मीरा को जानवर कभी पसंद नहीं थे। सच कहो तो, उसे उनसे नफरत ही थी।
बचपन में एक बार वो पूरे एक घंटे तक चिल्लाती रही थी क्योंकि एक पप्पी ने उसके पैर को चाट लिया था। स्कूल में भी उसने बायोलॉजी की क्लासेस से दूरी बना ली थी क्योंकि मरे हुए मेंढक और दूसरे जानवरों से उसे घिन आती थी।
अब भी, बीस साल की उम्र में, अपने भीड़भाड़ वाले कॉलेज हॉस्टल में रहते हुए, मीरा का यही मानना था कि जानवर सिर्फ टीवी या किताबों में ही अच्छे लगते हैं। कुत्ते बेवजह भौंकते रहते हैं, बिल्लियां ऐसे घूरती हैं जैसे छोटी-छोटी जजमेंटल आंटी हों, गायें सड़कों पर रास्ता रोक लेती हैं, और पंछी तो हर जगह गंदगी फैलाते हैं।
अगर कोई उससे पूछ ले कि उसका पसंदीदा जानवर कौन सा है, तो मीरा नाक सिकोड़ते हुए कहती, “पसंदीदा? मुझे तो सारे बराबर नापसंद हैं।” उसके हिसाब से, जिंदगी पहले ही असाइनमेंट्स, गंदे रूममेट्स और हॉस्टल के खराब पाइपलाइन जैसे झंझटों का सर्कस थी – उसे उसमें भौंकते, म्याऊं करते या पंख फड़फड़ाते जीवों की कोई जरूरत नहीं थी।
लेकिन किस्मत को भी अजीब सा मज़ाक सूझा था।
एक दोपहर, जब मीरा हॉस्टल की छत पर अपनी धुला हुआ कुर्ता लोहे की जंग लगी तार पर टांग रही थी, उसकी नजर पानी की टंकी के पास पड़े एक भूरे से गुच्छे पर पड़ी।
उसने आंखें मिचमिचाईं, सोचते हुए कि शायद कोई कुचला हुआ पेपर बैग होगा। पर उसकी किस्मत इतनी अच्छी कहां। वो एक कबूतर था – अपनी करवट पर गिरा हुआ, एक पंख बेतहाशा फड़फड़ा रहा था।
“वाह, बढ़िया,” उसने धीरे से बड़बड़ाया।
उसकी छोटी-छोटी आंखें डर के मारे इधर-उधर देख रही थीं। वो खड़ा होने की कोशिश कर रहा था, लेकिन हर बार ऐसे गिर जाता जैसे कोई नशे में चूर चाचा शादी में लड़खड़ा जाए। एक पल के लिए मीरा ने सोचा कि उसे अनदेखा कर दे। आखिर उसे परिंदों से सख्त नफरत थी। लेकिन जब कबूतर ने दुख से गुटरगूं की, तो उसके दिल में अजीब सा दर्द हुआ।
“उफ्फ, आज ही क्यों?” उसने आसमान की तरफ देखते हुए कराहा, जैसे इस सबका इल्जाम भगवान पर लगा रही हो।
मीरा कबूतर को देखती रही, चुपचाप दुआ करती रही – प्लीज़, उड़ जा। बस उठ और यहां से चला जा। हम दोनों को इस झंझट से बचा ले।
लेकिन वो बस बेबस होकर पंख फड़फड़ाता रहा, और उसके पंख के नीचे गहरा सा घाव दिख गया। मीरा का मुंह बन गया। कमाल है। सिर्फ हल्की चोट नहीं – पूरी तरह जख्मी था।
उसने जब सोचा कि खून, बैक्टीरिया और पंख उसके हाथों से चिपकेंगे तो उसका पेट मचल गया। “मेरे ही साथ क्यों?” उसने धीरे से किसी को न सुनाई देने वाली आवाज़ में कहा।
वो चाहती तो वहां से चली जाती। जैसे कुछ देखा ही नहीं। लेकिन उसकी उदास आंखें लगातार उसे देख रही थीं, जैसे कह रही हों कि वही उसकी आखिरी उम्मीद है।
