🌃सेहरी, सिवइयाँ और इजहार👩❤️👨
("कुछ बातें दुआओं में कही जाती हैं... और कुछ, सेहरी की सादगी में सुन ली जाती हैं।")
रमज़ान का पहला हफ्ता था। पटेल नगर की गलियों में शाम को इफ़्तार की खुशबू तैरती है, और मस्जिदों से तरावीह की आवाजें आती है। दानिश रोजे से था। लेकिन लाइब्रेरी की पढ़ाई ज़रा धीमी पड़ गई थी क्योंकि शरीर थकता नहीं था, बल्कि दिल कहीं और उलझा था।
एक इशारा, जो था साथ में दस्तरखान (खाना रखकर खाने की कालीन) साझा करने का
उस दिन जब लाइब्रेरी बंद हो रही थी, दानिश ने आरजू से नजरों के जरिये कुछ कहना चाहा - फिर अचानक बोल पड़ाः
"कल सेहरी मैं अकेले कर रहा हूं....
अगर सुबह 3 बजे चाय और सिवइयाँ मिल जाएं किसी की बातें सुनते हुए... तो रोज़ा भी हौसला दे देता है।"
आरजू एक पल के लिए रुकी। फिर उसकी मुस्कान हल्की सी चमकी -
आरजू - "इतनी रात को लड़कियों को बुलाते हो?"
दानिश - "लड़की नहीं... दोस्त को।"
आरजू - "... अच्छा ठीक है, आ जाऊंगी।"
✨सेहरी की वो सुबह - दिलों के लिए एक ईद जैसी
सुबह 3:10 AM, PG की छत पर टेबल लगाई गई थी आरजू घर से लाई हुई खजूरें ले आई, दानिश ने खुद से सिवइयाँ बनाई और थर्मस में चाय रखी।
दस्तरखान लगा सेहरी में खाने पीने की चीजें सजाई गई और सिवइयाँ खाते हुए बातें शुरू हुई:
दानिश - "कभी सोचा था, दिल्ली में कोई ऐसा मिलेगा जिससे सुबह 3 बजे सिर्फ बातें करने का मन होगा?"
आरजू "नहीं... और सबसे ज्यादा डर भी इसी बात से लगता है अब।"
दानिश - "किस बात से?"
आरजू - "कि कहीं तुम... बस ऐसे ही गुजर न जाओ...
दानिश का दिल जैसे एक लम्हे के लिए रुक गया।
दानिश - "मैं अगर कहीं गया, तो तुम्हें साथ लिए बिना नहीं जाऊंगा।"
आरजू -"... और अगर मैं खुद भी जाना चाहूं?"
दानिश - "तो तुम्हारे कदम उठने से पहले तुम्हारा हाथ पकड़ लूंगा।"
फिर दोनों चुप हो गए। कुछ पल छत पर सिर्फ हवा बहती रही। चाय ठंडी हो चुकी थी, पर दिलों में अब गर्माहट थी।
सेहरी की अज़ान और मौन इज़हार
अज़ान हुई - दानिश और आरजू ने वहीं फज्र की नमाज अदा की, और दानिश ने दुआ के लिए हाथ उठाए। आरजू ने भी अपने हाथ फैलाए.....
दोनों ने दुआ की - बिना कहे, एक-दूसरे के लिए।
दानिश ने अपनी आँखें बंद कर लीं, और धीमे से कहा:
"एक दुआ तुमने मांगी थी ना कि हम दोनों IAS बन जाएं....
एक दुआ मैंने भी मांगी है तुम्हारा हाथ थामने की।"
आरजू ने कोई जवाब नहीं दिया- बस अपनी चाय की प्याली को दानिश की तरफ बढ़ाया और अपनी झुकी हुई नजरों को थोड़ा उठाकर मुस्कुरा कर दानिश को देखा। फिर दोनों ने एक सुर में कहा -
"आज की सेहरी और सिवइयाँ तो खत्म हो गई....
पर बातें अब शुरू हुई हैं।" ... जो शायद अब कभी रुकेंगी नहीं।"
दानिश ने उसी सुबह अपनी डायरी में लिखा कि -
"आज पहली बार लगा, इश्क़ बोलना जरूरी नहीं....
बस अगर सेहरी में कोई साथ बैठा हो तो मोहब्बत मुकम्मल होती है।"
"छत पर सिर्फ चाय नहीं थी उस रात... एक अजीब सी नज़दीकी थी, जो नाम नहीं मांग रही थी।"
दानिश को लगा जैसे कोई अधूरा सफ़ा पूरा होने वाला है —
पर आरज़ू की आँखों में एक और सफ़ा खुल चुका था...
उन्होंने महसूस किया कि
"इतिहास सिर्फ पढ़ा नहीं जाता... कभी-कभी उसे जीने जाना चाहिए।"
👣 और फिर... तुगलकाबाद की टूटी दीवारों की ओर एक सफ़र शुरू हुआ।
अब देखना यह दिलचस्प होगा कि खंडहरों में उनका रिश्ता और कैसे परिपक्व होगा? क्या उनके रिश्ते पर फुलस्टॉप लग जाएगा या फिर कोमा लगकर आगे बढ़ जाएगा?