Swayamvadhu - 58 in Hindi Fiction Stories by Sayant books and stories PDF | स्वयंवधू - 58

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स्वयंवधू - 58

शक्ति का आह्वान 

वृषाली ने राहुल के शांत होने तक इंतजार किया और धीरे से उसके आँसू पोंछते हुए पूछा, "क्या हम किसे एकांत स्थानों पर जा सकते हैं?",

राहुल झिझका, लेकिन उसकी इच्छा नहीं तोड़ना चाहता था। यह पहली बार था जब उसने उससे कुछ माँगा था।

उसने हर काम को पुनर्निर्धारित किया और समीर को आश्वासन दिया कि वे उसे सौंपा गया कार्य कुशलतापूर्वक करेगा और उसे गँदा खेल ना खेलने की चेतावनी भी दी। उसके उम्मीद के उल्टे वह सहमत हो गया और खुद उनके लिए रुकने का प्रबंध किया। उन्हें उस स्थान पर भेजा जहाँ से राहुल के लिए सब शुरू हुआ था, 'एक्शन लॉज' जिससे वृषाली उर्फ मीरा अनजान थी।

समीर के आदमी राहुल के आदमी के भेष में उन्हें छोड़ गए या कहो राहुल ने सभी को भगा दिया।

राहुल के हाथ सूटकेस के हैंडल को कुछ ज़्यादा ही ज़ोर से कसकर पकड़े हुए था। भारी कदमों के साथ वो सबको लेकर अंदर गया। कर्मचारी लगभग सभी बदल गए थे लेकिन माहौल वैसा ही था, वही डर, वही नियंत्रण, वही लाचारी, वही कहानी, अलग पात्रों के साथ। राहुल को वही बीमार भावना महसूस हुई जिसे वो यहाँ उसने पूरे तीन साल तक जी थी, जब उसने अपनी बड़ी बहन को हर पल दरिंदो के अत्याचारों से मरते देखा और वह चुप रहने के लिए बाध्य था क्योंकि वे फँस गए थे और कोई भी बच्चे की चीख नहीं सुन सकता था।

उसके हाथों में सूटकेस काँपने लगे। वृषाली एक कदम उसके करीब आई, और अपने हाथ से उसका हाथ पकड़ा। वृषाली के दूसरे हाथ में कान्हा गा रहा था। उसने उसकी ओर देखा, वह अपनी आँखों से मुस्कुराई, "चलो इससे पहले कि कान्हा यहाँ अपना कॉन्सर्ट शुरू कर दे।"

उसने उनकी ऊर्जा को देखकर मुस्कुराते हुए सिर हिलाया।

"एक्शन लॉज में आपका स्वागत है।", रिसेप्शनिस्ट ने तोते की तरह कहा जैसे उसने यह बात कई बार कही हो।

"धन्यवाद। राहुल कपाड़िया के नाम से।", राहुल ने नकली हँसी हँसते हुए कहा,

उसने कंप्यूटर की ओर देखा और कहा, "हाँ, समीर सर ने आपके कमरे की खास व्यवस्था करवाई है। तीन कमरों से बदलकर दो कमरों की कर दी है और उन्होंने विशेष रूप से उल्लेख किया है कि मैडम, जो आपके साथ बच्चे को गोद में लेकर है वो रात आपके साथ बिताएंगी, कोई व्यवधान नहीं होगा। अगर नहीं तो...", उसकी आँखें उसे चेतावनी दे रही थीं।

एक चूक और सब कुछ ख़त्म।

उसने सिर हिलाया, चाबियाँ लीं और अपना सामान बेल बॉय को सौंप दिया। उसने अपने आस-पास का माहौल देखा। सब कुछ हमेशा की तरह ही था, मनहूसियत।

वह प्रतीक्षा कक्ष में उसका इंतजार कर रही वृषाली के पास वापस गया। उसने कान्हा को अपने पास लिया और उसे थपथपाकर कहा, "कमरे में कुछ बदलाव है...",

"इस बारे रात को में बात करते हैं। कान्हा कबसे अपने डैडी को ढूँढ रहा था।", उसने उनके बगल में बैठी एक महिला को अलविदा कहते हुए मुस्कुराई और राहुल के हाथ में हाथ डालकर साथ एक जोड़े की तरह निकल गई। राहुल ने उसकी उपस्थिति पर ध्यान भी नहीं दिया था।

वे अपने कमरे में दाखिल हुए।

"वह कौन थी?", उसने कान्हा को साफ कम्बल पर लेटाते हुए पूछा।

"एक पत्रकार?", कान्हा के नए कपड़े निकालते हुए कहा,

वह ठिठक गया, "एक पत्रकार?", 

उसने सिर हिलाया, "हाँ, लेकिन गुप्तचर। असली, नकली? बेवकूफ या ज़्यादा ही चंट कह नहीं सकते।",

