Tere ishq mi ho jau fana - 37 in Hindi Love Stories by Sunita books and stories PDF | तेरे इश्क में हो जाऊं फना - 37

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तेरे इश्क में हो जाऊं फना - 37

अधूरे पागलपन की कहानी

दानिश अपनी कुर्सी पर गहरे धँसा हुआ था, उसकी उंगलियाँ टेबल पर बेतहाशा चल रही थीं। उसकी आँखें लाल हो चुकी थीं, जैसे कई रातों की नींद छीन ली हो किसी अनदेखे ख्याल ने। सामने स्क्रीन पर समीरा की तस्वीर टिकी हुई थी—एक मुस्कान, जो उसे भीतर तक झंझोर रही थी।

उसने धीमी आवाज़ में फुसफुसाया, "तुम मेरी हो, समीरा... हमेशा से मेरी ही थी।"

उसके शब्दों में एक अजीब सी मिठास थी, मगर वह मिठास धीरे-धीरे पिघलकर कुछ और बनती जा रही थी—एक जुनून, एक पागलपन, एक दावा जिसे तोड़ा नहीं जा सकता था।

वह उठा और केबिन में चहल-कदमी करने लगा। उसकी हर सांस जैसे किसी न किसी याद को खींचकर बाहर ला रही थी।

"तुम्हारी हँसी, समीरा... मैं जानता हूँ, वो सिर्फ मेरे लिए थी। मैं देख सकता था तुम्हारी आँखों में वो खास चमक, जब मैं तुम्हारे पास होता था। मगर तुमने कभी कहा नहीं... क्यों नहीं कहा?"

उसका चेहरा एक पल के लिए शांत हुआ, मगर फिर जैसे ही उसने अपने फोन की स्क्रीन पर किसी अनजान नंबर से आए मैसेज देखे, उसका चेहरा सख्त हो गया।

"अगर कोई और तुम्हारे करीब आने की कोशिश कर रहा है तो? अगर कोई और तुम्हारे दिल में घर बना रहा है?"

उसने तेजी से स्क्रीन को स्क्रॉल किया, लेकिन कोई ऐसा मैसेज नहीं था जिससे उसे शक होता। फिर भी, शक तो वहीं था—उसके दिल के सबसे अंधेरे कोने में बैठा हुआ, धीरे-धीरे उसकी सोच को ज़हर में बदलता हुआ।

"नहीं... नहीं! तुम मेरी हो, सिर्फ मेरी। और कोई तुम्हें मुझसे छीन नहीं सकता। मैं ऐसा होने ही नहीं दूँगा!"

उसने झटके से फोन टेबल पर रखा और दोनों हाथों से अपना सिर थाम लिया। उसकी सांसें तेज़ हो रही थीं, धड़कनें बेकाबू।

"क्या तुम समझती नहीं, समीरा? मैं तुम्हें किसी और की बाहों में नहीं देख सकता। मैं तुम्हारी हर बात, हर हँसी, हर सांस को सिर्फ अपना बनाना चाहता हूँ।"

वह फिर से उठकर शीशे के सामने जा खड़ा हुआ। अपनी आँखों में झाँका—उनमें अब प्यार नहीं था, सिर्फ अधिकार की भूख थी।

"क्या होगा अगर तुम मुझे न चुनो? क्या होगा अगर तुम किसी और को हाँ कह दो?"

उसके अंदर कुछ टूटा। उसने जोर से शीशे पर मुक्का मारा।

"नामुमकिन! मैं ऐसा होने नहीं दूँगा। मैं तुम्हें खो नहीं सकता, समीरा।"

उसके होंठों पर एक अजीब-सी मुस्कान आई, जैसे कोई खतरनाक ख्याल उसके ज़ेहन में जगह बना रहा हो।

"शायद तुम्हें अहसास ही नहीं कि मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकता हूँ... क्या हद तक जा सकता हूँ।"

वह धीरे-धीरे अपनी कुर्सी पर वापस बैठा। उसकी उंगलियाँ अब मोबाइल स्क्रीन पर चलने लगीं। समीरा की तस्वीर पर एक आखिरी नज़र डालते हुए उसने फुसफुसाया,

"तुम मुझे चाहो या न चाहो, लेकिन मैं तुम्हें पाना चाहता हूँ। और जो मैं चाहता हूँ... वो मुझे मिलकर ही रहता है।"

उसकी उंगलियाँ अब किसी नंबर को डायल कर रही थीं। वह हल्के-से मुस्कुराया और खुद से कहा,

"अब बस, इंतजार खत्म।"

काॅफी कैफे, 

समीरा ने हल्की ठंड से बचने के लिए अपनी जैकेट को थोड़ा और कस लिया। वह कॉफी कैफे के दरवाजे को हल्के से धकेलकर अंदर दाखिल हुई। गर्मागर्म कॉफी की खुशबू ने उसका स्वागत किया, और कुछ देर के लिए उसने अपनी उलझनों को पीछे छोड़ने की कोशिश की।

