माही के मुँह से तलाक की बात सुनते ही रीतेश बौखला गया और आवेश में आकर उसने कहा, "अरे नहीं रे माही, तलाक कौन चाहता है। तुझे तलाक दे दूंगा तो मेरी माँ को सुख कैसे मिलेगा? इस घर का कामकाज कौन करेगा बोल...? तेरा घर देखने के बाद माँ ने मुझसे दो ही बातें कही थीं। पहली यह कि लड़की का घर तो बहुत ही बड़ा है, जगह भी अच्छी है। काश यह हमें मिल जाए और दूसरी जो वह हमेशा से चाहती रही हैं कि बहू ले आ तो कामकाज से उनका पीछा छूटे। हमारी केवल दो ही चाहत हैं।"
गुस्से में तिलमिलाते हुए माही ने प्रश्न किया, "मतलब क्या है तुम्हारा? घर देखकर उन्हें अच्छा लगा, आखिर क्या है तुम्हारी चाहत?"
"यदि तू साफ-साफ शब्दों में सुनना चाहती है तो सुन, हमें वह मकान चाहिए जिसमें तेरा परिवार रहता है।"
"क्या...? रीतेश, तुम यह क्या बक रहे हो? तुम्हें ऐसा सोचते हुए भी शर्म नहीं आई। अरे, मैं इकलौती नहीं हूँ, मेरा भाई भी है। मकान तुम्हें कैसे दे दूं?"
"तो ठीक है, तेरे भाई को रास्ते से हटा देते हैं।"
"हटा देते हैं, मतलब क्या है तुम्हारा?"
"मतलब साफ़ तो है, क्यों समझ नहीं आया क्या? स्पष्ट शब्दों में कहना पड़ेगा क्या?"
"हाँ, बोलो ना, मैं स्पष्ट शब्द ही सुनना चाहती हूँ कि आखिर तुम कितने नीचे गिर सकते हो?"
"अरे, तुझे प्रताड़ित करूंगा तो वह ख़ुद ही मकान मेरे नाम कर देगा और यदि फिर भी नहीं किया तो तुझे गायब कर दूंगा। उसके बाद तेरे भाई को ब्लैकमेल करूंगा। खून वगैरह नहीं करता मैं, उससे तो मैं ख़ुद ही फंस जाऊंगा, समझी? अरे, तुझसे पहले भी एक थी, जिसने हमारा कहना नहीं माना था।"
यह वाक्य सुनते ही माही के कान के पर्दे खुल गए। उसने पूछा, "क्या...? यह क्या कह रहे हो तुम?"
"हाँ, तू समझ जा वरना...!"
"वरना क्या रीतेश?"
"उसने मेरी बात ना मान कर गलती कर दी थी तो हम लोगों ने उसे रास्ते से हटा दिया और ऐसी चाल चली कि हमें कुछ करना ही नहीं पड़ा। लगता है तेरे साथ भी ऐसा ही कुछ करना पड़ेगा।"
अपने आंसुओं को पोछते हुए माही ने कहा, "मतलब तुम पहले भी किसी के साथ शादी कर चुके हो?"
"तो इसमें क्या बड़ी बात है, लेकिन मैं बेदाग हूँ, मुझ पर कोई दाग नहीं लगा है। उसने ख़ुद ही ख़ुद को ख़त्म कर लिया। बेचारी गुस्से में हमारे घर से स्कूटी चला कर अपने मायके जाने के लिए निकली ताकि यहाँ की सारी बातें उन्हें बताकर हमें फंसा सके। हम यह तो समझ ही चुके थे कि इसके घर से कुछ भी मिलने वाला नहीं है।"
"तो फिर क्या रीतेश?"
"फिर उसको एक ट्रक ने टक्कर मार दी। रास्ते में ही दम टूट गया बेचारी का। इस बात को अभी तीन साल ही तो हुए हैं। इन तीन सालों में मेरी माँ काम कर करके थक गई, इसीलिए मुझे तुम्हें पटा कर अपने घर लाना पड़ा।"
माही ने आगे बढ़कर रीतेश को चांटा मारने के लिए जैसे ही हाथ उठाया, रीतेश ने उसके हाथ को पकड़ कर मरोड़ते हुए कहा, "ऐसा सोचना भी मत। चुपचाप काम कर और शांति से घर में रह, समझी? रात को मेरा काम करना, सुबह माँ का। इसके अलावा अब तेरे पास और कोई रास्ता नहीं है।"
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः