भूरे रंग की साड़ी पर हल्के पीले फूल छपे हुए थे। गोरी रंगत उस साड़ी में और अधिक निखर रही थी। आंखों पर काला चश्मा, कंधों तक फैले बाल, और माथे पर भूरे रंग की बिंदी — स्त्रीत्व और आत्मविश्वास दोनों का प्रतीक। उसका नाम था — दुर्गा।
वह सेंट्रल बैंक, कर्नल प्लाज़ा में कार्यरत थी। स्वभाव से सौम्य और हास्यप्रिय, लेकिन सामाजिक समस्याओं को लेकर गंभीर। स्त्री-अधिकारों की समर्थक थी, लेकिन अति-उग्र नारीवाद की विरोधी।
लंच टाइम में सभी कर्मचारी कैफ़े में कॉफी का आनंद ले रहे थे। वहीं राहुल और आरुषि के बीच सामाजिक भूमिकाओं को लेकर बहस छिड़ी थी।
राहुल बोला, "समाज में पुरुष का होना अनिवार्य है।"
आरुषि ने कहा, "है, पर औरत ही समाज रचती है। उसके बिना समाज का कोई अस्तित्व नहीं।"
राहुल — "रचना ठीक है, पर रक्षा पुरुष ही कर सकता है। सीमा पर सिर्फ पुरुष ही खड़े हैं।"
आरुषि — "और उन्हें जन्म कौन देता है?"
तर्क-वितर्क चलता रहा। दुर्गा शांत बैठी कॉफी पी रही थी। इतने में राहुल, चिढ़कर, आरुषि के बाल खींच देता है और हंसता हुआ चला जाता है।
आरुषि गुस्से में बुदबुदाती है, "जब जवाब नहीं बना तो बाल बिगाड़ गया गधा!"
दुर्गा मुस्कराती है, बिल देती है और लौट जाती है।
बैंक में राहुल तनाव में था — उसे नौकरी से निकाल दिया गया था। अकाउंट्स में गलत हिसाब करने के कारण। वह दुर्गा को देखता है, पर बिना कुछ बोले चला जाता है।
आरुषि उसे गुस्से से जाता देखकर दुखी होती है। राहुल आरुषि को देखता है और मन में सोचता है कि इसे तो सबसे ज़्यादा मज़ा आया होगा ये सुनकर कि मुझे नौकरी से निकाला गया है।
आरुषि बॉस से राहुल की सफ़ाई दे रही होती है कि उसे नौकरी में वापस रख लिया जाए, पर इसके विपरीत बॉस आरुषि को धमकाता है कि उसे भी नौकरी से निकाल देगा।
छुट्टी हो जाती है, सभी घर चले जाते हैं। दुर्गा के घर के बाहर राहुल उसका इंतज़ार कर रहा होता है।
दुर्गा उसे आश्चर्य से देखती है और बड़ी करुणा व सहानुभूति के स्वर से उसे घर में बुलाती है। उसे कॉफी और सैंडविच खाने को देती है और आश्वासन देती है कि सब ठीक हो जाएगा।
राहुल रोने लगता है — "दुर्गा, मुझे तेरी मदद चाहिए... नौकरी भी चली गई और रूम वाला भी बेदखल कर चुका है। नौकरी के सभी पैसे अय्याशी में खर्च कर चुका हूँ। अब मैं लाचार हूँ, कोई मेरा साथ नहीं दे रहा...."
दुर्गा, सहानुभूति की देवी थी, तुरंत उसे 1 लाख रुपये नगद दे देती है — "जब सब ठीक हो जाएगा, वापस दे देना।"
राहुल चला जाता है। दुर्गा के घर के बाहर उसका मित्र अरविंद मिलता है।
हाथ में पैसे देखकर अरविंद कहता है —
"दुर्गा को तेरे कारनामों के बारे में अभी पता नहीं है बेटा!
अगर उसे पता चल गया न कि इन पैसों से तू क्या करने वाला है...."
