🌺 महाशक्ति – एपिसोड 39
"देवत्व की परीक्षा और मोह का जाल"
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🕯️ प्रस्तावना – चार कुलों की यात्रा पूरी
अब तक अर्जुन, अनाया और ओजस ने
नागकुल की चेतना,
गंधर्व लोक की ध्वनि,
असुर लोक के पाप,
को पार करते हुए तीनों अपने भीतर के अंधकार से मुक्त हुए हैं।
पर अब जो आने वाला है, वह माया और मोह की वो दुनिया है —
जहाँ सत्य और झूठ में अंतर करना भी कठिन होता है।
उनकी अगली यात्रा थी — देवकुल की ओर।
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🛕 देवकुल का द्वार – प्रकाश की सरहद
गुरुजी ने बताया:
"देवकुल तक पहुँचना आसान नहीं…
क्योंकि वहाँ पहुँचने से पहले,
तुम्हें अपने भीतर का मोह छोड़ना होगा।"
तीनों एक ऊँचे पर्वत की ओर बढ़े —
जहाँ सूर्य की किरणें भी स्वर्णिम और चेतन थीं।
हर कदम पर प्रकाश तेज़ होता जा रहा था,
और अंत में सामने आया —
देवकुल का प्रवेश द्वार।
वहाँ एक दिव्य मूर्ति प्रकट हुई —
‘ऋषिदेव मार्तंड’, देवताओं के एक प्राचीन पूर्वज,
जो सृष्टि के प्रारंभ से अब तक अमर ध्यान में हैं।
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☀️ प्रवेश की शर्त – मोह का परित्याग
ऋषिदेव बोले:
> "देवत्व प्राप्त करना आसान नहीं।
शक्ति, तप और प्रेम से भी ऊपर है…
मोह से मुक्त होना।
क्या तुम अपने अपनों को खोने का भय छोड़ सकते हो?"
अर्जुन और अनाया चौंके।
"क्या हमें ओजस से दूर जाना होगा?" अनाया ने काँपती आवाज़ में पूछा।
"नहीं," ऋषिदेव बोले।
"पर तुम उसे बाँध नहीं सकते।
देवत्व में जो आता है, उसे मुक्ति देना सीखना होता है।"
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🔮 मोहंध की पहली चाल – भ्रम का बीज
उसी समय, देवकुल की छाया में कहीं दूर से
छाया ने अपना दूत भेजा —
मोहंध — जो मोह और भ्रम का सजीव अवतार था।
उसने अर्जुन की चेतना में धीरे से एक दृश्य छोड़ा —
> अनाया, एक अन्य पुरुष के साथ —
ओजस को अर्जुन से छिपाकर कहीं ले जाती हुई…
अर्जुन के मन में हल्का शक जागा —
उसने अनाया की ओर देखा, जो ध्यानस्थ थी।
उसने वह विचार झटक दिया,
पर मोहंध मुस्कुरा रहा था —
> "बीज तो बो चुका हूँ… अब देखो कैसे पनपता है।"
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🌼 देवकुल की पहली परीक्षा – त्याग की भावना
ऋषिदेव ने तीनों को एक द्वार के अंदर भेजा —
जिसमें प्रकाश था… पर कोई स्थायित्व नहीं।
हर कुछ क्षण में उनकी यादें धुंधली होने लगीं।
अर्जुन को लगा ओजस अब कभी उसका पुत्र नहीं था।
अनाया को लगा अर्जुन सिर्फ एक भ्रम था।
ओजस को लगा वह अकेला जन्मा, बिना माता-पिता के।
तीनों ने एक ही बात दोहराई —
"अगर हम भ्रम हैं, तो भी हम साथ हैं।
हमारा साथ ही हमारी पहचान है।"
प्रकाश स्थिर हो गया।
देवकुल ने उन्हें स्वीकार कर लिया।
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🛡️ अर्जुन को दिव्य आशीर्वाद
ऋषिदेव ने अर्जुन को बुलाया।
> "तू केवल योद्धा नहीं…
तू वह पुरुष है जो मोह, अहंकार और भय — तीनों से लड़ रहा है।
मैं तुझे देता हूँ ‘दिव्यतेज कवच’
