The wait... which is over in Hindi Love Stories by InkImagination books and stories PDF | इंतजार... जो पूरा हुआ

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इंतजार... जो पूरा हुआ

कहानी शीर्षक: इंतज़ार... जो पूरा हुआ
लेखिका: Inkimagination

प्रस्तावना:

यह कहानी एक ऐसी प्रेम कहानी है जो मासूमियत, ज़िम्मेदारी, दूरी और मिलन की परतों से होकर गुज़रती है। एक 17 साल की लड़की और एक 28 साल के परिपक्व ज़मींदार के बीच का रिश्ता, जो समाज की रूढ़ियों, पारिवारिक दबावों और अपने दिल की उलझनों के बीच पनपता है। यह कहानी सिर्फ़ प्रेम की नहीं, बल्कि विश्वास, धैर्य और एक-दूसरे के लिए किए गए इंतज़ार की है। आइए, चलें इस अनकहे प्रेम के सफ़र पर...


अध्याय 1: अनचाहा बंधनउसका नाम था आर्या। सSeventeen साल की, भोली-सी सूरत, बड़ी-बड़ी काली आँखें, जिनमें एक अनजानी चमक थी। उसके लंबे, घने बाल हवा में लहराते तो ऐसा लगता मानो बादल किसी चाँदनी रात को छूने की कोशिश कर रहे हों। मध्यमवर्गीय परिवार की इकलौती बेटी, जिसे उसके पिता श्रीकांत ने अपनी जान से ज़्यादा प्यार किया था। आर्या बारहवीं कक्षा में थी, और उसका सपना था डॉक्टर बनना—न सिर्फ़ अपने लिए, बल्कि अपने पिता की उन उम्मीदों के लिए, जो उन्होंने उसमें देखी थीं।लेकिन ज़िंदगी ने अचानक करवट ली। एक दिन श्रीकांत जी को सीने में तेज़ दर्द हुआ। अस्पताल की ठंडी दीवारों और मशीनों की बीप-बीप के बीच डॉक्टरों ने जो कहा, वह सुनकर आर्या का दिल बैठ गया। “उनके पास अब ज़्यादा समय नहीं है।”श्रीकांत जी का चेहरा पीला पड़ गया था, लेकिन उनकी आँखों में सिर्फ़ एक चिंता थी—आर्या। “मेरी बिटिया अकेली कैसे जिएगी?” यह सवाल उन्हें रात-रात जगा रहा था। उसी बेचैनी में, बिना आर्या से पूछे, उन्होंने उसकी शादी तय कर दी।लड़का था विराट सिंह। 28 साल का, 6 फुट का हट्टा-कट्टा, गेहुँआ रंग, गहरी आँखें और चेहरे पर एक ऐसी गंभीरता जो उसे उम्र से कहीं बड़ा दिखाती थी। वह गाँव का सबसे रुतबेदार ज़मींदार था। आसपास के गाँवों में उसका नाम डर और सम्मान से लिया जाता था। लेकिन जो उसे करीब से जानते थे, वे जानते थे कि उसका दिल सोने का था—शांत, समझदार और ज़िम्मेदारी का बोझ उठाए हुए।जब आर्या को शादी की बात पता चली, तो वह सन्न रह गई। “पापा, मैं अभी पढ़ना चाहती हूँ... शादी? अभी?” उसकी आवाज़ में गुस्सा, डर और मासूमियत का मिश्रण था। लेकिन श्रीकांत ने उसका हाथ थामकर कहा, “बेटी, विराट तुम्हें कभी दुख नहीं देगा। मुझे उस पर भरोसा है।”आर्या के पास और कोई चारा नहीं था। उसका दिल बगावत करना चाहता था, लेकिन पिता की हालत देखकर वह चुप हो गई।

अध्याय 2: एक नया घर, एक अनजान रिश्ताशादी सादगी से हुई। विराट के माता-पिता का निधन एक कार हादसे में हो चुका था। हवेली में सिर्फ़ उसके दादा-दादी थे, जिन्होंने आर्या का गर्मजोशी से स्वागत किया। वह हवेली किसी राजमहल से कम नहीं थी—ऊँची दीवारें, नक्काशीदार खंभे, और एक पुरानी सी खुशबू जो इतिहास को बयाँ करती थी।शादी की पहली रात। आर्या अपने कमरे में अकेली बैठी थी। लाल जोड़ों में सजी, मगर उसका चेहरा डर और संकोच से भरा था। वह सोच रही थी, “क्या होगा अब? क्या यह आदमी मुझे समझेगा? क्या मैं इस रिश्ते को निभा पाऊँगी?”तभी दरवाज़ा खुला। विराट अंदर आया। उसकी आँखों में एक अजीब-सी गहराई थी। उसने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा, “अब तक जाग रही हो? जाओ, कपड़े बदल लो और सो जाओ।”आर्या को लगा कि अब शायद वह अपना हक जताएगा, जैसा उसने अपनी सहेलियों से सुना था। लेकिन विराट ने ऐसा कुछ नहीं किया। वह खामोश रहा। जब आर्या बदलकर लौटी, तो उसने देखा कि विराट उसे देख रहा था, मगर उसकी नज़रों में कोई वासना नहीं, बल्कि एक अजीब-सी कोमलता थी।विराट ने कहा, “सो जाओ, मैं छत पर हूँ।” और वह चला गया।उस रात, छत पर खड़े विराट ने आसमान की ओर देखा। उसका मन भारी था। वह बुदबुदाया, “पापा, आपने मुझे इस बच्ची से क्यों बाँध दिया? मैंने यह शादी सिर्फ़ आपके वादे की वजह से की। लेकिन उसे देखकर... मेरा दिल डोल गया। वह इतनी मासूम है, इतनी नाज़ुक। मैं नहीं चाहता कि उसकी ज़िंदगी की आज़ादी छिन जाए। मैं इंतज़ार करूँगा... जब तक वह तैयार न हो।”