मीरा ने नाटकीय अंदाज में कराहते हुए कहा, “ठीक है। लेकिन अगर तूने मुझ पर पॉटी कर दी ना, तो कसम से हम दोनों इसी छत से कूद जाएंगे।”
एक ठान के साथ, मीरा तेजी से नीचे अपने कमरे की ओर भागी, अलमारी खोली और अपना पुराना स्टील का टिफिन बॉक्स निकाल लिया।
वो वापस छत पर ऐसे दौड़ती हुई पहुंची जैसे कोई मैराथन जीत कर आई हो।
एक हाथ में टिफिन पकड़े हुए, उसने अपनी नोटबुक से जल्दी-जल्दी कुछ पन्ने फाड़े और उन्हें टिफिन के अंदर बिछा दिया।
एक कांपती हुई सांस लेकर, मीरा कबूतर की तरफ बढ़ी, टिफिन ऐसे आगे किया जैसे कोई सांप पकड़ने जा रही हो।
कबूतर ने हल्के से पंख फड़फड़ाए, और मीरा की लगभग चीख ही निकल गई। वो झटके से पीछे हटी। “शांत रह, पंखों वाले शैतान,” उसने दांत भींचते हुए फुसफुसाया।
कुछ घबराए हुए कोशिशों के बाद आखिरकार उसने उसे टिफिन में डाल ही दिया। उसे ऐसा लगा जैसे किसी बम को डिफ्यूज़ कर दिया हो।
अब कबूतर टिफिन से उसे घूर रहा था। मीरा ने जल्दी से अपना फोन निकाला और पागलों की तरह गूगल किया – “injured pigeon ko kahan le jaye near me.” ढेरों अजीब लिंक आ गए, जिनमें एक तो कबूतरों की ज्योतिष विद्या पर था।
आखिरकार उसे एक क्लिनिक का नाम नहीं दिखा: डॉ. नैना वर्मा – एवियन स्पेशलिस्ट।
मीरा ने राहत की सांस ली। शुक्र है कोई तो इन जीवों से निपटता है। उसने अपना दुपट्टा उठाया और बड़बड़ाई, “भगवान करे ये डॉक्टर तुझे ठीक कर दे ताकि मैं फिर से अपनी कबूतर-फ्री जिंदगी जी सकूं।”
क्लिनिक तक पहुंचने में उसे करीब बीस मिनट, दो ऑटो और ढेर सारी जजमेंटल निगाहें झेलनी पड़ीं – आखिर कौन टिफिन बॉक्स में कबूतर लेकर घूमता है।
मीरा ने क्लिनिक का दरवाज़ा खोला, ऊपर लगी छोटी सी घंटी बज उठी। उसे लगा था अंदर कोई बूढ़ा, चिड़चिड़ा डॉक्टर मिलेगा। लेकिन काउंटर के पीछे एक जवान लड़की खड़ी थी, हल्के नीले कोट में, जो अपने बालों को साफ-सुथरे जूड़े में बांध रही थी।
एक पल के लिए मीरा कबूतर को पूरी तरह भूल ही गई। डॉक्टर इतनी शांत लग रही थी, उसकी आंखों में नरमी थी, जैसे ही उसने एक डरे हुए लड़के को उसकी बिल्ली के साथ देखा तो मुस्कुरा दी।
मीरा ने पलकें झपकाईं, उसका दिल हल्का सा अजीब ढंग से धड़का। कमाल है, उसने सोचा, जैसे आज का दिन और ज्यादा उलझा होना बाकी था।
नैना ने काउंटर के उस पार से मीरा की ओर देखा, उसकी शांत नजरें मीरा की घबराई हुई आंखों से मिलीं।
“हाय,” नैना ने धीमे से कहा, मीरा की तरफ गर्मजोशी से मुस्कुराते हुए, और उसके हाथ से टिफिन बॉक्स ले लिया। उसकी आवाज सुनकर मीरा को एक अजीब सा एहसास हुआ, जिसे वो खुद भी नहीं समझ पाई।
“तो आज हमारे पास कौन मेहमान आया है?” नैना ने टिफिन में झांकते हुए पूछा।
