🌺 महाशक्ति – एपिसोड 45
"मानवकुल का द्वार और आत्मा का दर्पण"
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🌫️ प्रारंभ – अंतिम द्वार की शर्त
यक्षकुल की शांति के बाद अब सामने था
मानवकुल का अन्तिम द्वार।
पर यह कोई साधारण प्रवेश नहीं था।
गुरुजी बोले:
> "यह द्वार बाहरी नहीं —
यह भीतर है।
इसे कोई शस्त्र नहीं, केवल स्वीकृति ही खोल सकती है।
जो स्वयं को क्षमा नहीं कर पाए…
वे मानवकुल में प्रवेश नहीं कर सकते।"
तीनों — अर्जुन, अनाया और ओजस —
मौन थे।
तभी उनके सामने एक दिव्य दर्पण प्रकट हुआ —
“आत्म-दर्पण” —
जो हर उस छवि को दिखाता है
जिससे मनुष्य भागता है।
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🔥 अर्जुन का सामना – एक भूला पाप
दर्पण में अर्जुन ने खुद को देखा —
पर वो वही अर्जुन नहीं था
जो आज अनाया के साथ खड़ा है।
वो एक योद्धा था —
जिसने एक युद्ध में अपनी ही एक साथी को धोखा दिया था,
क्योंकि वह शक्ति में बाधा बन रही थी।
“तूने उसे धोखा दिया, अर्जुन,”
दर्पण बोला।
“क्योंकि तुझे जीत प्यारी थी, इंसान नहीं।”
अर्जुन की आँखों में दर्द भर आया।
“मैंने बाद में पश्चाताप किया…
पर वो क्षमा मांगने कभी जीवित नहीं रही।”
“तो क्या तू अब भी खुद को क्षमा कर सका?”
अर्जुन मौन रहा।
तभी अनाया ने उसका हाथ थामा।
"तेरा अतीत तुझे परिभाषित नहीं करता, अर्जुन।
तेरी प्रेम की यात्रा तुझे शुद्ध करती है।
अगर तू मुझसे प्रेम करता है…
तो स्वयं से भी कर।"
अर्जुन की आँखें भीग गईं।
उसने दर्पण के आगे झुककर कहा:
> “मैं अपने पाप को स्वीकारता हूँ…
और उसे सीख बनाकर…
अब आगे प्रेम से जियूँगा।”
दर्पण की पहली परत टूट गई।
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💔 अनाया का द्वंद्व – बिना अर्जुन के भविष्य की झलक
अब बारी थी अनाया की।
उसने दर्पण में देखा —
तो एक वैकल्पिक भविष्य दिखा।
वह एक पुस्तकालय में अकेली थी…
प्रेम-विहीन, खाली जीवन में डूबी।
अर्जुन कहीं नहीं था।
“तू अर्जुन के बिना भी पूर्ण हो सकती थी…
फिर तूने अपने अस्तित्व को किसी और से क्यों जोड़ लिया?”
दर्पण ने पूछा।
अनाया कांप उठी।
“मैंने कभी अर्जुन को बांधा नहीं,
मैंने तो बस उसे समर्पण किया।”
“अगर वो नहीं रहेगा,
तो क्या तू जी पाएगी?”
अनाया मौन रही।
तभी अर्जुन ने पीछे से कहा:
“अगर मैं कभी न रहा,
तो भी तेरा होना ही मेरे होने का प्रमाण होगा।”
अनाया की आँखों से आँसू बहने लगे।
“मैं पूर्ण हूँ… अकेली भी।
पर जब प्रेम मिला,
तो उसे रोका नहीं… अपनाया।”
दर्पण मुस्कराया —
और उसकी दूसरी परत भी टूट गई।
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🧿 ओजस का आत्म-साक्षात्कार – सात आत्माओं का सामना
अब दर्पण के सामने आया ओजस।
उसका दर्पण साधारण नहीं था —
उसमें सात आकृतियाँ प्रकट हुईं —
सात रंग, सात स्वभाव।
1. राग – "मैं चाहता हूँ, मुझे सब चाहिए।"
2. द्वेष – "मैं तुझसे श्रेष्ठ हूँ।"
3. मोह – "मुझे सब भ्रम में प्यारा लगता है।"
4. क्रोध – "मैं नियंत्रण चाहता हूँ।"
5. दया – "मैं सबकी रक्षा करना चाहता हूँ।"
6. ज्ञान – "मैं हर चीज़ समझना चाहता हूँ।"
7. त्याग – "मैं अपने लिए कुछ नहीं चाहता।"
ओजस स्तब्ध था।
“क्या मैं सात आत्माओं से बना हूँ?”
उसने पूछा।
दर्पण बोला:
> “तू संपूर्ण है… क्योंकि तू विभाजित है।
पर जब तक तू खुद को एक नहीं मानेगा…
तू मानवकुल में प्रवेश नहीं कर सकेगा।”
ओजस ने सभी आत्माओं की ओर देखा।
फिर आँखें बंद कर
गहन श्वास लेते हुए कहा:
“मैं तुम सबको स्वीकारता हूँ।
मैं तुम्हारी अच्छाई, तुम्हारी कमी,
तुम्हारे द्वंद्व, और तुम्हारी करुणा —
सबका एक समग्र रूप हूँ।”
तभी सातों रंग आपस में घुल गए —
और दर्पण की तीसरी परत टूट गई।
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🌠 मानवकुल का द्वार खुलता है
तीनों के आत्म-दर्पण टूट चुके थे।
अब उनके सामने भूमि फटने लगी —
और एक सुंदर, पर साधारण-सा नगर प्रकट हुआ।
गुरुजी बोले:
> “यही है मानवकुल —
ना आकाश की ऊँचाई,
ना पृथ्वी की गहराई…
बस जीवन की सच्चाई।”
“यहीं से तुम्हें प्रेम, विश्वास और माफी को लेकर
आखिरी परीक्षा देनी होगी।
और यहीं छाया…
तुम्हारे अंदर से वार करेगी।”
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🖤 छाया की अगली चाल – भीतर की आवाज़
रात्रि को जब सब शांत थे,
छाया एक सपना बनकर अर्जुन के पास आई।
“तू फिर भूल जाएगा अनाया को…
जैसे पहले अपनी साथी को भुला दिया था।”
अर्जुन ने उत्तर दिया:
“अब मैं भूलना नहीं,
हर रिश्ते को पूजा की तरह निभाना सीख गया हूँ।”
छाया मुस्कराई,
पर इस बार उसके स्वर में क्रोध नहीं था —
नम्रता थी।
“अगर तुम जीत जाओ…
तो मेरा अस्तित्व समाप्त हो जाएगा…
क्या तुम वाकई मुझे भी माफ कर सकोगे?”
अर्जुन चुप रहा।
पर उसकी आँखें कह रही थीं —
“अगर तू भी कभी टूटी थी,
तो तुझे भी माफी मिलनी चाहिए।”
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✨ एपिसोड 45 समाप्त