"तुम्हें ऐसा क्यों लगा?", राहुल ने पूछा,

"क्योंकि उसने सब बाहर बिछाकर रख दिया था। एक असली अंडरकवर अपनी खुद की परछाई को भी अपनी योजना के बारे में पता नहीं चलने देता और वह सभी संकेत बाहर फेंक रही थी जैसे कि उसकी गुप्तचर वाली आईडी मेरी गोद में गिराना, उसका माइक्रोफोन उसके बैग से बाहर झाँकना, उसकी असली न्यूज चैनल की आईडी। वह ...एक... चेतावनी लग रही है।", उसकी आवाज़ बमुश्किल फुसफुसाहट से ऊपर थी।

राहुल पहले से अधिक सतर्क हो गया।

वृषाली भी चिंतित लग रही थी।

कान्हा ने भी इसे महसूस किया और रोने लगा।

वृषाली ने उसके पेट पर हल्के से थपथपाया।

वृषाली ने फुसफुसाया, "हम अब एक दम्पति हैं और यह हमारा बेटा। डीएनए आपका है और नाम मेरा। हम उसके माता-पिता हैं और दिशा मेरी सहेली। बात खत्म!",

राहुल ने सहमति जताई।

"और यह इस लॉज तक ही सीमित नहीं है।",

"क्या?", राहुल ने चौंककर पूछा,

"श्शश!", वृषाली फुसफुसाते हुए चिल्लाई।

उसने अपने फोन पर टाइप किया, "मुझे उस कंपनी में घुसना है और समीर मूझे घुसने देगा नहीं। आप ही रास्ता हो।", उसे फोन देकर हाथ जोड़कर खड़ी हुई। उसका चेहरा पसीने से भीग गया था पर मान गया। 

वे देर से दोपहर के भोजन के लिए नीचे गए। दिशा उनके साथ शामिल हो गई। उन्होंने अपना दोपहर का भोजन किया और लॉज के बगीचे में टहलने लगे। आम के पेड़ों के बगीचे के दूर छोर पर उसे लॉज के बाहर जाने वाला एक दरवाज़ा दिखाई दिया। वो ठीक उसके कमरे के खिड़की के सामने वाला दृश्य था। उसने सोते हुए कान्हा को दिशा को सौंप दिया और चुप रहने का इशारा किया, राहुल अपनी ही दुनिया में आसमान देख रहा था। वह एक जिज्ञासु साहसी की तरह लॉज के चारों ओर सावधानीपूर्वक घूमती हुई बाहर निकली और एक मूर्ख की तरह फूलों से खेलती हुई, बच्चों की तरह मिट्टी को पकड़ती हुई बाहर निकल गई। लोग उसकी ओर देखने से बचते रहे।

उसने माली से, जो देखने में बहुत बूढ़ा लग रहा था, आसपास के वातावरण के बारे में हिचकिचाते हुए पूछा। किसी को उससे बात करते देखकर उसने ख़ुशी-ख़ुशी उसे अपने सभी पोते-पोतियों, यानि फूलों, पूरे बगीचे, अपने परिवार के बारे में बताया और दिखाया, "यह बहुत सुंदर है संग्राम जी।", उसने खुशी से मुस्कुराते हुए कहा, वह स्तब्ध रह गया।

उसने उसे अपना नाम कभी नहीं बताया, "तुम्हें मेरा नाम कैसे मालूम?", उसने पूछा,

वह ठिठक गई और घबराकर अपने आस-पास देखने लगी। फिर अपने ऊपर काबू पाकर मुस्कुराई और बोली, "लॉज के मैनेजर ने बाहर जाते हुए कहा था। उन्होंने कहा कि फूलों के बारे में संग्राम जी का ज्ञान असाधारण है। और आप मुझे असाधारण वाले ज्ञानी लगे तो मैंने आपको संग्राम जी समझ लिया। मुझे माफ कीजिएगा।", उसने हल्का से सिर झुकाकर माफी माँगी।

संग्राम ने सीना चौड़ाकर गर्व से उसका धन्यवाद अदा किया।

और वे उस क्षेत्र के परिदृश्य के बारे में बातचीत करने लगे, "यह क्षेत्र घने जंगल से घिरा हुआ है तथा यहाँ जंगली जानवर भी हैं।", उसने अजीब सा चेहरा बनाते हुए कहा, "यह प्रबंधन द्वारा बनाई गई एक कहानी है, जानना चाहते हो क्यों?", वह आगे झुका,