अध्याय 3: दूरी और बेचैनीविराट ने आर्या के सपनों को पंख देने का फैसला किया। उसने वादा किया कि वह उसे पढ़ने का पूरा मौका देगा। उसने रात-रात जागकर उसे पढ़ाया, उसकी हर छोटी-बड़ी ज़रूरत का ध्यान रखा। आर्या का सपना था डॉक्टर बनना, और विराट ने उसे शहर की सबसे अच्छी यूनिवर्सिटी में दाखिला दिलवाया। गाँववालों ने इसका विरोध किया—कहा कि “जवान बहू को घर में रहना चाहिए।” लेकिन विराट ने किसी की एक न सुनी।आर्या शहर चली गई। वहाँ उसने दिन-रात मेहनत की। लेकिन मन में एक टीस थी। विराट उससे कभी फोन पर बात नहीं करता था। वह उसकी दादी से फोन पर बात करती, और विराट चुपके से उसकी आवाज़ सुनता। उसे सुनकर सुकून मिलता कि आर्या ठीक है, मगर वह अपनी भावनाओं को दबाए रखता।आर्या को लगने लगा कि शायद विराट उसे पसंद नहीं करता। “वह मुझसे बात क्यों नहीं करते? क्या मैं उनके लिए बोझ हूँ?” यह सवाल उसे अंदर ही अंदर खाए जा रहा था। लेकिन उसे क्या पता था कि विराट हर रात उसकी तस्वीर को देखता, उसकी पढ़ाई की खबर लेता, मगर दूर रहता—ताकि वह अपनी ज़िंदगी जी सके, बिना किसी दबाव के।

अध्याय 4: पाँच साल का इंतज़ार पाँच साल बीत गए। आर्या अब डॉक्टर बन चुकी थी। कॉलेज में उसने किसी लड़के से दिल की बात नहीं की। उसका दिल सिर्फ़ विराट के लिए धड़कता था, मगर उसे यकीन नहीं था कि विराट भी ऐसा ही महसूस करता है।आखिरकार, वह दिन आया। आर्या को लेने खुद विराट आया। गाड़ी हवेली के बाहर रुकी। वही हवेली, जहाँ वह पाँच साल पहले एक कच्ची उम्र में आई थी। आज वह एक नई पहचान के साथ लौटी थी। उसकी आँखें नम थीं, दिल में सवालों का तूफान।दादी ने उसे गले लगाया, नज़र उतारी। आर्या अंदर चली गई, मगर उसका मन बेचैन था।

अध्याय 5: दिल की बातशाम को आर्या छत पर अकेली थी, तारों भरे आसमान को निहार रही थी। तभी विराट की आवाज़ आई, “क्या देख रही हो?”आर्या पलटी। उसकी आँखों में आँसू थे। “आप मुझसे प्यार नहीं करते... फिर मुझसे शादी क्यों की?” उसकी आवाज़ में दर्द था।विराट सन्न रह गया। उसने आर्या को अपनी बाँहों में भर लिया। “तुम्हें ऐसा क्यों लगता है कि मैं तुमसे प्यार नहीं करता?”“क्योंकि आपने पाँच साल तक मुझसे बात नहीं की... मिलने तक नहीं आए,” वह मासूम बच्ची की तरह शिकायत कर रही थी।विराट ने उसकी आँखों में देखा। “मुझे डर था, आर्या। डर था कि मैं तुम्हारी आज़ादी छीन लूँगा। मैंने तुमसे बचपन से प्यार किया है। लेकिन मैं चाहता था कि तुम पहले अपने सपने पूरे करो, अपने फैसले खुद लो।”उसने आर्या के माथे पर हल्का-सा चुंबन लिया। आर्या शर्मा गई। विराट मुस्कुराया, “अभी भी बड़ी नहीं हुई... मेरे छूने से काँप रही हो।”आर्या ने चुपके से उसकी ओर देखा, पलकें झुका लीं। मानो उसने सब कुछ कह दिया हो।विराट ने उसे अपने कमरे में ले जाकर उसके होठों को छुआ। उस रात उन्होंने एक-दूसरे में खो जाने का सफ़र जिया—बिना दर्द, बिना जबर्दस्ती, सिर्फ़ प्यार और इंतज़ार का मुकम्मल होना।

अध्याय 6: नया सवेरासुबह की किरणें कमरे में आईं। विराट ने अपनी बाँहों में सोई हुई आर्या को देखा। उसने मुस्कुराते हुए फुसफुसाया, “पाँच साल इंतज़ार किया... ताकि तुम बड़ी हो जाओ। और आज, तुम सिर्फ़ मेरी हो।”उसके चेहरे पर एक सुकून भरी मुस्कान थी। आर्या ने उसकी बाँहों में सिमटते हुए कहा, “और तुम हमेशा से मेरे थे।”

समाप्त।


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