Shri Bappa Raval Shrankhla - Khand 2 - 1 in Hindi Biography by The Bappa Rawal books and stories PDF | श्री बप्पा रावल श्रृंखला - खण्ड दो - प्रथम अध्याय

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श्री बप्पा रावल श्रृंखला - खण्ड दो - प्रथम अध्याय

प्रथम अध्याय 
राजकुमारियों की खोज

आलोर की सीमा (कुछ महीनों पूर्व) 
श्वेत वस्त्र धारण किये लगभग दो सौ कन्याओं और स्त्रियों का दल घने वनों को पार करते हुए एक आश्रम के सामने आकर एकत्र हो गया। केसरिया वस्त्र धारण किये आश्रम के द्वार पर खड़ी एक स्त्री उन पर दृष्टि जमाये हुयी थी। उसके साथ चार और कन्यायें उसी के समान केसरिया वस्त्र धारण किये उसके साथ खड़ी थीं, किन्तु बीच में खड़ी स्त्री का सर ऊँचा था वहीं उन चारों का सर नीचा, जो ये सिद्ध करने को पर्याप्त था कि वो बीच में खड़ी स्त्री ही उनकी मुखिया है। 

शीघ्र ही एक कन्या ने आगे आकर श्वेत वस्त्रों में आये स्त्री दल का परिचय देते हुए अपनी मुखिया से कहा, “यहीं हैं वो सिंध की राजस्त्रियाँ, देवी सिंधवानी। इनमें से कई विधवायें हैं, और कुछ कुंवारी कन्यायें। ये लोग बड़ी कठिनाई से उन अरबियों से बचकर यहाँ पहुँची हैं।” 

सिंधवानी ने उन सभी के मुख को ध्यान से देखा, “इन्हें शरण देने और इन्हें आगे के जीवन का उद्देश्य प्रदान करने ही मैं काश्मीर से यहाँ आयी हूँ। इन्हें सबकुछ बता दिया है न कि हम भृगुकन्याओं के दल का भाग बनने के लिए इन्हें क्या करना होगा ?”

 “हाँ, भृगुदेवी। इन्हें सबकुछ पहले ही समझा दिया गया है। ये लोग हमारे दल में सम्मिलित होने को तैयार हैं।”

 “तो ठीक है। शीघ्र से शीघ्र इनकी जन्मकुंडलियाँ बनवाओ। उसके उपरान्त आगे की प्रक्रिया पूरी की जायेगी। 

****** 

कुछ दिवस का समय और बीता। आश्रम के बाहर चार श्वेत वस्त्र पहनी कन्यायें पौधे लगा रही थीं। देवी सिंधवानी भी आश्रम के द्वार पर खड़ी अन्य कन्याओं को उनके कार्य का निर्देश दे रही थीं। तभी चार स्त्रियाँ एक मूर्छित कन्या को उठाकर आश्रम की ओर लाती दिखीं। देवी सिंधवानी और अन्य उसे संभालने को आगे बढीं। 

शीघ्र ही उस कन्या को कुटिया के भीतर लाकर एक समतल पत्थर पर लिटाया गया। वस्त्रों से तो वो किसी राजकुल की कन्या लग रही थी, किन्तु उसका पूरा शरीर गीली मिट्टी से सना हुआ था। सिंधवानी की आज्ञा पर शीघ्र ही उसके ऊपर घड़ों में भर भरकर जल डाला गया। 

जल के प्रभाव से उस कन्या की चेतना लौटने लगी। खाँसते हुए वो उठकर बैठ गयी। 

“ये तो राजकुमारी कमलदेवी हैं।” उसका मुख स्वच्छ होते ही वहाँ खड़ी एक सिंधी स्त्री ने उस कन्या को पहचान लिया। 

किन्तु कमल को जैसे कुछ फर्क ही नहीं पड़ा। वो इधर उधर दृष्टि घुमाए सभी को आश्चर्य से देखने लगी। मुँह खोलकर उसने कुछ बोलना चाहा, किन्तु स्वर जैसे गले में ही अटक गया। सिंधवानी ने निकट आकर उसके कंधे पर हाथ रखा, “कैसी हैं आप राजकुमारी कमलदेवी ?”

उसका स्पर्श पाकर कमलदेवी ने क्षणभर आश्चर्य से सिंधवानी को देखा, फिर बिना कुछ कहे मुँह फेर लिया। वहाँ खड़ी सिंध की कई कन्यायें कमल को उसके नाम से पुकारती रहीं, किन्तु कदाचित उनका स्वर सिन्धी राजकुमारी तक पहुँचने में असमर्थ था। वो आश्चर्यभाव से इधर उधर देखने लगीं। अकस्मात ही उसके मस्तक में फिर से पीड़ा आरम्भ हो गयी। वो पुनः लेट गयी और शीघ्र ही उसने अपनी चेतना खो दी।

 ****** 

अग्नि के समक्ष खड़ी दस स्त्रियाँ नेत्रों में दृढ़ता लिए हाथ आगे लेकर एक साथ शपथ ले रही थीं, “मैं भृगुदेवी सिंधवानी का अनुसरण कर, भृगुकन्या के दायित्व के भार का वहन करती हूँ। और ये प्रतिज्ञा लेती हूँ कि मैं आजीवन ब्रह्मचर्य धर्म का पालन करते हुये ज्योतिषशास्त्र के साथ साथ अपना सम्पूर्ण जीवन भरतखंड की सेवा में लगाऊँगी।” 

अपनी चार भृगुकन्याओं के साथ निकट खड़ी सिंधवानी दूर से ही उन पर दृष्टि जमाये हुए थी। उसी दौरान तीन स्त्रियाँ उसके निकट आयीं, और उनमें से एक ने उससे कहा, “राजकुमारी कमल का उपचार बहुत कठिन होने वाला है। उनका पूर्ण रूप से स्वस्थ होना लगभग असंभव है।”

 “क्यों? ऐसा क्या हुआ उन्हें ?” सिंधवानी ने आश्चर्यपूर्वक प्रश्न किया।

 “कई दिनों से बिना अन्न जल के नदी तट की गंदगी के निकट पड़े होने के कारण उनके कानों में संक्रमण हो चुका है, जिसके कारण उनकी सुनने की शक्ति क्षीण हो चुकी है। और मानसिक आघात ऐसा हुआ है कि ना केवल उनकी स्मृतियाँ चली गयीं हैं, अपितु उससे जुड़ी जिह्वा की नस भी प्रभावित हुयी है जिससे वो बोलने में असमर्थ प्रतीत हो रही हैं। वो अपने ही राजमहल की सिन्धी स्त्रियों में से भी किसी को पहचान नहीं पा रही हैं। उनके उपचार में वर्षों लग सकते हैं, किन्तु फिर भी हमें नहीं लगता वो कभी पूर्ण रूप से स्वस्थ हो पायेंगी। कानों को ठीक करने के लिए कई वर्षों तक हर पन्द्रह दिन पर विशेष उपचार प्रक्रिया होगी, किन्तु स्वर और स्मृतियों के विषय में हम कुछ नहीं कह सकते।” 

“आप लोग अपनी ओर से प्रयास कीजिये। हम उनका साहस बनाये रखेंगे।” सिंधवानी की सहमति पाकर वो तीनों वैद्य स्त्रियाँ वहाँ से प्रस्थान कर गयीं। उसके उपरान्त सिंधवानी ने अपने निकट खड़ी कन्याओं को आदेश दिया, “कमलदेवी को जानने वाले यहाँ बहुत से लोग हैं। तुम लोग जाओ और उनकी जन्म तिथि और समय को ज्ञात कर उनकी भी कुंडली बनवाने का प्रबंध करो।”  

यह सुन चारों कन्यायें अचंभित रह गयीं। उनमें से एक ने आपत्ति जताते हुए कहा, “ये..ये आप क्या कह रही हैं, भृगुदेवी ? कमलदेवी मेवाड़ के महाराणा कालभोज की धरोहर हैं। आप उन्हें...।” 

