पहली नजर का प्यार
(डोगरा हाउस आज सज-धजकर तैयार था, क्योंकि प्रिया को देखने लड़के वाले आने वाले थे। माँ कुमुद और पिता वैभव उत्साहित थे, पर वैभव के मन में संदेह था—क्या सिंघानिया परिवार को प्रिया के पैर की समस्या के बारे में बताया गया है? गिरीश, लड़का, सुलझा हुआ और विनम्र था, पर जब प्रिया लंगड़ाते हुए सामने आई, तो माहौल बदल गया। सिंघानिया परिवार ने रिश्ता ठुकरा दिया और अपमानित कर चले गए। माँ-बाप टूट गए, और प्रिया उन्हें सँभालती रही। बाहरी सजावट के बीच, भीतर बिखरी उम्मीदें और आँसुओं की नमी रह गई। अब आगे)
कुमुद और वैभव अब भी चुप थे। भोजन की थाली सामने थी, लेकिन न निवाला उठ रहा था, न गले से उतर रहा था।
तभी प्रिया ने मुस्कुराते हुए माँ का हाथ थामा, “माँ, आपकी बेटी बहुत स्पेशल है। देखना, मेरे लिए कोई ऐसा आएगा जो आपसे भी ज़्यादा मुझसे प्यार करेगा।”
कुमुद की आँखें भर आईं। उसने बेटी के हाथों को चूमते हुए कहा, “ऐसा ही होगा प्री। माँ का दिल कभी गलत नहीं होता।”
इतना सुनते ही वैभव का सब्र टूट गया। वह फूट-फूट कर रोने लगा।
प्रिया ने मुस्कुरा कर कहा, “पापा, आप क्यों रो रहे हैं? जल्दी ही किसी को अपने प्यार के जाल में फंसाकर उससे शादी कर लूंगी, फिर आपको दामाद का इंटरव्यू देने की जरूरत पड़ेगी। चिंता मत कीजिए!”
दोनों पति-पत्नी हल्के से मुस्कुरा दिए। घर में थोड़ी सी रौशनी लौट आई।
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प्रिया अपने कमरे में लौट गई। कंप्यूटर ऑन किया और एक फिल्म देखने लगी। यह सब अब नया नहीं था — उसे रिजेक्ट होना आदत बन गई थी। पहले बुरा लगता था, अब सुन्न लगने लगा है।
पर हर बार वह सिर्फ इसलिए तैयार होती थी... क्योंकि माँ-बाप का सपना था — अपनी बेटी को दुल्हन बनते देखना।
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सुबह देर तक वह सोई रही। तभी दरवाजे की हल्की सी दस्तक ने नींद तोड़ी।
सामने माँ सज-धजकर खड़ी थी।
प्रिया ने उबासी लेते हुए पूछा, “फिर से पापा से शादी कर रही हो क्या?”
कुमुद ने आँखें तरेरी, “एक ही गलती बार-बार नहीं करती।”
“फिर?”
“आज तेरी दीदी रिया आ रही है।”
प्रिया ने मुस्कुराकर कहा, “बिल्कुल याद है। तैयार होकर आती हूँ।”
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नाश्ते की टेबल पर सब शांत थे।
कुमुद ने पूछा, “सिंघानिया फैमिली का कोई जवाब आया?”
वैभव ने बस सिर हिलाया, “बस उसी का इंतजार है।”
कुमुद बेचैन थी। प्रिया खामोशी से नाश्ता करती रही।
अचानक कुमुद बोली, “मैं दुनिया का सबसे अच्छा लड़का ढूंढ़ूंगी तेरे लिए।”
वैभव ने हाँ में हाँ मिलाई, “क्यों नहीं... हमारी बेटी एक सच्चा हमसफ़र डिज़र्व करती है।”
प्रिया की आँखों में आंसू आ गए।
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पापा ऑफिस जा चुके थे। तभी कुमुद ने फोन लगाया —
"बिन्नी! तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई हमारे साथ ऐसा करने की? तुमने प्रिया के बारे में सब कुछ क्यों नहीं बताया लड़के वालों को?"
प्रिया चुपचाप बाहर निकल रही थी।
कुमुद ने झट से फोन काटा और पूछा, “प्री, कहां जा रही हो?”
प्रिया ने कहा, “माँ, मृणालिनी की मंगनी है। उसके लिए गिफ्ट लेने और फिर वहीं जा रही हूँ।”
माँ ने कहा, “ठीक है... अपना ध्यान रखना।”
प्रिया मुस्कुरा दी, “जो हुक्म मेरे आका।” और कार में बैठ गई।
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खन्ना हाउस – एक नई शुरुआत
कार खन्ना हाउस पहुंची।
“भीमा काका, मुझे 5 बजे लेने आ जाना।”
“ठीक है बिटिया।”
बंगले के अंदर प्रिया की एंट्री किसी बिंदास हीरोइन जैसी थी।
मृणालिनी के कमरे में घुसते ही शरारती अंदाज़ में सीटी बजाई। सब ठहाकों में डूब गए।
"कैसी लग रही हूँ?"
"इतनी सुंदर कि धवल जी आज ही ब्याह कर ले जाएं।"
दोनों सहेलियाँ गले लग गईं।
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जल्द ही स्टेज पर रौनक थी।
धवल ने मंगनी से पहले कहा, “मेरे बिजनेस पार्टनर आने वाले हैं, पांच मिनट और...”
उसी समय, बाहर एक गहमागहमी मच गई।
कुछ मनचले लड़के एक लड़की का रास्ता रोक रहे थे।
प्रिया उधर बढ़ने लगी, तभी एक 23-24 साल का युवक सामने आया —
उसने एक लड़के की कलाई मरोड़ दी और लड़की को जाने का इशारा किया।
वह लड़का कुणाल राठौड़ था।
धवल बोला, “हैलो कुणाल! मैं तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था।”
कुणाल मुस्कुराया, और उन लड़कों को घूरकर वहाँ से चला गया।
प्रिया उसे देखती रह गई — बहादुर, आकर्षक, शांत।
कुणाल ने एक पल उसकी ओर देखा... फिर नजर फेर ली।
प्रिया चौंकी।
वह फिर काम में लग गई, लेकिन मन कहीं और था।
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मंगनी पूरी हुई।
कुणाल ने कपल को गिफ्ट दिया और खाने की टेबल की ओर बढ़ गया।
बाहर निकलते समय प्रिया अपनी कार की तरफ गई।
ड्राइवर पहले से बैठा था।
"Excuse me, मैम..."
प्रिया चौंकी, “तुम कौन हो?”
बाहर से आवाज आई — “मेरी कार का ड्राइवर है।”
कुणाल खड़ा था।
प्रिया ने झेंपते हुए कार के इंटीरियर को देखा —
"ओह, ये मेरी कार नहीं है!"
ड्राइवर चिढ़ गया, “ध्यान से देखिए, आपकी कार उधर खड़ी है।”
प्रिया की नजर भीमा काका पर पड़ी —
वही कार, वही रंग, वही मॉडल।
उसने दो सेकंड के लिए आँखें बंद कीं... फिर बिना कुणाल को देखे अपनी कार की ओर बढ़ गई।
और शायद उसी वक्त… दिल का एक दरवाज़ा किसी अनजाने मुसाफ़िर के लिए खुल गया।
"क्या प्रिया को आख़िरकार वो हमसफ़र मिल गया, जिसे देखकर उसका दिल धड़कने लगा?"
"क्या यह इत्तेफ़ाक था… या किस्मत की पहली दस्तक?"
"क्या प्रिया की कहानी अब एक नई दिशा में मुड़ने वाली है — या फिर यह भी एक धोखा साबित होगा?"
जानने के लिए पढ़ते रहिए "ओ मेरे हमसफ़र"।