अरविंद को जुए की लत थी। वो दुर्गा के घर को आशा की नज़र से देखता हुआ चला जाता है।
राहुल के मन में विष है — हर मर्द के दिल में विष होता है औरत के प्रति।
दुर्गा ने उसकी मदद करके इस विष को और ज़हरीला बना दिया था।
राहुल अपने रूम पर जाता है — वहां एक नाबालिग लड़की को जंजीरों से बांध रखा था। वो तिलमिला रही थी, उसके होठों पर पट्टी बंधी थी, वो रो रही थी, उसका गला रो रहा था।
राहुल अपना जूता खोलते हुए उसे घृणा से देखता है और उसके मुंह पर जोर से जूता फेंककर मारता है।
जूता उसकी आंख पर लगता है, आंख से पानी आ जाता है, लेकिन वो एक कसाई के हाथ में फंसी मुर्गी की तरह फड़फड़ा रही थी। राहुल बोलता है —
"हरामजादी! तेरे पेट में जो पाप पल रहा है, उससे गिराने के लिए आज दुर्गा से भीख मांगनी पड़ी। रोना बंद कर।"
मर्द कितना कमजोर है — उसकी कमजोरी का अंदाज़ा उसके छोटे से अहंकार से लगाया जा सकता है।
राहुल शराब पीता है और डॉक्टर को कॉल करता है।
एक लाख रुपये नगद डॉक्टर को थमा देता है — डॉक्टर अपने क्लीनिक में नाबालिग का ऑपरेशन करने लगता है।
राहुल शराब पीता है — उसे फर्क नहीं पड़ता कि ऑपरेशन का क्या अंजाम होगा।
कुछ को शराब शायर बनाती है और कुछ को शराब हैवान। राहुल हैवान बन गया था।
उसे अपनी हवस का नया शिकार चाहिए था।
उसे आरुषि से घिन आती थी क्योंकि आरुषि के तर्कों से वो हारा था।
शराब जीत की खुशी को बड़ा देती है और हार के तमाचे को भी।
राहुल की आंखें लाल थीं — मादकता के कारण नहीं, विष के कारण।
विष — मर्दानगी का विष था।
राहुल आरुषि के घर जाता है, अपने विष को मुस्कान के नीचे छुपा देता है।
आरुषि बताती है कि किस तरह उसने बॉस को मनाने की कोशिश की थी।
राहुल इंतज़ार कर रहा होता है वारदात को अंजाम देने का।
उसने डॉक्टर के क्लीनिक से निकलते समय एक सिरिंज और स्टेडिव की शीशी चुरा ली थी।
वो आरुषि को कॉफी के लिए कहता है। आरुषि रसोई में कॉफी बना रही होती है और बाहर राहुल सिरिंज में स्टेडिव भर रहा होता है — आरुषि को बेहोश करने के लिए।
आरुषि गीत गुनगुनाते हुए बड़े लाड़ से अपने मित्र के लिए कॉफी बना रही होती है, कि पीछे से राहुल सिरिंज लेकर आता है।
वो सर्प की भांति उसे पकड़ लेता है और सिरिंज गले में घुसेड़ देता है।
आरुषि बेहोश हो जाती है।
राहुल धीरे-धीरे उसके वस्त्र उतारना शुरू करता है, जैसे कसाई मुर्गी की खाल उतारता है।
इतने में उसके ऊपर कोई पानी की बाल्टी पलट देता है — नशे में उसे किसी के आने का अंदाज़ा नहीं हुआ था।
पीछे दुर्गा थी — हाथ में रिवॉल्वर लिए।
दुर्गा आरुषि को उठाकर कमरे में रखती है और राहुल, रिवॉल्वर के डर से स्तंभित खड़ा रहता है।
राहुल माफ़ी की अर्जी लगाता है, उसका सारा नशा टूट जाता है, उसकी सारी झूठी मर्दानगी बह जाती है।
दुर्गा को राहुल के कारनामों का चिट्ठा अरविंद ने 10,000 रुपये के लालच में बता दिया था।
दुर्गा राहुल की आंखों में देखती है, उसका चेहरा पढ़ती है — वहां डर है, हार है, और आत्मा की सड़ांध।
दुर्गा रिवॉल्वर चला देती है, लेकिन रिवॉल्वर से गोली नहीं निकलती — उससे आग निकलती है।
वो लाइटर था।
और राहुल के ऊपर गिरा पानी — पेट्रोल।
वो जल जाता है।
उसकी चीखें गूंज रही होती हैं चारों तरफ।
शायद उसकी चीख से क्लीनिक में पड़ी बच्ची बेहोशी से उठ जाती है — उसका ऑपरे
शन सफल हुआ।
हर महिषासुर के लिए एक दुर्गा होती ही है।
जय माता दी।
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