“अगर इस धरती पर कोई ऐसी जगह है, जहाँ आत्माएँ करवटें बदलती हैं… तो वो यही है — पिठौरगढ़ का श्मशान घाट, जहाँ रूहें जलती नहीं, बस भटकती हैं।”
घना जंगल। सन्नाटा। एक टूटी-फूटी पगडंडी, जो एक सुनसान टीले की ओर जाती है। रात के साढ़े बारह बज रहे थे, और हल्की सी हवा भी अब सीटी जैसी आवाज़ करने लगी थी। उस टीले पर एक पुराना, जला हुआ आश्रम खड़ा था। दीवारों पर काले हाथों के निशान, और जगह-जगह राख के ढेर पड़े थे।
उस आश्रम का नाम था — "कपाल कुंडली आश्रम"।
यह जगह अब वीरान थी, पर पहले यहाँ तंत्र साधना हुआ करती थी। और वहीं रहा करता था एक नाम — तांत्रिक "भैरवनाथ", जिसे लोग "ख़ूनी तांत्रिक" कहते थे।
भैरवनाथ कोई सामान्य साधु नहीं था।
वह जीवन नहीं, मृत्यु का उपासक था।
वह मंत्र नहीं, मांसबलि से शक्ति प्राप्त करता था।
उसका शरीर ऊँचा, सिर गंजा, माथे पर उल्टा त्रिशूल, और पूरे शरीर पर काले-सिंदूर से लिखे श्लोक। उसकी आँखें जलती हुई लाल थी — जैसे भीतर कोई दहकती आत्मा हो।
उसने एक बार कहा था —
"मुझे मोक्ष नहीं, अमरता चाहिए… चाहे किसी भी कीमत पर।"
इसके लिए वह गाँव के बच्चों की बलि देता, जंगल में भटके लोगों को पकड़ता, और अपनी शक्ति बढ़ाता।
लोग डरते थे, पर कुछ उसे पूजते भी थे।
कहते हैं कि वह एक बार मृत भी हुआ, पर फिर उठ बैठा।
गाँव वालों ने अंत में उसके खिलाफ विद्रोह किया।
एक अमावस्या की रात, सबने मिलकर उसके आश्रम को आग के हवाले कर दिया।
वह जिंदा जल गया…
पर मरते समय उसने एक भयानक शाप दिया:
“मेरी मौत मेरी आत्मा को नहीं रोक सकेगी।
मैं लौटूँगा… और तब मौत भी काँपेगी।”
अब इस घटना को पूरे 20 साल बीत चुके थे।
गाँव में नए लोग बस चुके थे, पर पुराने लोग आज भी उस टीले की ओर देखने से डरते थे।
एक दिन, एक युवा फ़ोटोग्राफर नील और उसकी टीम डॉक्यूमेंट्री शूट के लिए गाँव आई।
वह ‘Haunted India’ नाम से वेब-सीरीज़ बना रहे थे।
उन्होंने सुन रखा था — “यहाँ एक शापित आश्रम है, जहाँ कैमरे अपने आप बंद हो जाते हैं, और ध्वनि रिकार्डर में कोई और आवाज़ें कैद हो जाती हैं।”
नील ने अपने दोस्तों — साक्षी, रेहान, और वरुण के साथ कैमरे लगाए।
जैसे ही रात बढ़ी, धुंध गहराने लगी।
• एक कैमरे में काली परछाई दिखी, पर वहाँ कोई नहीं था।
• रिकॉर्डर में किसी औरत के चीखने की आवाज़ आई, जबकि टीम में कोई औरत नहीं थी।
• एक पुराना, अधजला मटका खुद-ब-खुद हिलने लगा।
साक्षी ने डरते हुए कहा —
“ये जगह… हमें देख रही है।”
नील हँसा, “अरे ये सब Coincidence है।”
पर अगली सुबह, वरुण ग़ायब था…
🌘 पिछली रात…
वरुण के ग़ायब होने के बाद सुबह का सूरज भी डर के साए में निकला।
नील, साक्षी और रेहान उसे ढूंढते हुए आसपास के जंगल में गए। पर केवल एक चीज़ मिली — वरुण का कैमरा। उसका स्क्रीन टूटा हुआ था, और उस पर किसी ने खून से एक शब्द लिखा था:
"जागृत"
साक्षी काँपती आवाज़ में बोली, “ये तो संस्कृत का शब्द है न?”
