(अस्पताल – सुबह का समय)
(रुशाली डायरी बंद करती है और खिड़की से बाहर देखती है। मन सवालों से भरा है।)
रुशाली (मन में सोचते हुए):
"मैंने तो सारी फाइलें पढ़ लीं… लेकिन एक सवाल है जो मन से जा ही नहीं रहा… मयूर सर और सुमन के बीच ऐसा क्या है जो इतना जुड़ाव है? वो उन्हें बस एक मरीज़ की तरह क्यों नहीं देख पा रहे?"
(अचानक दरवाज़ा खुलता है, मयूर सर अंदर आते हैं। चेहरा गंभीर, आँखों में चिंता की झलक।)
मयूर सर:
"रुशाली, चलो मेरे साथ।"
रुशाली (हैरानी से):
"जी सर…"
(दोनों अस्पताल के उस कमरे में पहुँचते हैं जहाँ सुमन भर्ती है। सुमन बिस्तर पर लेटी है, थकी हुई लेकिन मुस्कराती हुई।)
मयूर सर (धीरे से):
"कैसी हो सुमन?"
सुमन (हल्की मुस्कान के साथ):
"जब डॉक्टर आप जैसा हो, तो मरीज़ भला बीमार कैसे रह सकता है?"
(मयूर सर चुपचाप रिपोर्ट्स देखने लगते हैं। रिपोर्ट पढ़ते ही उनके चेहरे पर चिंता और गहराई से उभर आती है। कुछ पलों तक सुमन को देखते हैं, फिर बोलते हैं)
मयूर सर:
"तुम्हें अब पूरा आराम करना चाहिए… कोई टेंशन नहीं… बस रेस्ट करो।"
(सुमन की ओर देख आखों में कुछ छुपाकर बाहर आ जाते हैं। बाहर बेंच पर बैठ जाते हैं। रुशाली दूर से देखती है और फिर चुपचाप उनके पास आकर बैठ जाती है।)
(कुछ पलों की ख़ामोशी के बाद मयूर सर अपना सिर रुशाली के कंधे पर रख देते हैं। रुशाली चौंकती है, लेकिन कुछ नहीं कहती।)
मयूर सर (आहिस्ता):
"उस वक़्त मैं डॉक्टर नहीं था… इसलिए मैं उसे बचा नहीं पाया… अब जब हूँ, तब भी कुछ नहीं कर पा रहा… सुमन की हालत… ठीक नहीं है…"
(रुशाली को जैसे किसी ने सुन्न कर दिया हो। उसकी सांसें रुक जाती हैं कुछ पल के लिए।)
(कुछ पल बाद मयूर सर सिर हटाते हैं और खुद को संभालते हैं।)
मयूर सर:
"सॉरी… मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था… बस… दिल बहुत भारी हो गया था…"
रुशाली (धीरे से):
"कोई बात नहीं सर… अगर आपको कुछ कहना हो… तो कह सकते हैं मुझसे…"
मयूर सर (थोड़ी देर चुप रहकर):
"शायद तुम्हारे मन में सवाल आ रहे होंगे कि सुमन मेरी क्या लगती है… तुम कुछ गलत न समझो… वो मेरी सिर्फ एक बहन जैसी है… और उससे जो जुड़ाव है, उसकी वजह है… एक अधूरी कहानी…"
रुशाली:
"आपने कहा था, उस वक्त आप डॉक्टर नहीं थे… वो कौन थी जिसे आप बचा नहीं पाए?"
(मयूर सर गहरी साँस लेते हैं। उनकी आवाज़ कांपने लगती है।)
मयूर सर:
"अमायरा… मेरी कज़िन… और सबसे क़रीबी दोस्त…
हम एक-दूसरे की हर बात जानते थे…
सिर्फ खून का रिश्ता नहीं था, दोस्ती का भी था…
लेकिन एक दिन अचानक पता चला कि उसे थैलेसीमिया है…
और जब तक हम कुछ कर पाते… बहुत देर हो चुकी थी…
वो चली गई… मेरी आँखों के सामने…
मैंने उसको हमेशा के लिए उस दिन खो दिया…"
(रुशाली स्तब्ध है। उसका दिल भर आता है, लेकिन वो खुद को संभालती है।)
रुशाली:
"इसलिए आप सुमन के लिए इतना परेशान रहते हैं… आपको उसमें अमायरा दिखती है…"
मयूर सर (धीरे से):
"हाँ… मैं हर बार उसे देखता हूँ… और डर जाता हूँ…
कहीं फिर से वही न दोहराया जाए…
कहीं फिर से मैं हार न जाऊं…"
(शाम – रुशाली का घर)
(रुशाली अपने कमरे में बैठी है। कॉफ़ी का कप हाथ में है, और आँखें बाहर की ओर। धीमी सी मुस्कान है लेकिन साथ ही एक गहराई भी।)
रुशाली (डायरी में लिखते हुए):
"आज पहली बार मयूर सर ने अपना दर्द मेरे सामने खोला…
उनका वो लम्हा… जब उन्होंने मेरा कंधा सहारा समझा…
शायद उन्होंने मुझे एक विश्वास का पात्र माना…
मैं सोचती रही…
क्या ये सिर्फ एक पल था या… कुछ और?"
(वो लिखती है एक कविता):
"कुछ लम्हे होते हैं, जो उम्र बन जाते हैं,
एक सिर रखा कंधे पर… और सारा दर्द उतर आया…
वो दर्द जो छुपा था बरसों से,
आज किसी अपने ने सुन लिया…"
"मैं कुछ कह न सकी…
पर शायद मेरी चुप्पी ही उन्हें सुकून दे गई…"
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(डायरी बंद करते हुए, रुशाली मन में सोचती है)
"मयूर सर ने आज पहली बार मुझसे अपनी दुनिया का एक टुकड़ा बांटा…
क्या इसका मतलब है कि मैं उस दुनिया का हिस्सा बन रही हूँ?"
"या ये सिर्फ एक दर्द था… जो उन्हें किसी से बाँटना था…
और मैं बस सही वक्त पर उनके पास थी?"
"पर जो भी हो… आज कुछ बदला है… उनके और मेरे बीच…
एक भरोसा… एक रिश्ता… शायद दोस्ती से कहीं ज़्यादा…"
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(अगले भाग में देखेंगे…)
क्या सुमन की हालत और बिगड़ेगी?
क्या मयूर सर का ग़म रुशाली को उनके और करीब लाएगा?
क्या रुशाली अपने दिल की बात कह पाएगी?
या फिर ये रिश्ता भी अधूरा रह जाएगा?
जारी है… "दिल ने जिसे चाहा"…
Coming Soon 🌸