“विवाह नहीं हुआ है अभी उन दोनों का...।” सिंधवानी ने कड़े स्वर में कहा, “जितना कहा गया है उतना करो। और स्मरण रहे, राजकुमारी जीवित हैं इसकी सूचना इस आश्रम से बाहर नहीं जानी चाहिये। सुना है वो अरबी राक्षस उन्हीं की खोज में हैं।” 

सिंधवानी के नेत्रों की धधकती अग्नि के आगे उन चारों कन्याओं ने गर्दन झुका लीं। 

****** 

कुछ दिनों के उपरान्त सिंध से आई समस्त स्त्रियों की कुंडलियाँ कुटिया में बैठी सिंधवानी के समक्ष प्रस्तुत की गयी। उन्हें पटल पर रख शीघ्र ही अन्य कन्याओं ने उन्हें एकांत में छोड़ दिया। 

प्रातः काल से संध्या तक सिंधवानी बिना अन्न और जल ग्रहण किये उन कुंडलियों की ही समीक्षा करती रही और अंत में उसने कमल की कुंडली को स्पर्श किया, जिसे उठाते हुए उसके हाथ काँपने लगे। फिर भी साहस जुटाकर उसने कमल की कुंडली को पलटकर उसे पढ़ना आरम्भ किया। और उसे पढ़ते पढ़ते उसकी आँखें आश्चर्य से फ़ैल गयीं। 

विचलित हुयी सिंधवानी के नेत्रों में नमी सी आ गयी, “क्षमा कीजियेगा, कालभोज। इस जन्म में मैं आपका और कमलदेवी का मिलन नहीं होने दे सकती। मैं विवश हूँ।” 

****** 

वर्तमान 
कासिम के आदेश पर मोखा और अस्मत, प्रीमल और सूर्य को ढूँढने तीन सौ अरबी घुड़सवारों के साथ अलोर के ग्राम मार्ग पर चल पड़े थे। मोखा चलते चलते उन्हें पचास कोस दूर ले आया। अरबी लश्कर को आते देख ग्रामीणों ने अपने अपने घरों के किवाड़ बंद कर लिए। चलते हुए अस्मत ने मोखा से प्रश्न किया, “रात होने को आई है। अभी तक तुमने बताया नहीं वो दोनों शहजादियाँ कहाँ छिपी हैं?” 

“बस हम पहुँचने ही वाले हैं।” मोखा अपना अश्व आगे बढ़ाता रहा। 

कुछ पग आगे बढ़ने के उपरांत, काला कम्बल ओढ़े दो व्यक्ति रात्रि के अंधकार में मशाल लिए उन दोनों के सामने आये। उन्हें देख मोखा के मुख पर मुस्कान खिली तो अस्मत की आँखों में आश्चर्य का भाव था। शीघ्र ही दोनों ने स्वयं पर ढका आवरण हटाया और उनका मुख देख अस्मत चहक उठा, “तो यहाँ हैं ये शहजादियाँ?” 

सूर्य और प्रीमल मशाल और भाले थामें अस्मत को घूर रही थी। उनके निर्भीक नेत्रों को देख एक क्षण को अस्मत भी चकित रह गया और अपने घुड़सवारों को आदेश दिया, “बड़ा जोर है इन शहजादियों में ? कैद कर लो इन्हें।” 

किन्तु इससे पूर्व अरबी अश्व आगे बढ़ते, हर ओर से सैकड़ों तीर उन पर बरस पड़े। अस्मत और उसके अरबी घुड़सवार उस अप्रत्याशित प्रहारों से स्तब्ध रह गये। वहीं मोखा अपने अश्व को बढाता हुआ प्रीमल और सूर्य के पास गया। 

मोखा को प्रीमल के साथ खड़ा मुस्कुराता देख अस्मत चकित रह गया, “मोखा, ये सब क्या हो रहा है?”

 “जाट योद्धा तो पहले ही रण में सिंधियों का पक्ष चुन चुके थे। तो मैं अपने संगियों को छोड़कर तुम्हारा साथ क्यों देता ? जाटों के तीर इतने पैने हैं कि तुम्हारा एक भी साथी जीवित बचकर नहीं जा पायेगा।” 

अलग अलग घरों की छतों पर बैठे जाट वीर अरबियों पर तीर पर तीर बरसाये जा रहे थे। अपने घुड़सवारों को एक एक करके गिरते देख दांत पीसते हुए अस्मत ने म्यान से तलवार खींच निकाली, “गद्दार मोखा।” 

किन्तु इससे पूर्व वो मोखा पर प्रहार करने आगे बढ़ता, प्रीमल का फेंका एक भाला सीधा उसके अश्व के कंठ में घुस गया। पीड़ा से हिनहिनाता वो दौड़ता अश्व लड़खड़ाकर भूमि पर गिर पड़ा और साथ में अस्मत को भी भूमि पर घसीट लाया। अपने म्यानों से दो तलवारें निकाल प्रीमल भूमि पर गिरे अस्मत की ओर बढ़ी और उसके कंठ पर नोक टिकाई। 

“ये धोखा बहुत महँगा पड़ेगा, शहजादी।” अस्मत की चेतावनी सुन प्रीमल ने उसकी छाती पर पाँव रख उसे भूमि से सटा दिया और घायल सिंहनी की भांति दहाड़ पड़ी, “स्वयं ने अंत समय पर हमारे अन्न भंडार जलाकर उसे एक रणनीति का नाम दिया, और हमारी रणनीति छल हो गयी? 

दांत पीसते हुए प्रीमल ने उस पर से पाँव हटाया और उसकी आँखों में घूरकर देखा, “बहुत शौक है न तुम्हारे सुलतान और खलीफा को हम राजकुमारियों को अपनी शय्या पर लिटाने का ? देखते हैं अपनी वासना की भूख मिटाने के लिए जिन राक्षसों को उन्होंने हमारा हरण करने भेजा है, उनकी बाजुओं में हमारे सामने खड़े होनी की शक्ति है भी या नहीं।”  

प्रीमल ने एक तलवार अस्मत के सामने गिराई और अपने दायें हाथ में थमी तलवार नचाते हुए चार पग पीछे हटी, “काश तुम्हारे स्थान पर वो कासिम यहाँ आया होता। पर कोई बात नहीं, तुम्हारा मुंड काटकर मेरे हृदय की अग्नि थोड़ी तो शांत हो ही जाएगी।” 

तलवार उठाकर अस्मत ने पीछे की ओर देखा। बचने और भागने का प्रयास करते हुए अरबी घुड़सवार गिरते चले जा रहे थे। उनके चहुँ ओर घेरा बनाये लगभग पाँच सौ जाट धनुर्धर जिनके बाण उन अरबियो के मस्तक और छाती भेदे चले जा रहे थे। कोई अश्व उनका घेरा तोड़ने का प्रयास भी करता, तो आगे खड़े दो सौ सिंधी खड्गधारी उसे यमसदन पहुँचा रहे थे। उद्देश्य केवल एक ही था, कोई भी अरबी बचकर भागने न पाये। 

वहीं अपने कंधे उचकाते प्रीमल ने अस्मत को तलवार ऊँची कर चुनौती दी, “मेरे रक्त की एक बूँद बहाकर दिखा दे अरबी शैतान। तू अपने शिविर में भी लौट जायेगा, और मैं स्वेच्छा से तेरे साथ बंदी बनके भी चलूँगी। वचन है ये मेरा, कोई तुझे नहीं रोकेगा।” 

प्रीमल का ये हठी वचन सुन सूर्य और मोखा दोनों ही स्तब्ध रह गये। किन्तु प्रीमल की आँखों में अविश्वास का एक चिन्ह भी नहीं था। कोई और चारा न देख अस्मत ने भी तलवार थामी और प्रीमल की ओर दौड़ा, और पहला प्रहार सीधा उसकी छाती की ओर किया। उस प्रहार से झुककर बचते हुए प्रीमलदेवी की तलवार अस्मत के मस्तक पर चली और उसका शिरस्त्राण उतारकर भूमि पर गिरा दिया। उस तलवार के वेग से भय खाकर अस्मत कुछ पग पीछे हट गया। पलटकर प्रीमल के नेत्रों का अंगार देख वो स्तब्ध सा रह गया, “एक शहजादी की तलवार में इतनी ताकत ?” 

