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📖 अध्याय 2: ख़्वाबों में तेरा नाम
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1. सर्द हवाओं में दिल की दस्तक
लखनऊ की शामें वाकई कुछ अलग होती हैं।
धूप धीरे-धीरे शहर के बुज़ुर्ग मकानों की छतों पर उतरती, फिर सायों में घुल जाती। हवा में समोसे की खुशबू, हँसी के टुकड़े, और कॉलेज की घंटी की अनसुनी आवाज़ हर तरफ तैर रही थी।
ज़ारिन एक कोने में बैठी अपनी डायरी में कुछ लिख रही थी। उसके पन्नों पर सिर्फ अल्फाज़ नहीं थे — उसकी धड़कनें थीं। उसके दिल की धड़कनें अब एक नाम पर अटक जाती थीं — आरिज़।
> “नीलो, क्या कभी तुमने किसी की आँखों में बसी ख़ामोशी से मोहब्बत की है?”
ज़ारिन ने खामोशी तोड़ते हुए पूछा।
नीलो ने मुस्कराकर कहा, “तेरा मतलब वही लड़का जिसकी तुझे हर जगह तलाश रहती है?”
ज़ारिन हल्का सा झेंप गई।
हाथों में पकड़ा पेन डायरी के किनारे पर घिसटने लगा।
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2. पहली नज़र, पहला असर
कॉलेज के पहले दिन वो लम्हा अभी भी ज़ारिन के दिल में ताज़ा था।
कॉरिडोर में हल्की सी ठोकर से ज़ारिन की किताबें ज़मीन पर गिर पड़ी थीं। झुकने से पहले ही किसी ने सारी किताबें एक साथ समेट दीं।
> “तुम्हारी किताब।”
आवाज़ में अजीब सी संजीदगी थी।
उसने सर उठाकर देखा — लंबा, सादा-सा लड़का, आँखों में ठहरी हुई ख़ामोशी।
आरिज़।
उसने न मुस्कराया, न कुछ और कहा। बस किताब देकर चला गया।
मगर उस ख़ामोश मुलाक़ात ने ज़ारिन के अंदर कुछ जगा दिया था — जो अब तक सोया हुआ था।
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3. डायरी के पन्नों पर उसका नाम
उस रात ज़ारिन ने पहली बार डायरी में उसका ज़िक्र किया।
> “वो कुछ नहीं बोला, मगर जैसे सब कह गया। क्या उसे पता भी है कि उसकी खामोशी ने मुझसे बातें की हैं?”
हर रोज़ अब डायरी उसके बिना अधूरी लगती।
हर पन्ना किसी बेनाम एहसास का घर बन गया था।
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4. कॉलेज फेस्ट और बढ़ती दूरी
कॉलेज का सालाना उत्सव आने वाला था।
चारों ओर रंग-बिरंगी सजावटें, मंच पर अभ्यास, और हर छात्र के चेहरे पर उत्साह।
नीलो ने ज़ारिन का नाम फेस्ट की डांस परफॉर्मेंस के लिए भेज दिया।
> “नीलो! तुझे पता है मैं डांस नहीं करती।”
“पर आरिज़ तो म्यूज़िक टीम में है… तुम्हें स्टेज पर देखकर शायद बोल ही दे कुछ।”
ज़ारिन मुस्कराई — मगर उसके दिल में एक डर सा समा गया था।
क्या वो उस लड़के की नज़रों में कहीं थी भी?
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5. संगीत की धुन और अनकहे अल्फाज़
रिहर्सल का पहला दिन।
ज़ारिन मंच पर अभ्यास कर रही थी, जब उसने सुना — तबले की थाप के साथ एक मधुर संगीत की रचना। उसकी आँखें अपने आप उस ओर घूम गईं।
वहीं था वो — आरिज़।
मंच से नीचे, हल्की सी झुकी नज़रें, उंगलियाँ तबले पर थिरक रही थीं।
हर रिहर्सल में दोनों आमने-सामने होते, मगर एक लफ़्ज़ भी नहीं निकलता।
एक दिन, जब सब जा चुके थे, ज़ारिन अपनी नोटबुक वहीं छोड़ आई।
जब लौटकर आई, तो देखा — आरिज़ वही नोटबुक उलट-पलट कर देख रहा था।
> “सॉरी… बस नाम देखा। तुम्हारी लिखावट बहुत साफ़ है।”
उसने कहा।
इतना छोटा वाक्य, मगर ज़ारिन के दिल में जैसे घंटियाँ बज उठीं।
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6. वो रात, जब ख़्वाबों ने नाम लिया
उस रात ज़ारिन की नींद जल्दी नहीं आई।
हर बार आँखें बंद करती, वही आवाज़ — “तुम्हारी लिखावट बहुत साफ़ है” — उसके कानों में गूंजती।
ख़्वाब में उसने देखा कि वो एक सुनसान गली में चल रही है, और कोई पीछे-पीछे चल रहा है। उसने पलटकर देखा — वो आरिज़ था।
मगर वो कुछ नहीं बोल रहा था। बस देख रहा था — गहराई से।
> “कौन हो तुम मेरे अंदर... जो हर ख़्वाब में मेरी तन्हाई को चुरा लेता है?”
उसने ख़्वाब में ही कहा।
ज़ारिन की आँख खुली तो दिल की धड़कनें तेज़ थीं।
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7. डायरी की आख़िरी रात
> “शायद मोहब्बत लफ़्ज़ नहीं मांगती।
वो एक नज़र, एक साज की थाप, या किसी अधूरे जुमले में भी हो सकती है।
आरिज़… तू मेरे ख्वाबों में आता है, पर क्या तू जानता भी है?”
उसने लिखा और पन्ना बंद कर दिया।
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8. इत्तेफाक़... या इरादा?
अगले दिन रिहर्सल के बाद, आरिज़ पहली बार उसके पास आया।
> “तुम जब डांस करती हो... तो लगता है जैसे हर थाप को समझती हो। तुम म्यूज़िक पढ़ती हो क्या?”
ज़ारिन ने धीमे से सिर हिलाया।
> “नहीं… पर तुम्हारी तबले की थाप को दिल समझता है।”
कुछ पल दोनों खामोश रहे…
मगर इस बार वो खामोशी भारी नहीं थी। उसमें कोई सुकून था।
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🌸 समाप्त — अध्याय 2
अगले अध्याय में:
“दिल के आईने में पहली दरार” — जब ज़ारिन को पता चलता है कि आरिज़ की ज़िंदगी में कोई और भी है… या शायद नहीं?
क्रमशः---