Bole ke davar tak in Hindi Travel stories by kajal Thakur books and stories PDF | भोले के द्वार तक

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भोले के द्वार तक

 "भोले के द्वार तक – एक यात्रा केदारनाथ की"

भाग 1: सफर की शुरुआत

हर किसी की ज़िंदगी में एक ऐसा मोड़ आता है जब वो खुद से मिलने निकल पड़ता है। मेरे लिए वो मोड़ था – केदारनाथ यात्रा। जून की वो सुबह थी, जब मैं अपने छोटे से बैग और दिल में ढेर सारी उम्मीदें लेकर घर से निकली। मेरे साथ थी मेरी सबसे प्यारी दोस्त काव्या।

हमने दिल्ली से हरिद्वार तक ट्रेन ली, और फिर वहां से ऋषिकेश। ऋषिकेश पहुंचते ही गंगा आरती में डूब जाना, जैसे आत्मा को पहली सांस मिली हो।

अगली सुबह हम निकल पड़े सोनप्रयाग की ओर, रास्ता खूबसूरत था – हर मोड़ पर प्रकृति ने जैसे अपना सारा श्रृंगार उतार कर रख दिया हो। बीच-बीच में चाय की दुकानें, मुस्कुराते पहाड़ी चेहरे, और हर तरफ "जय केदारनाथ" की गूंज।

भाग 2: चढ़ाई की शुरुआत

गौरीकुंड से पैदल यात्रा शुरू हुई। 18 किलोमीटर की चढ़ाई... लेकिन दिल में भोलेनाथ की भक्ति हो तो शरीर थकता नहीं, बस बढ़ता जाता है। काव्या और मैं शुरुआत में ही हँसी-मज़ाक में चढ़ रहे थे, पर धीरे-धीरे पैर भारी लगने लगे।

बीच रास्ते में बारिश शुरू हो गई। ठंडी हवा, पानी की बूंदें और सामने बर्फीली चोटियाँ – ऐसा दृश्य था जिसे सिर्फ आँखें नहीं, आत्मा भी महसूस कर रही थी।

रास्ते में एक बूढ़ी औरत मिली जो बिना किसी सहारे के चल रही थी, उसकी आँखों में शिव के लिए अटूट श्रद्धा थी। मैंने पूछा, "दादी, इतनी मुश्किल चढ़ाई आप कैसे कर लेती हो?"

वो मुस्कुराईं और बोलीं,"भोले की याद में जो चलता है, उसका थकना मना है बेटा।"

भाग 3: केदारनाथ धाम

शाम होते-होते हम मंदिर परिसर के पास पहुंच गए। वो क्षण जब पहली बार केदारनाथ मंदिर की झलक मिली… मैं रो पड़ी। हजारों फीट की ऊँचाई पर, बर्फ से ढकी पहाड़ियों के बीच, शिव का वो प्राचीन मंदिर – जैसे साक्षात् दिव्यता हमारे सामने खड़ी हो।

हमने रुकने के लिए एक छोटी सी धर्मशाला ली। सुबह 4 बजे उठकर मंदिर दर्शन को पहुंचे। आरती की घंटियों की आवाज, धूप की महक और भक्तों की आंखों में बहती श्रद्धा – वो माहौल शब्दों से परे था।

मंदिर के अंदर प्रवेश करते ही मेरे मन में कुछ भी माँगने की इच्छा नहीं रही। बस एक भावना थी – "धन्य हो भोले, जो तुझ तक पहुंच पाई।"

भाग 4: वापसी और एक बदला हुआ मन

जब हम नीचे लौटे, तो ऐसा लगा जैसे कोई नया जीवन साथ लेकर आ रहे हों। अब शिकायतें कम थीं, आभार ज्यादा था। शांति हर धड़कन में बस गई थी।

उस यात्रा ने मुझे सिखाया –

"ज़िंदगी की सबसे कठिन चढ़ाइयों के बाद ही सबसे सुंदर दृश्य मिलते हैं।"