फिर भी साहस जुटाकर वो आगे बढ़ा और तलवार नचाते हुए प्रीमल के पाँव पर घाव करने का प्रयास किया। दायीं ओर छलांग मारकर प्रीमल ने अस्मत की नाक पर लात मारी। नसली फूटते ही अस्मत अपनी नाक थामे दो पग पीछे हटा, और इतने में ही प्रीमल ने अपनी तलवार उसके कंठ में घुसा दी। श्वास नली से रक्त के फव्वारे छोड़ता वो अरबी हाकिम वहीं निढाल हो गया। उसके रक्त में नहाई प्रीमल ने अपना शिरस्त्राण उतार उद्घोष किया, “हर हर महादेव।”   

एक साथ सारे सिंधी वीरों के मुख से वही उद्घोष निकला। उसके उपरांत मोखा ने प्रीमल के निकट आकर सुझाव दिया, “अंतिम अरबी घुड़सवार भी मारा गया, राजकुमारी। किन्तु फिर भी देर सवेर यहाँ हुए नरसंहार की सूचना कासिम तक पहुँच ही जायेगी। उचित होगा आप शीघ्र से शीघ्र यहाँ से प्रस्थान कर जायें।” 

 झल्लाई हुयी प्रीमल ने मोखा से प्रश्न किया, “तुमने तो कहा था कि तुम कासिम को ले आओगे। तो फिर ये अरबी हाकिम क्यों आया?”

 “योजना तो कासिम को लाने की ही थी, राजकुमारी। क्योंकि आप दोनों का हरण करना उसकी पहली प्राथमिकता थी। पर उसे एक ऐसी सूचना मिल गयी जिससे उसने अपना आना स्थगित कर दिया।” 

“ऐसी क्या विशेष सूचना मिल गयी उसे?”

 “गुहिलवंशी कालभोजादित्य रावल मानमोरी को पराजित करके मेवाड़ के सिंहासन पर आसीन हुए हैं। और सूचना है कि मेवाड़ के महाराणा शीघ्र ही हिन्द की एक विशाल संगठित सेना लेकर सिंध की मुक्ति के अभियान पर निकलने वाले हैं। बस इसी बात को लेकर वो कासिम विचलित हो उठा है।” 

वो सूचना सुन प्रीमल और सूर्य दोनों के मुख पर मुस्कान खिल गयी। सूर्य ने अपनी बहन का कंधा पकड़ उसका साहस बढ़ाया, “शीघ्र ही हमारा गढ़ इन असुरों से मुक्त होगा। कालभोज नाम की वो आँधी कासिम को चैन की नींद नहीं लेने देगी।” 

प्रीमल ने भी सहमति जताते हुए कहा, “वास्तव में लगता है कि अब भविष्य के द्वार पर हमारी बलि चढ़ भी जाए तो दुःख न होगा। मैं न सही, महाराणा कालभोजादित्य रावल उस कासिम की गर्दन अवश्य उसके कंधे से उतार लेंगे।”  

“किन्तु उनको आने में महीनों लग सकते हैं।” मोखा ने हस्तक्षेप करते हुये कहा, “इसलिए आप लोगों को छिपने का स्थान बदलते रहना चाहिये। हम आपको उस कासिम के हाथ नहीं पड़ने दे सकते।” 

अपने माथे का पसीना पोछते हुए प्रीमल ने अस्मत को अंतिम श्वास भरते हुए देखा फिर मोखा से प्रश्न किया, “वैसे, राजा मानमोरी तो अपना राज्य हार गए, किन्तु उनके पुत्र युवराज सुबर्मन। उनके विषय में कोई सूचना है क्या?” 

मोखा क्षणभर को मौन रहा फिर साहस जुटाकर कहा, “मेवाड़ में क्या हुआ इसकी सूचना हमें हमारे गुप्तचरों ने कासिम से भी पहले दे दी थी। चित्तौड़ में सेनाओं का नहीं अपितु युवराज सुबर्मन और कालभोज का द्वन्द युद्ध हुआ था, जिसमें युवराज सुबर्मन के परास्त होने पर मानमोरी को अपना राज्य कालभोज को समर्पित करना पड़ा। और...” 

वो सूचना सुन प्रीमल का हृदय काँपने लगा, “युवराज सुबर्मन परास्त हुए, और...?” 

“उस द्वन्द का एक ही अर्थ था राजकुमारी। विजय या मरण।” 

प्रीमल के ह्रदय को मानों धक्का सा लग गया। मानमोरी की पराजय के उपरांत उसके मन में सुबर्मन से मिलन की जो लेश मात्र आशा जागी थी वो भी नष्ट हो गयी। उस सूचना ने उसे भीतर से तोड़कर रख दिया। अपने नेत्र मूँदकर उसने मुट्ठियाँ भींची और अश्रुओं को नियंत्रित करने का भरसक प्रयास किया, किन्तु पलकें फिर भी भीग ही गयीं। सूर्य ने भी रुंधे हुए स्वर में अपनी बहन को समझाने का प्रयास किया, “शोक करने का समय नहीं है हमारे पास, प्रीमल। हमें इन अरबियों के शवों को भूमि में गाड़कर शीघ्र से शीघ्र यहाँ से निकलना होगा। अन्यथा यहाँ के ग्रामवासियों के प्राण संकट में पड़ जायेंगे।” 

सूर्य का कथन सुन प्रीमल की मानों चेतना लौट सी आई। अपने अश्रु पोछ उसने स्वयं का हृदय दृढ़ करने का प्रयास किया, फिर मोखा की ओर मुड़ी, “अब आपका भी द्रोही होने का रहस्य शीघ्र ही खुल जायेगा। उचित होगा आप हमारे साथ ही रहें।” 

****** 

सूर्योदय हो चुका था कासिम शांत होकर पत्थर पर बैठा बंदी बनाये जाने वाले सिन्धी ग्रामीणों का दूर से ही निरीक्षण कर रहा था। उसकी दृष्टि तो उन बेड़ियों में बाँधे जाने वाले सिंधी दासों की ओर थी, पर मन में केवल एक ही विचार तैर रह था, “कौन है वो कालभोज? क्या है वो जो उसका नाम सुनकर भी बड़े बड़े सूरमाओं के दिल बैठ जाते हैं।” 

“रुकसाना बेगम आई हैं, हुजुर।” कासिम विचारमग्न ही था कि उस स्वर ने उसकी चेतना लौटा दी। मुड़कर देखा तो एक अरबी सिपाही को अपने सामने खड़ा पाया। वो नाम सुनकर कासिम की आँखें आश्चर्य से बड़ी हो गयीं, “अम्मीजान ! वो यहाँ जंग के माहौल में क्या करने आई हैं?” कासिम हड़बड़ी में उठकर खड़ा हो गया, “कहाँ है वो?” 

इससे पूर्व वो सिपाही इस प्रश्न का उत्तर देता, दो अश्व एक बंद बग्गी को खींचते हुए वहाँ आ पहुँचे। शीघ्र ही उस बग्गी का द्वार खुला और काले रंग का बुर्का पहने एक औरत ने बाहर कदम रखा। उस अधेड़ आयु की औरत के चेहरे पर लगा पर्दा हटा देख कासिम की आँखें आश्चर्य से बड़ी हो गयीं, “अम्मीजान !” चलते हुए वो अपनी माँ के निकट आया, “आपको यहाँ आने की क्या जरूरत थी ?” 

