हमारा जीवन एक सड़क की तरह है,उस रास्ते पर चलते हुए हम अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग लोगों से मिलते रहते हैं,जुड़ते रहते हैं। इसी तरह जिंदगी की राह में एक मोड़ पर हमारी मुलाकात इस आलेख के ज़रिए लेखक-पाठक के रुपमें हो रही है और देखिए,साहित्य के प्रति हमारा प्रेम हमें जोड़ने का रास्ता बन गया। यूं तो रास्ता एक साधारण शब्द प्रतीत होता है, लेकिन फ़ारसी से हिंदी में अवतरित 'रास्ता' शब्द का प्रयोग कई अर्थमें किया जाता है।रास्ता,मार्ग, पंथ, राह, डगर, पथ, रास्ता, लीक, सड़क आदि शब्द पर्यायवाची प्रतीत होते हैं लेकिन प्रत्येक शब्द की एक अलग अर्थ अनुभूति हम महसूस कर सकते है, कच्ची सड़क ' पगडंडी ' बन जाती है और पक्की सड़क,'रास्ता' बन जाती है। वैसे, सड़क पर चलने से ज्यादा आनंद तो पगडंडी बनाने में मिलता है। आप भी यह बात मानते हैं ना? जब हम रास्ते के बारे में बात करते हैं, तो हम अनायास ही मंज़िल के बारे में भी बात करते हैं, क्योंकि रास्ता और मंज़िल एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। हालाँकि, यह भी उतना ही सच है कि सड़क पार करने के बाद ही मंजिल मिलती है। हम मंजिल तक पहुँचने का आनंद लेना तो चाहते हैं पर लंबी यात्रा के श्रम से बचने के लिए ,मंजिल तक पहुंचने का रास्ता छोटा हो ऐसा ही हम चाहते हैं। जी हाँ, शॉर्टकट की तलाश करना मानव स्वभाव है। इस बात के साथ मुझे एक युवक की याद आती है। सफलता के शिखर तक पहुँचना ही उसने अपना लक्ष्य बना लिया था, हालाँकि लक्ष्य तक पहुँचने के कई प्रयासों के बावजूद, वह रास्ते में ही अटक जाता था और निराश हो जाता था। एक बार वह किसी काम से अपने कॉलेज के प्रोफेसर से मिलने गया। बातों बातों में उसने प्रोफेसर के सामने अपना हृदय खोल दिया। "सर, कॉलेज में पढ़ाते समय आपने हमें कई बार गणित की कठिन गिनती को सरलता से हल करने का रास्ता दिखाया है,कृपया मुझे मेरे जीवन की इस कठिन समस्या को हल करने का रास्ता बताएं।" प्रोफेसर ने उसकी बात धैर्यपूर्वक सुनी और उससे कहा, "तुम कड़ी मेहनत जरूर करते हो लेकिन हमेशा शॉर्टकट खोजने की कोशिश करते हो और इसीलिए तुम छोटी-छोटी बातों का ध्यान नहीं रख पाते। अगर तुम सही दिशा में कदम दर कदम आगे बढ़ोगे तो तुम्हें सफलता अवश्य मिलेगी। तुम्हें बस धैर्य के साथ सही रास्ते पर आगे बढ़ना है।" फिर क्या? वह युवक को सही रास्ता मिल गया,शॉर्टकट छोड़कर धैर्य के साथ वो सही रास्ते पर आगे बढ़ा और सफलता के शिखर पर पहुंच गया। किसी भी रास्ते पर चलने में विश्वास बहुत मदद करता है।अगर विश्वास है, तो रास्ता न होने पर भी रास्ता बन जाता है और विश्वास न होने पर रास्ता होने पर भी रास्ता दिखाई नहीं देता।