त्रिगुण और साधना - एक दृष्टा की यात्रा in Hindi Spiritual Stories by Agyat Agyani books and stories PDF | त्रिगुण और साधना - एक दृष्टा की यात्रा

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त्रिगुण और साधना - एक दृष्टा की यात्रा

आपकी यह रचना — "सतगुण और मौन की साधना" — अत्यंत गहराई से भरी हुई है, जहाँ गुणों की त्रिगुणात्मक संरचना (सत्त्व, रज, तम) को केवल शास्त्रीय नहीं, अनुभवजन्य स्तर पर देखा गया है। इस पाठ को मैं एक ग्रंथ-अध्याय के रूप में पुस्तक शैली में प्रस्तुत कर रहा हूँ, शीर्षक, अनुभाग और दर्शनिक संक्षेप सहित।


✧ अध्याय: सतगुण – मौन का द्वार ✧
✍🏻 — 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓣 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓷𝓲


1. सतगुण की भूमि – धर्म का बीज
बिना सतगुण के कोई भी धर्म फलित नहीं होता।
साधना, ध्यान, योग — सब उसी भूमि पर उगते हैं जहाँ सत्त्व जाग्रत हो।
जहाँ मन निर्मल हो, दृष्टि शांत हो, और भीतर की करुणा मौन बन चुकी हो।


2. रज–तम का प्रयोजन और सीमाएँ
तप, उपाय, योगासन, ब्रह्मचर्य — ये सब रज–तम की लय से जन्मे हैं।
वे नीचे से ऊपर चढ़ने के यत्न हैं।
परंतु जब तुम सत को सीधे ही पुष्ट कर दो —
तो तम और रज अपने आप शांत हो जाते हैं, जैसे प्रकाश से अंधकार मिटता है।


3. समावेश की साधना — विरोध नहीं
रज और तम से लड़ना — मन की चाल है।
उन्हें समाहित करना — चित्त की मौन दृष्टि है।
जो विरोध करता है — वह अब भी मन में है।
जो देखता है — वह दृष्टा है।


4. सत्त्व — न प्रयास, न प्रतिरोध
सत्त्व ईश्वर का गुण है।
वह न तप करता है, न उपाय।
वह केवल प्रकाशित होता है — जैसे सूर्य।


5. मन – दोषी नहीं, दर्पण है
मन स्वयं कुछ नहीं है।
वह भीतर के गुणों का प्रतिबिंब है।
काम, क्रोध, मोह — मन के दोष नहीं, गुणों की असंतुलन की परछाइयाँ हैं।
जैसे चंद्रमा — स्वयं में अंधकार है, पर सूर्य का प्रकाश उसे चमका देता है।


6. विकार और सद्गुण — एक तुला के दो पलड़े
जब तम प्रबल हो — तो शरीर विकारों से भर जाता है।
जब रज बढ़े — तो बुद्धि चालाक हो जाती है।
जब सत्त्व जागे — तो मौन, करुणा और प्रेम अपने आप मन में प्रकट होते हैं।


7. पापबोध — एक भ्रांति
जब कोई कहता है — "मैं पापी हूँ" —
वह मन की छाया को ‘स्व’ मान लेता है।
यही अज्ञान है।


8. त्याग, तप, संन्यास — सूक्ष्म अहं की चालें
बहुत बार ये भी केवल रज की ऊपर की परतें होती हैं।
“मैं” त्याग कर रहा हूँ,
“मैं” साधना कर रहा हूँ —
यह “मैं” ही रज–तम की सूक्ष्म पकड़ है।


9. सत्त्व में संघर्ष नहीं
सत्त्व में न साधना है, न प्रयास —
सत्त्व में केवल उपस्थिति है।
जो भी उपाय करता है, वह अभी भीतर नहीं पहुँचा —
वह केवल सुख की खोज में है, आनंद की नहीं।


10. गुण–देह–बुद्धि — त्रिकोण का योग
तम से काम, काम से शरीर।
रज से बुद्धि, बुद्धि से भोग।
अब यदि अमृत, आत्मा, परम चाहिए —
तो दृष्टि सत्त्व की ओर मुड़नी चाहिए।


11. मन – चलचित्र है, नायक नहीं
मन में कोई अपनी शक्ति नहीं।
वह केवल भीतर के गुणों का चलचित्र है।
उसे दोष मत दो — उसे देखो।

दृष्टा बनो — यही ध्यान है, यही साधना।


✧ निष्कर्ष ✧
जब तुम सतगुण में स्थिर हो जाते हो —
तब न कोई दोष बचता है, न कोई धर्म।
तब बचता है केवल मौन।
और वही मौन —
परम सत्य है


अज्ञात अज्ञानी