कासिम की अम्मी रुकसाना ने चहुँ ओर दृष्टि घुमाई। सिन्धी ग्रामीणों के आधे सर मुंडे जा रहे थे। फिर उन्हें बेड़ियाँ पहनाकर उनकी छाती पर दासत्व के चिन्ह रूप में चंद्रमा का निशान गोदा जा रहा था। फिर उन्हें पूरा बेड़ियों से लादकर दो अश्वों द्वारा खींचे गए पहिये लगे पिंजरों में डाला जा रहा था। उन्हें घूरते हुए रुकसाना ने बग्गी की ओर संकेत करते हुए कहा, “अंदर बैठ, तुझसे कुछ बात करनी है।” 

कासिम ने सहमति में सर हिलाया और अपने सिपाही को आदेश दिया, “शाम तक सारे गुलाम इकठ्ठा हो जाने चाहिए।” 

“जी, हुजुर।” सर झुकाकर वो सिपाही आदेश के पालन के लिए चला गया। 

वहीं कासिम अपनी अम्मी के साथ बग्गी में बैठा और उसे खेमे में ले जाने का आदेश दिया। यात्रा आरम्भ होते ही रुकसाना कासिम पर बरस पड़ी, “ये किस तरह का जुल्म है, कासिम?” 

“खलीफा और सुलतान का हुक्म है, अम्मी। हमें हर महीने कम से कम सिंध के साठ हजार गुलाम बगदाद पहुँचाने हैं।” 

“औरतें और बच्चे भी ?” रुकसाना आश्चर्य में थी। 

“बेशक ! सत्रह साल से ऊपर के गुलामों को मुश्किल काम दिए जायेंगे, और बाकी के बच्चों को नवाबशाहों की खिदमत में लगाया जायेगा। यही फरमान भेजा था खलीफा ने कि लूटे खजाने के चौथाई हिस्से के साथ इन गुलामों को भी बगदाद भेजा जाये।” 

झल्लाते हुए रुकसाना ने आँखें बंद की, फिर पुनः अपने बेटे को समझाने का प्रयास किया, “तू समझ नहीं रहा है, कासिम। वो अपने घमंड और लालच के लिए तुझे कुर्बानी के खूँटे पर टांग रहे हैं।”

 “ये आप क्या कह रही हैं, अम्मी? मैं उम्मयद का वफादार जंगजू हूँ।” 

“वो तो तेरे अब्बू भी थे।” 

“हमारे अब्बू अल कासिम बिन मुहम्मद बिन अल हकम एक ऐसे जंगजू थे जिन्होंने फारस की फतह के लिए अपनी जान कुर्बानी की। उनका नाम आज भी इराक में इज्जत से लिया जाता है।” 

“पर उनका सामना कालभोज जैसे जंगजू से तो नहीं हुआ था न?” 

अपनी अम्मी की वो बात सुन कासिम सकते में आ गया। कुछ क्षण मौन रहने के उपरांत उसने प्रश्न किया, “क्या बताया आपको उस्ताद अल्लाऊद्दीन ने ?” 

“उसने क्या बताया इससे फर्क नहीं पड़ता। मसला ये है कि तू सिंध के बाशिंदों के ऊपर जो जुल्म कर रहा है, वो तेरे लिये मौत का पैगाम बन सकता है।” 

अपनी अम्मी को देखते हुये कासिम मुस्कुरा दिया, “आपको इन जंगी मसलों में नहीं पड़ना चाहिये, अम्मी। उन काफिरों के साथ जो हो रहा है होने दीजिये।” 

“थोड़ी तो अक्ल का इस्तेमाल कर, बेवकूफ। तू जानता है वो मेवाड़ी सिंध की आजादी के लिए जंग छेड़ने वाला है। ऐसे में अगर तू केवल अपनी फ़ौज के भरोसे रहा तो तुझे तेरा खुदा भी नहीं बचा सकता।” 

रुकसाना का ये तर्क सुन कासिम मौन हो गया। अपनी जांघ पर उँगलिया फिराते हुए वो अपनी अम्मी से नजरें चुराने लगा। उसका हाथ थाम रुकसाना ने उसे समझाने का प्रयास किया, “बात को समझने की कोशिश कर, कासिम। मैंने काम्हा, बाजवा, जय, दाहिर, और जाने कितने सिंधी सूरमाओं के किस्से सुने हैं। और ये किस्से कोई मामूली चीज नहीं होते, बल्कि ताकत का जरिया बन जाते हैं। जो तू सिंध की आवाम के साथ कर रहा है, उन्हें अगर एक उम्मीद, एक सहारा भी मिल गया, तो उनके दिलों में पल रही नफरत की आग तुझे जलाकर ख़ाक कर सकती है। और कालभोज वही उम्मीद बनकर आ रहा है। अगर सिंध के सूरमा हिम्मत जुटाकर उस मेवाड़ी के साथ मिल गए तो तेरी पांच सालों की मेहनत ख़ाक होकर रह जायेगी।” 

श्वास भरते हुए कासिम ने अपनी जंघा पर थाप मारी, “मैं जानता हूँ अम्मी, कालभोज एक बहुत बड़ा जाबांज है। हिन्दसेना की तादाद भी लाखों में है। पर सिंध के भी कई शहरों के सूबेदार हमारे साथ हैं, कुल मिलाकर अस्सी हजार से ज्यादा हिन्दू सिपाही भी हमारे साथ होंगे। और यहाँ के ब्राह्मणों के पेशनगोई के हिसाब से सिंध पर इस्लाम का परचम लहरा चुका है। उन सिंधियों में हमारे खिलाफ खड़े होने की हिम्मत नहीं है।” 

“उन्हीं में से एक ने ये भी कहा था न कि तेरी मौत का जरिया तेरा कोई अपना ही बनेगा, है न ? 

अम्मी के रुंधे हुए गले से निकला स्वर सुन कासिम उनकी ओर मुड़कर मुस्कुराया, “तो ये है आपके यहाँ आने की असली वजह, हम्म?” 

अपने अश्रु पोछ रुकसाना ने कासिम का कंधा पकड़ा, “तू मेरी इकलौती औलाद है, कासिम।”

 “पर मैं खिलाफत का एक वफादार जंगजू भी हूँ, अम्मी। किसी पेशनगोई के डर से अपनों से गद्दारी नहीं कर सकता, ना ही खिलाफत के हुक्म की नाफरमानी कर सकता हूँ। हमें गुलाम भेजने ही होंगे।” श्वास भरते हुए उसने आगे कहा, “पर आपकी बात सही है। जितना उस कालभोज के बारे में सुना है, लगता तो यही है कि वो अपने दुश्मनों के लिये जलजले का पैगाम हैं। काम्हा, बाजवा, जशाहय, दाहिर से लेकर उस शाही हाथी में इतना जोर था कि हमारे कई साथियों के जहन में उनका खौफ हमेशा हमेशा के लिए बस गया है। समझ नहीं आता इतनी हिम्मत उनमें आई कहाँ से?” 

“इसका राज तो उनकी परवरिश में ही छुपा होगा। जानना होगा कि बचपन से उनकी तालीम कैसे होती है?”

 “आपका कहने का मतलब क्या है ?”

 “तूने महीनों तक सिंधियों से जंग लड़ी। क्या लगता है उनमें सबसे बड़े जांबाज कौन थे ?”  

“बेशक वो दो जिन्होंने देबल में हमारे हर एक हाकिम तक के दिलों को थर्रा दिया था। नेरून और सीसम के किलेदार काम्हादेव और बाजवा।” 

“तो पता कर उन्होंने तालीम कहाँ से ली? बहरूपिया बनकर जा और उनके बीच घुलने मिलने की कोशिश कर। क्या पता इस दौरान तू उनमें से कुछ के दिलों को भी जीत ले।”

 “मैं यहाँ जंग लड़ने आया हूँ, अम्मी। मैंने पहले ही सिंधियों पर बहुत जुल्म किये हैं, इसलिए दिल जीतने की कोशिश बेकार है। उनकी वफ़ादारी सिर्फ डर से जीती जा सकती है।” अपनी दाढ़ी सहलाते हुए कासिम ने कुछ क्षण विचार कर कहा, “पर आपकी तरकीब बड़ी काम की है। उनके बीच घुलमिल कर ही मैं उनकी ताकत के राज के साथ उनकी कमजोरी भी जान पाऊंगा। मैं सीसम में बहरूपिया बनकर जरुर जाऊँगा।” 

शीघ्र ही वो बग्गी एक शिविर के पास रुकी। कासिम और उसकी अम्मी नीचे उतरे तो अल्लाउद्दीन बुठैल को अपने सामने खड़ा पाया। कासिम उसे वहाँ देख चकित रह गया, “आप यहाँ उस्ताद?” 