"एक कैपुचिनो, बिना ज्यादा शुगर," उसने काउंटर पर खड़े आदमी  से कहा।

कैफे की हल्की-फुल्की गुनगुनाहट और धीमी संगीत ने उसे कुछ राहत दी। वह कोने की खिड़की के पास जाकर बैठ गई, जहाँ से बाहर हल्की बारिश गिरती दिख रही थी। उसे बारिश पसंद थी, मगर आज मन बेचैन था। उसके दिमाग में दानिश के बारे में कई ख्याल उमड़ रहे थे।

"क्यों लगता है कि वो कहीं न कहीं आसपास ही है?" उसने खुद से बुदबुदाया।

और जैसे ही उसने यह सोचा, दरवाजे की घंटी बजी और कोई अंदर आया। समीरा ने अनजाने में उधर देखा—वो दानिश था।

वह सीधा अंदर आया, जैकेट को झाड़ते हुए। उसकी निगाहें भीड़ में किसी को तलाश रही थीं, और जब उसकी नजर समीरा पर पड़ी, तो एक हल्की मुस्कान उसके चेहरे पर उभर आई। समीरा का दिल अचानक तेज़ धड़कने लगा।

 दानिश बिना किसी हिचकिचाहट के उसके टेबल की ओर बढ़ा।

समीरा ने एक पल के लिए सोचा कि उसे कुछ कहकर रोकना चाहिए, मगर तब तक दानिश सामने वाली कुर्सी खींचकर बैठ चुका था।

"यह तो बहुत अच्छा इत्तेफाक हुआ," उसने सहजता से कहा, "तुम अकेली हो?"

समीरा ने हल्की-सी मुस्कान दी, लेकिन उसकी आँखों में एक अनकहा तनाव झलक रहा था।

"हाँ, बस कुछ देर के लिए आई थी," उसने जवाब दिया, "तुम यहाँ कैसे?"

"बस, यूँ ही... सोचा, कॉफी पी लूँ," दानिश ने मुस्कुराते हुए कहा। उसकी आँखों में वही पुरानी पहचान थी—गहरी, तलाशती हुई और शायद कुछ ज्यादा ही अधिकार जताती हुई।

वेटर ने आकर उसका ऑर्डर लिया—ब्लैक कॉफी, बिना शक्कर।

"तुम्हें  भी बिना शक्कर वाली कॉफी पसंद है?" समीरा ने सहज रूप से पूछा।

"और तुम्हें  भी ज्यादा शुगर पसंद नहीं?" दानिश ने जवाब दिया।

दोनों कुछ सेकंड तक एक-दूसरे को देखते रहे, फिर हल्के से मुस्कुराए। एक एहसास हवा में तैरने लगा।

"तो, कैसी चल रही ज़िंदगी?" दानिश ने अपना कप उठाते हुए पूछा।

समीरा ने हल्के से सिर हिलाया। "ठीक ही है। पढाई में बिजी रहती हूँ।"

"और प्यार?"

समीरा ने एक पल के लिए दानिश को देखा, 

"मेरा मतलब है," दानिश ने जल्दी से सफाई दी, "कोई है तुम्हारी ज़िंदगी में?"

समीरा को महसूस हुआ कि दानिश की आवाज़ में कुछ अलग था—एक अदृश्य तनाव, एक उम्मीद, या शायद एक दावा।

"मैंने इसके बारे में ज्यादा सोचा नहीं," उसने धीरे से कहा, "फिलहाल मेरा फोकस कुछ और चीजों पर है।"

दानिश ने गहरी सांस ली और मुस्कुराया। "तुम हमेशा से ऐसी ही हो, अपनी दुनिया में खोई हुई। मगर कभी-कभी दिल की सुननी चाहिए, समीरा।"

समीरा को एहसास हुआ कि बात एक अनजाने मोड़ की ओर बढ़ रही है। उसने खुद को संभाला।

समीरा चुप हो गई। उसे दानिश की बातें अजीब लग रही थीं, जैसे वो किसी छिपे हुए संदेश को समझाने की कोशिश कर रहा हो।

"मैं बस यही कहना चाहता हूँ," दानिश ने उसकी आँखों में झांकते हुए कहा, "कुछ चीजें कभी नहीं बदलतीं। जैसे  अहसास, 

समीरा ने अपनी उंगलियाँ कॉफी कप के किनारे पर टिका दीं।

दानिश कुछ पल चुप रहा। फिर हल्की मुस्कान के साथ बोला,समीरा का दिल तेजी से धड़कने लगा। उसने खुद को शांत रखा।

दानिश की मुस्कान हल्की पड़ गई।समीरा ने उसकी आँखों में देखा, दानिश ने कुछ पल उसकी आँखों में देखा, फिर एक लंबी सांस ली।