“उम… ये एक घायल कबूतर है। मुझे हॉस्टल की छत पर मिला,” मीरा ने धीमे से कहा।
फिर उससे पहले कि उसका दिमाग उसे रोक पाता, उसके मुंह से निकल गया, “मुझे जानवर ज्यादा पसंद नहीं… खासकर परिंदे। ये… ये मुझे डराते हैं।”
नैना थोड़ी देर के लिए रुकी, फिर हल्की सी मुस्कान के साथ उसकी तरफ देखा, जैसे उसकी बात सुनकर उसे हल्की सी हंसी आ गई हो। मीरा को समझ नहीं आया वो कहां देखे।
नैना ने धीरे से कबूतर को टिफिन से निकाला, बड़े आराम और तजुर्बे से उसके पंख को देखा।
बिना ऊपर देखे उसने नरमी से कहा, “जानवरों से सिर्फ इसलिए नापसंद करना ठीक नहीं क्योंकि तुम उन्हें समझ नहीं पाती हो।”
मीरा कुछ कहने ही वाली थी, लेकिन फिर चुप हो गई।
तभी नैना ने उसकी तरफ देखा, उसकी मुस्कान में हल्की सी गर्माहट थी। “लेकिन… अच्छा किया जो तुमने इसे अकेला नहीं छोड़ा। ये बहुत अच्छा काम था।”
नैना की तारीफ सुनकर मीरा के दिल में हल्की सी गर्माहट सी महसूस हुई। उसने तुरंत नजरें फेर लीं और ऐसे करने लगी जैसे क्लिनिक की दीवारों पर लगे पोस्टर पढ़ रही हो। उसका गला सूख गया, चेहरा गर्म होने लगा। “मेरा मतलब… वो बहुत बेबस लग रहा था। उसे वहीं मरने नहीं दे सकती थी,” उसने बुदबुदाते हुए कहा, नजरें अपने जूतों पर टिकाए हुए।
नैना हल्का सा हंसी, उसकी हंसी में एक सुकून भरी नरमी थी। “अच्छा किया तुमने,” उसने कहा और फिर पूरा ध्यान कबूतर पर लगा दिया।
मीरा चुपचाप उसे देखती रही, जैसे नजरे हटा ही नहीं पा रही थी। नैना बहुत ही सलीके से उसके घाव को साफ कर रही थी, धीरे-धीरे कुछ शांत करने वाले शब्द भी कह रही थी। उसके हर मूवमेंट में एक खास सी तसल्ली थी – हर छूने में नर्मी, हर काम में ध्यान।
पहली बार मीरा को समझ आया कि कोई जानवरों से इतनी मोहब्बत क्यों कर सकता है। उसके सीने में कोई अजीब सी, लेकिन अच्छी सी हलचल हुई।
ये… सच में कमाल है, मीरा ने दिल ही दिल में सोचा।
नैना ने बहुत धीरे से पट्टी बंधे कबूतर को एक टोकरी में रखा, जिसमें नरम तौलिया बिछा हुआ था। “ये कुछ दिन यहीं रहेगा, जब तक इसका पंख ठीक नहीं हो जाता,” उसने कहा, टोकरी पर एक छोटा सा टैग बांधते हुए। “चिंता मत करो। जब ये उड़ने लायक होगा, तो हम खुद इसे छोड़ देंगे। तुम्हें वापस आने की जरूरत नहीं है।”
मीरा ने पलकें झपकाईं। वापस आने की जरूरत नहीं? वो थोड़ा असहज होकर अपने पैरों पर हिली। उसके मन में… अजीब सी निराशा हुई। कबूतर की वजह से तो बिल्कुल नहीं। जाहिर है। लेकिन डॉक्टर की वजह से… शायद।
“ओह… उम… फिर भी क्या मुझे… वापस आना चाहिए? मतलब… इसे देखने के लिए या ऐसे ही?” उसने बालों की एक लट कान के पीछे करते हुए बेपरवाही से पूछा।
नैना ने हल्की सी मुस्कान के साथ भौंह उठाई। “अच्छा… ये तो कमाल है। मुझे लगा तुम्हें तो परिंदों से नफरत है?”