वह भी आगे झुकी, "क्यों?",

"मीरा!", उन्होंने राहुल की आवाज़ सुनी जो उनकी ओर बढ़ रही थी। संग्राम ने राहुल को देखा और उसकी ओर देख धीमी आवाज़ में कहा, "कुछ खास नहीं। जिस लड़के के साथ तुम आई हो, उससे पूछ लो, वह कुछ मज़ेदार डरावनी कहानियाँ जानता है और रही बात मैनेजर की, उसे सुनो, बस कानों से। देखने पर वह चुनता है।", वह तेज़ी से निकल गया। मीरा उर्फ वृषाली के पास एक सुराग और पहेली रह गई।

राहुल उसकी ओर दौड़ा और चिल्लाया, "तुम यहाँ क्यों हो‽ और तुम किससे बात कर रही थी?",

मीरा ने जवाब देने के लिए मुँह खोला पर राहुल बोलता गया, "तुम यहाँ क्या कर रही थी? तुम्हें यहाँ अकेले घूमने की इज़ाज़त किसने दी?",

वह उसके पूछने और चिल्लाने के तरीके से नाराज़ थी लेकिन उसकी चिंताओं को देखते हुए चुप रही। उसने उसके हाथों को कसकर पकड़ लिया और उसे घसीटते हुए ले गया, अन्य मेहमान और कर्मचारी भी उन्हें देख रहे थे। वह उसे सीधे अपने बेडरूम में ले जाकर खड़ा कर दिया। कमरे का दरवाज़ा बँद भी नहीं किया और फिर से उस पर चिल्लाने लगा, "अजनबियों से बात मत करो!", उसकी साँसें तेज़ चल रही थीं,

"मेरी अनुमति के बिना कभी किसी से बात मत करना!", वह फिर चिल्लाया। इस बार इतनी ज़ोर से कि हम बाहर दूसरों की फुसफुसाहट सुन सकते थे, "शांत हो जाओ राहुल, सब सुन रहे हैं।" वृषाली ने दबी आवाज़ में विनती की,

पर राहुल कुछ भी सुनने के मूड में नहीं था, "मुझसे वादा करो, तुम दूसरों से बात नहीं करोगी और मेरे बिना कहीं नहीं जाओगी। समझी?!", वह उस पर फिर चिल्लाया, बातों को सुलझाने के लिए उसने सावधानी से सिर हिलाया लेकिन वह शब्दों में जवाब चाहता था, "मैं चौबीसों घंटे तुम्हारे साथ ही रहूँगी।", उसने कहा,

यह सुनने के बाद कि वो इकदम से बदल गया जैसे उस रात बदल गया, वह मार्बल टाइल पर गिर पड़ा और इस बार उससे विनती की, "कृपया, भगवान के लिए किसी से कुछ भी स्वीकार मत करना। मैं तुमसे विनती करता हूँ मीरा, प्लीज़।", उसने अपने हाथ जोड़ लिए,

वृषाली को कुछ तो गड़बड़ लगा।

उसने कुछ नहीं कहा, बस उसकी आज्ञाओं को स्वीकार कर लिया। रात को जब वे डिनर के लिए नीचे गए, तो लॉज के रेस्टोरेंट में सभी लोग उन्हें अजीब और सहानुभूति भरी निगाहों से देख रहे थे, खासकर वृषाली को। वह पूरे समय राहुल के विनती अनुसार उससे चिपकी रही और राहुल स्थिति से परेशान था। सभी ने उन आँखो के बीच अपना खाना खाया।

अपनी दवाइयाँ लेने के बाद उसने कान्हा को लोरी गाकर सुलाया। वह राहुल के पास गई जो छोटे से सोफे पर पैर बाहर निकालकर सो रहा था।

"बिस्तर पर सो जाओ। यह सोफा तुम्हारे लिए छोटा है।", वृषाली ने कहा,

उसने चिढ़ाते हुए स्वर में कहा, "मैं प्रभावित हूँ कि आप गा सकती हैं, मीरा जी।",

"हाँ, पिछली बार जब मैं गाया था, तब मेरी आवाज़ लगभग चली गई थी।",

वह हँसा, अपने तकिये को गले लगाया और चिढ़ाया, "आपने कितना ऊँचा गाया मैडम सिंगर?",

"गाने का मौका कहाँ मिला जनाब जी, ज़हर ने मुझे पहले ही फ्यू", मुँह से हवा निकालकर अपने हाथ से मरने वाला इशारा कर वाक्य पूरा किया, "लगभग साक्षात माँ सरस्वती से भेंट करा दी थी।",

राहुल बोलते हुए दंग रह गए, "मुझे नहीं पता क्या कहना है, माफ़ करना?",

वह हँसी, "हाहाहा, उस बात को दो साल के ऊपर हो गए। अब उठो! कान्हा बीच में सो रहा है।",

