Yashaswini - 8 in Hindi Fiction Stories by Dr Yogendra Kumar Pandey books and stories PDF | यशस्विनी - 8

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यशस्विनी - 8



" यार गोपी, अभी कौन पटाखे चलाता है। अभी तो शाम ही हुई है। जब रात होगी ना, तो पटाखे चलाने में मजा आएगा।"

" मेरे पास बहुत बड़ा दनाका बम है।" गोपी ने कहा।

" मेरी मां भी राकेट लेकर आ रही है। देखना ऊपर बहुत दूर तक जाएगा वह रॉकेट।सीधे चंदा मामा को छूकर आएगा।" यह उत्तर सुनकर गोपी खिलखिला कर हंस पड़ा और दोनों मित्र दूसरी बातें करने लगे थे।

  गणेश को भूख भी लग रही थी। मां अभी तक नहीं पहुंची थी। वह मां के निर्देश के अनुसार घर में ही था और अब मां की प्रतीक्षा करते दरवाजे पर आकर बैठ गया था। गणेश ने थोड़ी और देर होते देख कर रंगोली के साथ ही खरीदी गई लक्ष्मी जी, गणेश जी व सरस्वती जी की फोटो को कमरे के पूजा वाले स्थान पर चिपका दिया था।

  रात लगभग 7:30 बजे के आसपास घर के दरवाजे पर एक कार उतरी। मुस्कुराते हुए एक युवती कार के बाहर आई। उसने  कहा- "शुभ संध्या गणेश,मैं यशस्विनी हूं।तुम्हारी मम्मी की सहेली।"

      गणेश आश्चर्य से भर उठा। हाथ जोड़कर उसने नमस्ते किया। पहले तो वह आंटी के साथ कार में बैठना नहीं चाहता था, क्योंकि मां ने समझाया था कि किसी भी अनजान व्यक्ति के साथ कहीं मत जाना।इस पर यशस्विनी ने मां से फोन पर बात कराई- बेटा,आंटी के साथ चले आओ। हम दीवाली यहीं मनाएंगे तो थोड़े भय और आश्चर्य के मिले जुले भाव के साथ गणेश कार में बैठ गया।

गाड़ी शहर के जिला अस्पताल में रुकी।गणेश रुआंसा हो गया। उसने आंटी से पूछा- मेरी मां कहां है ?मुझे अस्पताल आप क्यों लाई हैं?

  कोई उत्तर न देते हुए यशस्विनी गणेश का हाथ पकड़ कर मुस्कुराते हुए उसे भीतर ली गई। एक कमरे में सावित्री बेड पर लेटी हुई थी। उसके पैर में प्लास्टर लगा था।मां को इस हालत में देखकर गणेश फूट-फूट कर रोने लगा और दौड़कर उससे लिपट गया।आज काम के समय सावित्री ऊंचाई से नीचे गिर गई थी और दाहिने पैर की हड्डी टूट जाने के कारण प्लास्टर लगा हुआ था।

  मां ने अपने सिरहाने पर रखा हुआ एक पैकेट गणेश के हाथ में दिया। गणेश के सिर पर मुस्कुराते हुए उसने हाथ फेरा और कहा- देखो गणेश? क्या है इसमें?

  गणेश का मन भारी था लेकिन माँ की इच्छा का सम्मान करते हुए उसने पैकेट खोल कर देखा तो उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई।उसमें ढेर सारे पटाखे थे और सबसे ऊपर था, उसका पसंदीदा रॉकेट।

    यशस्विनी ने कहा- "गणेश आज हम तीनों दीवाली यहीं मनाएंगे। फिर आप दो दिनों बाद अपनी मां के साथ घर चले जाओगे ….आओ आप और हम मिलकर रॉकेट चलाते हैं।"

      बच्चे अपनी पसंदीदा चीज पाकर बड़ी से बड़ी पीड़ा भूल जाते हैं। यशस्विनी गणेश का हाथ पकड़कर अस्पताल के मुख्य द्वार से उसे बाहर ले गई।वहां एक खुली जगह थी, जहां दोनों ने मिलकर रॉकेट चलाने की तैयारी की और जब रॉकेट आसमान की ऊंचाई पर गया तो गणेश ने मुड़कर अस्पताल के कमरे की ओर देखकर खुशी से हाथ हिलाया। सावित्री खिड़की के पास आकर हाथ हिला नहीं सकती थी। उसने दूर से ही बेटे की धुंधली आकृति को देख कर मन में गहरे संतोष का अनुभव किया और बेड के पास लगे लाइट की स्विच को तीन चार बार चालू व बंद कर गणेश को यह सूचना दे दी कि मैं तुम्हें पटाखे चलाते हुए देख रही हूँ।घर से बाहर की दुनिया में सावित्री ने अंग्रेजी के कुछ शब्द सीख लिए थे।उसके होंठ बुदबुदाए- ….हैप्पी दीवाली गणेश।"