मीरा का चेहरा लाल पड़ गया। “है भी! मेरा मतलब… मैंने सोचा… शायद… इसे मेरी… moral support की जरूरत पड़े,” उसने बुदबुदाते हुए कहा।
नैना हल्का सा हंसी, उसकी आंखों में नरमी से झुर्रियां पड़ गईं। “तुम बहुत मज़ेदार हो,” उसने सिर हल्का सा हिलाते हुए कहा।
बात बदलने के लिए बेताब, मीरा ने तुरंत अपना वॉलेट निकाल लिया, । “कितने फीस देनी है?”
नैना ने धीरे से हाथ हिला दिया। “कुछ नहीं। बस एक वादा करो मुझसे।”
मीरा ने सिर थोड़ा झुका कर पूछा, “क्या?”
नैना मुस्कुराई, उसकी आंखों में वही नर्मी थी। “जानवरों के साथ थोड़ा अच्छा बर्ताव करने की कोशिश करना।”
“ठीक है… तो… मैं चलती हूं,” उसने बुदबुदाया, टिफिन बॉक्स को कसकर पकड़ते हुए दरवाजे की ओर मुड़ी।
वापस आने की कोई साफ बात न सुनकर मीरा बेचैनी से पैरों पर हिलने लगी।
लेकिन आधे रास्ते में ही रुक गई। उसके दिल की धड़कन उसकी छाती में जोर से महसूस हो रही थी। अब बात कबूतर की नहीं रह गई थी। वो बस… ये बातचीत खत्म नहीं करना चाहती थी। वो वहां से ऐसे जाना नहीं चाहती थी, बिना ये जाने कि इस प्यारी सी डॉक्टर से फिर कब मुलाकात होगी।
ज्यादा सोचने से पहले ही, उसने पलटकर उसकी तरफ देखा।
मीरा ने हल्की सी कांपती सांस ली और पलटी। उसका दिल तेज़ धड़क रहा था, लेकिन उसने हिम्मत जुटा ही ली।
“उम… तो मैं कल फिर आऊंगी,” उसने जल्दी से कहा।
नैना ने कबूतर की टोकरी ठीक करते हुए उसकी तरफ देखा। उसकी भौं हल्की सी उठ गई और होंठों पर प्यारी सी मुस्कान आ गई।
मीरा ने झट से जोड़ दिया, “मैं… मैं कॉफी भी ले आऊंगी।” फिर उसे याद आया और वो घबरा गई। “अरे… तुम्हें कॉफी पसंद भी है क्या?”
नैना हल्का सा हंसी और बालों की एक लट कान के पीछे करती हुई बोली, “कॉफी तो ज्यादा पसंद नहीं… लेकिन तुम्हारे साथ पीना अच्छा लगेगा।”
मीरा का दिल जोर से धड़कने लगा। उसके चेहरे पर धीमी सी मुस्कान फैल गई, जिसे वो रोक नहीं पाई।
उसने टिफिन बॉक्स को सीने से लगाते हुए धीरे से कहा, “ठीक है… तो फिर कल मिलते हैं।”
जैसे ही मीरा मुड़ी, उसका पैर दरवाज़े के मैट में अटक गया और वो हल्का सा लड़खड़ा गई। ऊपर टंगी छोटी सी घंटी बज उठी, जैसे जाते-जाते उसके साथ मस्ती कर रही हो।
वो गली से बाहर निकली, धीरे-धीरे चलते हुए। शाम की हल्की हवा उसके चेहरे को छू रही थी। चारों तरफ की आवाजें – ऑटो के हॉर्न, स्टूडेंट्स की बातें, पीपल के पत्तों की सरसराहट – सब कुछ आज थोड़ा अच्छा लग रहा था। जैसे सब कुछ नैना की मुस्कान की रोशनी में नहाया हुआ हो।
उसने खाली टिफिन बॉक्स को सीने से लगा लिया। उसके चेहरे से मुस्कान हट ही नहीं रही थी। दिल में एक अजीब सी हल्की-सी खुशी महसूस हो रही थी, जैसे कोई मीठी सी तितली उड़ रही हो।
वो हर कदम पर नैना की बातों को याद कर रही थी। मीरा हल्की सी हंसी हंस दी, खुद पर ही मुस्कुराते हुए।
शायद… जानवर इतने बुरे नहीं थे। खासकर अगर वो आपको किसी ऐसे इंसान से मिला दें… जैसे मीरा को डॉक्टर नैना वर्मा से।