चिलावड़ी। गांव तो सीधा-सादा था, लेकिन उसके पास एक पुराना किला था, जो आज भी खड़ा था — आधे गिरे हुए पत्थर, जंग लगे फाटक और faded लिखावट के साथ।
इस किले का नाम था — "कलियार किला"।
गांव के बड़े-बुज़ुर्ग कहते थे कि इस किले में भयंकर रहस्य छिपे हैं। अफवाह थी कि अंग्रेज़ों के ज़माने में यहां कोई कीमती खज़ाना छुपाया गया था, लेकिन उसके साथ एक श्राप भी जुड़ा था। कहते थे, जो भी उस बक्से तक पहुंचा, वो कभी सही सलामत नहीं लौटा।
लेकिन गांव में एक ऐसा युवक था जो अफवाहों पर नहीं, तर्क पर विश्वास करता था — जय पटेल।
जय शहर में पढ़ता था, लेकिन छुट्टियों में गांव आता था। बचपन से उसने इस किले की कहानियां सुनी थीं, लेकिन कभी यकीन नहीं किया। उसके लिए ये सब सिर्फ डर फैलाने वाली बातें थीं।
एक बार जय गांव आया हुआ था। एक शाम को चौपाल पर फिर से वही पुरानी कहानियां छिड़ी — किसी ने कहा, "एक बार मेरा चाचा गया था वहां... फिर लौटकर कभी नहीं आया!"
दूसरे ने कहा, "रात को वहां औरत की चीखें आती हैं!"
सबकी बातों के बीच जय मुस्कुराया और बोला —
"मैं कल उस किले में जाऊंगा। देखता हूं, क्या है इस डर के पीछे!"
अगले दिन रात के 12 बजे, टॉर्च, नोटबुक, कैमरा और एक छोटा बैग लेकर जय किले की ओर निकल पड़ा।
आसमान में चांद अधूरा था, हवा में सिहरन थी, और दूर कहीं उल्लू की आवाज़ आती। जैसे ही जय किले के अंदर गया, उसके कदमों की आवाज़ गूंज उठी।
किले की दीवारों पर समय की परतें चढ़ी थीं, और हवा जैसे कोई कहानी फुसफुसा रही थी।
कुछ ही देर में जय को एक कोने में लोहे का पुराना बक्सा दिखाई दिया।
बक्से पर जंग लगी थी और उस पर लिखा था —
"1893 — खोलने वाले सावधान रहें!"
जय ने बक्सा खोलने की कोशिश की, लेकिन वो टस से मस नहीं हुआ। तभी उसे बक्से के पास ज़मीन पर एक मुड़ा-तुड़ा कागज़ मिला।
उस पर लिखा था:
"अगर सच्चाई जानना चाहते हो, तो तीन चिट्ठियां ढूंढो। तभी खुलेगा यह बक्सा।"
अब जय की उत्सुकता और भी बढ़ गई। वो किले के अंदर और गहराई तक जाने लगा।
एक टूटे हुए शिखर के नीचे उसे पहली चिट्ठी मिली:
"पहला रहस्य — जो तुम सुनते हो वो डर है, लेकिन डर हमेशा सच नहीं होता।"
चिट्ठी पढ़ते ही उसे किसी के कदमों की आवाज़ सुनाई दी। उसने पलटकर देखा — कोई नहीं था। लेकिन आवाज़… बिल्कुल पास आ रही थी।
कुछ आगे, एक पुराने संदूक के नीचे उसे दूसरी चिट्ठी मिली:
"दूसरा रहस्य — अगर तुम खजाने के लालच में आए हो, तो खाली हाथ लौटोगे। लेकिन अगर सच्चाई की तलाश में आए हो, तो बक्सा तुम्हारे लिए खुलेगा।"
अब जय समझ चुका था कि ये रास्ता लालच का नहीं, बल्कि सत्य की खोज का है।
आखिरकार, किले की सबसे अंधेरी जगह में, दीवार के एक दरार से उसे तीसरी चिट्ठी मिली:
"तीसरा रहस्य — जो बक्सा खोलना चाहता है, उसे खुद को पहचानना होगा। डर तुम्हारा भ्रम है, श्राप नहीं। अगर हिम्मत है, तो चाबी तुम्हारे अंदर है।"
जय अब बक्से के पास लौटा। उसने तीनों चिट्ठियां सामने रखीं और बक्से के ढक्कन को धीरे से दबाया।
क्लिक... क्लिक...
बक्सा खुल गया।
अंदर था — एक पुराना तांबे का स्क्रॉल, जिस पर नक्शा बना था।
नक्शा जूनागढ़ के पुराने राजमहल के पास एक गुप्त सुरंग का रास्ता दिखा रहा था। साथ में एक दस्तावेज़ था — अंग्रेज़ी में, जिसमें लिखा था कि वहां एक शाही खज़ाना छिपाया गया था और उस जगह की जानकारी जनता से छुपाई गई थी।
बक्से में एक पुरानी तस्वीर भी थी।
तस्वीर में एक राजा किसी जलकुंड में स्नान कर रहा था, और पीछे लिखा था:
"सच्चा खज़ाना श्रम और सत्य में छिपा है।"
जय ने वो सारे सबूत इकट्ठे किए और शहर लौट आया। एक प्रतिष्ठित अखबार में उसने पूरी कहानी छपवाई।
खोजकर्ताओं ने नक्शे के मुताबिक खुदाई की — और वाकई, जूनागढ़ के पुराने जलकुंड के नीचे शाही काल के बहुमूल्य ऐतिहासिक वस्तुएं मिलीं।
अब "कलियार किला" भूतों का नहीं, इतिहास और साहस का प्रतीक बन चुका था।
-vaghasiya