"मैं ठीक हूँ। तुम बस जाकर सो जाओ।", उसने लुढ़कने कि कोशिश की और फर्श पर धपाक गिर गया। वह ज़ोर से हँसी और उसका तकिया बिस्तर के दाहिनी ओर रख दिया जिसकी खिड़की बगीचे की ओर थी। वह स्वयं बिस्तर के बाईं ओर दरवाज़े की ओर मुँह करके सोने गयी।

बिस्तर पर लेटकर, "उठो, दो रातों तक एक ही बिस्तर पर सोना कोई बड़ी सुर्खियाँ नहीं बनेगा। मन मायने रखता है।",

राहुल भी हार मानकर बिस्तर का कोना पकड़ वृषाली और कान्हा को पूरा बिस्तर छोड़ सो गया।


दो घंटे बाद करीब एक बजे वह जाग गई। वह धीरे से उठी और आवाज़ कम करने के लिए दबे पाँव चली, चाबी, चाकू और साफ लंबे कपड़े को झोले में डाल चोर की तरह कमरे से बाहर निकल गई। उसने दरवाज़ा बँद कर लिया, अपने मुँह पर रूमाल रख लिया और अपने चाकू से अंगूठे को चीर दिया। वह दर्द से रूमाल कसकर चिल्लाई और फिर दरवाज़े के सामने खून की दो बूँदें गिरा दीं और अपनी चप्पल से उन्हें पोंछ दिया। उसने दिशा के कमरे के लिए भी यही किया और चुपके से लॉज से बाहर जाने लगी। इससे कोई भी खतरा खासकर समीर उन दोंनो के कमरे में अंदर नहीं घुस सकता। और उसके इज़ाज़त के बिना अंदर का कोई व्यक्ति जाग सकता। जाते समय उसने दालान में पत्तों के खून के चप्पल के निशान छोड़कर निकली।

संग्राम से उसे जो रास्ता मिला था, वहाँ से वो चुपके से निकल गई। वह अपने कमज़ोर पैरों के साथ जंगल में गहरे तक भागती रही जब तक कि उसे एक समतल ज़मीन और खुला आकाश नहीं मिल गया।

आकाश रात के समय नीला था और आकाश में तारे चमक रहे थे तथा पूर्णिमा के चाँद का आनंद ले रहे थे। हरे-भरे घास के मैदान ऐसे थे जैसे कि वे सीधे फिल्म से निकले हों। लुभावने दृश्य के साथ छोटी नरम गद्दीदार घास। वर्षों की यातना के बाद यह आत्मा की चिकित्सा थी। वृषाली प्रकृति की अद्भुत सुंदरता से इतनी अभिभूत हो गई कि वह भूल गई कि वह क्या करने यहाँ आई थी।

एक तेज़ हवा चली जिससे पेड़ ज़ोर से हिलने लगे और डरावनी आकृतियाँ बनाने लगे। वह उसे भी मज़े से देख रही थी।

"घर की याद आ गई।", उसके आँखो में पानी आ गया।

साफ ज़मीन देख वो थोड़ी देर नीचे बैठ उस नम आँखो से प्रकृति को निहारने लगी।

"मैं तुम्हारा आह्वान करती हूँ शक्ति, हमारी शक्तियों का स्त्रोत। जब भी आपने मुझे बचाने कि कोशिश की, मैंने आपकी आवाज़ को अनसुना कर दिया, इसके लिए मुझे क्षमा करे। कृपया अब मेरी मदद करें, कृपया मेरी मदद करें।",

वह बेकाबू होकर रो रही थी। उसके चेहरे पर आँसू बह रहे थे, आवाज़ रुंधी हुई थी, वह अपनी गर्दन में महाशक्ति लॉकेट ढूँढ रही थी। उसने उसे पकड़ा और सारा रक्त रत्न पर डाल दिया, जिससे वह रक्त-लाल हो गया और उसके बाएँ हाथ की अनामिका पर भी रत्न लाल हो गया। उसके गालों से गिरते हुए सच्चे आँसू मेरी रत्ना पर गिरे। मैं उसकी ईमानदार पुकार से प्रसन्न थी। बस एक आखिरी परीक्षा।


उस क्षेत्र में अचानक तूफ़ान आया और सब कुछ बँद हो गया। कोई अतिक्रमण नहीं, कोई भागने की कोशिश नहीं करने वाला कोई उनका पीछा नहीं करने वाला, इस जंगल उस वक्त में केवल हम ही जीवित थे। कोई हमें देख नहीं सकता। वह तेज़ हवा में लड़खड़ाते हुए खुद को ज़मीन पर टिकाने कि कोशिश कर रही थी।


-आगे क्या हुआ जानने के लिए देखते रहिए? क्या मैंने उसे मार दिया या बचा लिया?