  आज की घटनाओं को याद कर यशस्विनी की आंखों में आंसू आ गए और उसने अपनी अंतरात्मा तक में एक गहरे संतोष भाव का अनुभव किया।

आज 12 जनवरी है। स्वामी विवेकानंद जी के जन्मदिन को पूरे देश के लोग युवा दिवस के रुप में मनाते हैं और इस अवसर पर सूर्य नमस्कार का सामूहिक अभ्यास भी आयोजित होता है। श्री कृष्ण प्रेमालय द्वारा संचालित स्कूल में यशस्विनी को विशेष रूप से योग का प्रशिक्षण देने के लिए आमंत्रित किया गया है।श्री कृष्ण प्रेमालय स्कूल से यशस्विनी को विशेष लगाव है, क्योंकि स्वयं उसकी सारी शिक्षा- दीक्षा यहीं संपन्न हुई है।थोड़ा बड़ा होने पर महेश बाबा ने व्यक्तिगत रूप से उसे गोद लेने की इच्छा प्रकट की थी। वास्तव में महेश बाबा ने जिस उद्देश्य को लेकर इस संस्थान की स्थापना की थी, उसमें वह अपने प्रेम को व्यक्तिगत रूप से खंडित नहीं करना चाहते थे; इसलिए उन्होंने स्वयं किसी बच्चे को गोद नहीं लिया था।महेश बाबा शुरू से आध्यात्मिक प्रवृत्ति के थे। अव्वल तो वे सब कुछ छोड़कर हिमालय जाकर तपस्या करना चाहते थे, लेकिन उनके गुरु ने समझाया था- संसार छोड़कर कहां जाना चाहते हो वत्स?

गुरु और शिष्य में कुछ देर तक संवाद भी हुआ था।

"गुरुदेव मैं आत्मिक उन्नति के लिए साधना करना चाहता हूं।यह साधना संसार में होते हुए असंभव है।"

" यह तुमने कैसे मान लिया वत्स कि साधना के लिए घर द्वार छोड़ना होगा और किसी गुफा कंदरा में बैठकर ध्यान में लीन होना होगा?"

" इसलिए गुरुदेव कि संसार एक बंधन है।यहां मोह माया है।यहां रिश्ते की चिंता है।लोग आजीविका के लिए अनेक कर्म करते हैं और कभी-कभी सही गलत रास्ता भी अपनाते हैं।"

" तो सब लोग तुम्हारी तरह संसार के बंधनों को छोड़ देना चाहेंगे तो यह संसार चलेगा कैसे? योगियों तपस्वियों को भी तो अन्न की आवश्यकता होती है और यह उगाते हैं किसान, जो अधिकतर गृहस्थ हैं।"

" समझ गया गुरुदेव।" यह उत्तर देते हुए युवा महेश ने तपस्या के लिए गुरु के मार्गदर्शन में हिमालय जाने का इरादा बदल दिया।

  इसके बाद महेश ने श्री कृष्ण प्रेमालय नामक सामाजिक संस्था की स्थापना की और इसे मुख्य रूप से अनाथ बच्चों के पालन पोषण और संरक्षण पर केंद्रित किया। अकेले महेश से अनाथालय के बच्चों की देखरेख संभव नहीं थी इसलिए उसने विवाह का निश्चय किया लेकिन अपनी भावी पत्नी माया के सामने यह शर्त रखी कि हमारे बच्चे नहीं होंगे और अनाथालय के बच्चे ही हमारे संतान होंगे। महेश की यह शर्त सुनकर माया के माता-पिता पहले तो थोड़ा झिझके लेकिन व्यापक दृष्टि से सोचने पर महेश के कार्य को ईश्वर की ही सेवा मानने और माया के भी आध्यात्मिक प्रवृत्ति का होने के कारण उन्होंने सहमति दे दी और इस तरह दोनों का विवाह हो गया।

डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय