एपिसोड 2 – वो पहली शाम
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शुरुआत...
शाम ढल रही थी। सूरज की आखिरी किरणें जैसे शहर की सड़कों को सोने की चादर ओढ़ा रही थीं। फ़ैजल खिड़की के पास बैठा, चाय की चुस्कियाँ लेते हुए अपनी उसी सुबह की मुलाकात के बारे में सोच रहा था – मुनावर से हुई वो मुलाकात और वो बातचीत, जो अचानक से शुरू हुई थी लेकिन जैसे बहुत पुरानी जान-पहचान हो।
चाय के घूँट के साथ उसकी नज़र एक बार फिर उसी बैग पर गई जो उसने मुनावर के स्टेशन पर उतरते समय देखा था। उस बैग पर ‘नाज़’ लिखा था — नीले रंग के फूलों के बीच चमकता हुआ सफेद नाम।
"नाज़..."
नाम में जैसे कुछ तो था। फ़ैजल को नहीं पता था कि वो कौन है, कहाँ है, लेकिन न जाने क्यों उस नाम के साथ कोई अनदेखा जुड़ाव महसूस हो रहा था।
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शाम का सीन: पहली मुलाक़ात
उसी शाम, पास की एक चाय की दुकान पर मुनावर फिर से मिला। वो वहीं बैठा कुछ लिख रहा था — शायद डायरी या कोई खत।
फ़ैजल ने पास जाकर पूछा, “क्या कर रहे हो भाई?”
मुनावर ने हल्की मुस्कान के साथ जवाब दिया, “बस यूँ ही... कुछ ख़्याल थे दिल में, काग़ज़ पर उतार रहा हूँ।”
“अच्छा सुनो, तुम्हारे बैग पर ‘नाज़’ लिखा था… कौन है वो?”
फ़ैजल ने सहजता से पूछ लिया, जैसे कोई गहरी बात छुपी हो।
मुनावर एक पल के लिए चुप हो गया। उसकी आँखों में एक साया सा उतर आया।
“वो… मेरी एक दोस्त है। बहुत खास। लेकिन अब शायद दोस्त नहीं रही...”
मुनावर का स्वर धीमा था।
फ़ैजल ने कोई और सवाल नहीं किया। चायवाले से दो चाय मंगवाई और एक कप मुनावर की ओर बढ़ाया।
“चलो भाई, कुछ बातों को चाय के साथ पी लिया करो। सबका हल ज़रूरी नहीं होता,” फ़ैजल ने कहा।
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कहानी में एंट्री: नाज़
दूसरी तरफ़, कहानी की नायिका — नाज़ — अपने ही शहर में एक पुरानी लाइब्रेरी में बैठी हुई थी। किताबों से घिरी हुई, लेकिन दिल से बिल्कुल अकेली।
नाज़ एक समझदार, पढ़ने-लिखने वाली लड़की थी। उसे शेरो-शायरी, पुराने खत, और बारिश में भीगते पन्ने बहुत पसंद थे। लेकिन आजकल उसकी आँखों में कुछ खालीपन था।
उसने अपने डायरी में लिखा:
> "कुछ बातें सिर्फ़ वक़्त जानता है,
कुछ रिश्ते सिर्फ़ दिल समझता है,
और कुछ दर्द… सिर्फ़ मैं।"
उसकी सहेली ने पीछे से आकर कहा, “नाज़, फिर से उदास हो? कब तक खुद को यूँ छुपाती रहेगी?”
नाज़ ने मुस्कुराने की कोशिश की, “कुछ लोग वापस नहीं आते, लेकिन उनकी यादें आती रहती हैं। और कभी-कभी, वो यादें ही हमारी सबसे बड़ी ताक़त बनती हैं।”
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प्लॉट की दिशा: किस्मत का खेल
इसी शहर में, अलग-अलग कोनों में बैठे ये तीन किरदार — फ़ैजल, मुनावर और नाज़ — एक ऐसे मोड़ पर आ रहे थे जहाँ उनकी कहानियाँ टकराने वाली थीं। लेकिन कोई नहीं जानता था कि पहला कदम कौन रखेगा।
शाम ढलने के बाद फ़ैजल और मुनावर पास के पार्क में घूमने निकले। बातें करते-करते दोनों के बीच एक अलग-सी बॉन्डिंग बन गई।
“कभी नाज़ से मिला सकते हो क्या?” फ़ैजल ने पूछा, बिना ज़्यादा सोचे।
मुनावर ने गहरी साँस लेते हुए कहा, “पता नहीं भाई… वो मुझसे बहुत दूर जा चुकी है। लेकिन अगर किस्मत ने चाहा तो शायद…”
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एक संकेत… एक इत्तेफाक़
दूसरे दिन, लाइब्रेरी में नाज़ को एक किताब मिली जिसमें एक पन्ने पर कुछ लिखा हुआ था:
> "अगर तुझे कभी भीगती शाम पसंद हो,
तो मेरे साथ एक बार चलना ज़रूर।
– F"
उसने किताब को उल्टा-पलटा, शायद ये कोई इत्तेफाक था… या फिर किस्मत का पहला पन्ना।
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एपिसोड का अंत:
रात के आखिरी पहर में, फ़ैजल खिड़की से बाहर चाँद की रोशनी देख रहा था। उसके मन में मुनावर की बात, नाज़ का नाम, और वो इत्तेफाक़ वाली किताब — सब घूम रहा था।
“शायद कुछ होने वाला है... कुछ अनदेखा... कुछ खास।”