Manzile - 33 in Hindi Motivational Stories by Neeraj Sharma books and stories PDF | मंजिले - भाग 33

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मंजिले - भाग 33

मंजिले कहानी सगरहे की एक मर्मिक कहानी " रडिओ "

एक यादगर कहानी।

" वो तंग गली, हाँ वही तंग गली, मुला धीरो सलायी वाली, जो घूम कर ! "एक चुरास्ते पे आ निकलती थी। "हाँ वही --- वही ।"

" बम्बे की तंग सी गलियों मे गरीबो का भी समाज था, उनके भी जज्बात थे, उनका भी जीवन था, उनका भी उदास सपना था। " जो शायद कभी पूरा होना नहीं था। उसी तंग सी गलियों मे एक मदन का शहंशाह परिवार था। मंगू उसी घर का कार ड्राइवर था। जो मदन " को वकालत के वक़्त छोड़ कार फिर ठीक कचेहरी के बंद होने वक़्त लेकर आता था। अम्बेसडर कार थी उसके पास जो मजबूत उसके इरादों जैसी, उस वकत कार रखना अमीरों मे गिना जाता था। उसका आज बड़ा भाई इग्लैंड से आया था। मंगू भी खुश था ---- " कि शायद कुछ न कुछ मिल जाये... आपने बच्चों के लिए। "

प्लेयर उनके पास था, मदन रिकार्ड हुए तवे को गीत माला गज़लो की जो शास्त्री संगीत था, सुन रहा था। मंगू सजावट मे लगा हुआ था, और पांच नौकर थे जो उस घर मे जो घर को शीशे की तरा चमका रहे थे। सोचने वाली बात थी... एक केक जो बॉबी ने ले कर आया था वो मदन का बड़ा बेटा था... जो ताया जी को देखने के लिए बहुत आतुर था.... कयो की उसकी मम्मी ने उसके बड़े भाई की रज कर तारीफ की थी... और वो बारा साला का होगा वो सदा के लिए छोड़ कर चली गयी थी।

तब कोई भी नहीं था आपना जो मदन और बॉबी को संभाल सकता, तब भी मंगू ही था।

ताया जी आये वो तस्वीर के मुताबिक नहीं थे... सारे वाल झड़ चुके थे, गोल मैदान की तरा उसकी गंजी खोपड़ी, मुँह मे बनावटी दांत, ऊपर का शरीर भारा था, नीचे टागे पतली थी। हेट ज़ब उतारा, तो पता चला, मदन सब परिवार मिला... पर मंगू को देखकर वो हैरत मे " मंगू तुम इस परिवार की जान हो। " ऐसे शब्द कहे कि मगू आपने अस्पताल को खुश नसीब समझ रहा था।

" बॉबी तुम अब बाइस के तो होंगे, वाओ बहुत ख़ुशी हुई सब को मिल कर, हाँ एक गिफ्ट ले कर आया हूँ... " मदन को आपना भाई शरू से ही क्रेक माइंड लगता था, उसकी कभी भी उनसे दाल नहीं घली थी। अगर मदन पूर्ब कहता तो भाई पश्चिम कहता। आमीर लोगों के चोचले कितनी बार देख लिए थे, मंगू ने.... " ताया जी आप कैसे है इग्लैंड मे, कहते है, बहुत महगा मुल्क है ----" ताया जी हस पड़े , जैसे कोई बच्चे ने गलत सवाल किया हो। ---" बेटा वहा काम को सलाम है, कोई घर बैठे कुछ भी नहीं मिलता। " ----" हाँ बेटा मेरी, पेशन लग गयी है, बहुत काम किये... " मदन ने बात को टोका।

" केक काट कर ताया जी की ख़ुशी साझा की सबने। "

फिर रडिओ निकाला.... जो लाइट पर चलता था, स्टेशन पकड़ने के लिए एक तार का एरियल कमरे पे मंगू ने सेट किया... फिर चला दिया.. साफ तो बस बीबीसी ही चलता था, उसको घूमाया, तो लता मंगेशकर का गीत चल पड़ा... सब मस्त से हो गए।

सब को ताया ने पोड दिए, पर दो पोड मंगू को दिए, और पूछा, सब का हाल।

मदन खींझ गया था। पर उसने कहा " मंगू बाबू जी को ऊपर कमरे मे छोड़ आओ। "

"जी सरकार " फिर वो दोनों ऊपर की मंजिल पर चले गए।

कल साय काल तक रेडियो की बाते होती रही, बज़ार मे।

मंगू ने बताया सब को। सब उसको देखना चाहते थे। पर हर किसी के नसीब मे नहीं था। " मंगू वो जमीन थी प्ले ग्राउंड वाली, उसकी वसीयत तेरे नाम हुई या नहीं। " मंगू एक दम चुप हो गया, " कया बताओ, मदन बाबू जी ने वो जमीन मेरे से बीस रुपए मे खरीद लीं। जबरदस्ती। " ताया को ये बात पची नहीं... गरीब का हक़ मार दिया, कयो?? उसी दिन उसने बात की, मदन ने अनसुनी सी बात कर दी। चौथे दिन ही जाने से पहले "वो मदन के बिलकुल उलट उसने रेडीओ मंगू को दिया, जितना जल्दी हो सके ये घर छोड़ दो, ये मेरा तुमको हुक्म है " मंगू विचारा कया करे। वो खुद फ़स चूका था.... वो रेडिओ लेकर निकल गया... पर बाजार मे जाकर कुछ लोगों को चला कर दिखा दिया... लोग जैसे हैरान परेशान से हो गए। " वाह मंगू जादूगर है ये चीज का कोई मूल्य नहीं है "

मंगू अगले दिन फिर मायूस हालत मे मदन की कार मे बैठा हुआ था। और बाहर शस्त्री संगीत की लम्ही हेक से ही कहानी खत्म होती है। कैसे गरीबो का हक़ मार कर बईमान लोग आमीर होते गए।

(समाप्त ) ----- नीरज शर्मा ---