सिया – एक सीधी-सादी, भावुक लड़की, जिसे अपनी दोस्ती से ऊपर कुछ नहींजान्हवी – एक महत्वाकांक्षी, बेबाक और बिंदास लड़की, जिसे लगता है दुनिया से लड़ने के लिए अकेला होना पड़ता है
भाग 1: पहली मुलाकात
कक्षा 11 की पहली सुबह थी। सिया नई स्कूल में आई थी — चुप, सहमी और किसी को जानती नहीं थी।
जान्हवी पहले से ही पॉपुलर थी — सब उसे जानते थे, और वो किसी की परवाह नहीं करती थी।
टीचर ने सिया को जान्हवी के बगल वाली सीट पर बैठा दिया।
“Hi,” सिया ने झिझकते हुए कहा।
“Don’t worry, यहां ज़्यादा अच्छे दोस्त नहीं मिलते… पर मैं ठीक हूँ,” जान्हवी ने बिना देखे जवाब दिया।
उसी पल कुछ जुड़ गया — दो बिल्कुल अलग लड़कियाँ, लेकिन कुछ टूटा-सा उनके अंदर एक जैसा था।
भाग 2: एक-दूसरे की दुनिया
धीरे-धीरे, दोनों साथ खाना खाने लगीं, क्लास के बाद साथ लाइब्रेरी जातीं, और बारिश में भागकर वड़ा पाव खातीं।
जान्हवी ने सिया को सिखाया कि कभी-कभी ‘ना’ कहना ज़रूरी होता है।
सिया ने जान्हवी को सिखाया कि कभी-कभी ‘रोना’ भी ताकत है।
जहां जान्हवी अपनी मां से लड़ती थी, सिया उसके लिए चुपचाप चिट्ठी लिखती थी — एक दोस्त की तरह नहीं, एक बहन की तरह।
भाग 3: दूरी का मोड़
बारहवीं के बाद जान्हवी दिल्ली चली गई — मीडिया पढ़ने।
सिया लखनऊ में रह गई — बी.एड के साथ।
फोन कॉल्स घटने लगे। चैट्स पर ‘seen’ आकर रह जाता।
एक दिन, सिया ने सिर्फ एक लाइन भेजी:
“कभी-कभी तुम्हारी सबसे बड़ी ताकत भी तुम्हें सबसे ज़्यादा तोड़ देती है।”
जवाब नहीं आया।
भाग 4: लौट आना
दो साल बाद, अचानक जान्हवी एक शाम उसके दरवाज़े पर खड़ी थी।
आंखें भीगी थीं।
“माफ़ कर दे… मैंने खुद से लड़ते-लड़ते तुझसे लड़ना शुरू कर दिया था।”
सिया ने कोई जवाब नहीं दिया — बस उसे गले लगा लिया।
“तेरे बिना कुछ नहीं लिखा दो सालों से,” जान्हवी फुसफुसाई।
अंतिम पंक्तियाँ:
दोस्ती वो नहीं जो हर दिन बात करे…
बल्कि वो होती है, जो बिन बोले समझ जाए कि तू खो गया है — और तुझे ढूंढ़ने निकल पड़े।
“बदलते रिश्तों के बीच”
भाग 5: नई ज़िंदगी, पुराने लोग
सिया अब एक सरकारी स्कूल में टीचर बन गई थी। सुबह बच्चों को पढ़ाती, शाम को खुद किताबों में खो जाती।
जान्हवी ने एक बड़ी मीडिया कंपनी में नौकरी शुरू कर दी थी। उसके आर्टिकल्स सोशल मीडिया पर वायरल होते थे — लोग उसे जानते थे, पहचानते थे, लेकिन वो जानती थी… उसकी सबसे बड़ी पहचान सिया के लिए ‘जान्हवी’ होना ही था।
एक दिन, रात के 11 बजे फोन आया।
“तू सोई नहीं?”
“सोने से पहले तुझसे बात ना हो, तो नींद आती ही नहीं…” सिया ने कहा।
भाग 6: ज़िंदगी का मोड़ – शादी का निमंत्रण
कुछ महीने बाद, सिया ने एक फोटो भेजी — एक लड़के के साथ।
“विवेक है। माँ-बाबूजी को पसंद आया… और मुझे भी। शादी कर रही हूं। तू आएगी ना?”
जान्हवी ने मुस्कराते हुए जवाब दिया:
“तेरी विदाई में मैं रोई तो मत हंसना, okay?”
शादी हुई — सिया दुल्हन बनी, जान्हवी ने मेहंदी लगाई, संगीत में डांस किया…
पर उसकी आँखों में एक डर छिपा था — “क्या शादी के बाद भी हमारी दोस्ती वही रहेगी?”
अधूरी कॉल्स, अधूरी बातें
अब सिया जल्दी उठती, घर संभालती, स्कूल जाती, पति के साथ वक़्त बिताती —
और जान्हवी की कॉल कभी-कभी मिस हो जाती।
जान्हवी समझती थी। लेकिन समझने से दर्द कम नहीं होता।
एक दिन उसने लिखा:
“तू मेरी ‘सबसे ज़रूरी’ से ‘अगर समय मिले तो’ बन गई है…”
सिया ने जवाब दिया:
“तू आज भी मेरी सबसे ज़रूरी है, पर ज़िंदगी अब बीच में बैठ गई है…”
जब जान्हवी टूटी
जान्हवी को एक दिन बड़ी खबर मिली — वो प्रमोट हो गई थी। लेकिन जब उसने सिया को फोन किया, तो सिया ने कहा,
“विवेक बीमार हैं… अभी हॉस्पिटल में हूं।”
जान्हवी ने खबर वापस जेब में रख दी।
उस दिन उसे समझ आया — “कभी-कभी हम ख़ुशियाँ इसलिए नहीं बाँटते, क्योंकि सामने वाला रो रहा होता है।”
वक़्त का इम्तिहान
एक साल तक दोनों में कोई मुलाकात नहीं हुई।
फिर एक दिन सिया ने बस इतना लिखा:
“बेटी हुई है… नाम सोचने में मदद करेगी?”
जान्हवी ने जवाब दिया:
“शुरुआत ‘स’ से हो, और बाकी दुनिया जितनी खूबसूरत हो।”
दो सखियाँ, फिर एक साथ
सालों बाद, एक कॉफी शॉप में दो औरतें बैठीं — बालों में कुछ सफेदी, चेहरों पर सुकून।
“क्या हमारी बेटियाँ भी इतनी ही पागल दोस्त बनेंगी?” जान्हवी ने पूछा।
सिया हँसी।
“बस हमारी तरह एक-दूसरे को कभी पूरा ना खोएं, यही दुआ है।”
अंतिम पंक्तियाँ:
कुछ रिश्ते उम्र से नहीं, वक़्त की चोटों से बनते हैं।
और अगर वो सच्चे हों — तो चाहे दूरी हो, शादी हो या सन्नाटा…
वो रिश्ता कभी टूटता नहीं। बस थोड़ा ठहर जाता है।