Imperfectly Fits You - 4 in Hindi Love Stories by rakhi jain books and stories PDF | Imperfectly Fits You - 4

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Imperfectly Fits You - 4

/* प्यार या नफरत */

अच्छी खासी लाइफ सेटल हो रही है ऐसा लग रहा था जॉब छोटी है पर परफॉर्मेंस बोनस, इंसेंटिव काफी प्रॉमिसिंग है । थोड़ा extra कमा लू फिर प्रोग्रामिंग और वेब डेवलपिंग का काम सीखूंगी और कही अच्छी जगह जॉब करके एक्सपीरियंस लूंगी और फिर अपना खुद का काम करूंगी या फिर अच्छा टाइम सैलरी रही तो थोड़ा टाइम निकल कर परमार्थ सेवा करूंगी छोटा छोटा ही सही जैसे गौसेवा करना , कोई भूखा दिखे तो उसे खाना खिलाना , गार्डेनिंग ।

सक्सेसफुल हो गई तो लव लाइफ भी सेटल कर ही लूंगी । नहीं हुआ तो पैसा और काम तो रहेगा ही खुद के हिसाब से जिऊंगी । लेकिन मुझे कपल लाइफ जीनी है हैपिली । काम कोई भी करे सुख सुविधा में कमी न रहे क्योंकि ज्यादा क्लेश उसी की वजह से होते है जब इंसान के पास काम बहुत हो शरीर साथ न दे रहा हो और सुविधा भी न हो तो अच्छा खासा प्यार भी ये चीजें सॉल्व नहीं कर सकता चिड़चिड़ा पन आ ही जाता है। मुझे तो मेरा पता है कि मेरी तबीयत का कोई भरोसा नहीं इसलिए सुविधा देखना ही पड़ेगा । पता नहीं क्या कैसा होगा कोई मिलेगा भी या नहीं । या अरेंज में मिला तो मुझे मेरी कमी के साथ अपना पाएगा या नहीं । या तबीयत खराब होने पर मुझे ही दोष देगा । 

मैं overthinker हु ....आगे का 3 4 साल से लेकर फिर मौत तक की प्लानिंग 24 घंटे तक चलते रहती है । अभी तक तो लगभग 50 तरीकों से सक्सेसफुल हो गई हु और 200 तरीकों से लव मैरेज / अरेंज लव मैरेज कर चुकी हु  फिर 1000 तरीकों से मौत भी देख चुकी हु .....कई बार अटैक से कई बार एक्सीडेंट से कई नेचुरली चुपचाप बिना दर्द के और कई बार बीमार हो कर । 

ऑफिस में आज अचानक  half-day था समोसा हमदोनों का फेवरेट बन ही गया था तो वहीं खाने निकले । A one bhut फेमस होटल है समोसे के लिए तो वहीं पीछे टेबल पर हम अक्सर बैठ कर बाते करते हुए समोसे  खाते । बात चल रही थी बेस्ट फ्रेंड की.... मेरी तो दो फीमेल bff( प्रियंका , सुमन ) और दो मेल bff थे ( विशाल, अजय ) । सुमन मेरी कॉलेज फ्रेंड है और बाकी मेरे स्कूल फ्रेंड है । तो स्कूल में कैसी थी क्या क्या हॉबी थी यही सब बता रही थी सब बढ़िया था फिर मैंने उनसे उनकी बेस्ट फ्रेंड का पूछा मेल तक तो ठीक था थोड़ा बहुत । फीमेल में जब बात पहुंची तो दिमाग ही हिल गया । उनकी दो बेस्ट फ्रेंड रही है बचपन की ( पूनम , लतिका ) और संयोग से दोनों मेरी क्लास मेट रही है । और उनकी बेस्ट फ्रेंड थी और फिर जो उनकी तारीफ चालू हुई कि कॉल msg के साथ साथ काम कर लेती थी बहुत मानती थी केक कट नहीं करती थी मेरे बिना । लतिका तो बहुत करीब थी साथ खेले है ये वो । चुकी मैं उन्हें अच्छे से देखी थी तो सारे नेगेटिव सीन एक साथ याद आने लगे थे । एक नंबर की झूठी धोखेबाज पढ़ाई में गधी टाइप की लड़कियां थी । सत्या की जो छोटी छोटी नेगेटिव बाते इग्नोर करती थी अब वो पूरे रेड फ्लैग लग रहे थे । 

या तो ये इंसानों को या लड़कियों को पहचानते नहीं है या उनको ऐसी लड़कियां ही पसंद है । में उनके सामने देवी हु देवी । और ये केक वगैरा की बचकानी हरकते तो मुझे समझ ही नहीं आती । अकसर जहां ज्यादा अहमियत दिखाई जाती है वो लोग उतने साफ नहीं होते । या तो परिवार से भी उतना ही वैसा ही लगाव हो तो बात समझ आती है थोड़ी बहुत । फिर भी मुझे ये सब चोंचले लगते है । रिश्ते नियत से और सही एफर्ट से उम्र भर चलते है और सच्चे रहते है । भले बर्थडे पर विश करो न करो पर सालों बाद भी अगर कॉल msg करे तो कैसे हो क्या चल रहा है ये व्यावहारिकता न करनी पड़े । जो जैसा मन हो बोल सके वो है रियल फ्रैंडशिप । बाकी मैं इतने स्ट्रिक्ट फैमिली से हु के बाकी तौर तरीको से रिश्ते निभाए ही नहीं सकती ना समय दे सकती हु न खर्चा के सकती हु इसलिए इसे रिश्तों से इसे इंसान से दूर ही रहती हु। 

सत्या का तो ऐसा समझ आ रहा था कि उनको बस मैटीरियलिस्टिक चीजों से ही मतलब है रिश्ते की अहमियत शायद उसी से जज करते है अच्छे बुरे से मतलब नहीं है बस वो उनके लिए अच्छा हो उनके लिए खर्च करे और उनके लिए समय दे बस तो अच्छा है वरना नहीं। अब मुझे नफरत सी होने लगी है थोड़ी थोड़ी । 

मुझसे भी शायद यही एक्सपेक्ट कर रहे हो । मैं ऐसे लोगो से ही दूर भागती हु । मैं कंजूस नहीं हु पर पैसे की कदर है और उतना पैसा है भी नहीं । बात रही समय की तो समय तो मुझे मेरे लिए पर्सनल भी नहीं मिलता । हर घड़ी कोई न कोई सर के आस पास रहता बच्चे या मम्मी दीदी भाई कोई भी । और बाहर जाने के लिए भी ऐसा नहीं है दो घंटे में आती हु मम्मी फ्रेंड के यहां से ऐसा बोल के निकल जाऊ। जो मेरी bff ( प्रियंका , सुमन ) बस इनके नाम से ही निकलना होता है और इन्हें अच्छे से जानते है घर वाले । तो कोई बोले उससे पहले ही कट लो ।

मैं भाव खाने लगी थी और हर बात पर समय और पैसे की तंगी या चिड़चिड़ापन जाता देती थी। डायरेक्ट बोलते बनता नहीं तो डिस्टेंस बनाने का थी तरीका था।