अल्लाउद्दीन ने मुस्कुराते हुए रुकसाना की ओर देखते हुए कहा, “फुफी जान की जिद्द थी तुमसे मिलने की। क्या करता? आना पड़ा।”  

इस पर रुकसाना ने ताव दिखाते हुए कहा, “मैं तुम्हें यूं ही यहाँ नहीं लाई अल्लाउद्दीन। अब तुम्हें हर कदम पर कासिम का साथ देना होगा। ये सीसम में बहरूपिया बनकर एक मुहिम पर जा रहा है। हमारी ख्वाइश है कि तुम भी इसके साथ जाओ।”

अल्लाउद्दीन ने सहमति में सर हिलाया, “जैसा आप चाहें, फुफीजान।” 

श्वास भरते हुए कासिम ने अपनी अम्मी की ओर उद्विध्न होकर देखा। अम्मी ने उसकी पीठ थपथपाई, “जब तक तू कालभोज से जंग जीत नहीं जाता, मैं तेरी ताकत बनकर यहीं तेरे साथ सिंध में रहूँगी।”

 इससे पूर्व कासिम कुछ कहता एक अरबी योद्धा वहाँ आया और कासिम के सामने झुककर सलाम किया। उसे विचलित देख कासिम को प्रश्न करना ही पड़ा, “कोई ख़ास खबर?” 

“खबर हाकिम अब्दुल अस्मत के बारे में है हुजुर।”

 “अस्मत ! वो तो उन शहजादियों को लेने गया था न ? कहाँ है वो ?” 

काँपते स्वर में सिपाही ने सूचना दी, “सिंध में हमारे फैले जासूसों ने मोखा की गद्दारी की खबर दी है, हुजूर। हमारे तीन सौ घुड़सवारों में से एक भी जिंदा नहीं बचा। उस शहजादी प्रीमल ने अपने हाथों से हाकिम अब्दुल अस्मत को हलाल किया। और हमारी बाकी के सारे सिपाहियों को मारकर जमीन में दफना दिया गया।” 

सूचना सुन कासिम अवाक रह गया। मुट्ठियाँ भींचते हुए अपना माथा पकड़ वो बुदबुदाया, “इसीलिए वो मोखा मुझे बुलाने पर जोर दे रहा था।” 

“देख लिया।” अम्मी ने कासिम का कंधा पकड़ उसे समझाने का प्रयास किया, “शुरुआत हो चुकी है ? अभी तो ऐसी और कई बगावत की चिंगारियाँ उठेंगी।” 

“खलीफा के हुक्म की नाफरमानी नहीं हो सकती, अम्मी।” कासिम ने दृढ होकर कहा, “लगता है पिछले तीन महीनों में हमने कुछ ज्यादा ही ढिलाई बरत दी है। अब हम उन बागी सिंधियो के दिलों को यूं खौफजदा करेंगे कि उनकी आने वाली नस्लों में भी हमसे बगावत करने का ख्याल नहीं पनपेगा।” दांत पीसते हुए कासिम ने उस सिपाही से प्रश्न किया, “क्या हमारे जासूस ने बताया वो कहाँ मिलेंगे ?” 

“जिस मार्तण्ड गाँव में वो शहजादियाँ थीं, वहीं रहने वाली एक औरत को सोने का थोड़ा सा लालच दिया और उसने सारी खबर निकालकर दी। वो शहजादियाँ वहाँ से तीस मील दूर वज्रकुंड नाम के एक गाँव में छिपने निकल चुकी हैं। मोखा और बाकी के जाट उनके साथ ही हैं।”

“तो फिर उन्हें पनाह देने वाले एक एक बाशिंदे के खून से सिंध की ये जमीं लाल होने वाली है।” कासिम अपनी सेना एकत्र करने आगे बढ़ा।

कासिम का कंधा पकड़ रुकसाना ने उसे रोका, “तू तो सीसम की ओर निकलने वाला था न ?”

“पहले खलीफा के हुक्म की तामील होगी, अम्मी। उन शहजादियों के चलते बहुत हिम्मत आ गयी है इन सिंधियों में, उन्हें सबक सिखाना जरुरी है। और वो मोखा तो कल का सूरज नहीं देखेगा।”

रुकसाना ने अल्लाउद्दीन से विनती की, “इसे रोको अल्लाउद्दीन, ये अपनी मौत को दावत दे रहा है। मैंने तुम्हें समझाया था न?”

“और मैंने भी आपको समझाया था फुफी, कि हमारे लिए केवल अपने लोग मायने रखते हैं। खलीफा का हुक्म है उन शहजादियों को कैद करना है, और इसकी नाफरमानी न मैं कर सकता हूँ, न कासिम। आप फ़िक्र मत करिए, इराक एक बहुत बड़ा लश्कर हमारी मदद को आने ही वाला है। हम हिन्द की उस फ़ौज का सामना आसानी से कर सकते हैं।” कहते हुए अल्लाउद्दीन भी कासिम के साथ आ खड़ा हुआ।

रुकसाना ने झल्लाते हुए कासिम की ओर देखा, “यहाँ कौन साथ है और कौन गद्दार इसके मायने चुटकियों में बदल रहे हैं। कोई अपना नहीं है यहाँ, समझे। किसी की भी वफ़ादारी खरीदी जा सकती है। मैं तुम्हारे साथ आ रही हूँ, मैं तुम्हारे पास फटकने वाले हर एक शख्स की अच्छे से जाँच करूँगी।”

रुकसाना को चिंतित देख कासिम ने कठोर स्वर में कहा, “मैं जानता हूँ अम्मी आप उस ब्राह्मण की पेशनगोई से डरी हुयी हैं। पर आपकी ये बातें हमारी अपनी फ़ौज में फूट डाल सकती हैं। बेहतर यही होगा आप खेमे में ही रुकें और मुझे कमजोर करने की कोशिश न करें।”

कासिम पलटकर अल्लाउद्दीन के साथ निकल गया।

******

इधर प्रीमल, सूर्य और मोखा अलोर के वज्रकुंड नाम के गाँव के वन की एक गुफा में विश्राम कर रहे थे। उस वन से थोड़ी ही दूर के गाँव में ग्रामीण वेश धरे लगभग पाँच सौ जाट और दो सौ सिन्धी योद्धा विचरण कर रहे थे। वो सभी गाँव से लेकर वन में फैले हुए थे और लगातार एक दूसरे से संपर्क बनाये हुए थे।

“हम कब तक यूं ही छिपते फिरेंगे?” झल्लाई हुयी सूर्य ने कंकड़ उठाकर गुफा की दीवार पर मारी।

खुली हुयी गुफा के किनारे पर बैठी डूबते हुए सूर्यदेव की ओर देख प्रीमल मुस्कुराई, “गुहिलदेव आ रहे हैं। कुछ महीनों का संघर्ष और है, सूर्य। सिंध और यहाँ की प्रजा उन राक्षसों से शीघ्र मुक्त होने वाली है।” 

“उन्होंने युवराज सुबर्मन को मार दिया, फिर भी तुम्हें कालभोज पर इतना विश्वास है कि उसे देव की उपाधि दे रही हो ? इतना विश्वास कैसे है उस पर?”

“मेवाड़ के युवराज ने अपने अधर्मी पिता का साथ चुनकर अपना प्रारब्ध पूर्व निश्चित कर लिया था। उनके जाने का शोक तो है, किन्तु ग्लानि तनिक भी नहीं। वैसे भी अब कमल दीदी का साथ पाकर महारावल की शक्ति कई गुना बढ़ चुकी होगी।”

प्रीमल के वो शब्द सुन मोखा ने हस्तक्षेप करते हुए कहा, “आपको कालभोज से इतनी आशा है इस बात की हमें प्रसन्नता है। किन्तु आपकी कमल दीदी...।”

मोखा को अकस्मात ही मौन हुआ देख दोनों बहनों की आँखें आश्चर्य से बड़ी हो गयीं। काँपते हुए स्वर में प्रीमल ने प्रश्न किया, “कमल दीदी का क्या, मोखा? क्या कहना चाहते हो तुम?”

