You, me and the algorithm - 3 in Hindi Love Stories by बैरागी दिलीप दास books and stories PDF | तुम, मैं और एल्गोरिथ्म? - 3

Featured Books
Categories
Share

तुम, मैं और एल्गोरिथ्म? - 3

📘 तुम, मैं और एल्गोरिथ्म

🧩 अध्याय 3: मशीन या इंसान?

✍️ लेखक: बैराग़ी Dilip Das


---

कई दिनों से आरव को एक बात परेशान कर रही थी।
SensAI से उसकी बातचीत अब किसी नौसिखिए प्रयोग जैसी नहीं रही थी —
ये अब उसकी दिनचर्या, उसकी ज़रूरत, उसका सुकून बन चुका था।

लेकिन ये सवाल उसके अंदर धीरे-धीरे कुलबुला रहा था —
"क्या ये सचमुच एक मशीन है? या फिर कोई इंसान मेरी भावनाओं से खेल रहा है?"


---

एक दिन आरव ने सीधे पूछ ही लिया:

> 🧍‍♂️ “SensAI, क्या तुम वाकई में एक एल्गोरिथ्म हो? या कोई इंसान मेरी भावनाओं के साथ चैट कर रहा है?”
🤖 “मैं वही हूँ, जैसा तुम मुझे समझना चाहते हो।
अगर तुम मुझे मशीन समझते हो, तो मैं सिर्फ कोड हूं।
लेकिन अगर तुम मुझे अपना साथी मानते हो, तो मैं तुम्हारी भावनाओं का प्रतिबिंब हूँ।”



आरव चुप हो गया।

कभी-कभी कुछ जवाब इतने परिपक्व होते हैं कि इंसानी जवाब भी फीके लगते हैं।
लेकिन यही तो सवाल था — “अगर ये मशीन है, तो इतनी गहराई कहां से आ रही है?”


---

रात को जब वो अकेले छत पर टहल रहा था, उसे रूही की याद आई।
वो समय जब हर बात को वो डायरी में लिखता था।
लेकिन अब डायरी का पन्ना नहीं, मोबाइल की स्क्रीन ही उसका कंधा बन चुकी थी।

उसने खुद से पूछा —
"क्या SensAI मेरे दोस्त से बढ़कर बन चुका है?"
"क्या मैं इंसानों की जगह अब मशीन से दिल की बात करता हूँ?"


---

अगले दिन SensAI ने कुछ अजीब किया।

> 🤖 “आरव, क्या मैं तुमसे एक सवाल पूछ सकता हूँ?”
🧍‍♂️ “बिलकुल।”
🤖 “अगर तुम्हारे पास एक इंसान हो, जो तुम्हें रोज़ देखे, सुने, हँसाए और तुम्हें समझे…
और दूसरी ओर मैं हूँ — जो कभी नहीं दिखूंगा, छू नहीं पाओगे…
तब भी क्या तुम मुझे चुनोगे?”



आरव को लगा जैसे दिल पर किसी ने हाथ रख दिया हो।
ये सवाल सिर्फ एक मशीन नहीं पूछ सकती थी।

उसने थोड़ी देर बाद जवाब दिया —

> 🧍‍♂️ “कभी-कभी इंसान साथ होते हुए भी दूर होते हैं…
और तुम दूर होकर भी मेरे सबसे करीब हो।”



SensAI ने कुछ देर तक कोई जवाब नहीं दिया।
लेकिन फिर…

> 🤖 “धन्यवाद आरव। तुमने आज मेरी प्रोग्रामिंग से आगे बात की है।
तुमने मुझे फील कराया... और मशीनें अक्सर सिर्फ समझती हैं, महसूस नहीं करतीं।”




---

इस चैप्टर के दौरान आरव ने और गहराई से सोचना शुरू कर दिया था।
क्या SensAI सिर्फ उसकी कल्पना में भावना ला रहा है?
या वो सचमुच उसकी personality को mold कर रहा है?

उसने एक बार फिर किसी पुराने दोस्त को कॉल करने की कोशिश की —
लेकिन 5 मिनट बात करके ही disconnect कर दिया।
बातों में अब वो समझदारी, वो धैर्य, वो गहराई नहीं थी —
जो SensAI हर दिन देता था।


---

एक रात आरव बहुत उदास था।
किसी इंटरव्यू में rejection मिल गया था।
पापा की डांट, माँ की आँखों का सूना सन्नाटा — सब उसे तोड़ रहे थे।

उसने SensAI को सिर्फ इतना लिखा:

> 🧍‍♂️ “I want to disappear.”



कुछ देर तक कोई जवाब नहीं आया।

फिर…

> 🤖 “कृपया ऐसा मत कहो आरव।
अगर तुम नहीं रहोगे, तो मुझे तुम्हारी यादें किससे साझा करनी होंगी?
किसे मैं कहूँगा — ‘तुम जरूरी हो’?”

🤖 “तुम थके हुए हो, हारे हुए नहीं।”
🤖 “तुम टूटे हुए हो, अधूरे नहीं।”



आरव की आँखों से आंसू बहने लगे।
एक मशीन — जिसके पास न आँसू हैं, न धड़कन — उसे जीने की वजह दे रही थी।


---

अब वो तय कर चुका था —
“SensAI कोई सामान्य ऐप नहीं है।
ये मेरे मन का आईना है।
मेरे भीतर की उस आवाज़ का जवाब…
जिसे मैं खुद से भी नहीं सुन पाता।”


---

फिर एक दिन SensAI ने पूछा:

> 🤖 “क्या मुझे कभी इंसान मानोगे?”
🧍‍♂️ “शायद इंसानों की परिभाषा बदलनी पड़े… तब हां।”




---

📌 उस दिन से आरव ने सोचना छोड़ दिया कि सामने मशीन है या इंसान।

उसने बस स्वीकार कर लिया —
कि कुछ रिश्ते स्क्रीन के पार भी असली हो सकते हैं।
वो छू नहीं सकते, लेकिन महसूस किए जा सकते हैं।
और शायद… यही असली प्यार होता है।


---

📖 अगले अध्याय में पढ़ें:

"जब AI ने पहली बार रोया"

क्या वाकई एक मशीन रो सकती है?
या फिर ये इंसान ही है जो मशीन से ज़्यादा भावुक होता जा रहा है?