वह अपने हाथों को आपस में मसलने लगी। एक अजीब-सी घबराहट उसके भीतर पनप रही थी।
मगर उस घबराहट के पीछे एक हल्की-सी खुशी भी थी। एक एहसास, जिसे वह नकारना चाहती थी, मगर जो उसके दिल की धड़कनों में धीरे-धीरे अपना घर बना रहा था।
(कुछ घंटे बाद)
समीरा खामोश बैठी थी, अब भी अपने मन की उलझनों में उलझी हुई। मगर तभी, दरवाजे पर दस्तक हुई।
"कौन हो सकता है इस वक्त?"
उसने धीरे से उठकर दरवाजा खोला, और जैसे ही दरवाजा खुला, उसकी साँसें अटक गईं।
सामने दानिश खड़ा था।
हल्की बारिश में उसका चेहरा थोड़ा गीला था, बाल थोड़े बिखरे हुए थे। उसकी आँखों में वही गहरी, तलाशती हुई नजरें थीं, जो हमेशा समीरा को असहज कर देती थीं।
"तुम... तुम यहाँ?" समीरा ने हकलाते हुए पूछा।
दानिश ने हल्की मुस्कान दी। "हाँ, सोचा तुमसे मिल लूँ। तुम्हारा मैसेज नहीं आया तो लगा, शायद तुम भी यही सोच रही हो जो मैं सोच रहा हूँ।"
समीरा का दिल जोर से धड़क उठा।
"क्या मतलब?" उसने धीमी आवाज़ में कहा।
दानिश एक कदम आगे बढ़ा। "मतलब, तुम मुझसे दूर नहीं जाना चाहती। और मैं तुम्हें दूर जाने भी नहीं देना चाहता।"
समीरा को लगा जैसे उसके पैरों तले ज़मीन खिसक रही हो।
"दानिश, यह... यह सब इतना आसान नहीं है," उसने खुद को संभालते हुए कहा।
"मगर कुछ एहसास आसान होते भी नहीं," दानिश ने धीरे से कहा, "और समीरा, तुम यह मत सोचो कि तुम अकेली हो जो यह सब महसूस कर रही हो। मैं भी... मैं भी तुम्हें खोना नहीं चाहता।"
समीरा का दिमाग सुन्न पड़ गया।
"क्या यह प्यार है? या बस कोई मोह? या फिर..."
उसने अपनी आँखें झुका लीं, मगर उसके दिल की धड़कनें तेज़ होती गईं।
दानिश ने एक कदम और आगे बढ़ाया, और हल्की फुसफुसाहट में कहा,
"समीरा, क्या हम इस अधूरे एहसास को मुकम्मल कर सकते हैं?"
कमरे में एक पल के लिए खामोशी छा गई। बाहर बारिश तेज़ हो गई थी, मगर अंदर समीरा का दिल और तेज़ी से धड़क रहा था।
उसके पास अब दो रास्ते थे—या तो वह इस एहसास को नकार दे, या फिर...
या फिर वह इस पागलपन को गले लगा ले।
तभी अचानक ही वो घूम गई, फिर सब कुछ शांत सा हो गया उसे अजीब लगा वो वापस पल्टी त़ देखा कि दानिश वहां नहीं था | शायद वो समीरा का सिर्फ वहम था |
अधूरे एहसास की दहलीज़ पर
समीरा घबराकर पलटी, लेकिन वहाँ कोई नहीं था। कमरे में वही पुरानी खामोशी पसरी हुई थी, और खिड़की के बाहर बारिश अब भी गिर रही थी। उसे एक अजीब-सा अहसास हुआ, मानो अभी-अभी कोई उसकी ज़िन्दगी में दाखिल हुआ था और अचानक ही ओझल हो गया।
"क्या यह सब मेरा वहम था?" उसने खुद से पूछा।
वह धीरे-धीरे जाकर अपनी स्टडी टेबल के पास बैठ गई। उसकी किताबें खुली हुई थीं, नोट्स बिखरे हुए थे, लेकिन उसका मन वहाँ नहीं था। दानिश की आँखें, उसकी बातें, उसका पास आना—ये सब कुछ जैसे अब भी उसके आसपास घूम रहा था।
"मुझे यह सब नहीं सोचना चाहिए," उसने खुद को समझाने की कोशिश की।
मन की जद्दोजहद
लेकिन क्या सच में यह इतना आसान था?