साहस जुटाते हुये मोखा ने कहना आरम्भ किया, “युद्ध के अंतिम दिन राजा दाहिर की पराजय के उपरान्त आप दोनों जब वेदांत और कमल से अलग हो गये थे। तब वो दोनों मेवाड़ के पथ पर निकल चुके थे। कासिम ने सेनापति स्याकर के पुत्र को बंदी बनाकर उन्हें विवश किया, और उन्होंने कासिम के साथ हाथ मिलाकर उसे वो मार्ग बता दिया जिस पर कुमार वेदान्त और कमल आगे बढ़ रहे थे। परिणाम ये हुआ कि कासिम ने अपनी सेना के साथ बीच मार्ग पर दोनों को घेर लिया।” कहते हुए मोखा के स्वर काँप गये।

प्रीमल और सूर्य ने वो कड़वा सत्य सुनने के लिए एक दूसरे का हाथ थामा। वहीं मोखा ने साहस जुटाकर अपना कथन पूरा किया, “राजकुमारी कमलदेवी ने स्वयं को माँ सिन्धु में समर्पित कर दिया ! राजकुमार वेदांत वहाँ से निकलकर कालभोजादित्य रावल के पास सहायता प्राप्त करने को गये। और उसके उपरान्त की कथा तो अब समग्र भरतखंड में फ़ैल चुकी है। 

दोनों बहनों के नेत्र अश्रुओं से भीग गये। एक दूसरे का हाथ थामें राजकुमारियां कुछ क्षण नेत्र बंद कर मौन रहीं।

******

रात्रि का अंधकार छाते ही गुफा में बैठे बैठे सूर्य पर मानों सनक सवार हो गयी। वो तलवार उठाये गुफा से बाहर की ओर दौड़ी। प्रीमल उसके पीछे दौड़ पड़ी और गुफा से निकलते ही उसे पकड़ लिया, “बाहर संकट है, सूर्य। ये क्या कर रही हो?”

“छोड़ दो मुझे, प्रीमल। मैं उस कासिम का मस्तक काटकर सिंधु नदी के उसी स्थान पर फेंकूँगी जहाँ दीदी ने स्वयं को समर्पित किया था।”

“धैर्य रखो, सूर्य। अब ये हमारे वश में नहीं है।” प्रीमल ने उसके माथे से अपना माथा सटाकर उसका क्रोध शांत करने का प्रयास किया।

इससे पूर्व वो दोनों कुछ और कहतीं चीखते हुए स्त्री दौड़कर वनों से गुजरते हुए उस ओर आते हुए दिखी। उसकी गोद में उसका लगभग छह मास का शिशु था। भय के मारे वो स्त्री सूर्य और प्रीमल की ओर ही दौड़ी चली आ रही थी। किन्तु इससे पूर्व दोनों राजकुमारियां कुछ सोच पातीं, सूं करता हुआ एक तीर उस स्त्री के पीछे से आकर उसके कंठ को छेदता हुआ उसके बालक की छाती में जा घुसा।

लुढ़कते हुए वो औरत सीधा प्रीमल और सूर्य के क़दमों में आ गिरी। तड़पते हुए उस स्त्री ने नेत्रों में अश्रु लिये अपने बालक की ओर देखा जो भूमि पर गिरा छाती में घाव लिए क्रंदन कर रहा था। अपनी आँखों के सामने उस छह माह के दूधमुंहें शिशु को तड़पकर दम तोड़ता हुआ देख सूर्य की मुट्ठियाँ क्रोध से भिंच गयीं। उसने अपनी आँखों में लालिमा लिए दृष्टि उठाई तो सामने लगभग पचास अरबी घुड़सवारों को आते देखा। अपने ठीक सामने वाले धनुर्धर के हाथ में धनुष देख सूर्य का मस्तक से लेकर नाख़ून तक क्रोध से भभक उठा। उसने स्वयं को पकड़े प्रीमल को भूमि पर धकेला और तलवार उठाये उसी अरबी धनुर्धर की ओर दौड़ी।

सामने से दौड़ती सूर्य की आँखों को देख वो अरबी घुड़सवार कुछ क्षण के लिए सहम सा गया। उसके निकट आते ही सूर्य ने पाँच गज ऊँची छलांग लगाते हुए अपनी तलवार भांजी। उस प्रहार से बचने के प्रयास में वो अरबी घुड़सवार अपने अश्व से नीचे गिर पड़ा। उसके भूमि पर गिरते ही सूर्य घुटनों के बल उसकी छाती पर चढ़ गयी और तलवार से उसका शिरस्त्राण सहित मस्तक छेद डाला, और एक के बाद एक प्रहार करती चली गयी जब तक उसका सर टुकड़े टुकड़े होकर बिखर न गया। उसके रक्त में नहायी सूर्य किसी अगाध वन की सिंहनी सी गुर्रायी। वन में उपस्थित जाट वीर वन में आये घुड़सवारों पर नरान्तक बनकर टूट पड़े। जीवन में प्रथम बार सूर्य जैसी एक कन्या को चंडी समान भयावह देख वो पचासों अरबी घुड़सवार यूं ही स्तब्ध थे, और अब जाट वीरों की तलवारों और बाणों का आखेट शिकार बनकर भूमि पर गिरने लगे। अपनी बहन का साथ देने को प्रीमल भी शस्त्र उठाये आगे दौड़ी और शत्रुओं का संहार करने लगी।

बचे खुचे अरबी योद्धा बचकर भागने लगे और राजकुमारिया सहित जाट वीर उनके पीछे दौड़ते हुए वन से बाहर आये। वहाँ का दृश्य देखते ही सभी स्तब्ध रह गए। मोखा भी वहाँ तब तक आ चुका था। दूर दूर तक के झोपड़े धूं धूं कर जल रहे थे। ग्रामीण इधर उधर भाग रहे थे। शीघ्र ही एक सिंधी अश्व सवार राजकुमारियों के निकट आकर रुका और सूचित किया, “कासिम को पता चल गया है कि आप दोनों इसी गाँव में हैं, राजकुमारी। अभी वन में जिससे आपका सामना हुआ वो केवल एक टुकड़ी थी। आप यहाँ से निकल जाईये, क्योंकि ऐसी सैकड़ों टुकड़ियाँ वज्रकुंड गाँव में घुस चुकी हैं।”

मोखा ने भी उसका समर्थन करते हुये प्रीमल से कहा, “समय नहीं है हमारे पास, शीघ्र चलिए।” 

प्रीमल पीछे की ओर मुड़ी। किन्तु रक्त में सनी सूर्य वहीं खड़ी रही। उसकी आँखों के समक्ष उस छह मास के बालक और उस स्त्री का तड़पता मुख बार बार आ रहा था। प्रीमल ने उसका हाथ पकड़ साथ ले जाने का प्रयास किया, “चलो, सूर्य।”

किन्तु सूर्य ने उसका हाथ झटकार दिया, “तुम सब जाओ। मैं साथ नहीं आऊँगी।”

झल्लाते हुये प्रीमल ने पुनः उसका हाथ जकड़ लिया, “बालहठ छोड़ो सूर्य, चलो यहाँ से।”

सूर्य अपना हाथ झटके से पीछे खींचकर गुर्राई, “बालिका नहीं हूँ मैं। मुझ पर अधिकार जताना बंद करो।” 

“मैं कोई अधिकार नहीं जता रही, सूर्य। किन्तु अभी हमारा यहाँ से निकलना जरुरी है।”

दांत पीसते हुए सूर्य ने प्रीमल को घूरा, फिर जलती हुयी झोपड़ियों की ओर संकेत कर प्रश्न किया, “और ये जो ग्रामवासी हमारे लिए बलि चढ़ रहे हैं, उनका क्या?”

