हम जिस सदी में चल रहे है, हमें रूढ़िवादी सोच की जंजीर को तोड़कर ही आगे बढ़ना होगा। हम आधुनिक एवं शिक्षित समाज की कल्पना रूढ़िवादी एवं पारंपरिक विचारों को साथ लेकर नहीं कर सकते है।
अपनी सभ्यता एवं संस्कृति का निर्वहन नहीं करते अपितु समाज के रूढ़िवाद को प्रश्रय देते है। हम अपनी आनेवाली पीढ़ी को सभ्यता के बारे में नहीं बताते लेकिन रूढ़िवादी सोच को ज़रूर प्रखर करते है। समय के साथ अपने बच्चों को उनकी अपनी इच्छाओं के साथ जीने की छूट मिलनी ही चाहिये।
सामाजिक दिखावा के लिए हम अपनी रूढ़िवादी विचार अपने आने वाले पीढ़ी पे थोपते है। हर पीढ़ी से पहले वाले अपने पीढ़ी को सभ्य और सुसंस्कृत बताते है। इसलिए अपने विचारों को थोपना चाहते है। कौन सी पढ़ाई करनी है, कौन सा नौकरी करना है, क्या ख़ाना है, क्या पहनना है, शादी कब किससे करना है, ये तमाम बेतुकी बातों को अपने बच्चों पे थोपना चाहते है। सिर्फ़ सामाज में अपने आप को श्रेष्ट दिखाने के लिए। लड़का और लड़की में भेद- भाव, सब के काम को अलग-अलग बाटना। जिन सब की वजह से बच्चों के अंदर हीन भावना आती है और उनका मनोबल भी आहत होता है। इस पीढ़ी को खुली हवा में जीने दे, उनके सहयोगी बने बाधक नहीं।
देश आज़ाद हुआ है, परंतु हम रूढ़िवादी परंपराओं की सामाजिक सोच में जकड़े हुए है। हमारी विचारधारा को समाज की सोच की तराज़ू से परख कर ही साँचें में ढाला गया है। पीढ़ी का मार्गदर्शन समाज की मान्यताओं और प्रचलित विचारों के आधार पे ही होता रहा है। उनकी शिक्षा उनका कैरीअर, नौकरी, शादी-विवाह सब कुछ समाज के नक़्शे कदम पे ही होता रहा। उन्हें इन परंपराओं का विरोध करने का कोई नैतिक बल नहीं होने की वजह से समर्पित रहे परंतु जब आगे की पीढ़ी के लिए इन परंपरागत सामाजिक बंधनों से बाहर लेकर आने की सोच हो तो कभी उसका विरोध करते हुए नयी पीढ़ी के साथ नहीं आये। बल्कि अपने अधूरी आकांक्षाओं को पूरा होने की चाह लिए अगली पीढ़ी को विरासत मिल गई। समाज में प्रचलित परंपरा के साथ साथ उनकी अधूरी आकांक्षा को पूरा करना भी नयी पीढ़ी की जिम्मदारी हो गई।
समाज को आईना दिखाने के लिए समय समय पे कुछ फ़िल्म भी आयी जैसे- थ्री इडिअट्स, जिसमें समाज की नयी पीढ़ी की सारी मजबूरी को दिखाया गया, कुछ तो आत्महत्या जैसी आक्रांत आक्रोश तक पहुँच गया। परंतु हमारा समाज और हमारी पीढ़ी इन सभी पहलुओं को नज़र अन्दाज़ कर सिर्फ़ मनोरंजन ही कर पाये। कोई बदलाव नहीं, परंपरा बदलने की नयी पहल बिलकुल ही नयी।
निस्संदेह,हमारा देश द्रुत गति से विकसित हो रहा है। इसकी वजह समाज के वैसे गिने चुने वर्ग ही है जो अग्रगामी सोच रखते है। और इन सामाजिक परंपराओं से परे स्वस्थ समाज की कल्पना करते हुए समय के साथ अपनी सभ्यता एवं संस्कृति के अनुरूप नयी पीढ़ी को उनकी उड़ान के लिए मुक्त किए है। आज की युवा पीढ़ी कि ऊर्जा उनकी क्षमता उनका लक्ष्य उनकी दृष्टि अद्भुत है। युवा शक्ति को समझना ही नहीं मानना भी होगा। और उन्हें अपने जीवन के उड़ान के लिये स्वतंत्र भी रखना होगा।