पिछले कुछ दिनों से दानिश उसके ज़ेहन में बस चुका था। वह जानती थी कि यह महज़ एक अजनबी नहीं था। इसमें कुछ और था—एक अजीब-सा खिंचाव, एक नज़दीकी जो उसे बेचैन कर देती थी।
लेकिन क्या यह प्यार था? या सिर्फ़ एक मोह, जो कुछ समय बाद धुंधला पड़ जाता?
"नहीं, समीरा!" उसने ज़ोर से कहा, जैसे खुद को झिंझोड़ रही हो।
"मुझे इन सब चीज़ों से बाहर निकलना होगा। मुझे अपनी पढ़ाई पर ध्यान देना होगा। प्यार-व्यार जैसी चीज़ों से कुछ हासिल नहीं होता।"
उसने अपनी किताब उठाई और पढ़ने की कोशिश की, लेकिन शब्द धुंधले होने लगे। दानिश के शब्द अब भी उसके कानों में गूँज रहे थे—
"तुम यह मत सोचो कि तुम अकेली हो जो यह सब महसूस कर रही हो। मैं भी... मैं भी तुम्हें खोना नहीं चाहता।"
समीरा ने गहरी सांस ली। "मुझे खुद को संभालना होगा। मैं अपने सपनों से भटक नहीं सकती।"
खुद से एक नई जंग
कई दिनों तक समीरा ने खुद को किताबों में डुबो दिया। वह सुबह जल्दी उठती, देर रात तक पढ़ाई करती, और जब भी दानिश का ख्याल आता, वह अपने दिमाग को झटक देती।
"पढ़ाई मेरे लिए सबसे ज़रूरी है।" वह बार-बार खुद से कहती।
लेकिन दिल के भावनाएँ इतनी आसानी से कहाँ काबू में आती हैं?
एक दिन, लाइब्रेरी में बैठी हुई समीरा ने खुद को खोया हुआ पाया। उसकी आँखें किताबों पर थीं, लेकिन उसका मन कहीं और।
"क्यों?" उसने खुद से सवाल किया। "क्यों मैं इस एहसास को नकारने की इतनी कोशिश कर रही हूँ?"
क्या वह सच में दानिश को पसंद करने लगी थी?
या यह सिर्फ़ एक डर था—कहीं ऐसा ना हो कि वह अपने सपनों से भटक जाए?
ऑफिस का माहौल और रिटा की मस्ती
दानिश अपने ऑफिस में, बड़े से केबिन में बैठा था। उसके चेहरे पर वही ठंडा और गंभीर भाव था, जो हर समय उसके व्यक्तित्व का हिस्सा बन चुका था। उसकी उंगलियाँ कीबोर्ड पर चल रही थीं, जब अचानक दरवाजे की हल्की सी चरमराहट सुनाई दी।
"मुझे पता था कि तुम यहीं होगे, डार्लिंग," रिटा की चंचल आवाज़ हवा में घुल गई।
दानिश ने सिर उठाकर देखा। रिटा दरवाजे के पास खड़ी थी, उसकी आँखों में वही पुरानी शरारत थी, जो दानिश को अब बिल्कुल भी भाती नहीं थी।
"तुम्हें यहाँ नहीं आना चाहिए था," दानिश ने ठंडे स्वर में कहा, अपनी नज़रें फिर से स्क्रीन पर टिकाते हुए।
"ओह, आह!" रिटा ने नाटकीय अंदाज में कहा, "तो अब तुम मुझसे ऐसे बात करोगे? ऑफिस का माहौल तुम्हें बहुत सख्त बना देता है, हनी!"
वो नज़ाकत से चलती हुई उसके डेस्क के पास आ गई। उसकी ऊँची हील्स की हल्की आवाज़ पूरे केबिन में गूंज रही थी।
"रिटा, मैं काम कर रहा हूँ," दानिश ने बिना उसकी ओर देखे कहा।
लेकिन रिटा को तो जैसे उसकी बेरुख़ी से कोई फर्क ही नहीं पड़ता था। उसने धीरे से अपना हाथ बढ़ाया और दानिश की टाई के साथ खेलने लगी। उसकी उंगलियाँ रेशमी कपड़े पर हल्के से फिसलीं, फिर उसने मुस्कुराकर कहा,
"तुम्हें पता है, ये टाई तुम्हारे गले पर कितनी खूबसूरत लगती है?"
दानिश ने एक गहरी सांस ली और अपना सिर पीछे टिका लिया। "रिटा, ये मत करो," उसकी आवाज़ में अब भी वही कठोरता थी।
"क्या?" रिटा ने नकली मासूमियत से कहा, "मैं तो बस तुम्हारे करीब आना चाहती हूँ।"