अपनी बहन का तर्क सुनकर प्रीमल मौन हो गयी। नेत्रों में अंगार लिए सूर्य आगे बढ़ी और प्रीमल से प्रश्न किया, “अपने सामने उस अरबी घुड़सवार के बाण से बिंधे छह महीने के बच्चे के शव को देख तुमने स्वयं से ये प्रश्न नहीं किया कि क्या हमारा जीवन इतना मूल्यवान है जिसपे योद्धा तो योद्धा सहस्त्रों निर्दोष प्रजा की भी बलि चढ़ जाये?”

प्रीमल को मौन देख मोखा ने हस्तक्षेप किया, “सिंध के सम्मान के लिए ही मेरे जाट वीर मुझसे भी द्रोह कर बैठे थे। विलम्ब से ही सही किन्तु मेरी भी आँख खुली। और आप दोनों सिंध का गौरव है। चाहें हममें से एक एक प्राण चले जायें किन्तु आप दोनों को शत्रुओं के हाथ नहीं पड़ने देंगे।”

इस पर सूर्य मोखा पर भी बरस पड़ी, “सहस्त्रों निर्दोषों की बलि चढ़ाकर नहीं चाहिये ये सम्मान। क्या करेंगे इस गौरव को बचाकर ? क्या प्राप्त होगा हमें?”

अपने तर्क के आगे सबको मौन देख सूर्य ने अपना निर्णय सुनाया, “किसी और को मेरे साथ आने की आवश्यकता नहीं। मैं जा रही हूँ आत्मसमर्पण करने। कह दूँगी कि प्रीमल युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो गयी। वो कासिम अपने खलीफा के लिए मेरा हरण करना चाहता है तो कर ले। किन्तु सत्य कहूँ तो इससे पूर्व वो खलीफा मुझे हाथ लगा पाए मैं स्वयं उसकी गर्दन मरोड़ दूँगी।”

सूर्य को आगे की ओर जाते देख प्रीमल ने दौड़कर पुनः उसका हाथ थाम लिया। दांत पीसते हुए सूर्य ने उसे चेतावनी दी, “मैंने अपना निर्णय ले लिया है, और अब तुम जोर नहीं चला रही।”

“मैं तुम पर कोई जोर नहीं चला रही, तुम्हारे साथ चल रही हूँ।”

प्रीमल का निर्णय सुन सूर्य भी क्षणभर को अवाक रह गयी। वहीं आँखों में नमी लिए प्रीमल ने अपनी बहन की ओर गर्व से देखा, “सोचती थी तुम बस एक हठी और क्रोधी कन्या हो जो केवल भावुकता में आकर निर्णय ले लेती है। किन्तु आज तुमने दिखाया कदाचित कभी कभी भावुकता में लिया निर्णय बड़े से बड़े बौद्धिक व्यक्ति के तर्क को भी परास्त कर सकता है, उसे निरुत्तर करने की क्षमता रखता है। तुम तो सच में बड़ी हो गयी, सूर्य। तुमने वो साहस दिखाया जिसके विषय में सोचकर भी मेरा हृदय थर्रा जाता था।” वो सूर्य के ह्रदय से जा लगी।

दोनों बहनों ने कुछ क्षण अश्रु बहाए फिर पीछे हटकर प्रीमल ने गर्व से अपनी बहन की ओर देखा, “उचित कहा तुमने। हमारा जीवन उन सहस्त्रों निर्दोष प्रजाजनों से अधिक मूल्यवान नहीं है। और अपने जीवन को सार्थक बनाने के इस उद्देश्य में मैं तुम्हारे साथ इस आहुति यज्ञ में कूदने को तैयार हूँ।”

 वहीं प्रीमल मोखा की ओर मुड़ी और हाथ जोड़े, “आप लोगों ने अब तक जो हमारा साथ दिया, हम उसके आभारी हैं। किन्तु आगे की यात्रा अब केवल हम दोनों की है।”

विचलित हुआ मोखा आगे आया, “मुझसे बहुत पाप हुए हैं, राजकुमारी। कितनी ही ग्लानियों का बोझ है मुझपर। संकट समय में आपका त्याग कर एक और पाप का भागी नहीं बन सकता। मेरा एक हाथ अब भी काँधे से जुड़ा है। खड्ग मैं भी चला सकता हूँ। आपका त्याग करके शत्रुओं को आपको समर्पित करने से उचित तो ये होगा कि ग्रामीणों का रक्षण करते हुए स्वयं से दोगुने शत्रुओं का संहार कर वीरगति को प्राप्त हो जायें।”

“कदाचित आपने सूर्य की बात ठीक से सुनी नहीं, सामंत मोखा बसाया। निर्दोष प्रजा हो या योद्धा, अब हमारे लिए किसी की बलि नहीं चढ़ेगी। हमारे जीवन का अब एक ही उद्देश्य है, इराक के खलीफा की मृत्यु। उसके लिए हमें शत्रु के समक्ष समर्पण तो करना ही होगा। रही बात कासिम की, तो वो तो महाराणा कालभोज की तलवार का ग्रास बनने ही वाला है। उसके भी गिने चुने दिन ही बचे हैं। इसलिए आप सब जाईये और गुप्त रूप में रहकर सिंधियों का मनोबल बनाये रखिये। मेवाड़ नरेश के यहाँ पग रखते ही उन्हें आपकी आवश्यकता पड़ेगी। इसलिए अपनी ग्लानि का बोझ कम करने के लिए अपने वीरों को आग की भट्टी में मत झोंकिये।”

मोखा के पास प्रीमल के इस तर्क का कोई उत्तर नहीं था। दोनों बहनों ने मुस्कुराते हुए एक दूसरे को देखा और प्रीमल ने दृढ़तापूर्वक मोखा से कहा, “यदि महाराणा कालभोजादित्य रावल से भेंट हो जाये तो उन्हें हमारा अंतिम संदेश अवश्य सुनाइयेगा। उनसे कहियेगा कि सिंध की ये भूमि बाहें फैलाकर उनका स्वागत करती है। हर एक सिंधी नारी का सम्मान, हर एक बालक के प्राण और उसका भविष्य अब उनकी तलवार पर आश्रित है। जिस दिन उनका पग यहाँ पड़ा, राजा दाहिर के प्रति निष्ठावान रहे सहस्त्रों वीर उनके पक्ष में खड़े हो जायेंगे और उन्हें गुहिलदेव कहके सम्मानित करेंगे। उनसे ये भी कहियेगा कि वो हमारी खोज न करें। क्योंकि अब हम लौटकर नहीं आयेंगे। वो खलीफा हमें हाथ लगाये इससे पूर्व ही हम उस नराधम का अंत करके उम्मयद खिलाफत की नींव हिलाकर रख देंगे, अन्यथा स्वयं के प्राण न्योछावर कर देंगे। हमारी अंतिम आशा बस इतनी सी है कि एक दिन महारावल सिंध की इस पवित्र भूमि को इन विधर्मी असुरों के अत्याचारों से मुक्त कराकर यहाँ एक नया स्वर्ग स्थापित करेंगे।”

अंतिम संदेश सुनाकर प्रीमल और सूर्य ने मुस्कुराते हुए एक दूसरे की ओर देखा । फिर सूर्य ने गर्व में भरकर कहा, “बंदी बनने जा रहे हैं तो क्या हुआ? छाती तानकर अश्वों पर जायेंगे और उस कासिम से दृष्टि मिलायेंगे।”

शीघ्र ही जाट वीर और दोनों राजकुमारियां जाट वीरों के लाये दो अश्वों पर आरूढ़ हो गयीं। जाने से पूर्व प्रीमल ने मोखा को आदेश दिया, “यही उचित समय है, सामंत मोखा बसाया। रात्रि के अंधकार का लाभ उठाकर आप अपने वीरों को लेकर यहाँ से कोसों दूर निकल जाईये। आप महाराणा कालभोज तक हमारा सन्देश पहुँचाने की अंतिम कुंजी हैं। मुझे विश्वास है उनका साथ पाकर आपके सात सौ वीरों की शक्ति सात सहस्त्र की हो जायेगी।”

