''दुमछल्ला'' निशांत जैन की लिखी एक कहानी है ...
ये एक ऐसी किताब है जिसे कोई लोग खुद से रिलेट कर सकते हैं ..
इस कहानी का मुख्य किरदार निर्मय है जो अपनी जिंदगी को अपने उसूलों पर जीना चाहता है और जीता भी है ....पर जब उसके अपने ही उसूल उस पर हावी हुए तो उसको आत्महत्या जैसा कदम उठाना पड़ा...
वैसे तो इस कहानी में सभी किरदार मुख्य हैं क्योंकि सबने किसी ना किसी तरह इस कहानी को जिंदा रखा...
कहानी में निर्मय की जो प्यार की परिभाषा रही वही उसका अंत कर बैठी...एक कहावत मशहूर है कि जो लोग दूसरे को आइना दिखाते हैं उन्हें खुद भी एक बार आइने में झांकना चाहिए ,यही निर्मय नहीं कर सका...वैसे भी जिंदगी कब हमारे हिसाब से चली है ये तो अपना एक उसूल एक बैलेंस ले कर बैठी होती है
कहानी के अन्य पात्र जिसमे निर्मय की पत्नी गायत्री जिस से निर्मय ने ऊंचाई देखकर प्रेम विवाह किया था, अगर उसकी नजर से देखा जाए तो ये कहानी कभी भी प्रेम कहानी नहीं हो सकती ..और वैसे भी ये कहा जाता है कि प्रेम कई बार हो सकता है पर मेरा ऐसा मानना है कि एक समय पर तो सिर्फ एक से ही हो सकता है ...इस को निर्मय समझ नहीं पाया और उसने एक अन्य पात्र प्रियल से गायत्री के होते हुए भी गैर संबंध रखे....
प्रेम सामाजिक उसूलों को नहीं मानता परंतु जब किसी दूसरे की बात आती है तो हर कोई उस पर उनहि उसुलो को थोपता है ....
इस कहानी में ऐसा बताया गया है कि सच रिश्तों की बुनियाद को खोखला करता है परंतु बिना सच के क्या कोई व्यक्ति किसी पर विश्वास कर सकता है?
प्रेम सिर्फ एक नाम नहीं बल्कि एक विश्वास का नाम भी होता है जिसे बांटा नहीं जा सकता ...प्रेम एक समय पर एक से ही हो सकता है परंतु निर्मय ने जिस तरह खुद को दो लोगो में प्रेम को बांटा उस तरह से उसको वो दोनो लोग खोने पड़े....और वैसे भी एक स्त्री जो पत्नी का रूप ले चुकी है अपने पति को कैसे ही दूसरी औरत के साथ बांट सकती थी तो उसके (गायत्री)व्यवहार में जो बदलाव आया जायज़ था...परंतु निर्मय ने फिर भी उस से उपेक्षा रखी की की गायत्री उसे समझे....
और वैसे भी इस कहानी में निर्मय ने जो स्वतंत्र जीवन की परिभाषा दी वो एक स्वार्थ का नाम था...यदि किसी व्यक्ति को अपना जीवन स्वतंत्र रूप से ही जीना है तो उसको किसी को भी प्रेम के झूठे दावों से नहीं बांधना चाहिए ....
यदि निर्मय की नजरो में प्रियल से उसके प्रति प्रेम था तो उसने ये प्रेम गायत्री से छुपाया क्यू ?और जब गायत्री को पता चला तो वह गायत्री से नजर क्यों नहीं मिला पाया ?....दूसरो से तो उसने बहुत सारी ऊपेक्षा रखी की सब उस पर विश्वास रखे और उस को व्यक्तिगत स्वतंत्रता दे.. परंतु यही उसूल उसने खुद पर और प्रियल पर क्यू नहीं लागू किया ?
जब प्रियल की मां ने सिर्फ इस्लीये आत्महत्या की कि प्रियल के पापा ने उसकी मां को धोखा दिया तो निर्मय ने उसकी मां से ऊपेक्षा क्यु रखी की उसकी माँ को सब कुछ भूल कर अपना जीवन नियमित रूप से जीना चाहिए ?
जब निर्मय का खुद का विश्वास टूटा तब उसको समझ आया कि खुद का बनाया हर उसूल खुद की नजर में ही सही हो सकता है सिर्फ तभी जब वह दूसरो पर लागू करे खुद पर लागू कर पाना इतना आसान नहीं होता है .....इस कहानी का अंत विश्वास के टूटने से ही होता है जिसमें निर्मय ने खुद को खत्म कर लिया....
ऐसी घटनाये जीवन में होती रहती है पर कुछ लोग सबक लेके आगे बढ़ जाते हैं और कुछ अपना जीवन ही समाप्त कर देते हैं ....