🌟 "आख़िरी कॉल" 🌟
श्रेणी: प्रेम | जीवन | इमोशनल | रिलेशनशिप
रात के 11 बज चुके थे। आयुष अपने ऑफिस प्रोजेक्ट के बीच चाय की चुस्की ले रहा था कि अचानक फोन बजा। एक अनजान नंबर था। मन किया इग्नोर कर दे, लेकिन कुछ अजीब-सा एहसास हुआ और उसने कॉल उठा लिया।
"हैलो?"
"हैलो... आयुष?"
"हाँ, बोलो... कौन?"
"तुम भूल गए? मैं काव्या…"
आयुष जैसे कुछ पल के लिए जड़ हो गया। हाथ की चाय कप से गिर पड़ी। ये वही काव्या थी — उसकी कॉलेज की दोस्त, उसका पहला प्यार... और पहली बार टूटा दिल।
चार साल हो गए थे, जब बिना बताए काव्या उसकी ज़िंदगी से अचानक गायब हो गई थी। उसने हर जगह ढूंढ़ा, मैसेज, कॉल, सोशल मीडिया — हर रास्ता अपनाया, पर कोई जवाब नहीं।
और आज, अचानक ये कॉल...
"काव्या... तुम? कैसी हो? कहां थी तुम?"
"आयुष, बहुत कुछ बताना है... पर शायद वक़्त कम है।"
आयुष की सांसें जैसे थम गईं।
"क्या मतलब? सब ठीक है ना?"
काव्या ने कुछ सेकंड चुप रहकर कहा,
"मैं कैंसर से जूझ रही हूँ... चौथा स्टेज है। डॉक्टर ने सिर्फ कुछ हफ्ते दिए हैं।"
ये सुनते ही आयुष की आवाज़ कांपने लगी।
"नहीं… ये मज़ाक मत करो काव्या।"
"काश ये मज़ाक होता… पर सच यही है।"
उसके बाद दोनों के बीच कुछ पल की चुप्पी थी — गहरी, भारी और टूटती हुई।
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🔙 फ्लैशबैक — कॉलेज के दिन
काव्या और आयुष की मुलाकात यूनिवर्सिटी लाइब्रेरी में हुई थी।
काव्या शांत, किताबों में डूबी रहने वाली लड़की थी, और आयुष ज़िंदादिल, दोस्त बनाने वाला लड़का। पहली बार जब उन्होंने बात की, तो किसी डिबेट की वजह से बहस हो गई थी। लेकिन धीरे-धीरे बहसें बातचीत में बदलीं, और बातचीत दोस्ती में।
कॉलेज की कैंटीन, वो बारिश में भागकर छत पर जाना, बर्थडे पर चुपके से गिफ्ट देना — सब कुछ किसी फिल्म की तरह खूबसूरत था। फिर एक दिन आयुष ने कहा,
"काव्या, मुझे तुमसे प्यार हो गया है।"
काव्या ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया,
"मुझे पहले ही हो गया था…"
दोनों के सपने अलग थे — आयुष IIM जाना चाहता था, और काव्या समाजसेवा में करियर बनाना चाहती थी। लेकिन प्यार में भरोसा था। फिर एक दिन आयुष को IIM अहमदाबाद से कॉल लेटर आया।
वो बहुत खुश था। उसने काव्या को फोन किया, लेकिन नंबर बंद। हॉस्टल गया, तो काव्या का कमरा खाली था। बस एक चिट्ठी रखी थी:
> "तुम्हारा सपना तुम्हारा हक़ है। मेरा होना शायद तुम्हारी राह में रुकावट बने… इसलिए जा रही हूँ। माफ करना… काव्या।"
आयुष टूट गया। उसने खुद को पढ़ाई में डुबो लिया। धीरे-धीरे ज़िंदगी फिर पटरी पर आई, लेकिन दिल में एक अधूरी कहानी दबी रह गई।
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📞 वापस वर्तमान में…
"काव्या, तुमने बताया क्यों नहीं? अकेले इतना कुछ झेल रही थी…"
"क्योंकि मुझे पता था, तुम अपने सपनों को छोड़ दोगे। और मैं ये नहीं चाहती थी।"
"मैंने तुम्हें बहुत ढूंढ़ा…"
"पता है… पर मेरी मजबूरी थी। मैं नहीं चाहती थी कि मेरी बीमारी तुम्हारा बोझ बने।"
आयुष के गले से आवाज़ नहीं निकल रही थी। सिर्फ आँसू थे… जो अब बहे बिना रुके नहीं रहे।
"आयुष, एक विनती है… मेरी आख़िरी इच्छा..."
"बोलो काव्या… जो कहोगी, करूंगा।"
"वो पहली फोटो वाली पुरानी डायरी… अब भी है तुम्हारे पास?"
"हाँ… हमेशा रहती है पास में।"
"उसे मत फेंकना। जब मेरी याद आए, उस डायरी को पढ़ लेना। उसमें सिर्फ मेरी नहीं, तुम्हारे हर मुस्कुराहट की कहानी है।"
"काव्या… प्लीज़… कुछ इलाज होगा। मैं आ रहा हूँ… हम मिलेंगे।"
"अब शायद देर हो चुकी है आयुष… ये कॉल शायद हमारी आख़िरी बात है।"
कॉल डिसकनेक्ट हो गया। आयुष ने बार-बार कॉल किया, लेकिन कोई जवाब नहीं।
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📅 तीन दिन बाद…
एक अजनबी नंबर से कॉल आया।
"क्या आप आयुष हैं?"
"हाँ…"
"मैं काव्या की बड़ी बहन बोल रही हूँ… वो अब नहीं रही।"
आयुष वहीं जमीन पर बैठ गया। दुनिया की आवाज़ें गायब हो गईं। बस एक गूंज रह गई —
> "ये कॉल शायद हमारी आख़िरी बात है…"
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📓 अंतिम अध्याय
आयुष ने काव्या की अंतिम यात्रा में शामिल होकर उसकी डायरी को कंधे से लगाकर विदा किया।
आज वो एक सफल कॉर्पोरेट मैनेजर है, लेकिन हर महीने की तनख्वाह का कुछ हिस्सा कैंसर NGO को देता है — काव्या के नाम पर।
उसने अपने ऑफिस की टेबल पर एक फोटो फ्रेम रखा है — जिसमें काव्या और वो लाइब्रेरी के बाहर बैठे मुस्कुरा रहे हैं।
नीचे एक छोटी सी पंक्ति लिखी है:
> “कुछ बातें पूरी न होकर भी, हमेशा ज़िंदा रहती हैं…”
💔 अंत में सीख:
> "सच्चा प्यार केवल साथ में जीने का नाम नहीं, बल्कि किसी के लिए खुद को खो देने का साहस है।"