"भोलेनाथ की शरण में जो गया, उसका जीवन बदल गया…"

बहुत बढ़िया, तो आइए अब इस यात्रा का भाग 5 लिखते हैं — जहां केदारनाथ की यह आध्यात्मिक यात्रा धीरे-धीरे एक भावनात्मक और प्रेमभरी कहानी में बदलने लगती है।भाग 5: वो अनजाना मुसाफ़िर

केदारनाथ दर्शन के अगले दिन हम वापसी की तैयारी कर रहे थे। मौसम साफ़ था, पर मन भारी। तभी मंदिर के पीछे वाले घाट पर बैठे एक युवा ने हमसे पूछा—

"आप पहली बार आई हैं यहाँ?"

वो बहुत साधारण कपड़ों में था, पर उसकी आँखों में गहराई थी, जैसे बहुत कुछ सह चुका हो, जान चुका हो। नाम बताया – "अर्णव"।

उसने बताया कि वो पिछले तीन सालों से हर साल अकेले केदारनाथ आता है — क्योंकि ये वही जगह थी जहाँ उसने अपनी माँ को खोया था, और वही जगह थी जहाँ उसे खुद को वापस पाया।

हम तीनों साथ में घाट के पास बैठे, चाय पी और बातों का एक सिलसिला शुरू हो गया। उसके शब्दों में इतनी सादगी और सच्चाई थी कि मेरी दोस्त काव्या भी मंत्रमुग्ध हो गई।

अर्णव ने कहा—

"केदारनाथ में लोग शिव से मिलते हैं, और कभी-कभी खुद से भी…"

उस एक वाक्य ने कुछ ऐसा किया कि मैं खामोश हो गई। जैसे मेरे दिल के किसी कोने में कुछ पिघल रहा था।भाग 6: बारिश, बातें और बदलता मन

अगले दिन हम सब एक साथ वापसी के लिए पैदल निकले। बीच रास्ते में फिर बारिश शुरू हो गई। सबने रेनकोट पहने, पर अर्णव छतरी लेकर मेरे साथ चल रहा था। हर कदम पर उसकी बातें मेरी सोच को छूने लगीं।

रास्ते में एक जगह फिसलन भरी थी। मैं गिरते-गिरते बची तो उसने मेरा हाथ पकड़ लिया… एक पल के लिए वक्त ठहर गया।

"भरोसा हमेशा खुद पर रखो, और अगर कभी लड़खड़ाओ तो कोई न कोई संभालने ज़रूर आता है," उसने धीरे से कहा।

उस पल में केदारनाथ की यात्रा सिर्फ धार्मिक नहीं रही… अब ये दिल से जुड़ गई थी। अर्णव कोई आम मुसाफिर नहीं था। वो जैसे मेरी अधूरी कहानी का अगला पन्ना बनता जा रहा था।भाग 7: आख़िरी अलविदा या नई शुरुआत?

गौरीकुंड से सोनप्रयाग पहुंचकर हमें अलग-अलग रास्तों पर जाना था। अर्णव देहरादून की ओर जा रहा था, हम ऋषिकेश।

बिछड़ने से पहले उसने मेरी ओर देखा और मुस्कुराकर कहा—

"अगर कभी फिर से खुद को खो दो, तो केदारनाथ ज़रूर आना… शायद फिर मिलें…"

मैं कुछ कह नहीं पाई… बस उसकी ओर देखती रही।अंत… या फिर शुरुआत?

वो सफर जो भोलेनाथ की भक्ति से शुरू हुआ था, अब दिल के किसी कोने में अर्णव की यादें छोड़ गया था।

अब हर बार जब मंदिर की घंटियां सुनती हूं, या बारिश होती है… तो एक चेहरा ज़हन में आता है… अर्णव का।

 इसकी अगली किस्त — जहाँ ये यात्रा एक सच्चे प्रेम और नई ज़िंदगी की ओर बढ़े?



kajal Thakur 😊