Manzile - 35 in Hindi Anything by Neeraj Sharma books and stories PDF | मंजिले - भाग 35

Featured Books
  • Super Villain Series - Part 15

    : मायावी नगरी — छल की भूमिधूलभरे रास्ते पर अर्णव अकेला चल रह...

  • विषैला इश्क - 9

    निशा और उसकी बेटी आद्या को एक रहस्यमयी नाग सेविका नागलोक से...

  • महाशक्ति - 40

    महाशक्ति – एपिसोड 40"राक्षसी प्रेम और आत्म-द्वंद्व"--- प्रस्...

  • लास्ट मर्डर - भाग 5

    ऑफिस का सारा काम कर्ण मिश्रा जो की ऑफिस का मैनेजर था। वह देख...

  • अनजानी कहानी - 4

    Priya house:पूर्वी गोदावरी (काकीनाडा) ज़िले में वरिष्ठ कलेक्...

Categories
Share

मंजिले - भाग 35

एक हादसा ----- ये एपिसोड लिखा जा रहा है। सच्ची घटना, समय पूछोगे तो नहीं बता सकता। मंजिले कहानी सगरहे की उनमत कहानी ------"एक हादसा "

                                            समय अच्छा या बुरा नहीं होता, खुद ही हम इसको बनाने वाले है। कारसाज तो सभी को दो जेबे लगा कर ही इस धरती मे भेजता है।

दो जेबे मतलब उच्चे और नीचे जाने की व्यस्त चाबी।

                         तुम कया हो, ये जानने का अधिकार तुम को नही हो। ये लोग तुम्हे तराजू से तोलेंगे। मंत्री हो तो हर खुशखबरी तुमाहरी दिखावा होंगी। इसे सत्य मत समझ लेना। संत हो तो दुनिया से दूर होने की कोशिश करो, जुबा कड़वी रखो। बिजनेस मैन हो तो घाटे मैं हड़बाज़ी मत करो। स्टूडेंट हो तो आपने आप को तीस मार खान मत समझो। गायक हो तो, फुकरेपंथी छोड़ दो।

बाते लिखनी कठिन है, जितनी करनी।

                              तुम एक अच्छे बाप बन कर दिखा दो, तो मान जाउगा। कहने को कुछ भी कह लो, समझने की आदत डाल लो, कभी आपने आप को  कभी इमारत मत समझना। कि लोग तुम्हे देखेंगे। नहीं कभी नहीं।

                               सुनामी आ चुकी थी, आँखो मे, वो जा चूका था, चार कंधो पे सवार हो कर। उदास था lमौसम, हर घटा उदास हो गयी थी। हर रात की तरा महताब आज भी चढ़ा था, पर वो गुमसुम था। कितना किसी को समझा सकते है, नहीं हरगिज नहीं। पद्रा दिन के बाद जयदाद की वसीयत पढ़ी गयी।

                            जिसमे बड़े लडके को एक चलती बस के सिवा कुछ नहीं मिला। बाकी को किसी को कारखना मिल गया। किसी को बार रेस्टोरेंट मिल गया। किसी को कोठी मिल गयी, बहनो को आधा बाप की कमाई का  हिस्सा मिल गया। बड़े लडके युसफ को न ठिकाना मिला न आपनी तो शादी हुई नहीं,  कैसा इम्तिहान था ये। मुड़ कर कया देखे। देखने को कुछ नहीं था। पापा जी तहसीलदार रिटायर हुए थे। कब आटेक हुआ.... बड़ा इस लिए रो रहा था, जिसे वो इतना प्यार करता था । वो आज इस तरा के बस स्टॉप पर खड़ा था...

यहां से कोई भी आता जाता नहीं था। उसकी जिंदगी अकेला हो गयी। किस से बात करे। कोई नहीं था। --------------------  " जिस से इतना किया, वो भी एक बस मेरे नाम कर गया ?  कयो? "

ये हादसा ही तो था। पर इग्लैंड के टेक्स ही इतने थे बस छोड़ कर सब भरे गए। सरकार ने एक महीने का टाइम देकर सब कुछ ख़ारिज, हो जाना था। मतलब सरकार को सब जाना था।

ज़ब पता चला बड़े को तो वो एक बार फिर झुक गया बाप के आगे। उसने शायद सबठीक ही किया था। पता किया टेक्स रोड का तो हैरान था साल का पहले ही पापा जी ने उतारा हुआ था। वो बस इग्लैंड मे परमानेंट पोड कमा रही थी.... फिर एक से दो। बसे खरीद करता रहा।

ये साल उसने दो बसे खरीद लीं थी। पंताली का हो गया था। चर्च मे शादी उसकी देह तोड़ मेहनत से हुई थी। दो साल बाद बच्चा.... नाम प्रीतम युसफ था।

पंजाब की पेशन माँ को मिलती थी, जो कभी भी इग्लैंड नहीं गयी। अब बड़ा भी पत्नी बच्चे समेत बसों को वेच कर पंजाब के सगरूर जिले मे आ गया था। पैसो की कोई कमी नहीं थी। चार थे लाइफ सोने के माफिक थी।

ये सच्ची घटना लिखने की कोशिश की गयी है। इसका रूपानंतर थोड़ा कल्पनिक कह सकते है।

ये कहानी अगर अब किसी पर लागु होती हो, तो मै जिम्मेदारी नहीं लेता।

(चलदा )                      ---------- नीरज शर्मा