Pahli Mulakaat - 1 in Hindi Love Stories by vaghasiya books and stories PDF | पहली मुलाक़ात - भाग 1

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पहली मुलाक़ात - भाग 1



🩵 भाग 1: पहली मुलाक़ात
छोटे शहर बरेली के एक साधारण से कॉलेज में, नया सत्र शुरू हो चुका था। कॉलेज की भीड़ में, हलके भूरे रंग की शर्ट और नीली जींस पहने एक लड़का, कुछ घबराया, कुछ उत्साहित-सा कैंपस में प्रवेश करता है। दिल्ली से आया ये लड़का, आरव वर्मा, अपने पापा की सरकारी नौकरी के चलते बरेली शिफ्ट हुआ था।

कॉलेज के पहले ही दिन, जब सब नए दोस्त बनाने में लगे थे, आरव अकेला सा बैठा कैंटीन के एक कोने में किताबों में झाँक रहा था। तभी, पास की टेबल पर एक तेज़ आवाज़ गूँजी —

"किसी भी समाज का असली चेहरा उसकी औरतों की आज़ादी से पता चलता है!"

ये आवाज़ थी अंजली मिश्रा की — कॉलेज की होशियार, बेबाक और बहसों में सबसे आगे रहने वाली लड़की। कंधे तक खुले बाल, आँखों में आत्मविश्वास और भाषा में आग। वह सामाजिक विज्ञान की क्लास में छात्र-छात्राओं से लड़ते-झगड़ते ही जानी जाती थी।

आरव ने उसकी बात सुनी और मुस्कुरा दिया। वो ये जान चुका था कि ये लड़की अलग है।

कुछ दिन बीते। एक दिन कॉलेज में डिबेट प्रतियोगिता हुई – विषय था "प्यार और समाज – कौन सही?"
अंजली ने समाज की बंदिशों पर सवाल उठाए और कहा, "प्यार वो ताक़त है जो समाज की दीवारों को तोड़ सकती है।"
वहीं, आरव का पक्ष था थोड़ा अलग – "प्यार अगर समाज से लड़ना सिखाए, तो पहले समाज को समझना भी ज़रूरी है।"

जब अंजली और आरव आमने-सामने बोले, पूरा ऑडिटोरियम सन्न था। तर्क की तलवारें, भावनाओं की बौछार और बीच-बीच में उनके बीच छुपी मुस्कानें – किसी ने ध्यान न दिया, पर एक एहसास ने जन्म ले लिया था।

अगले दिन लाइब्रेरी में, अंजली ने पहली बार बात की –
"तुम दिल्ली से हो न? बहस अच्छी करते हो…"
आरव ने मुस्कुराकर कहा, "तुमसे अच्छा तो नहीं… लेकिन तुम्हारा गुस्सा ज़रूर दिलचस्प है।"

दोनों हँस पड़े।

वो मुलाक़ात एक आदत बनने लगी। कैंटीन की चाय, लाइब्रेरी के कोने, और कॉलेज की सीढ़ियों पर बैठकर समाज, साहित्य, सपनों और जीवन पर लंबी बातें। अंजली के लिए ये पहली बार था जब किसी लड़के ने उसकी सोच को अहमियत दी थी। और आरव के लिए, पहली बार था जब कोई लड़की किताबों से ज़्यादा दिल में उतर रही थी।

अंजली का परिवार पारंपरिक था। उसके पिता, मोहल्ले के सम्मानित पंडित थे। घर की इज़्ज़त और बेटियों की सीमाएँ, उनके लिए सबसे अहम थीं। अंजली जानती थी कि ये दोस्ती कभी आगे नहीं जा सकती, लेकिन दिल… दिल कब समाज की मानता है?

एक दिन, बारिश में कॉलेज के बाहर दोनों भीगते हुए छतरी के नीचे खड़े थे।
अंजली बोली, "अगर मैं कहूँ कि ये सब नहीं होना चाहिए… ये दोस्ती, ये बातें… तो?"
आरव ने उसकी आँखों में देखा और कहा,
"तो मैं कहूँगा, कुछ रिश्ते नियति बनकर मिलते हैं, चाहे मंज़िल मिले या न मिले…"

अंजली चुप रही। शायद पहली बार उसे किसी के शब्दों ने छुआ था, सिर्फ़ बाहर से नहीं… अंदर तक।

उस दिन के बाद कुछ बदल गया। बातों में अब वो पहले जैसी बहस नहीं रही, अब उन बातों में जुड़ाव था, समझ थी।
कभी-कभी, लाइब्रेरी में किताब की जगह उनकी निगाहें एक-दूसरे की आँखों को पढ़ती थीं।

और कॉलेज की दीवारों को भी अब समझ में आ गया था – दो दिल करीब आ रहे हैं।

पर दीवारें चुपचाप सब देखती हैं, और जब टूटती हैं… तो शोर बहुत करती हैं।

-vaghasiya