रेहान बोला, “हाँ… मतलब होता है — जिसे जगा दिया गया हो…”
नील अब भी यकीन नहीं कर पा रहा था, “हो सकता है कोई हमें डराना चाह रहा हो।”
पर अगले ही पल कैमरे के बैकअप में रिकॉर्ड हुई एक फूटी-फूटी आवाज़ सुनाई दी:
> “मा… र… दो…”
(फिर एक ज़ोरदार चीख़… और सन्नाटा…)
तीनों वापस उस पुराने आश्रम की ओर गए जहाँ वरुण आख़िरी बार कैमरा लेकर गया था।
अब वहाँ की दीवारें पहले से ज़्यादा काली हो चुकी थीं, और हवा में एक अजीब गंध थी — जैसे जले हुए मांस और लोहे की।
दीवार पर अब खून से एक पूरा मंत्र लिखा था:
> “कपाल मंत्रेण रक्षामि,
मृत्युभैरवाय नमः।”
नील यह देखकर हैरान रह गया। यह मंत्र कहीं भी उनकी टीम ने नहीं लिखा था।
और अजीब बात — यह ताज़ा खून से लिखा गया था…
आश्रम के एक कोने में उन्हें एक लोहे की संदूक मिली — जली हुई, पर अभी भी बंद।
उसमें था — एक हस्तलिखित ग्रंथ, जिसमें तांत्रिक भैरवनाथ की साधनाओं का विवरण था।
कुछ मुख्य अंश:
"मैंने सात मानव बलियाँ दे दी हैं, आठवीं पूर्ण चक्र को जगा देगी…"
"अमावस्या को यदि मेरी आत्मा को शुद्ध रक्त मिले… मैं वापसी कर सकूँगा।"
"मेरा मृत शरीर खंडित नहीं, गुप्त समाधि में सुरक्षित है।"
रेहान पढ़ते-पढ़ते रुक गया, “इसका मतलब ये आत्मा मरी नहीं… बस सोई थी? और अब…”
नील बोला — “अब शायद जाग चुकी है।”
रात में तीनों ने एक पुराना कमरा चुना सोने के लिए। दरवाज़े बंद थे, कैमरे ऑन थे।
01:06 AM — कैमरे में दिखा:
कोई लंबा कद, उल्टा चलता हुआ, दीवारों पर चढ़ता, धीरे-धीरे साक्षी की ओर बढ़ता।
फिर अचानक कैमरा ब्लैक।
साक्षी की आँख खुली — लेकिन उसकी आँखें अब सामान्य नहीं थीं।
पुतलियाँ सफेद, मुँह से मंत्र बड़बड़ाना, और वो एक काली राख अपने चेहरे पर मल रही थी।
"कपाल कुंडलिनी... जागृत हो..." — साक्षी के मुँह से तांत्रिक की आवाज़ निकली।
नील और रेहान भागे, लेकिन कमरे का दरवाज़ा बंद।
रेहान चिल्लाया — “ये साक्षी नहीं है! इसके अंदर कुछ है!”
साक्षी — या अब कहें, भैरवनाथ की आत्मा, ज़ोर से हँसने लगी।
उसकी हँसी सीलिंग में गूँजती गई।
उसने दीवार पर खून से लिखा —
आठवीं बलि पूर्ण हो चुकी है।
“अब… मेरा शरीर चाहिए।”
ग्रंथ के एक हिस्से में था —
जहाँ चंद्र कभी नहीं चमकता, जहाँ नदियाँ उल्टी बहती हैं — वहाँ मेरा शरीर सुरक्षित है।
गाँव के एक बूढ़े साधू ने बताया —
“ये संकेत कालखोह गुफा की ओर हैं — जो गाँव से 2 किलोमीटर दूर है, जहाँ कोई अब तक लौटा नहीं।”
नील और रेहान ने तय किया — वे उस गुफा में जाएंगे, और तांत्रिक के शरीर को खोजकर पूर्ण मुक्ति देंगे… वरना ये आत्मा पूरी दुनिया के लिए ख़तरा बन जाएगी।
गुफा के दरवाज़े पर पहुँचते ही, ज़मीन काँपने लगी।
और गुफा के द्वार पर लिखा था:
"जो जागे हुए को जगाने आए… वे स्वयं अंधकार बन जाएँगे…
अब सब कुछ दाँव पर था…
गुफा का प्रवेश द्वार बहुत संकरा था।
चारों ओर दीवारों पर ताज़ा खून की लकीरें थीं — जैसे किसी को अंदर घसीटा गया हो।
जैसे ही नील और रेहान अंदर घुसे, हवा पूरी तरह थम गई।
एक अजीब-सी गंध… सड़ती मांस और धूपबत्ती की मिली-जुली।
कुछ दूर जाकर दोनों को मानव कंकाल दिखे। कुछ तो अभी भी गर्म थे — मतलब हाल ही में मरे थे।
नील काँपते हुए बोला,
“क्या ये साक्षी ने…?"