केवल रास्ते पर होने से ही कोई मंजिल पाने का हकदार नहीं बनता,मंज़िल पाने का सुख उसे ही मिलता है जो हर कठिनाई के बावजूद,रास्ते पर चलने की हिम्मत रखता है। एक बार जब हम साहस और आशा के साथ कदम उठाना शुरू करते हैं, तो चाहे उफनती नदी हो ,तूफानी समुद्र हो या घना डरावना जंगल हो उससे निकलने का रास्ता हमें मिल ही जाता है। जब रास्ते की बात होती है, मजबूत मनोबल की बात होती है, पगडंडी बनानेकी बात होती है, तो माउंटेन मैन मांझी की याद जरूर आती है।धनबाद की खदानों में मजदूरी करने वाले दशरथ मांझी की पत्नी जब उन्हें खाना देने जा रही थी तो उनका पैर पहाड़ी पर फिसल गया और वह खाई में गिर गई। अस्पताल पहाड़ी के दूसरी ओर होने के कारण उन्हें समय पर इलाज नहीं मिल सका और उनका निधन हो गया,इस घटना ने दशरथ के हृदय को झकझोर कर रख दिया। उन्होंने ठान लिया कि वह पहाड़ के बीच एक रास्ता बनाएंगे,केवल एक हथौड़ा और एक छेनी के साथ, उन्होंने अकेले ही 360 फीट लंबी और 30 फीट चौड़ी सड़क बनाना आरंभ किया, लोगों के उपहास भरे शब्दों के तीर भी उन्हें रोक नहीं सके। 22 साल के अथक परिश्रम के बाद, दशरथ द्वारा बनाई गई सड़क ने अटारी और वजीरगंज ब्लॉक के बीच की दूरी 55 किलोमीटर से घटा कर 15 किलोमीटर कर दी। दशरथ मांझी लोगों में अब "माउंटेन मैन" के नाम से जाने जाते है। रास्ता बनाना इतना आसान नहीं है, हमारी पगडंडी दूसरों के लिए रास्ता बने,इसके लिए हमें उस रास्ते पर सिर्फ पैरों के निशान ही नहीं छोड़ने है,बल्कि हमें हमारे चरणों से बहते खून से उस राहको सींचना पड़ता है। रास्ता हो वहां ,कदम पड़े उससे अच्छा यह है कि हमारे कदम जहां पड़े, वहां रास्ता बन जाए। अगर आप किसी जगह का पता देना चाहते हैं, तो आपको वह सड़क बतानी होगी जिस पर वह जगह स्थित है।इसीलिए हमने सड़क को नाम देना शुरू किया है ताकि पता ढूंढने में आसानी हो। एक बार सड़क से गुजरते समय एक प्रोफेसर ने अपने सामने युवाओं के दो समूहों को लड़ते हुए देखा। कुछ देर देखने के बाद प्रोफेसर यह समझ पाए कि मामला तो बहुत मामूली है,इसलिए उन्होंने युवक को समझाते हुए कहा, ''क्या तुम्हें इतनी छोटी सी बात पर लड़ना चाहिए?'' जिस सड़क पर आप अभी लड़ रहे हो उसका नाम उस महान व्यक्ति के नाम पर रखा गया है ,जिन्होंने हमेशा शांति और भाईचारे का संदेश दिया है। कम से कम आपने लड़ने से पहले उनका दिया ये संदेश ही याद कर लिया होता तो शायद, सार्वजनिक संपत्ति और आप सभी को इतना नुकसान नहीं होता." इतना सुनते ही कुछ युवको को जैसे जीवन जीने का सही रास्ता दिखाई दिया। उनको अपनी गलती का एहसास हुआ और फिर क्षमा मांगते हुए वो वहां से चले गए। रास्ता एक ऐसी कड़ी है,जो लोगों को लोगों से, घर को घरसे, शहर को शहर से, देश को देश से जोड़ती है। यही कारण है कि सड़क लोगों के दिल में उठने वाली अलग-अलग भावनाओं के अनुसार अलग-अलग रुपमें उनसे जुड़ती है। रास्ता कह रहा है हमें की,"ना बनूं मैं राहु और ना बनूं मैं केतु,लक्ष्य मेरा केवल एक,सबके बीच बनूं मैं सेतु।"शब्दोके संग साहित्य की राह पर कुछ समय साथ चलने के लिए आप सभी का अनेक अनेक धन्यवाद।