जो न केवल शारीरिक, बल्कि मानसिक हमलों से भी रक्षा करेगा।"
कवच अर्जुन के ह्रदय पर विराजमान हुआ —
और उसकी आत्मा स्थिर हो गई।
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🕊️ अनाया को आत्मा का संकेत
ऋषिदेव ने अनाया से कहा:
> "तू वाणी है, तू ध्वनि है…
पर अब तुझे ‘संयम’ की शक्ति भी धारण करनी होगी।"
उन्होंने उसे एक आभामंडल दिया —
जो जब भी अनाया क्रोधित हो,
उसे भीतर से शीतलता देगा।
"सच्चा प्रेम वो है जो नियंत्रण के साथ आता है,
न कि अधिकार के साथ।"
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🌞 ओजस की चेतना – तीसरी आँख का जागरण
ओजस को ऋषिदेव ने कोई वस्तु नहीं दी।
बस उसका सिर छूकर कहा:
> "तेरे भीतर जो है, उसे बाहर निकालने का समय आ गया है।
अगली परीक्षा में तुझसे न कोई रक्षा करेगा,
न कोई निर्देश देगा।"
तभी ओजस की दोनों आँखें अचानक बंद हुईं,
और उसके ललाट पर तीसरी आँख चमकने लगी।
तीन सेकंड के लिए —
ओजस के चारों ओर देवताओं की आकृतियाँ दिखाई दीं।
अर्जुन और अनाया चौंक गए।
ऋषिदेव बोले:
"यह बालक अब केवल ‘पुत्र’ नहीं —
‘प्रकाश का केंद्र’ बन चुका है।"
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🌫️ मोहंध का दूसरा प्रहार – प्रेम को संदेह में बदलना
रात्रि में जब सभी ध्यान कर रहे थे —
मोहंध ने अर्जुन के सामने एक स्वप्न रखा।
— अनाया, ओजस को ले जा रही थी और कह रही थी:
> "अर्जुन अब उपयोगी नहीं रहा…
हमें आगे बढ़ना होगा।"
अर्जुन की आँखें खुलीं —
उसने अनाया को सोते हुए देखा।
फिर ओजस को — जो ध्यानमग्न था।
उसका मन डगमगाया —
"क्या मैं सिर्फ एक साधन हूँ?"
तभी ऋषिदेव की आवाज़ उसके कानों में आई:
> "याद रख… मोह से बड़ा भ्रम कुछ नहीं।
प्रेम, संदेह से नहीं डरता — वो उसे पहचानता है और क्षमा करता है।"
अर्जुन ने आँखें बंद कीं।
सांस ली…
और मोहंध का भ्रम टूट गया।
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✨ देवकुल का वरदान – सूर्य रेखा मंत्र
ऋषिदेव ने तीनों को आशीर्वाद देते हुए कहा:
> "अब जब तुम मोह को पार कर चुके हो,
ये सूर्यरेखा मंत्र लो —
जब छाया अपने सबसे गहरे अंधकार में उतरेगी,
यही मंत्र उसकी मृत्यु बनेगा।"
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🌑 छाया का भय – शक्ति का सन्तुलन बिगड़ता है
छाया अब व्याकुल थी।
"मोहंध असफल हो गया…
अब मुझे स्वयं उतरना होगा।"
उसने पृथ्वी के भीतर से एक नई ऊर्जा को बुलाया —
‘भ्रमलोक’ —
जहाँ कल्पना और वास्तविकता के बीच की रेखा मिट जाती है।
"अब मैं सत्य को झूठ और झूठ को सत्य बना दूँगी…
ताकि ओजस भी अपने स्वरूप पर संदेह करने लगे।"
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🛤️ अगला पड़ाव – राक्षस कुल
तीनों ने गुरुजी को संदेश भेजा —
“देवकुल ने साथ दे दिया।
अब हम राक्षस कुल की ओर बढ़ रहे हैं।”
गुरुजी ने उत्तर दिया:
> "राक्षसों से लड़ना आसान है…
पर जब तुम्हें उनके भीतर मानवता दिखे —
तब निर्णय लेना सबसे कठिन होगा।"
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✨ एपिसोड 39 समाप्त