✍️ "सन्नाटे की आवाज़" – एक बेरोज़गार युवा की अनसुनी दास्तान
✍️ "सन्नाटे की आवाज़" – एक बेरोज़गार युवा की अनसुनी दास्तान
कमरे में पंखा चल रहा था, लेकिन हवा में घुटन थी।
दोपहर के ढाई बजे का वक्त था, जब शहर की गलियाँ सुनी होती हैं और नींद भी किसी मजबूरी की तरह आती है। धीरे से अपनी किताबें उठाईं — वही किताबें, जिन्हें पढ़ते हुए उसने सोचा था कि एक दिन अफ़सर बनेगा, माँ को शॉल ओढ़ाएगा, पापा की मेहनत को आराम में बदलेगा।
लेकिन उन किताबों के पन्नों से अब सिर्फ़ धूल उड़ती थी, और सपनों से बुझे चेहरे का अक्स झलकता था।
🧑🎓 वो लड़का कौन था?
एक साधारण परिवार से था — पिता खेती करते थे, माँ गृहिणी। गांव के सरकारी स्कूल से पढ़ा, हर साल अव्वल आता। लोग कहते,
"बेटा हो तो ऐसा, एक दिन कलेक्टर बनेगा।"
कॉलेज में दाख़िला मिला, डिग्री हासिल की, फिर प्रतियोगिताओं की दौड़ शुरू हुई। लेकिन वो नहीं जानता था कि इस दौड़ में दौड़ने से ज़्यादा ज़रूरी होता है, 'पहचान' और 'पैसे' से टिकट लेना।वो
रात-रात भर पढ़ता, दिन में नौकरी की वेबसाइट खंगालता। फार्म भरने के लिए उधार लेता, और फिर महीनों तक एक रिज़ल्ट का इंतज़ार करता — जो या तो "pending" होता, या "not qualified"।
धीरे-धीरे उसके मोबाइल से हँसी गायब हो गई, स्टेटस बदल गया —
"Available for any opportunity."
📚 शिक्षा ने दिया क्या?
उसने जब 10वीं पास की थी, तब स्कूल के मास्टर ने कहा था —
"बस एक बार बोर्ड निकाल ले बेटा, आगे रास्ता खुला है।"
12वीं में टॉप किया, तो कहा गया —
"अब ग्रेजुएशन कर ले, फिर सरकारी नौकरी तेरे कदमों में होगी।"
जब ग्रेजुएशन किया, तो लोग बोले —
"अब तो कम्पटीशन दे, सरकार हज़ारों पद निकाल रही है!"
वो सारे रास्तों पर गया, लेकिन हर मोड़ पर बस अधूरी सूचना, ग़लत सलाह, और झूठे वादे मिले।
उसने महसूस किया कि हमारा शिक्षा तंत्र डिग्री तो देता है, पर दिशा नहीं।
वहाँ पढ़ाया जाता है सिर्फ़ पास होना, ना कि समझना या जीना।
किसी ने उससे कभी नहीं पूछा —
"तू क्या बनना चाहता है?"
हर कोई बस कहता गया —जो
सब कर रहे हैं, वो कर।"
👥 समाज की खामोशी और ताने
शुरू में लोग पूछते थे —
"कहाँ तक पहुँचा?"
फिर बोले —
"अब तो कुछ काम कर ले, ज़िंदगी यूं ही जाएगी?"
रिश्तेदारों ने देखना बंद कर दिया, दोस्त धीरे-धीरे व्यस्त हो गए।
जब पड़ोस का लड़का प्राइवेट कंपनी में लग गया, तो माँ से पूछा गया —
"आपका बेटा अभी क्या करता है?"
माँ ने झूठ बोल दिया —
"बड़ी तैयारी कर रहा है, बहुत मेहनती है!"
और वो लड़का... अंदर ही अंदर मरता रहा।
🏛️ सिस्टम की असलियत
उसने सरकारी भर्तियाँ देखीं — जिनमें सीटें कम और उम्मीदवार लाखों।
परीक्षाएं होतीं, पर रिज़ल्ट सालों तक अटका रहता।
कभी पेपर लीक, कभी फॉर्म रद्द, कभी कोटा सिस्टम, कभी भ्रष्टाचार।
वो देखता कि नेता भाषण देते हैं —
"युवाओं को रोज़गार देंगे!"
पर असलियत में बस चुनावी मौसम में पोस्टर छपते हैं, नौकरी नहीं।
वो जान गया था —
"इस देश में मेहनत करने से ज्यादा, किसी 'की पहचान' होना जरूरी है।"
🔁 लेकिन फिर...
एक दिन उसने दीवार पर लगी अपनी डिग्री को देखा।
वो कागज़ नहीं, ताने देती हुई चुप्पी बन चुकी थी।
उसने कुछ देर खुद को आईने में देखा —
थकी आंखें, बिखरे बाल, और खोया हुआ आत्मविश्वास।
लेकिन फिर वो मुस्कराया।
और बोला खुद से —
"मैं बस इंतज़ार कर रहा हूँ, लड़ना अभी बाकी है।"
उसने मोबाइल उठाया, यूट्यूब पर फ्री स्किल कोर्स खोला।
गूगल किया — “How to earn from home”
ब्लॉगिंग शुरू की, बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाना शुरू किया।
जो सीखा था, उसे सिखाना शुरू किया।
धीरे-धीरे, हर दिन वो खुद से एक कदम और करीब आ गया।
🌅 अंत नहीं, आगाज़
वो अब भी बेरोज़गार था — कागज़ों पर।
पर अब वो बेहतर इंसान था, सक्षम था, और आशावादी था।
अब जब कोई पूछता है —
"क्या करता है?"
तो वो मुस्कराता है और कहता है —
"मैं सीख रहा हूँ, मैं कर रहा हूँ... मैं चल रहा हूँ।"
🎯 क्या सीखा?
डिग्री सिर्फ़ प्रवेश टिकट है, असली खेल हुनर का है।
शिक्षा प्रणाली बदलनी चाहिए — रटने से सोचने की ओर।
राजनीति को जवाब तभी मिलेगा, जब युवा खुद को समझेंगे।
बेरोज़गारी एक रुकावट है, हार नहीं।
🔥 अंतिम शब्द:
"जो थक कर बैठ जाते हैं,
वो कभी नहीं जानते कि मंज़िल कितनी पास थी।
और जो चलते रहते हैं,
उनके लिए एक दिन सारा सिस्टम झुकता है।"
अगर ये कहानी आपको छू गई हो, तो इसे उन सभी युवाओं तक पहुँचाइए जो डिग्री के बाद दिशा की तलाश में हैं।
शायद एक लाइन ही किसी की हिम्मत बन जाए। 🔥😎💪💪
Thank you 🙏
Name Rizwan