Chapter 8: दरारें
Siya के मन में हलचल थी।
Aarav की बातों ने उसके दिल में सवाल खड़े कर दिए थे — क्या वो वाक़ई Singh को जानती है? क्या Aarav सिर्फ़ जल रहा है या कुछ सच्चाई भी है उसकी बातों में?
दूसरे ही दिन Siya ने Mr. Singh से मुलाक़ात की।
कॉफी की चुस्की के बीच वो अचानक बोली —
“आपसे एक बात पूछनी है... क्या आप सच में उतने ही साफ़ हैं जितना दिखते हैं?”
Mr. Singh कुछ पल चुप रहा। फिर मुस्कुराया, और कहा:
> “मैं आईना नहीं जो हर बार सच दिखाऊँ,
मैं वो राज़ हूँ... जिसे समझने के लिए दिल से पढ़ना पड़ता है।”
Siya उसकी बातों में फिर से खो गई। उसकी हर बात में शायरी होती थी, और हर शायरी में एक छुपा हुआ दर्द। पर क्या ये दर्द सच था? या सिर्फ़ दिखावा?
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उधर, Aarav अब Mr. Singh की हर हरकत पर नज़र रखने लगा था।
उसने Singh के ऑफिस, मीटिंग्स और क्लब तक की जानकारी निकालनी शुरू की। वो धीरे-धीरे Singh की अंधेरी दुनिया को समझने की कोशिश कर रहा था — पर यह कोशिश उसके दिल को और ज़्यादा उलझा रही थी।
एक रात, Aarav ने Singh को किसी संदिग्ध आदमी से मिलते देखा।
झाड़ियों के पीछे छुपकर उसने सुना —
> “उस लड़की को संभालो... Siya किसी और की हो, ये मैं नहीं देख सकता,”
Mr. Singh की आवाज़ ठंडी और गंभीर थी।
Aarav चौंक गया।
क्या ये इश्क़ था या जुनून?
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अगली सुबह Siya को Singh से एक गिफ्ट मिला — एक पुराने उर्दू दीवान की किताब, जिसमें एक काग़ज़ छुपा था:
> “मोहब्बत अगर बेख़ौफ़ न हो, तो इश्क़ नहीं रह जाती,
मैं तुझसे डरता नहीं… पर खोने का खौफ़ अब डराने लगा है।”
Siya की आँखों में कुछ पल के लिए नमी आ गई। Aarav और Singh — दोनों के इश्क़ में एक बेचैनी थी… पर एक में साफ़दिली थी, दूसरे में रहस्य।
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(जारी...)
Chapter 9: आमना-सामना
बारिश की एक उदास शाम थी।
Siya कैफ़े में नहीं आई थी, लेकिन Aarav वहीं बैठा था — उसी कोने में, जहाँ से वो हर चेहरा, हर हरकत देख सकता था।
और तभी दरवाज़ा खुला... और Mr. Singh अंदर आया।
वो हमेशा की तरह सलीके से कपड़े पहने था, आँखों में वही रहस्यमयी चमक, लेकिन आज चेहरा कुछ सख़्त लग रहा था।
दोनों की निगाहें मिलीं।
कुछ पल की खामोशी... फिर Singh उसके पास आया और धीमे स्वर में बोला —
> “Siya को देखकर तुम बहुत कुछ कह देते हो आँखों से…
लेकिन कुछ कहा नहीं अब तक — क्यों?”
Aarav ने नज़रें चुराई नहीं। सीधा देखा और कहा —
“क्योंकि मैं मोहब्बत जताता नहीं… निभाता हूँ।”
Singh मुस्कुराया। लेकिन उस मुस्कुराहट में अब तल्ख़ी थी।
> “मुझे डर नहीं उनसे जो खुलकर दुश्मनी निभाते हैं,
डर तो उनसे है जो दोस्ती का चोला पहनकर वार करते हैं।”
Aarav समझ गया — Singh को उसकी जासूसी का पता चल चुका था।
फिर Singh ने झुककर कहा —
“तुम्हारी निगाहें बहुत कुछ कहती हैं, लेकिन Siya अब मेरी ज़िंदगी का हिस्सा है। उसे बचाने के लिए मैं कुछ भी कर सकता हूँ… कुछ भी।”
Aarav के हाथों की मुट्ठी कस गई।
“क्या Siya को पता है कि तुम क्या हो?”
