Nehru Files - 1 in Hindi Anything by Rachel Abraham books and stories PDF | नेहरू फाइल्स - भूल-1

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नेहरू फाइल्स - भूल-1

[ 1 आजादी के पूर्व की भूले ]

नेहरू की भूलों की सूची में ‘आजादी से पूर्व की भूलों’ के तहत अधिक भूलें दर्ज नहीं हैं, जबकि उनकी ‘आजादी के बाद की भूलों’ की सूची काफी लंबी है और ऐसा शायद इसलिए है; क्योंकि आजादी से पहले सब चीजें सिर्फ नेहरू के नियंत्रण में नहीं थीं। उस समय महात्मा गांधी शीर्षपर थे और उन्हें काबू में रखने के लिए उनके ही कद के कई अन्य नेता भी मौजूद थे। इसके बावजूद नेहरू को जब कभी भी कोई आधिकारिक पद सँभालने का मौका मिला, उन्होंने मनमानी की। ऐसा एक अवसर खुद ही उनके सामने आ गया। 

भूल-1 
सन् 1929 में कांग्रेस अध्यक्ष पद को हड़पना 

सन् 1929 में गांधी द्वारा जवाहरलाल नेहरू की अनुचित तरीके से सहायता की गई और सरदार पटेल के मुकाबले उन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया गया; जबकि निम्नलिखित तथ्य सरदार पटेल को इस पद के लिए सबसे उपयुक्त उम्मीदवार बनाते थे— 
सरदार पटेल ने सन् 1928 में बारदोली सत्याग्रह का नेतृत्व किया, जिसकी जबरदस्त सफलता ने उन्हें एक राष्ट्रीय नायक बना दिया और उन्हें ‘सरदार’ की उपाधि से नवाजा गया। बारदोली सत्याग्रह गांधीवादी अहिंसक तकनीक का पहला सफल व्यावहारिक कार्यान्वयन था, जिसमें आम लोगों के साथ ग्रामीण जनता भी शामिल थी। नेहरू के पास ऐसी साख का पूर्ण अभाव था। 

इसके अलावा, सरदार पटेल जवाहरलाल से कहीं अधिक वरिष्ठ थे और कहीं अधिक संख्या में प्रदेश कांग्रेस कार्यसमितियों (पी.सी.सी. : अध्यक्ष का चुनाव करने वाली विधायी समिति) ने जवाहरलाल के मुकाबले उनके नाम की सिफारिश की थी। इसके बावजूद गांधी ने अन्यायपूर्ण और अलोकतांत्रिक तरीके से पटेल से अपना नाम वापस लेने को कहा! ऐसा करते हुए गांधी ने एक अन्यायपूर्ण सामाजिक प्रतिष्ठा क्रम को स्थापित करने का प्रयास किया, जिसमें जवाहरलाल सरदार पटेल से पहले आते थे। बाद में नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने लिखा—“कांग्रेस के सामान्य हलकों की भावना यह थी कि यह सम्मान सरदार वल्लभभाई को ही मिलना चाहिए था।” (आर.जी.5/322) आचार्य जे.बी. कृपलानी ने भी टिप्पणी की थी कि जवाहरलाल को पसंद करने के गांधी के कारण “राजनीतिक न होकर बेहद व्यक्तिगत थे। दोनों एक-दूसरे के साथ भावनात्मक रूप से जुड़े थे, चाहे वे इस बात को अस्वीकार करें।” (आर.जी./183) 

जवाहरलाल के अनुपयुक्त उत्थान में उनके पिता मोतीलाल नेहरू की प्रमुख भूमिका थी। मोतीलाल सन् 1928 में कांग्रेस के अध्यक्ष थे। उनकी इच्छा थी कि उनके बाद उनकी कुरसी विरासत में उनके बेटे को मिले। पटेल की बारदोली की विजय के बाद मोतीलाल ने 11 जुलाई, 1928 को गांधी को लिखा :
“मेरा बेहद स्पष्टता के साथ यह मानना है कि वल्लभभाई मौजूदा समय के सबसे बड़े नायक हैं और हम कम-से-कम यह तो कर ही सकते हैं कि उन्हें ताज की पेशकश (उन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष बनाएँ) की जाए। उनके अध्यक्ष न बन पाने की स्थिति में मेरा ऐसा मानना है कि जवाहरलाल सभी परिस्थितियों में सबसे अच्छा विकल्प रहेगा।” (आर.जी.2/एल-2984) 

मोतीलाल ने जवाहरलाल के पक्ष में गांधी के सामने सक्रिय रूप से मत-याचना की। भाई- भतीजावाद और आजादी के लिए ‘लड़ाई’ साथ-साथ चल रहे थे—मोतीलाल के बाद की नेहरू पीढ़ी ने यह सुनिश्चित किया कि उनके परिवार की देखभाल अच्छे तरीके से होती रहे—और यह भी कि यह परिवार राष्ट्र से पहले आए! अंततोगत्वा, देश ने मोतीलाल के इस निर्लज्ज भाई-भतीजावाद की एक बड़ी कीमत चुकाई, जिसका अनुसरण उनके राजवंश ने बेहद सजगता और बेहतरीन तरीके से किया। 

वर्ष 1929-30 के दौरान की अध्यक्षता विशेष रूप से काफी महत्त्वपूर्ण थी—इस बात की पूरी संभावना थी कि अध्यक्ष बननेवाला व्यक्ति गांधी का उत्तराधिकारी बनेगा और उसे ही कांग्रेस के लक्ष्य को ‘पूर्ण स्वराज’ या फिर संपूर्ण स्वतंत्रता को घोषित करना था (इतनी देर से!)। 

इसके अलावा, जवाहरलाल सन् 1930 में लगातार दूसरे कार्यकाल के लिए गांधी के कृपापात्र बने और फिर उसके बाद 1936 और 1937 में भी दो बार के कार्यकाल के लिए और फिर इन सबसे ऊपर था 1946 का कार्यकाल (भूल#6)! ऐसा विशेषाधिकार किसी अन्य नेता को नहीं प्राप्त होता था, यहाँ तक कि सरदार पटेल को भी सिर्फ एक ही बार, वह भी सिर्फ एक ही साल के लिए, पार्टी का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था! 

घरेलू गुजराती (पटेल) साथी के ऊपर पाश्चात्य रंग में रँगे नेहरू के प्रति बुजुर्ग व्यक्ति की कमजोरी ‘स्वदेशी’ गांधी के आत्म-विरोधाभासी व्यक्तित्व का एक और पहलू था। जवाहरलाल गांधी का ‘आध्यात्मिक पुत्र’ बनने में कैसे सफल रहे, यह एक रहस्य ही है। ‘द मैन आई मेट’ में एम.एन. रॉय लिखते हैं—“इस बात पर संदेह करने का उचित कारण है कि क्या नेहरू गांधी का आध्यात्मिक पुत्र बने बिना भारतीय राष्ट्रवाद के नायक बन सकते थे? लोकप्रिय होने के लिए नेहरू को अपने स्वयं के व्यक्तित्व को कुचलना पड़ा।”