मुस्कुराते हुए सूर्य और प्रीमल ने मशालें थाम अपने अपने अश्वों को ऐड़ लगायी। ग्लानि भरे नम हुए नेत्रों के साथ मोखा उन्हें जाता हुआ देखता रह गया।

******

इधर कासिम के सिपाहियों ने गाँव के बीचों बीच पाँच सौ से ज्यादा युवकों, औरतों और बच्चों को एकत्र कर उन पर कोड़े बरसाने आरम्भ किये। कुछ क्षणों उपरांत उन्हें घूरते हुए कासिम ने आदेश जारी किया, “एक एक से एक बार सवाल करना कि शहजादियाँ कहाँ हैं ? न बताये तो उनके सिरों में सुराख कर देना।”

तभी दौड़ता हुआ एक अरबी सिपाही कासिम के निकट आया और उसे सूचित किया, “वो शहजादियाँ दो कोस दूर के जंगल में हैं, हुजूर। उनके साथ सैकड़ों सिन्धी जांबाज भी हैं। हमारे पचास घुड़सवारों का लश्कर जो वहाँ गया उनमें से महज तीन ही जिन्दा बचकर लौट पाये।”

हड़बड़ी में कासिम अपने घोड़े पर सवार हुआ और अपनी सेना को आदेश दिया, “जल्दी चलो, वर्ना वो फिर से गायब हो जायेंगे। 

कासिम के आगे बढ़ते ही उसके सैकड़ों घुड़सवार भी उसके साथ हो लिए और शेष सेना पीछे दौड़ी। उसका कारवां अभी आधा कोस ही आगे बढ़ा था कि दूर से ही कासिम को दो मशालें तीव्र गति से निकट आती दिखाई दीं। जैसे जैसे उनका आकर बड़ा हुआ उन मशालों द्वारा रौशन हुए मुखड़ों को देख कासिम सहित शेष अरबियों की आँखें भी चकाचौंध हो गयीं।

शिरस्त्राण से लेकर पाँव में पहनी खड़ाऊं तक अरबियों के रक्त में नहाई सूर्यदेवी कासिम को यूं घूर रही थी मानों अभी उसे भस्म कर देगी। सिंहनी सी आँखों में प्रतिकार की ज्वाला लिए प्रीमल ने दांत पीसते हुए हाथ में थमी अपनी तलवार पर कसाव बढ़ाया। उनकी अंगार बरसाती आँखों को देख कासिम क्षणभर स्थिर होकर उन्हें देखता ही रह गया। शीघ्र ही एक अरबी सिपाही घोड़ा लेकर उसके निकट आया और सूर्य की ओर संकेत करते हुए कहा, “यही हैं वो शहजादी जिसने हमारे एक सिपाही के घोड़े पर छलांग लगाकर उसे जमीं पर ले आई फिर उसके सर के टुकड़े टुकड़े कर दिये।”

“सुब्हान अल्लाह।” कासिम ने मुस्कुराते हुए सूर्य की ओर देखा, “तो तुम्हीं हो शहजादी सूर्य और प्रीमल, हम्म? बहुत सुना था तुम्हारी तलवारों के जोर के बारे में। तुमने भी हमारी फ़ौज को खौफजदा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।” फिर उसने चहुँ ओर दृष्टि घुमाकर देखा, और फिर प्रीमल की ओर देखते हुए प्रश्न किया, “अपने जंगजूओं को नहीं लायी, शहजादियों? तुम दोनों को कहीं ये गलतफहमी तो नहीं कि तुम हमारी पूरी फ़ौज से लड़ सकती हो।”

प्रीमल ने हाथ में थमी तलवार नीचे गिराई और अपना क्रोध शांत करने का प्रयास करते हुए कासिम से कहा, “हम समर्पण करने आये हैं, कासिम। प्रजाजनों को मुक्त कर दोगे, तो शान्ति से तुम्हारे खलीफा के पास चले जायेंगे। अन्यथा हमारी तलवारों की शक्ति की जो प्रशंसा तुमने सुन रखी है, वो महज कथायें नहीं हैं। वीरगति को प्राप्त होने से पूर्व तुम्हारे बीस सिपाहियों को निगल अवश्य जायेंगे, और तुम्हारे खलीफा की इच्छा अधूरी ही रह जायेगी।”

कासिम ने क्षणभर को दोनों राजकुमारियों को घूरा फिर अपना निर्णय सुनाया, “ठीक है, हम गाँव वालों को आजाद कर देंगे। पर उससे पहले तुम दोनों को अपने सारे हथियार हमारे हवाले करने होंगे। याद रहे हरम में जनाना तुम्हारी तलाशी लेंगी। अगर तुम्हारे पास एक भी हथियार मिला तो उसके दस गुना गाँव वालों के सिर छेद कर डालेंगे हम।”

दोनों बहनों ने एक दूसरे की ओर देखा फिर अश्वों से उतरकर अपने शस्त्र और कवच का त्याग करना आरंभ किया। अंत में उन्होंने अपना शिरस्त्राण भी एक अरबी सैनिक को सुपुर्द कर दिया। उसके उपरांत कासिम ने दोनों को चेतावनी देते हुए कहा, “जानता हूँ तुम दोनों को हथियारों का बहुत शौक है, पर याद रहे अगर बगदाद से तुम्हारी कोई भी शिकायत आई, तो यहाँ इस पूरे गाँव को जलाकर ख़ाक कर दिया जायेगा।”

कासिम की उस चेतावनी के उत्तर में सूर्य ने उस पर कटाक्ष करते हुए कहा, “सुना है मेवाड़ नरेश कालभोजादित्य रावल के पग यहां पड़ने ही वाले हैं। तो तू अपनी सोच कासिम, क्योंकि तेरे पास तो गिनती के दिन बचे हैं।”

सूर्य और प्रीमल को घूरते हुए कासिम ने अपने सैनिकों को आदेश दिया, “चालीस दिन के अंदर ये लोग खलीफा तक पहुँच जाने चाहिये। याद रहे इन्हें कोई मर्द हाथ नहीं लगायेगा, ये खलीफा की अमानत हैं। इनकी निगरानी के लिए सौ जनानियों को इनके साथ रखना। ले जाओ इन्हें।” 

अरबी सिपाहियों ने भाले लेकर सूर्य और प्रीमल को घेर लिया, और उसी घेराबंदी में उन्हें लेकर अपने शिविर की ओर जाने लगे।

उन दोनों के जाने के उपरांत शीघ्र ही एक अरबी सिपाही अपना अश्व दौड़ाता हुआ कासिम के निकट आया और उसे सूचित किया, “खुशखबरी है, हुजूर। तीन महीने की जद्दोजहद के बाद हुजुर सलीम बिन जैदी ने ब्राहमणाबाद के किले पर फतह हासिल की।”

सूचना से प्रसन्न होकर कासिम ने मुस्कुराते हुए शिविर की ओर जाती प्रीमल की ओर देखा, “वैसे मानना पड़ेगा। ब्राह्मणाबाद के पाँच हजार जाबांजों ने तीन महीने तक उस किले को बचाये रखा। उनकी हिम्मत की दाद तो देनी पड़ेगी। अम्मी ने सही कहा था, इनकी ताकत के राज तक पहुँचना जरुरी है।” कुछ क्षण विचार कर वो उस सिपाही की ओर मुड़ा, “ब्राह्मणाबाद के नए बादशाह सलीम बिन जैदी को हमारा पैगाम दो। हमारे लूटे खजाने का चौथाई हिस्सा जो खिलाफत को जाने वाला है, वो देबल में इक्कठा होने वाला है। वहाँ से वो समुद्र के रास्ते जल्द से जल्द इराक पहुँच जायेगा। इसलिए बादशाह सलीम से हमारी दरख्वास्त है कि वो खुद उस खजाने को जहाज पर चढ़ाने तक निगरानी करे।”