(कुछ दिन बाद ....)
समय बीत रहा था...
पर इन बीते दिनों में कुछ बदला था।
अब रुशाली और मयूर सर एक-दूसरे को थोड़ा-थोड़ा समझने लगे थे। बातों से ज़्यादा अब नज़रों की खामोशी कहानियाँ सुनाने लगी थी। वो अब जानने लगे थे कि कौन किस चाय का स्वाद पसंद करता है, किसे मीठा ज़्यादा अच्छा लगता है, किसे खामोश शामें पसंद हैं और किसे बारिश में भीगना।
दूरियाँ धीरे-धीरे घट रही थीं...
पर इस क़रीब आने का मतलब क्या था?
क्या ये सिर्फ़ रुशाली की तरफ़ से था?
या मयूर सर भी अब कुछ महसूस करने लगे थे?
🌅 एक नई सुबह... और एक प्यारा सा एहसास
सुबह-सुबह सूरज की किरणें कमरे में आईं, और आज अजीब बात ये थी कि रुशाली अलार्म से पहले ही उठ गई थी।
चेहरे पर एक अलग सी चमक थी।
माँ (हैरान होकर):
"इतनी सुबह-सुबह? आज तो हॉस्पिटल भी नहीं जाना है..."
रुशाली (हल्की मुस्कान के साथ):
"बस ऐसे ही माँ... दिल खुश है आज!"
माँ:
"बात क्या है? कोई खास बात?"
रुशाली:
"खास... है पर बता नहीं सकती अभी।" 😊
सच तो ये था कि दो दिन बाद मयूर सर का जन्मदिन आने वाला था।
और रुशाली ने ठान लिया था कि इस बार उनके लिए कुछ स्पेशल करेगी।
गिफ्ट की तलाश... उलझनों के साथ
रुशाली ने जल्दी से तैयार होकर पास की एक गिफ्ट शॉप का रुख किया। रास्ते भर वो यही सोचती रही:
"क्या गिफ्ट दूँ... जो सिर्फ़ एक चीज़ न हो, बल्कि एक एहसास हो?"
दुकान में उसने कई चीज़ें देखीं...
Perfume?
"पर अगर उन्हें पसंद नहीं आया तो?"
Watch?
"क्या पता उनका taste कुछ और हो?"
Shirt?
"अगर उन्हें मेरी दी हुई शर्ट पहनने में हिचक हो तो?"
हर चीज़ के साथ एक डर, एक झिझक जुड़ी थी।
रुशाली (धीरे से मुस्कराते हुए):
"पता नहीं क्यों... लेकिन मैं बस ऐसा कुछ देना चाहती हूँ जो उन्हें याद रहे... और शायद समझ भी आए..."
एक ख्याल... जो सीधा दिल से निकला
दुकान से बाहर निकलते वक़्त उसने अचानक सोचा —
"क्यों न मैं खुद उनके लिए कुछ बनाऊं? कुछ ऐसा जो उन्हें स्पेशल फील कराए..."
घर पहुंचकर उसने लैपटॉप खोला और खुद एक birthday card डिजाइन करने बैठ गई।
रंग: Red & White
डिज़ाइन: सादगी भरा, लेकिन दिल से...
एक प्यारा सा स्टेथोस्कोप स्टिकर – क्योंकि डॉक्टर मयूर की पहचान वही थी!
उसने कार्ड में लिखा:
Dear Sir...
Wishing You a Very Happy Birthday....
"May your birthday be as special as you are special to me in every way..."
"शायद वो समझ पाएँ..."
और फिर उसने लिखा कुछ शायरी के रूप में, अपने दिल की वो बातें जो ज़ुबान से कभी कह नहीं पाई थी:
"कभी कुछ कहा नहीं, कभी कुछ जताया नहीं,
पर तुझसे जुड़ती हर बात को मैंने अपनाया है।
तू समझे या ना समझे, ये तेरे हाथ में है,
पर दिल ने तुझे बेइंतहा चाहा है..."
कार्ड तैयार था... लेकिन...
अब कार्ड तैयार था।
हर शब्द, हर रंग, हर लाइन में बस एक ही नाम था – मयूर सर।
पर रुशाली अभी भेजना नहीं चाहती थी।
"दो दिन बाद बर्थडे है... उस दिन भेजूँगी... उसी दिन वो कार्ड पढ़ें तो खास लगेगा।"
उसने PDF बनाया और अपने कंप्यूटर में सेव कर लिया।
फिर धीरे से मुस्कराई।
रात को... खुद से बातें...
रुशाली खिड़की के पास बैठी थी।
आसमान में चाँद पूरा नहीं था... पर बहुत खूबसूरत लग रहा था।
रुशाली (मन ही मन):
"क्या पता सर को वो कार्ड पसंद आएगा या नहीं... क्या पता वो समझें कि मैंने जो लिखा है, वो बस एक formal wish नहीं... वो मेरी सच्ची feelings हैं..."
वो जानती थी कि मयूर सर ज्यादा बोलते नहीं थे...
उनकी personality reserved थी... मगर रुशाली को अब उनकी खामोशी में भी अपना जवाब ढूँढना अच्छा लगने लगा था।
पर रुशाली का दिल अब थोड़ा बेचैन भी था...
उसने इतना कुछ सोच रखा था...
पर अब डर लग रहा था।
"अगर उन्होंने कार्ड पढ़कर कुछ कहा ही नहीं तो?"
"अगर वो मुझे उस नजर से नहीं देखते हो तो?"
"या... अगर वो मुझे गलत समझे तो?"
पर फिर वो मुस्कराई...
और खुद से कहा:
"जो दिल में है, वो छुपाकर क्या मिलेगा?"
अगले दिन की सुबह
कॉफी बनाते हुए वो बुदबुदा रही थी...
"इश्क़ भी क्या अजीब चीज़ है ना...
कहो तो 'डर' लगता है,
ना कहो तो 'दर्द' रहता है..."
और कहानी यहीं तक... फिलहाल
अब बस दो दिन बाकी हैं मयूर सर के जन्मदिन में...
रुशाली के दिल में बेचैनी है, उत्सुकता है, और कहीं न कहीं...
छुपा हुआ डर भी है।
पर एक बात तो तय है...
"दिल ने जिसे चाहा...
उसे कुछ तो खास समझा होगा खुदा ने..."
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❤️ क्या होगा उस दिन?
क्या मयूर समझ पाएँगे रुशाली की बात?
क्या वो कार्ड एक कहानी की शुरुआत बनेगा?
या फिर... कुछ अधूरा रह जाएगा?
जानने के लिए पढ़ते रहिए – "दिल ने जिसे चाहा – भाग 17"
जल्द ही...