रेहान ने उसकी बात बीच में काटी,
"नहीं… ये भैरवनाथ की आत्मा का काम है।”
गुफा के बीचों-बीच एक गोल पत्थर का चबूतरा था — उस पर एक शव पड़ा था, काले कपड़ों में लिपटा हुआ, और माथे पर उल्टा त्रिशूल।
वही था — भैरवनाथ का शरीर।
उसके चारों ओर रखे थे आठ नरमुंड, और हर मुंड में एक नाम खुदा था।
आठवां नाम था — साक्षी।
नील चौंका, “इसका मतलब… साक्षी को बलि नहीं दी गई… उसका शरीर अब बलि देने वाला माध्यम है।”
रेहान बोला, “हमें इस शरीर को नष्ट करना होगा, तभी आत्मा मुक्त होगी।”
जैसे ही नील ने शरीर को छूने की कोशिश की —
पूरी गुफा हिल गई।
अंधेरे से एक आकृति निकली — लंबी, बिना चेहरा, और पूरी तरह राख से बनी हुई।
भैरवनाथ की आत्मा अब सामने थी।
उसने गुर्राते हुए कहा:
“मुझे जगाया गया है…
अब कोई मुझे रोक नहीं सकता…”
साक्षी की आवाज़ भी दूर गूँजी —
“नील… मुझे बचाओ…”
रहस्य का समाधान: कपाल मंत्र
नील को याद आया — ग्रंथ में एक मंत्र था जो आत्मा को वश में कर सकता था, पर उसके लिए सच्चे बलिदान की ज़रूरत थी।
रेहान ने बिना सोचे-समझे अपनी हथेली काटी और चबूतरे पर रक्त अर्पित किया।
नील ज़ोर से मंत्र बोला:
“कपालविनाशक मंत्रेण भैरवमुक्ति प्रयच्छ…”
गुफा दहक उठी। आत्मा चीखने लगी।
उसकी परछाई दीवारों से गिरने लगी, और राख उड़ने लगी।
पर भैरवनाथ की आत्मा जाने से पहले बोली:
“मेरा शरीर गया…
पर आत्मा अब साक्षी में है…
और वो मेरे साथ जाएगी।”
साक्षी के शरीर ने झटके लिए। उसकी आँखें वापस सफेद हो गईं।
नील दौड़ा और उसे पकड़ लिया।
उसने चिल्लाकर कहा —
“मैंने तुझे जगाया है, अब मैं ही तुझे हमेशा के लिए बंद करूँगा!”
उसने अपना ब्लड चाकू पर लगाया, और गले में पहन रखा राख का ताबीज साक्षी के मुँह में रख दिया।
जैसे ही मंत्र दोहराया गया —
एक ज़ोरदार विस्फोट हुआ।
गुफा की छत गिरने लगी।
अगली सुबह।
नील और साक्षी ज़मीन पर पड़े थे — बेहोश।
रेहान… नहीं था।
पास में एक खून से लथपथ पत्र पड़ा था, जिसमें लिखा था:
“मैंने बलिदान दिया… ताकि ये आत्मा दोबारा न लौटे…
तांत्रिक अब सच में गया है। — रेहान”
तीन महीने बाद।
नील और साक्षी वापस शहर लौट चुके थे।
एक टीवी इंटरव्यू के दौरान, साक्षी को पूछा गया —
"आपको कुछ याद है उस रात का?"
साक्षी हँसी और बोली —
“बस इतना याद है…
वो गुफा बहुत अंधेरी थी…”
कैमरा बंद हुआ, साक्षी ने अपने बालों में उंगली घुमाई, और नीचे देखा —
उसकी हथेली पर काले सिंदूर की लकीरें थीं…
और आँखें अचानक लाल चमक उठीं।
“कुछ आत्माएँ मारी नहीं जातीं…
वो बस एक नया शरीर खोजती हैं।”
तांत्रिक की आत्मा गई नहीं… बस साक्षी में समा गई।
रेहान ने बलिदान दिया, पर शायद सब कुछ समाप्त नहीं हुआ।
भविष्य में कहानी जारी रह सकती है — "तांत्रिक का पुनर्जन्म" के रूप में…