Singh थोड़ा पास आया, उसके कंधे पर हाथ रखा और फुसफुसाया —
> “प्यार में सच्चाई से ज़्यादा ज़रूरी होता है एहसास,
और Siya को मेरे एहसास पर यकीन है।”
वो चला गया… लेकिन पीछे एक अजीब सन्नाटा छोड़ गया।
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रात को Aarav अपने कमरे में अकेला बैठा था। Singh की बातें उसके ज़हन में गूंज रही थीं।
क्या Siya सच में Singh से प्यार करने लगी है?
क्या Aarav देर कर चुका है?
उसी वक्त एक कॉल आया… Siya का।
“तुम ठीक हो?”
“हां,” Aarav ने कहा। “तुम?”
Siya थोड़ी देर चुप रही, फिर बोली —
“मुझे तुमसे बात करनी है… जरूरी बात।”
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(जारी...)
Chapter 10: "Main Jalim Nahin..."
Mr. Singh ने Siya के लिए एक बड़ी पार्टी रखी थी — एक शाही शाम, रौशनी से नहाया हुआ महलनुमा हॉल, हर कोना सज़ा हुआ फूलों और फ़व्वारों से।
आज वो Siya से अपने दिल की बात कहने वाला था — खुलकर, बिना किसी शायरी की ओट लिए।
लेकिन उसे नहीं पता था, ये रात सिर्फ़ इज़हार की नहीं, एक इख़्तेताम की भी है।
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🎉 पार्टी शुरू हुई...
Siya एक खूबसूरत सिल्वर गाउन में किसी परी जैसी लग रही थी। Aarav भी आया था — एक कोने में चुपचाप खड़ा। उसकी आंखें Siya पर थीं, लेकिन दिल… किसी अनजाने डर से कांप रहा था।
और तभी Mr. Singh ने माइक पकड़ा।
उसने Siya की तरफ देखा, और अपनी रेशमी आवाज़ में कहा:
> “Main jalim nahin…
बस मोहब्बत को बेइंतेहा चाहता हूँ।
अगर ये जुर्म है,
तो हर सज़ा मंज़ूर है…”
हॉल में सन्नाटा छा गया।
फिर उसने Siya की तरफ देखा और गहराई से कहा —
> “Tum meri kamzori nahi, meri dua ho…
Tumse juda hone ka khayal bhi, meri rooh se guzarta nahi…”
Siya की आंखों में नमी आ गई। Aarav की मुट्ठियाँ फिर से भींच गईं।
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💣 और तभी…
अचानक एक ज़ोरदार धमाका हुआ।
हॉल की बत्तियाँ गुल हो गईं।
चारों तरफ धुआं, चीख-पुकार, भगदड़… और Mr. Singh खून में लथपथ ज़मीन पर गिरा हुआ।
Siya चिल्लाई — “Singh!!”
Aarav स्तब्ध खड़ा था, जैसे कोई सपना टूट रहा हो।
Singh की साँसें उखड़ रही थीं… पर होठों पर एक आख़िरी शायरी थी:
> “Maut bhi kya cheez hai…
Jise chaha usi ke haathon,
Zindagi chhodनी पड़ी…”
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सायरन की आवाज़ें दूर से आती रहीं।
Aarav वहीं खड़ा था — चुपचाप। उसकी आँखों में कुछ था… अफसोस? या साज़िश?
Siya ने Singh का हाथ थाम रखा था।
और Mr. Singh की आंखें धीरे-धीरे बंद होती चली गईं…
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(जारी...)