🕉️ रामावतार: मर्यादा पुरुषोत्तम की दिव्य गाथा
त्रेता युग का समय था। पृथ्वी अधर्म, अहंकार और राक्षसी शक्तियों के बोझ से कांप रही थी। रावण का अत्याचार चरम पर था — उसने देवताओं को भी अपमानित किया था, यज्ञ-हवन बंद करवा दिए थे और साधु-संतों को मारा जा रहा था। तब सभी देवता ब्रह्मा जी के पास पहुँचे और उन्होंने भगवान विष्णु से प्रार्थना की कि वो स्वयं धरती पर अवतार लें और रावण जैसे अधर्मी का अंत करें। भगवान विष्णु ने मुस्कुराते हुए कहा, “अब मैं राम के रूप में अवतार लेकर अधर्म का अंत करूंगा और धर्म की स्थापना करूंगा।”
अवध देश की राजधानी अयोध्या में महाराज दशरथ राज करते थे। उनकी तीन रानियाँ थीं — कौशल्या, कैकेयी और सुमित्रा, लेकिन उन्हें संतान नहीं थी। तब उन्होंने पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया। यज्ञ समाप्त होने पर अग्निदेव ने उन्हें दिव्य खीर दी, जिसे तीनों रानियों को बांटा गया। समय आने पर कौशल्या के गर्भ से राम, कैकेयी से भरत और सुमित्रा से लक्ष्मण व शत्रुघ्न का जन्म हुआ।
राम बचपन से ही शांत, विनम्र, और मर्यादा से युक्त थे। वे हर किसी से प्रेम करते थे, हमेशा सत्य बोलते थे और गुरुओं की सेवा में तत्पर रहते थे। लक्ष्मण हमेशा उनके साथ रहते थे, जैसे छाया शरीर से जुड़ी होती है। एक दिन ऋषि विश्वामित्र आए और राम व लक्ष्मण को साथ ले गए ताकि वे राक्षसों से यज्ञों की रक्षा करें। राम ने ताड़का और सुबाहु जैसे राक्षसों का वध किया और ऋषियों को सुरक्षा दी।
जनकपुरी में राजा जनक ने अपनी पुत्री सीता के स्वयंवर का आयोजन किया था। शर्त थी कि जो भी शिव के धनुष को उठाकर उसे तोड़ेगा, वही सीता से विवाह करेगा। कई राजा धनुष हिला भी न सके, लेकिन राम ने उसे उठाया और धनुष को तोड़ दिया। सीता ने उन्हें वरमाला पहनाई और विवाह संपन्न हुआ।
समय बीतता गया। जब राजा दशरथ ने राम को युवराज घोषित किया, तो कैकेयी ने दो वरदान माँग लिए — राम को 14 वर्ष का वनवास और भरत को राज्य। राम ने पिता की वचनबद्धता निभाई और बिना किसी विरोध के वन जाने को तैयार हो गए। सीता और लक्ष्मण भी उनके साथ गए।
वनवास के दौरान राम ने कई ऋषि-मुनियों से भेंट की, अनेक राक्षसों का संहार किया, और धर्म का पालन किया। एक दिन रावण ने छलपूर्वक सीता का अपहरण कर लिया और उन्हें लंका ले गया। राम ने वानरराज सुग्रीव से मित्रता की और हनुमान को लंका भेजा। हनुमान ने समुद्र पार कर सीता माता को खोजा और उन्हें राम का संदेश दिया।
राम ने समुद्र पर सेतु बनवाया, जिसे आज "रामसेतु" कहते हैं। फिर उन्होंने अपनी सेना के साथ लंका पर चढ़ाई की। युद्ध भयंकर था। रावण का बल बहुत बड़ा था, लेकिन अंततः राम ने ब्रह्मास्त्र से उसका वध किया। सीता को वापस लाकर, उन्होंने अग्निपरीक्षा के माध्यम से समाज को उनकी पवित्रता का प्रमाण दिया।
जब राम, सीता और लक्ष्मण अयोध्या लौटे, तो नगरवासियों ने दीप जलाकर उनका स्वागत किया। यही दिन दीपावली कहलाया। राम का राज्याभिषेक हुआ और उन्होंने "रामराज्य" की स्थापना की — एक ऐसा राज्य